14 जून को प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक ट्वीट किया था कि अगले डेढ़ साल में केंद्र सरकार के सभी विभागों में 10 लाख भर्तियां की जाएंगी. प्रधानमंत्री के उस ट्वीट के सामने प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री जितेंद्र सिंह के जवाब को रखा जाना चाहिए. पूछा जाना चाहिए कि जो सरकार 18 महीने में 10 लाख भर्तियां कर सकती हैं, उस सरकार ने 2014 से 22 के बीच यानी आठ साल में आठ साल से भी कम भर्तियां क्यों की? केंद्र सरकार ने 2014 से लेकर 2020 के बीच मात्र 7 लाख 22 हज़ार ही भर्तियां की हैं.
2018-19 और 2019-20 को चुनावी वर्ष मान लें तो उस साल काफी भर्तियां निकली थीं, खूब प्रचार हुआ था, लेकिन तब भी उन दो वर्षों में 1,85,196 नौकरियां ही दी गईं. जबकि 2014 से 2022 के बीच केंद्र की भर्तियों के लिए 22 करोड़ अप्लिकेशन आए. इन एप्लिकेशन के ज़रिए सरकार के पास कितना पैसा आया, अगर यह सवाल भी पूछा गया होता तो पता चलता कि भर्ती के फार्म से भले युवा को नौकरी न मिले लेकिन सरकार को कमाई हो जाती है. रोज़गार का जब भी सवाल आता है, संख्या भारी-भरकम हो जाती है.
आप दर्शकों से कुछ सवाल हैं, सवाल का मकसद है कि क्या ग़रीबों की तकलीफ़ से जु़ड़ी ख़बरें ग़रीब देख रहे हैं? क्या प्राइम टाइम के करोड़ों दर्शकों में से ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने 1000 रुपए का सिलेंडर भराना छोड़ दिया है? या सारे दर्शक इस श्रेणी के हैं कि उन्हें इस बात से फर्क ही नहीं पड़ता कि गैसे सिलेंडर का दाम 1000 रुपये से अधिक है.
आज के द हिन्दू अखबार में जैस्मिन और विग्नेश ने विश्लेषण किया है. इससे पता चलता है कि 2017 में यूपी और 2019 में लोकसभा का चुनाव था, तब सब्सिडी आसमान से बरस रही थी, चुनाव खत्म हो गया तो सब्सिडी की बारिश बंद हो गई. मई 2020 से मई 2020 के दौरान केंद्र सरकार ने सब्सिडी ही बंद कर दी. चुनावी वर्षों के कारण 2017-2020 तक रसोई गैस पर सबसे अधिक सब्सिडी दी गई. कुल 84,845 करोड़ की सब्सिडी दी गई. लगा कि सरकार चाहती है कि गरीब भी सिलेंडर के बराबर खड़ा हो सके. मगर चुनाव के बाद सब्सिडी में भयानक गिरावट आती है. 2018-19 में 37,209 करोड़ की सब्सिडी दी गई थी, जो 2020-21 में घट कर 11,896 करोड़ हो गई.
अब आदमी का कद सिलेंडर से छोटा होने लग जाता है. इसी 25 जुलाई को केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने राज्य सभा में बताया है कि 2018-19 मेंऔसत प्रति व्यक्ति ( Per connection/customer in PM Ujawala) 3 सिलेंडर था. 2020-21 में 4.39 सिलेंडर हो गया. याद रखना चाहिए कि इस दौरान प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना से तीन सिलेंडर फ्री दिए गए थे. नहीं तो यह औसत कितना कम होता अंदाज़ा लगा सकते हैं. 2021-22 में रसोई गैस की सब्सिडी की राशि 242 करोड़ हो जाती है. कहां तो 4 साल तक हर साल औसतन 24,185 करोड़ की सब्सिडी दी जाती है और उसके बाद 2021-22 में मात्र 242 करोड़. इस बीच दाम बढ़ने लगते हैं और आम आदमी सिलेंडर के बोझ तले दबने लगता है. 200 रुपये की सब्सिडी का एलान होता है लेकिन उसके बाद भी ग़रीबों को एक सिलेंडर 853 रुपये का पड़ता है. क्या यूपी चुनाव और लोक सभा चुनाव के समय करोड़ों रुपये की सब्सिडी वोट के लिए दी गई थी? क्या ये रेवड़ी बांटी गई थी या अधिकार था, अगर अधिकार था तो सब्सिडी 37000 करोड़ से 242 करोड़ कैसे हो गई.
