अगर धर्म के नाम पर होने वाली डिबेट के प्रवक्ता ही जेल चले जाएंगे तब इन डिबेट में कौन आएगा? दिल्ली पुलिस ने दो FIR दर्ज की हैं, इनमें 32 लोगों पर आरोप लगाए गए हैं कि इन लोगों ने सोशल मीडिया और अन्य फोरम में धार्मिक भावनाएं भड़काने का काम किया है. इन 32 लोगों में से कुछ नाम ऐसे भी हैं, जो नियमित रूप से गोदी मीडिया के धर्म वाली डिबेट में आते रहे हैं और बेहद ख़राब बोलते हैं, धार्मिक भावनाओं को उकसाने वाली बातें करते हैं ताकि एक समुदाय के प्रति नफरत फैलती रहे और लोगों के बीच दूरियां बढ़ती रहें. FIR में लिखा है कि सोशल मीडिया, अखबारों में छपे लेख और अन्य मंचों पर इनकी बातों को ध्यान में रखते हुए FIR हुई है. पुलिस को साफ करना चाहिए कि FIR में जो लोग टीवी डिबेट में आते रहे हैं, क्या उन डिबेट में कही गई बातों की भी जांच करेगी? अकसर चैनलों की बहस में लिखा होता है कि वक्ता का विचार उनका है. यह सही है लेकिन घटिया विचार वाले वक्ता को बार-बार बुलाया जाए, बार-बार वह वक्ता भड़काऊ बातें करे, ललकारे तब भी क्या उस चैनल को इसकी छूट मिलनी चाहिए कि वक्ता के विचार से चैनल का कोई लेना-देना नहीं है?
दिल्ली पुलिस की FIR में इलियास शराफुद्दीन का भी नाम है, इस व्यक्ति के बयानों को प्रमुखता से उजागर करने का श्रेय मोहम्मद ज़ुबेर को ही जाता है. आल्ट न्यूज़ के मोहम्मद ज़ुबेर ने इसे हाइलाइट किया है कि यह व्यक्ति टीवी के डिबेट में आकर बहुसंख्यक धर्म को चुनौतियां देता है, उकसाता है, इसे डिबेट में क्यों बुलाया जाता है, इनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं होती है.
इलियास एंकरों को दलाल तक कह देते हैं, फिर भी डिबेट में बुलाए जाते रहते हैं. इसके बाद ज़ुबेर ने दिखाया है कि इलियास शरीफुद्दीन जिन कार्यक्रमों में बुलाए गए हैं, यूट्यूब में उनके व्यूज़ लाखों में मिले हैं. 2017 में रिपब्लिक टीवी के कई डिबेट में इलियास शराफुद्दीन बुलाए जाते हैं, जिसके बाद बाकी चैनलों में इनकी पूछ बढ़ जाती है. ये भारत को सऊदी अरब बनने की इच्छा ज़ाहिर करते हैं और चैनल इनकी इस बात को ट्वीट करता है. तब ऐसी बातों को क्यों नहीं संज्ञान में लिया गया और अब क्यों नहीं लिया जा रहा है क्योंकि टीवी के ज़रिए इनकी बातें सोशल मीडिया से ज़्यादा बड़े वर्ग तक पहुंची हैं. ज़ुबेर ने कई डिबेट शो के क्लिप साझा किए हैं जिनमें इलियास शराफुद्दीन के बयान आपत्तिजनक लगते हैं तब टीवी के डिबेट में आने के कारण मामला क्यों नहीं दर्ज होता है?
दिल्ली पुलिस सोशल मीडिया कंपनियों से और जानकारी मांग रही है. इसमें असदुद्दीन ओवैसी का भी नाम है. ओवैसी ने ट्वीट किया है कि FIR की कापी का कुछ अंश देखा है. इसमें यही नहीं है कि मेरा अपराध क्या है. हत्या के बारे में FIR होगी तो इतना लिखा होगा कि हत्या किस चीज़ से हुई. मुझे नहीं पता कि मेरी किस बात को लेकर FIR हुई है. इस FIR में कई नाम ऐसे हैं जिनका संबंध हरिद्वार की धर्मसंसद से है.
FIR में पूजा शकुन पांडे का भी नाम है जो इस पुरानी तस्वीर में यति नरसिंहानंद के साथ देखी जा सकती हैं. इनके साथ बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा भी हैं. दोनों यति नरसिंहानंद से मिलने गई हैं. दिल्ली पुलिस की FIR में यति नरसिंहानंद और पूजा शकुन पांडे का भी नाम है. इन दोनों के नाम हरिद्वार में हुई धर्म संसद के मामले में भी दर्ज हैं जहां दोनों ने भड़काऊ भाषण दिए थे. अभी दो दिन पहले ग़ाज़ियाबाद पुलिस ने यति नरसिंहानंद से कहा था कि वे जामा मस्जिद जाने के ऐलान पर अमल न करें और जाने का कार्यक्रम रद्द करें. इससे सांप्रदायिक सद्भाव पर असर पड़ता है.
नफरती बातों के प्रति दिल्ली पुलिस आज सतर्क हुई है, अगर तब होती जब पिछले साल दिल्ली में एक धर्मसंसद हुई जहां भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की शपथ दिलाई गई. सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद दिल्ली पुलिस ने इस 4 मई को FIR दर्ज की. कई महीने निकल गए, FIR ही हो रही है. अगर समय पर FIR से ज़्यादा कार्रवाई होती तो आज भारत को शर्मिंदा होने की नौबत नहीं आती.
