रवीश रंजन शुक्ला की आंखों देखी : बारिश ने दिल्ली को धोया, पोंछा फिर टांग दिया

रवीश रंजन शुक्ला की आंखों देखी : बारिश ने दिल्ली को धोया, पोंछा फिर टांग दिया

दिल्ली की सड़कों पर बारिश के कारण जलभराव (फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

दिल्ली में शनिवार तीन बजे तक हुई 95 मिमी बारिश ने दिल्ली को धो डाला। सड़कें जैसे दरिया में तब्दील हो गईं। पैरों के जूते जलभराव के चलते लोगों के हाथों में आ गए। कई गाड़ियों के साइलेंसर में पानी भर गया, सड़कों पर गड्डे होने से कारों के चैंबर हलाक हो गए। जगह-जगह ट्रैफिक जाम होने से लंबा इंतजार लग गया। हॉर्न की परेशान आवाजों ने पैदल राहगीरों के सिर में दर्द पैदा कर दिया।

दिल्ली में बड़े दिनों बाद आई बारिश ने नौ पेड़ों को ज़मींदोज कर दिया। जिसमें एक राहगीर की मौत हो गई, वहीं तीन खुशकिस्मत रहे। बारिश ने दिल्ली को शंघाई बनाने वालों को पहले धोया, पोंछा और फिर टांग दिया, नेताओं की इन घोषणाओं को अगले साल के मानसून तक सूखने के लिए।

दिल्ली सरकार और नगर निगम के झगड़े पर बारिश जैसे मुस्कुरा रही है। नगर निगम में बैठी बीजेपी वादों की धुरंधर खिलाड़ी है, लिहाजा नगर निगम से कोई तव्वको रखना बेकार है। हालांकि, उत्तरी नगर निगम के मेयर रवींद्र गुप्ता जखीरा फ्लाई ओवर पर जमा पानी निकालने पहुंचे। लेकिन यह ईमानदार कोशिश से ज्यादा फोटोग्राफी कराने की कवायद ज्यादा थी।

शाम तक दिल्ली सरकार का भी एक प्रेस नोट आया कि अपने डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को इलाकों में दौरा करने की हिदायत दे दी गई है, लेकिन कोई ताज्जुब मत मानिएगा अगर रविवार को केजरीवाल एंड कंपनी पंप लगाकर पानी निकालने की मीडियाई कोशिश करने लग जाए।

पीडब्ल्यूडी मंत्री ने दिल्ली के सीवर को बुजुर्ग बताकर उसमें कई कमियां गिना दी है। खैर इस बारिश ने एक सरकारी घोषणा को कुछ समय के लिए अमली-जामा जरूर पहना दिया है और वो है यमुना को टेम्स नदी की तरह साफ रखने की।

बारिश ने यमुना को काले नाले की जगह मटमैली नदी बना दिया है। बदबू की जगह पानी में मिट्टी की सोंधी खुशबू भर दी है।

हालांकि, हम मीडिया वाले बरसात में लोगों की परेशानी दिखाकर मानसून को जरूर अपराधियों के कठघरे में खड़ा कर देते हैं। लेकिन असली अपराधी तो वो हैं, जो बारिश के नाम पर तैयारियां दिखाकर करोड़ों की कमीशन खाते हैं।

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बड़े वादों और घोषणाओं के गुब्बारे फुलाकर लोगों को सपने दिखाते हैं। हर साल बारिश आकर इस गुब्बारे में सुई चुभाकर फोड़ती है, लोग रोते हैं और नेता फिर नए वादों के नए गुब्बारे फुलाने लगते हैं। इसके बाद मीडिया में बहस चलती है कि वादों के गुब्बारों का आखिर क्या हुआ और बारिश हंसते हुए गुलों से महक की तरह उड़ जाती है।