हम बस इतना ही जानना चाहते हैं कि क्या कोई ऐसा दर्शक है जो सिलेंडर खरीदने की स्थिति में है, वह इतने भारी भरकम आंकड़ों को कैसे देखता है, क्या इससे उसका दर्द हल्का होता है या और बढ़ जाता है? पुणे की पुलिस ने जानकारी दी है कि पिछले साल 16 से 25 साल की 1628 साल की महिलाएं घर छोड़ कर भाग गई. जिस समाज में इतनी बड़ी संख्या में औरतें घर वालों से तंग आकर घर से भाग जा रही हों उस समाज में सिलेंडर के दाम को लेकर कौन रो रहा है? क्या उस समाज को वाकई इस बात से फर्क पड़ता है कि पिछले ही साल जब पुणे ज़िले की 1628 औरतें घर से भाग रही थीं, तब भारत भर की जेलों में 2544 लोग हिरासत में दम तोड़ रहे थे. वे पुलिस की यातना से भाग नहीं सकते थे, इसलिए मर गए. ऐसी खबरों की रूटीन छपाई से आपको मुंह दिखाई में जागरुकता मिलती है या नहीं, बस इतना सा सवाल है.
उत्तर प्रदेश, जहां बातों-बातों में राम राज्य घोषित कर दिया जाता, वहां दो वर्षों में पुलिस की हिरासत में 952 लोगों की मौत हो गई. यह देश में सबसे ज्यादा है. जहां कम है, बंगाल और बिहार, वो भी कुछ खास कम नहीं है.आखिर यूपी की पुलिस ऐसा क्या करती रही कि उसकी जेलों में अप्रैल 2021 से लेकर मार्च 2022 के बीच 501 लोगों की मौत हो गई. उसके पहले से वर्ष में हिरासत में हुई मौतों की संख्या 451 थी. दो साल में भारत भर में 4,484 लोगों की मौत हिरासत में होती है.आप कब तक इस जवाब से काम चलाएंगे कि ये तो हमेशा से होता रहा है? जब देश कोरोना के प्रकोप से सहमा था उस दौरान लोकतंत्र की जननी अर्थात विश्व गुरु भारत की जेलों में मरने वालों की संख्या 2544 कैसे पहुंच गई? क्या भारत की जेलें मारने की फैक्ट्री में बदल चुकी हैं? पुलिस के जूतों को मारने का वरदान मिला है या मूंछों को या डंडे को…क्या आप बता सकते हैं?
भारत में कोई कानून कितना प्रभावी है, यह उसके सदुपयोग से नहीं, बल्कि दुरुपयोग से तय होता है. कुछ कानूनों का दुरुपयोग इतना बढ़ जाता है कि उसे हटाकर नया कानून लाया जाता है, ताकि दुरुपयोग जारी रहे. आतंकवाद पर काबू पाने के लिए पहले TADA लाया गया, फिर POTA आया और अब UAPA है. जिसके दुरुपयोग की चर्चा सुनाई देती रहती है.
