This Article is From Apr 08, 2022

धर्म के नाम पर बेलगाम होते लोग

विज्ञापन
Ravish Kumar

जब आप सड़क पर चलते हैं तो कभी ध्यान दिया है कि सबसे ज्यादा क्या नज़र आता है, याद कीजिए, क्या आपको ये दिखता है कि किस ब्रांड की कार सबसे अधिक है या आपकी जैसी कार दूसरों ने भी ख़रीदी है? ठीक से याद कीजिए तो इससे भी अधिक एक नारा दिखता है जो अगल-बगल से गुज़रती हर दूसरी तीसरी गाड़ी के पीछे लिखा होता है.

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ. आप इस नारे को लिखा देखे बिना भारत में सड़क की कोई यात्रा पूरी नहीं कर सकते. क्या ये नारे सरकार की तरफ से लिखवाए गए हैं, या इन गाड़ी वालों ने अपनी तरफ से लिखवाए हैं या फिर पेंटर ही हर गाड़ी के पीछे लिखते जाता है, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ. मेरे पास इन तीनों प्रश्नों के जवाब नहीं हैं. इतना ज़रूर लगता है कि भारत की सड़कों पर सबसे ज़्यादा दिखने वाला स्लोगन बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ ही होगा. सवाल आपसे हैं कि इस स्लोगन को देखते हुए क्या आप बेटियों के बारे में सोचते हैं? क्या ख़ुद को ख़तरे के रुप में देखते हैं जिनसे बेटियों को बचाना है या आप देख कर भी अनदेखा करते हैं. शायद आप कुछ नहीं सोचते होंगे. मुझे आपकी यही बात सबसे अधिक पसंद है कि आप हर जगह लिखा देखते हैं बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और कुछ नहीं सोचते हैं. इसका मतलब यह भी हुआ कि सूचनाओं के अति प्रचार से समाज पर खास असर नहीं पड़ता है. संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के तहत राज्य सरकारों को जो फंड दिए गए हैं उसका  78.91 प्रतिशत विज्ञापन पर ख़र्च हुआ है. पांच साल में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना के तहत 848 करोड़ का बजट रखा गया है इसमें से केवल 156 करोड़ योजना पर खर्च हुआ, बाकी सारा पैसा विज्ञापन पर. कायदे से इसे विज्ञापन योजना घोषित कर देनी चाहिए.

'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' का ज़िक्र इसलिए किया ताकि हम समझ सकें कि इस योजना का फायदा क्या हुआ. क्योंकि यूपी के एक महंत हैं जिनका नाम बजरंग दास है उन्होंने एक समुदाय की बेटियों का बलात्कार करने की बात कही है.बकायदा जीप के ऊपर लाउड स्पीकर लगाकर, मस्जिद के सामने गाड़ी रोककर यह बात कही है.फिर यही महंत माइक हाथ में लेकर एक समुदाय की बेटियों को ललकारते सुने जाते हैं कि उनका बलात्कार करेंगे.महंत बजरंग मुनि दास की सारी बातें ऐसी हैं कि हमें सुनाने की इच्छा तक नहीं हो रही. वैसे आल्ट न्यूज़ के मोहम्मद ज़ुबेर के ट्विटर हैंडल पर सुना तो पूरा सुना भी नहीं गया. यह व्यक्ति जिस भाषा का इस्तमाल कर रहा है उसे सिर्फ वही लोग सुन सकते हैं जो ऐसे लोगों को चुपचाप फैमिली और हाउसिंग सोसायटी के व्हाट्स एप ग्रुप में फार्वर्ड करते हैं और समर्थन करते हैं.

आप खुद को बेहतर समझते हैं. अगर इन बातों से आपत्ति नहीं है तो अपने घर के बच्चों को सुना सकते हैं. कम से कम पता चले कि जिन चीज़ों को आप अपनी चुप्पी से सपोर्ट कर रहे हैं वो क्यों आपके और आपके बच्चे के लिए ज़रूरी है.कानूनी बंदिशों के कारण हम इनकी बोली नहीं सुना रहे हैं. बलात्कार करने की ललकार के साथ जय श्री राम के नारे सुनकर सिहरन होती है. 