अब बात करते हैं क़ावी अब्बासी की. आल्ट न्यूज़ के ज़ुबेर ने 10 अप्रैल को क़ावी अब्बासी के बयानों का क्लिप साझा किया कि यह व्यक्ति भड़काऊ बातें कर रहा है. इसका बयान दक्षिणपंथी संगठनों के बयान से अलग नहीं है. यह व्यक्ति इस्लाम की बुनियादी शिक्षा के भी खिलाफ बोलता है और फिर ज़ुबेर दावा करते हैं कि यह व्यक्ति 2018 तक तेलंगाना में बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चा का उपाध्यक्ष था. ज़ुबेर के उजागर करने के बाद हैदराबाद पुलिस कई धाराओं में FIR करती है. इलियास शराफुद्दीन हो या क़ावी अब्बासी या पूजा शकुन पांडे हो या नरसिंहानंद, ज़ुबेर ने सबको उजागर किया कि यह समाज के लिए अच्छा नहीं हो रहा है. आज उसके उजागर किए गए कई नाम दिल्ली पुलिस की FIR में हैं.
2021 के साल में 17 से 19 दिसंबर के बीच हरिद्वार में धर्मसंसद हुई थी. उत्तराखंड पुलिस ने FIR कर दी लेकिन जून आधा बीतने जा रहा है, यह मामला अंतिम नतीजे तक नहीं पहुंचा है. जबकि उस धर्मसंसद में खुलेआम नरसंहार की बात कर रहे थे. इसके लिए बहुसंख्यक समाज के बच्चों से कापी-किताब छोड़ देने की बात तक कही गई. हाउसिंग सोसायटी के व्हाट्सएप ग्रुप में पूछकर देखिए इनके समर्थकों से कि क्या कोई चाहेगा कि पढ़ाई लिखाई छोड़कर धर्मसंसद की बात पर अमल करे? ज़ाहिर है, कोई नहीं चाहेगा.
एडिटर्स गिल्ड आफ इंडिया ने बयान जारी किया है कि कुछ नेशनल न्यूज़ चैनल रेटिंग बढ़ाने और मुनाफा कमाने के चक्कर में रेडियो रंवाडा से प्रेरित हो गए हैं, जिसके प्रसारण के कारण वहां पर लाखों लोगों का नरसंहार हो गया था. ऐसे चैनलों को थोड़ा रुककर सोचने की ज़रूरत है जिनके कारण भारत को दुनियाभर में शर्मिंदगी उठानी पड़ी है. हम पहले भी आपको रेडियो रवांडा के बारे में बता चुके हैं जब रेडियो का प्रस्तोता एक समुदाय को लेकर भड़काऊ बातें करने लगता है, ललकारने लगता है, अपनी नफरती बातों से जोश भर देता है और लोग सड़कों पर आकर लाखों लोगों का कत्ल कर देते हैं.
रवांडा में काबुगा नाम के एक सबसे अमीर व्यक्ति ने 1993 में RTML नाम से रेडियो स्टेशन बनाया. इस चैनल से तुत्सी समुदाय को तिलचट्टा कहा जाता था. लंबे कद के तुत्सी समुदाय के बारे में ऐंकर बोलता था कि लंबे पेड़ों को काट डालो. जिसके बाद अल्पसंख्यक तुत्सी समाज के लाखों लोग मार दिए गए. जब लोग मारे जा रहे थे तब रेडियो स्टेशन पर मारने वालों के नाम पढ़े जाते थे और उनका नाम लिया जाता था जिन्हें मारने का आह्वान किया जाता था. बकायदा बताया जाता था कि फलां व्यक्ति कहां मिलेगा और उसे मार दिया जाता था. 1994 में 100 दिन के भीतर रवांडा में आठ लाख लोगों का नरसंहार कर दिया गया. इसलिए जब भी रेडियो रंवाडा सुनें, सतर्क हो जाएं और गोदी मीडिया को ध्यान से देखें कि ये रेडियो रवांडा की तरह लोगों को दंगााई तो नहीं बना रहा. याद रखिएगा, ये आपके ही बच्चों को दंगाई बनाना चाहते हैं, जिनके डॉक्टर बनने का सपना आप देखते हैं.
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय अदालत बिठाई. इस अदालत ने रेडियो रवांडा और इसके मालिक काबुगा को नरसंहार के कई मामलों में सज़ा सुनाई थी. रेडियो रवांडा ने एक साल में नरसंहार कैसे करा दिया? क्योंकि उसके पहले एक दशक से वहां की राजनीति हुतू समुदाय के भीतर तुत्सी समुदाय के प्रति ज़हर भर रही थी. ज़हर भरने में समय लगता है जैसे गोदी मीडिया आठ साल से ज़हर भर रहा है. व्हाट्सएप ग्रुप में हाउसिंग सोसायटी के मेंबर और रिटायर्ड अंकिल ज़हर को सपोर्ट करते हैं उसी तरह से रवांडा में हुआ. फिर आता है रेडियो रंवाडा. रेडियो का एंकर तुत्सी लोगों को तिलचट्टा बोलने लगता है. सांप बोलने लगता है. गोदी मीडिया या उससे बाहर कई बार एक समुदाय को इस तरह से पुकारा जा चुका है. रेडियो रवांडा का दुनिया भर में उदाहरण दिया जाता है कि जब मीडिया राजनीतिक दल और सरकार का पार्टनर हो जाता है तब वह नागरिकों को ही हत्यारा बनाने लग जाता है. रवांडा में हुतू समुदाय के लोगों ने सौ दिन के भीतर लाखों तुत्सी लोगों को मारा था. भारत का गोदी मीडिया आठ साल से अपने डिबेट के ज़रिए आपके भीतर नफरतें भर रहा है.
किसी भी स्थिति में गोदी मीडिया आपको बच्चो में नफरत भर जाता है. हमारा काम बताना था, जो बताया वही हुआ, नहीं चाहता कि वही होता रहे.