छत्तीसगढ़ की जेल से 113 लोगों के बाहर आने का यह मंज़र,लगता है, किसी रेल गाड़ी के स्टेशन से उतरे यात्री हैं. कितनी जल्दी हम भूल गए हैं कि बिना किसी सबूत के इन सभी पर UAPA लगा कर पांच साल के लिए कैद कर दिया गया. माओवादी बता दिया गया. यह आंकड़ा ज़रूरी है कि भारत की जेलों में केवल हिरासत में लोग मारे नहीं जाते, बल्कि हिरासत में डाल कर मार देने के दूसरे और भी तरीके हैं. लगे हाथ आपको UAPA का रिकार्ड बता देता हूं. 2018 में UAPA के तहत 1421 लोग गिरफ्तार हुए सज़ा मिली 35 को. 2020 में 1321 लोग गिरफ्तार हुए सज़ा मिली 80 को.
असम के अखिल गोगोई को UAPA की धाराओं में गिरफ्तार कर कई महीने तक जेल में रखा गया. NIA कोर्ट के जज प्रांजल दास ने अपने फैसले में कहा है कि रिकार्ड पर जो दस्तावेज़ पेश किए गए हैं और जिन पर चर्चा हुई है, मैं सोच-विचार कर इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि इन सभी साक्ष्यों के आधार पर नहीं कहा जा सकता कि भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को ख़तरा पहुंचाने के इरादे से आतंकी कार्रवाई की गई या लोगों को आतंकित करने के इरादे से आतंकी कार्रवाई की गई. इसलिए अखिल गोगोई के खिलाफ आरोप तय करने का कोई मामला नहीं बनता है.क्या कानून इसी के लिए काम कर रहा था कि किसी को भी उठाकर UAPA की धारा लगाकर बंद कर दो. ट्विटर पर लिख देने से UAPA लगा दो.
चीफ जस्टिस ही कह चुके हैं कि पुलिस के अफसर नेताओं के हाथ में खेल रहे हैं, दूसरों को फंसा रहे हैं फिर सरकार बदलती है तो वो उस अफसर को फंसाने लग जाती है जो पहले की सरकार में किसी और को फंसा रहा था. इस तरह से आप देखते हैं कि फंसाने का अफसाना चलते रहता है.अगर कानून अपना काम कर रहा है तब फिर चीफ जस्टिस से लेकर तमाम न्यायधीशों को अदालत के भीतर और बाहर ऐसा क्यों कहना पड़ रहा है.
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस ए एस बोपन्ना ने ज़ुबैर के मामले में फैसला सुनाते हुए लिखा है कि जो तथ्य दिए गए हैं, उससे साफ दिख रहा है कि याचिकाकर्ता यानी ज़ुबैर के खिलाफ क्रिमिनल जस्टिस के तंत्र का इस्तेमाल किया गया है. इस बात के बावजूद कि एक ही ट्विट को लेकर अलग अलग FIR दर्ज हुई, याचिकाकर्ता यानी जु़ुबैर को लेकर देश भर में अलग-अलग जांच और पूछताछ होती है. नतीजा यह हुआ कि इन मामले में खुद के बचाव के लिए, यानी ज़मानत दायर करने, उन ज़िलों में जाने के लिए कई वकील रखने पड़े. हर जगह आरोप एक ही था, मगर अलग अलग अदालतों में जाना पड़ा. इसका नतीजा यह निकला कि वह यानी ज़ुबैर आपराधिक प्रक्रियाओं के अंतहीन चक्र में फंस गया जहां प्रकियाएं ही अपने आप में सज़ा हो जाती हैं. हम बता दें कि हम फैसले का शब्दश अनुवाद नहीं पढ़ रहे हैं. कोर्ट ने लिखा है कि पुलिस अफसर का कर्तव्य बनता है कि वह अपने किसी को गिरफ्तार करने से पहले अपने दिमाग़ का इस्तेमाल भी करे. किसी को सज़ा देने के लिए गिरफ्तार नहीं करना चाहिए न ही गिरफ्तारी इसके लिए बनी है.