Advertisement

आवाज़ नहीं है लेकिन एक समुदाय की बहू बेटियों के बलात्कार करने के एलान के वक्त इन युवाओं की प्रतिक्रिया तो आप पढ़ ही सकते हैं. कितना गौरव है, कितनी हंसी है. बलात्कार के पक्ष में खड़े समाज के इस सैंपल से भारत के युवाओं का भविष्य स्वर्णिम दिख रहा है. राम के नारे से मर्यादा पुरुषोत्तम की मर्यादाओं की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. नवरात्रि के दिनों पर जब घरो में कन्या पूजन की तैयारी हो रही होगी उस समय यह महंत एक मस्जिद के सामने आकर बहू बेटियों के बलात्कार की बात करते हैं. ईश्वर के नाम पर छोटी छोटी गलतियों से डर जाने वाले लोग महंत की इन बातों को कैसे सपोर्ट कर सकते हैं, लेकिन जब वे महंगाई को सपोर्ट कर सकते हैं तो इन बातों को क्यों नहीं करेंगे, इतना सवाल तो बनता ही है. कम से कम इस सवाल तो लोगों को यह कहने का मौका तो मिलेगा कि वे सपोर्ट नहीं करते हैं. इन हंसते खेलते लड़कों की तरह आप अपने बेटों को बनाना चाहेंगे या अमरीका भेजना चाहते हैं हायर डिग्री के लिए.

Advertisement

आल्ट न्यूज़ के मोहम्मद ज़ुबेर ने एक और वीडियो जारी किया तो उसमें महंत की जीप पर और जीप के अगल-बगल पुलिस भी नज़र आ रही है. साफ है महंत को पुलिस सुरक्षा मिली होगी. बजरंग दास मुनि अपनी सफ़ाई दे रहे हैं और इस सफ़ाई में अस्सी और बीस परसेंट की बात कर रहे हैं ऐसा लग रहा है सफ़ाई कम अपनी बात को सही साबित कर रहे हैं. दूसरे समुदाय पर पत्थरबाज़ी की तैयारी का आरोप लगा रहे हैं फिर प्रशासन क्या कर रहा था, महंत को क्यों बलात्कार की धमकी देनी पड़ी? महंत कहते हैं उन पर नौ बार हमला हुआ है लेकिन क्या प्रशासन ने उन हमलावरों को गिरफ्तार नहीं किया? जो महंत बहू बेटियों के बलात्कार की धमकी दे रहे हैं ?

Advertisement

महंत को आखिर यह हौसला कहां से आया कि पुलिस की मौजूदगी में एक समुदाय के धर्म स्थल के सामने जाकर उसकी बेटियों के बलात्कार की धमकी दे. अमरीका और आस्ट्रेलिया में रहने वाले NRI अंकिल जो रोज़ व्हाट्स एप के वीडियो काल से भारत में ज़हर फैला रहे हैं क्या महंत के इस वीडियो को वहां के मेडिसन स्कावयर में चलाना चाहेंगे? न्यूयार्क के टाइम्स स्कावयर पर दिखाना चाहेंगे? क्या धर्म के नाम पर बलात्कार की मान्यता हासिल की जा रही है? महंत के साथ खड़े छोटे छोटे बच्चों पर क्या असर पड़ेगा, जब ये बलात्कारी बन कर घूमेंगे, तो क्या आपको लगता है कि ऐसे लोगों के रहते समाज में किसी की भी बेटियां सुरक्षित रह पाएंगी. क्या आप ऐसे किसी महंत के पास जाना चाहेंगे जो आपके बच्चों को बलात्कारी होने के लिए उकसाता हो? एडीजी ला एंड आर्डर प्रशांत कुमार ने कहा है सख्त कार्रवाई की जाएगी.

Advertisement

पिछले साल एक ऐसे ही बीमार युवक ने महान खिलाड़ी विराट कोहली की छोटी सी बच्ची के बलात्कार की धमकी दे दी थी. वह साफ्टवेयर इंजीनियर था. नौकरी नहीं थी. लोग काफी नाराज़ हो गए. लोगों की नाराज़गी के दबाव में उस नौजवान को गिरप्तार कर लिया गया. क्या लोग इस महंत से भी नाराज़ हैं, क्या यह महंत भी गिरफ्तार होगा? राष्ट्रीय महिला आयोग ने मामने का संज्ञान लिया है.