अगर कानून को इसी तरह काम करने दिया गया और सवाल नहीं उठाए गए तो ज़ुबैर से लेकर अखिल गोगोई, दिशा रवि से लेकर डॉ कफील खान के मामले में कानून के काम से कानून का ही नाम खराब हो जाएगा. इसलिए ED को लेकर उठ रहे सवालों का एक मात्र जवाब यही नहीं हो सकता कि कानून अपना काम कर रहा है. कानून सबके लिए बराबर है. यह बराबर तब होता जब इसकी गिरफ्त में वही लोग नहीं दिखाई देते जो विपक्ष के नेता हैं, जो सरकार से सवाल करते हैं.
पिछले आठ साल में कानून ने जिस तरह से कुछ खास लोगों के खिलाफ काम किया है,उसे लेकर किसी भी सजग नागरिक को चिन्ता होनी चाहिए. अगर कानून अपना काम करता तो एक साल के भीतर 2544 लोगों की मौत पुलिस की हिरासत में नहीं होती है. सरकार को बताना चाहिए कि अवैध NSA लगाने वाले अफसरों के खिलाफ उसने क्या कदम उठाए हैं, किसी पर फर्जी UAPA लगाने वालों के खिलाफ क्या एक्शन लिया है तब उसकी बात में दम नज़र आता कि कानून अपना काम कर रहा है.
आज भी ED ने सोनिया गांधी से पूछताछ की. आज भी कांग्रेस ने ED को लेकर मुख्यालय में प्रदर्शन किया और सचिन पायलट, पवन बंसल,नेट्टा डिसूज़ा, श्रीनिवास बी वी सहित कई नेताओं को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इसके अलावा दूसरे दिन भी कांग्रेस ने ED को लेकर संसद भवन से मार्च निकाला लेकिन विजय चौक पर कई सांसद और नेता हिरासत में ले लिए गए. कांग्रेस ने अपनी महिला सांसद का एक वीडियो ट्विट किया है कि उनके साथ धक्का मुक्की होने के कारण कपड़े फट गए हैं. उधर आज कांग्रेस मुख्यालय में अशोक गहलौत, गुलाम नबी आज़ाद और आनंद शर्मा की प्रेस कांफ्रेंस हुई. कांग्रेस ने कहा कि ED तमाशा कर रही है. राहुल गांधी से पांच दिनों की पूछताछ के बाद सोनिया गांधी से क्या पूछना रह गया है. इनके पास कई साल से दस्तावेज़ हैं और कई बार पूछताछ हो चुकी है. ED का दुरुपयोग कर सरकारें गिराई जा रही हैं. महाराष्ट्र में 28 दिन हो गए लेकिन वहां कोई मंत्रिमंडल नहीं बना है. कांग्रेस ने यह भी आरोप लगाया किED के डर के कारण मीडिया में भी महंगाई और बेरोज़गारी पर चर्चा नहीं होती है. मीडिया मालिक घबराए हुए हैं कि कब ईडी आ जाए.
पूरे भारत में नमामि गंगे 20,000 करोड़ से अधिक का प्रोजेक्ट है,. यूपी सरकार के ही मंत्री दिनेश खटीक ने इस परियोजना में व्यापक भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं. इस बारे में कानून ने अभी तक क्या काम किया और ED ने क्या काम किया, जानकारी नहीं है. विपक्ष आरोप लगता है कि ED का कानून कभी सत्ता पक्ष से जुड़े लोगों के खिलाफ काम नहीं करता, न ही जांच करता है. ED के खिलाफ आरोप लगाने में विपक्ष एकमत है मगर उसके खिलाफ प्रदर्शन के मामले में सबकी रणनीति अलग-अलग है.
जैसे ही शरद पवार ने कहा कि वे महाराष्ट्र कोपरेटिव बैंक घोटाले के मामले में पूछताछ के लिए खुद ED के दफ्तर जाएंगे, सन्नाटा पसर गया. 27 सितंबर को शरद पवार ने ट्विट कर बताया कि इसके बाद मुंबई पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी मिलने आए और कहा कि आपके जाने से महाराष्ट्र और मुंबई में कानून व्यवस्था की दिक्कत हो जाएगी. इसलिए वे ED के दफ्तर न जाएं. उन्हें अगली तारीख बता दी जाएगी. तब ED क्यों बीच रास्ते से लौट आई? क्या राजनीतिक कारण रहे होंगे? उस समय राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पूरे राज्य में ED के खिलाफ प्रदर्शन किया था.जिसके बारे में बीजेपी के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने कहा था कि NCP लोगों की सहानुभूति लेने की कोशिश कर रही है.
ऐसा नहीं है कि विपक्ष ही ED पर विश्वास नहीं करता बल्कि ED भी विपक्ष की सरकारों पर विश्वास नहीं करती है.
आज की ही खबर है कि ED चाहती है कि दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री की जांच केंद्र सरकार के डाक्टर करें. उसे दिल्ली सरकार के डाक्टरों पर भरोसा नहीं है.ED ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई है कि सत्येंद्र जैन को लोक नायक जयप्रकाश अस्तपाल से हटाया जाए. उनकी जांच AIIMS या RML में हो. राजनीति इस स्तर पर जांच एजेंसियों को ले आई कि हंसी आती है. ऐसा लगता है कि एक दिन ऐसा आएगा जब ED को अपना अस्पताल बनाने, उसमें अपना डाक्टर रखने का भी अधिकार और बजट दे दिया जाएगा.
जब केंद्र सरकार और केंद्र की एजेंसियां शक करें तो वह ठीक है लेकिन जब विरोधी दल या विपक्षी सरकारें ED पर शक करें तो वह ठीक नहीं है? दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन भी ED की गिरफ्त में हैं. 30 मई को ही उन्हें गिरफ्तार किया गया था. जैन पर कोलकाता की एक कंपनी के साथ 2015-2016 में हवाला लेनदेन का आरोप है. जैन अभी तक जेल में हैं. उन्हें आज तक स्वास्थ्य मंत्री के पद से नहीं हटाया गया है, आम आदमी पार्टी ने उनकी गिरफ्तारी के विरोध में प्रेस कांफ्रेंस तो की, मुख्यमंत्री केजरीवाल ने भी प्रेस कांफ्रेस की,ED के दुरुपयोग के कई आरोप लगाएलेकिन NCP और कांग्रेस की तरह कोई प्रदर्शन नहीं किया. आम आदमी पार्टी ने कानून लड़ाई का रास्ता चुना
छापों के मामले में बंगाल का राजनीतिक इतिहास कुछ और ही है. 2014 के बाद से तृणमूल के जिन नेताओ पर नारदा और शारदा में भ्रष्टाचार के आरोप लगे. उनमें से कई बीजेपी में आए गए और वापस तृणमूल में भी चले गए. इससे जांच एजेंसियों और उनकी राजनीतिक भूमिका संदिग्ध तो होती है लेकिन इसके बाद भी पार्थ चर्टजी का मामला काफी गंभीर लगता है.
राजनीति का काला सच हर तरफ है.लेकिन जब एक तरफ का ही पैसा पकड़ा जाता है तो विपक्ष में भगदड़ मचना स्वाभाविक है. पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री पार्था चटर्जी की सहयोगी अर्पिता मुखर्जी के घर से 20 करोड़ की राशि पकड़ी गई. ऐसे घोटाले का सच हर तरफ हर राज्य में है लेकिन जो पकड़ा गया उसे तो नहीं छोड़ा जा सकता है. इतनी रकम यहां इस तरह से रखी हुई है.बंगाल में शिक्षा विभाग में नियुक्ति में घोटाले की जांच चल रही है. लेकिन ममता बनर्जी ने ED के खिलाफ इस तरह से अभियान नहीं छेड़ा है, वे जांच की बात करती है लेकिन अभी तक पार्थ चटर्जी का इस्तीफा नहीं हुआ है. विपक्ष के खिलाफ ED की अब तक की कार्रवाई में बंगाल का यह छापा सबसे बड़ा है और गंभीर भी. (यहाँ नया वीओ जोड़ना है)यह ख़बर आज की है.अर्पिता मुखर्जी के एक और घर से बड़ी मात्रा में नगद मिला है. इतने नोट हैं कि गिनती के लिए बैंक अधिकारियों को मौके पर बुलाया गया. ED को अलमारियों से कैश मिला है. साथ ही, कुछ और प्रॉपर्टी के दस्तावेज बरामद हुए हैं
अब हम आपको 1 मई 2016 की एक खबर के बारे में बताना चाहते हैं. यह खबर फाइनेंशियल एक्सप्रेस, बिजनेस स्टैंडर्ड और द हिन्दू में छपी है. ED दिवस के मौके पर एक एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसमें राजस्व सचिव हसमुख आधिया और ED के निदेशक करनाल सिंह थे. हसमुख आधिया बाद में वित्त सचिव भी बने.