क्या महंत बजरंग मुनि पर पहले भी केस दर्ज हुए हैं, और उन मामलों में क्या प्रगति हुई है? महंत बजरंग मुनि को लेकर हमें सितंबर और अक्तूबर 2020 की दो खबरें मिली हैं. एक खबर 12 सितंबर 2020 को जागरण में छपी है.इस खबर में बताया गया है कि बीजेपी के नेता साकेत मिश्र ने बड़ी संगत के प्रबंधक बजरंग मुनि के खिलाफ जमीन पर कब्जे को लेकर मोर्चा खोल दिया और  बड़ी संख्या में लोगों के साथ थाने का घेराव करने पहुंचे. उन्होंने आरोप लगाया कि बजरंग मुनि स्थानीय लोगों की जमीनों पर कब्जे करने के लिए धमका रहे हैं. गार्डों को भेजकर जमीन खाली करने को भयभीत किया जा रहा है.कमाल सरांय निवासी पुत्तीलाल शुक्ल ने बजरंग मुनि के खिलाफ थाने में एक तहरीर भी दी. जिसमें कहा गया कि उनके घर व बाग को जबरन नाम करने के लिए मुनि दबाव बना रहे हैं. जबकि वह अपने घर 1940 से रह रहे हैं. एसडीएम अमित भट्ट ने मौके पर पहुंचकर साकेत मिश्र से वार्ता की.(अमर उजाला चेंज इन) इसके बाद दूसरी खबर 15 अक्तूबर 2020 की है जो अमर उजाला में छपी है कि शहर के रोटी गोदाम स्थित भाजपा नेता साकेत मिश्र के आवास पर कुछ लोगों ने लोहे के टुकड़े से हमला कर दिया है. घटना से भाजपा का परिवार सहमा हुआ है. इस मामले में केस दर्ज हुआ है.हर दिन एक धर्म विशेष के खिलाफ तरह तरह के वीडियो आ रहे हैं,हम कितना दिखाएं और आप कितना देखेंगे. कहीं झंडा लेकर किसी मस्जिद के बाहर हर दिन तमाशा हो रहा है.

उकसाने की कोशिश हो रही है. कहीं शपथ दिलाई जा रही है कि एक धर्म विशेष की दुकानों से सामान नहीं खरीदना है. कई लोग शपथ ले रहे हैं. ऐसे लोगों पर कानूनी कार्रवाई नहीं होती और होती भी तो ऐसी घटनाओं पर असर नहीं होता.यह सब इक्का दुक्का घटनाएं नहीं हैं. आपको भी पता है कि आपकी हाउसिंग सोसायटी में कौन कौन लोग ऐसे मैसेज और वीडियो शेयर करते है और. खुद तो अच्छी कारों में दफ्तर के लिए निकल जाते हैं लेकिन गांव कस्बों के नौजवान इन ज़हरीले वीडियो के चक्कर में हमेशा के लिए पैदल हो जाते हैं. क्या आपको नहीं लगता है कि इस तरह के वीडियो, ललकारने वाले कार्यक्रमों को बंद होना चाहिए, इनमें लगने वाले नारों से एक समुदाय विशेष पर क्या असर पड़ता होगा?  

अगर आप यह समझते हैं कि यह कुछ लोगों का काम है तो आप ग़लत हैं. दरअसल इस तरह की हरकत करने वाले दो तरह के लोग होते हैं. एक कुछ लोग होते हैं और बाकी चुप लोग होते हैं. कुछ लोग हरकत करते हैं और चुप लोग समर्थन करते हैं. कुछ और चुप को मिलाकर देखें तो समाज का एक बड़ा तबका इस काम में उद्योग की तरह लगा है. अपने ही बच्चों में दंगाई मानसिकता भर रहा है. इसकी आड़ में हर दिन नागरिकों के अधिकारों का दमन होता जा रहा है. 