ED दिवस के मौके पर हसमुख आधिया ने ही कह दिया कि मामलों को अंजाम तक पहुंचाने में जो देरी होती है, वो समझ से बाहर है. हमें कुछ करना होगा. हर जगह उंगली डालने की ज़रूरत नहीं है. वही केस उठाइये जिसे पूरा कर सकते हैं. यह ठीक बात नहीं है कि कई कई साल तक केस चलते ही रहें.ED के मामलों में सज़ा की दर बहुत कम है. सज़ा पर ध्यान दीजिए. Proof of the pudding is in its eating.मतलब खाने से ही पता चलेगा कि खीर का स्वाद कैसा है. कहने का मतलब है कि जब तक सज़ा नहीं होगी कैसे पता चलेगा कि मामले में दम है.
इसके बाद ED के निदेशक करनैल सिंह उठकर आते हैं और जवाब देते हैं कि अगर किसी को सज़ा नहीं मिली है तो रिहाई भी नहीं मिली है. ये कमाल का जवाब है कि किसी को सज़ा नहीं मिली तो रिहाई भी नहीं मिली है. यही छपा भी है. करनैल सिंह कहते हैं कि मामले कोर्ट में लंबित हैं. हमारे आरोपी बहुत प्रभावशाली लोग हैं. उन्हें कोर्ट जाने में देरी नहीं लगती. आज सुप्रीम कोर्ट में ED की शक्तियों पर एक फैसला आया है. 242 याचिकाएं दायर कर चुनौती दी गई थी PMLA को लेकर जो संशोधन हुआ है उसे करने का अधिकार संसद को नहीं है.मनी लॉड्रिंग की परिभाषा भी बहुत व्यापक है. PMLA के तहत ED
FIR के समान ECIR की कॉपी भी नहीं दी जाती और गिरफ्तारी हो जाती है. जांच के दौरान आरोपी जो बयान देता है उसे ट्रायल के दौरान सबूत मान लिया जाता है. इसके तहत ज़मान की शर्तें बहुत सख़्त हैं, ज़मानत नहीं मिलती हैं. ये सभी प्रावधान मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं . इस विषय पर कपिल सिब्बल,अभिषेक मनु सिंघवी और मुकुल रोहतगी सहित कई वरिष्ठ वकीलों ने बहस की है.सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने ED को लेकर पक्ष रखा है. सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया है कि
2002 में धन शोधन रोकथाम कानून (पीएमएलए) लागू होने के बाद से कथित अपराधों को लेकर सिर्फ 313 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. ऐसे मामलों में अदालतों द्वारा पारित अंतरिम आदेशों द्वारा कवर की गई कुल राशि लगभग 67,000 करोड़ रुपये है . इसके तहत दो आतंकवादियों को सज़ा भी हुई है. उनके पैसे के सोर्स को पकड़ा गया है.