मुझे पता है कि कल से आप इस तस्वीर को देखकर हैरान हैं. मुझे यही पता नहीं कि आप हैरान क्यों हैं. हैरानी की आपाधापी में सबने लिखा है अर्धनग्न अवस्था में खड़े सभी सात पत्रकार हैं लेकिन इसमें एक ही पत्रकार हैं जिनका नाम है कनिष्क तिवारी. सामाजिक कार्यकर्ता आशीष सोनी, रंगकर्मी शिव नारायण कुंदेर, सुनील चौधरी, राष्ट्रीय दलित अधिकर मंच, उज्ज्वल कुंदेर, चित्रकार हैं. इन सभी को इस अवस्था में देखकर आप उस महंत को याद कर रहे हैं जिसने एक समुदाय की बेटियों का बलात्कार करने का एलान किया है या इन लोगों को याद कर रहे हैं जिनके कपड़े पुलिस ने उतार दिए हैं. मुझे निराश मत कीजिए, कहिए कि इससे भी फर्क नहीं पड़ता है. ये तो पहले भी होता था, अब भी होता है. मध्य प्रदेश के सीधी के थाने में बैठे थानेदार के मन में यह ख्याल कहां से आया पहले उन्हीं के श्रीमुख से यह वंदना सुन लेते हैं.मैं चाहता हूं कि स्क्रीन पर यह तस्वीर थोड़ी देर और रहे ताकि NRI अंकिल भी देख सकें.

कनिष्क तिवारी ने फ़ेसबुक पर लिखा है कि जब उनकी दस साल की बेटी ने अख़बार खोला और पापा की अर्धनग्न तस्वीर देखी और पापा से पूछने लगी. कनिष्क तिवारी रोने लगे. इस तस्वीर और इस घटना ने उनकी सामाजिक और पारिवारिक स्थिति पर भी हमला किया है.मानसिक स्वास्थ्य पर कितना बुरा असर पड़ा होगा. अगर आपको ये सभी नंगे लग रहे हैं तो इंस्पेक्टर का बयान सुनाना चाहूंगा. उनका कहना है कि पकड़े हुए लोग पूरे नग्न नहीं थे. हम सुरक्षा की दृष्टि से उनको हवालात में अंडरवियर में रखते हैं जिससे कोई व्यक्ति अपने कपड़ों से खुद को फांसी न लगा ले. सुरक्षा की वजह से हम उनको ऐसे रखते हैं. मनोज सोनी की इस बात ने क्राइम की सारी थ्योरी पलट दी है. अब आप महंगाई की तरह इस बात का भी सपोर्ट कर सकते हैं. सुरक्षा का एंगल आ गया है. पहले लगा कि इंस्पेक्टर सोनी ही ऐसी बात कर रहे हैं लेकिन एडीजी व्यंकटेश राव भी वही बात कह रहे हैं.

हम सुरक्षा की दृष्टि से उनको हवालात में अंडरवियर में रखते हैं जिससे कोई व्यक्ति अपने कपड़ों से खुद को फांसी न लगा ले. सुरक्षा की वजह से हम उनको ऐसे रखते हैं.पत्रकार के कपड़े उतरवा लिए गए, नागरिकों के कपड़े उतरवा लिए गए, क्या सुरक्षा कारणों से इस तरह कपड़े उतरवाए जाते हैं? अब इस मामले की जांच हो रही है और थानेदार को निलंबित कर दिया गया है. एक वीडियो और है. कपड़े उतारने से पहले का वीडियो जब रंगकर्मी और उनके साथी प्रदर्शन कर रहे थे. पुलिस सुरक्षा कारणों से उनके साथ क्या बर्ताव कर रही है देख सकते हैं. 

मामला यह था कि सीधी ज़िले के रंगकर्मी नीरज कुंदेर को गिरफ्तार किया गया. आरोप था कि नीरज ने फेक आई डी बनाकर बीजेपी के विधायक केदारनाथ शुक्ला और उनके बेटे गुरुदत्त के बारे में अभद्र टिप्पणी की थी. नीरज कुंदेर इंद्रावती नाट्य संस्थान के निदेशक हैं. दो अप्रैल को जब रंगकर्मियों ने ज़िला कोतवाली के सामने प्रदर्शन किया तब पुलिसकर्मी उन्हें पीटने लगी. 10-15 रंगकर्मी गिरफ्तार हो गए.कमाल है कि पुलिस कपड़े उतारने का बचाव कर रही है.यह तस्वीर भी दो अप्रैल की है. इसमें पत्रकार कनिष्क तिवारी भी हैं. बाकी आठ और लोग हैं. इन सभी पर भारतीय दंड संहिता की कई धाराओ के तहत मुकदमे दर्ज किए गए हैं. 1894 के प्रिज़न एक्ट के तहत कैदियों को अधिकार बिना है कि अगर किसी कैदी के पास कपड़े नहीं हैं तो राज्य की जवाबदेही बनती है कि उसे कपड़ा दे. संयुक्त राष्ट्र का भी नियम है कि कैदियों को कम से कम कपड़े तो दिए ही जाएंगे. शायद आज के दौर में तन पर अंडरवियर ही बच जाए इतना ही बहुत है. वैसे पुलिस के अफ़सर पर कार्रवाई इसलिए हुई कि तस्वीर वायरल हुई थी.

ख़बर लिखना हर दिन मुश्किल होता जा रहा है. जिन्हें कानून की धज्जियां उड़ानी हैं उन्हें छूट है और पत्रकारों को कानून के नाम पर हर दिन एक नए घेरे में बंद किया जा रहा है. बलिया में नकल की खबर छापने के मामले में गिरफ्तार तीन पत्रकारों की रिहाई को लेकर लगातार आंदोलन चल रहा है. अमर उजाला के पत्रकार दिग्विजय सिंह और अजीत कुमार ओझा,  राष्ट्रीय सहारा के पत्रकार मनोज गुप्ता गिरफ्तार हैं.कांग्रेस नेता अजय कुमार लल्लू और बलिया के  पूर्व विधायक सुरेंद्र सिंह ने आज प्रदर्शन में हिस्सा लिया लेकिन बलिया के पत्रकार अपने स्तर पर हर दिन शहर में मार्च निकालते हैं, धरना देते हैं मगर सुनवाई नहीं. इस वीडियो रिपोर्ट में आप देख सकते हैं कि और हां चुप रहना याद रखिएगा.

भारतीय रिज़र्व बैंक ने जीडीपी की दर का अनुमान घटा दिया है.इस साल आर्थिक सर्वे में कहा गया था कि अगर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत 70-75 डॉलर प्रति बैरल के आस-पास रहने से भारत की जी़डीपी 8 से 8.5 प्रतिशत रहेगी लेकिन अब 100 डॉलर के आस-पास रहने से जीडीपी की दर का अनुमान घटाकर 7.8 प्रतिशत से 7.2 प्रतिशत कर दिया गया है. पहले अनुमान था कि महंगाई की दर 4.5 प्रतिशत रहेगी लेकिन अब 5.7 प्रतिशत का अनुमान है. इसलिए संभाल कर खर्च कीजिए. दवाओं के भी दाम बढ़ने लगे हैं.

सरकार की तरफ से एक अच्छी खबर यह है कि 2021-22 के लिए टारगेट था कि 22.17 लाख करोड़ टैक्स की वसूली होगी लेकिन टारगेट से ज्यादा पांच लाख करोड़ ज्यादा टैक्स की वसूली हुई है. तब क्या सरकार को विदेशी सरकारों की तरह अपने नागरिकों के खाते में कुछ पैसे नहीं देने चाहिए जिससे उन्हें इस महंगाई में राहत मेिले. सीएनजी भी महंगी हो गई है. इस कारण टैक्सी चलाने वालों पर बहुत भार पड़ रहा है. इन्हें सरकार की तरफ से कोई राहत नहीं मिल रही. न टैक्स में न दाम में. टैक्सी चलाकर गुज़ारा करना मुश्किल होता जा रहा है.दुनिया के कई देशों में तेल के दाम बढ़े हैं तो लोगों को समर्थन राशि मिली है, भारत में अनाज के अलावा कुछ नहीं मिला है. दिल्ली के जंतर मंतर पर ओला अबेर चलाने वालों ने प्रदर्शन किया है.

जब भी चुनाव आता है पत्रकार से लेकर तमाम लोग ओला उबेर के ड्राईवर से पूछने लगते हैं कि जनता का नब्ज़ बताएं.कई लोग अपने लेख की शुरूआत ही इस बात से करते हैं कि एयरपोर्ट से काशी विश्वनाथ टेंपल जाते वक्त डाईवर ने क्या कहा. अब कम से कम इन चालकों से देश की आर्थिक हालत के बारे में भी पूछ लीजिए, भले देश का न बता पाएं, अपनी अर्थव्यवस्था की हालत तो बता ही देंगे.