इस मामले की सुनवाई जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रवि कुमार की बेंच के समक्ष चल रही थीं.जस्टिस एएम खानविलकर ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बेंच के सामने सवाल था PMLA में कुछ संशोधन किए गए हैं, वो नहीं किए जा सकते थे. संसद द्वारा संशोधन किया जा सकता था या नहीं, ये सवाल हमने 7 जजों के पीठ के लिए खुला छोड़ दिया है. संशोधन के सवाल पर अब 7 जजों की पीठ फैसला करेगी. इसी के साथ जस्टिस खानविलकर की बेंच ने कहा कि गंभीर अपराध रोकने के लिए कड़े कदम ज़रूरी हैं. मनी लॉन्ड्रिंग ने आतंकवाद को भी बढ़ावा दिया है.इसलिए ईडी अधिकारियों के लिए मनी लॉन्ड्रिंग मामले में किसी आरोपी को हिरासत में लेने के समय गिरफ्तारी के आधार का खुलासा करना अनिवार्य नहीं है. ED अफसर पुलिस अधिकारी नहीं हैं, इसलिए PMLA के तहत एक अपराध में दोहरी सजा हो सकती है. कोर्ट ने सभी ट्रांसफर याचिकाओं को वापस संबंधित हाईकोर्ट को भेज दिया. जिन लोगों को अंतरिम राहत है, वह चार हफ्ते तक बनी रहेगी, जब तक कि निजी पक्षकार अदालत से राहत वापस लेने की मांग ना करें.
ED के इन अधिकारों का प्रभाव बहुत व्यापक है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद क्या कभी उन आरोपों का जवाब मिल पाएगा जो ED को लेकर उठ रहे थे. इस फैसले का असर काफी गहरा होने जा रहा है.अगर भारत की जनता बिना विपक्ष के किसी लोकतंत्र का ख्वाब देख रही है, तो उसे देखने दिया जाए. बस जागने पर मत कहिए कि क्या देख रहे थे. आप यह भी देख रहे हैं कि संसद के दोनों सदनों में व्यवधान पैदा करने के कारण अभी तक 24 सांसद निलंबित किए जा चुके हैं. यही रफ्तार रही तो मानसून सत्र निलंबन सत्र के रुप में याद किया जाने लगेगा.
इसका नतीजा यह है कि संसद परिसर में गांधी जी की मूर्ति के आगे निलंबित सांसद प्रदर्शन कर रहे हैं. सांसदों का कहना है कि संसद में उनके मुद्दों पर बहस क्यों नहीं हो सकती है. हमारे सहयोगी अखिलेश शर्मा ने NDTV.COM पर लिखा है कि विपक्ष के दस सांसदों ने निलंबन के खिलाफ राज्य सभा के सभापति और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू से मुलाकात की है. उन्होंने मांग की है कि निलंबन वापस लिया जाए. मगर जवाब मिला है कि माफी मांगने पर ही निलंबन वापस होगा.अखिलेश ने यह बात सूत्रों के हवाले से लिखी है. यह भी लिखा है कि सरकार अगले हफ्ते महंगाई के मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार है. इस दौरान बताया गया कि 1989 में लोकसभा से 63 सांसद निलंबित किए थे.
2015 में 25 सांसदों को निलंबित किया गया था.विपक्ष ने निलंबन वापसी के लिए माफी मांगने से इंकार कर दिया है और कहा है कि सरकार जनता के मुद्दों पर चर्चा नहीं चाहती,सरकार की अपनी दलील है. सरकार की तरफ से कहा जाता है कि तख्ती लेकर सदन में आने या नारे लगाने पर सांसदों को भारी मन से निलंबित करना पड़ रहा है. सवाल है कि सदन की कार्यवाही पूरे दिन और इस तरह कई दिन के लिए निलंबित किए जाने से क्या अच्छा नहीं होता कि सरकार चार पांच घंटे की चर्चा तुरंत ही मान लेती. आज आम आदमी पार्टी के सांसदों ने गुजरात में शराब से 40 लोगों की मौत को लेकर प्रदर्शन किया. राज्य सभा सांसद संजय सिंह को भी एक सप्ताह के लिए निलंबित कर दिया गया है. गुजरात के वलसाड में आज शराब की पार्टी कर रहे 20 से अधिक लोगों को पकड़ा गया है.