राखी पर छोटे भाई की याद, जिसकी मैं 'सिस्टर नंबर वन' थी

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माधवी मिश्र

भाई बहन का संबंध संसार में हमेशा से ही विशिष्ट स्थान रखता है. बचपन से साथ रहते हुए,लड़-झगड़ कर जीते हुए दिल का एक कोना ये सोच कर भावुक  होता रहता है कि यह भी मेरे ही दिल का एक हिस्सा है. बहनों  के लिए छोटे भाई हमेशा से ही  प्रथम संतान की तरह होते हैं. ये मैंने तब जाना जब मेरे छोटे भाई ने मेरे विवाह के बाद हमारे संबंधों को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया. उसके लिए मैं हमेशा से ही सिस्टर नंबर वन रही. दुनिया की सबसे खूबसूरत बहन रही और ये संबोधन उसकी लिखी हर चिट्ठी में मौजूद  होता था. फ़ोन के ज़माने में भी चिट्ठियां लिखने की आदत उसने जाने कब सीखी, कहां से सीखी. पर वो सारी चिट्ठियां मेरे जीवन की अमूल्य धरोहर बनती गईं.

चिट्ठियों का विषय

विश्व कप के मैच हों या भारत का परमाणु परीक्षण हो या कोई और बात हो, उसकी चिट्ठी आती थी जिसमें मुझे बधाई दी जाती थी. जगजीत सिंह की ग़ज़लों से लेकर, अटल बिहारी बाजपेयी की कविताओं और दुष्यंत की रचनाओं तक, चेकोस्लोवाकिया की स्पेलिंग से लेकर चींटी-हाथी के चुटकुले तक वो हर पल मुझे सिखा रहा होता  था. विकल ऊर्जा से भरा, जीवन की चाहत से लबरेज हर पल को जी रहा था वो. लेकिन नियति ने उसके लिए कुछ और ही सोच रखा था, मात्र 27 साल की अल्प आयु में जीवन की तमाम चुनौतियों, तकलीफों और संघर्षों को झेलता हुआ वो अनंत यात्रा पर चला गया.

आज भी  ये वेदना हृदय को उद्वेलित करती है, बेधती रहती है मानो वह कोई शापित देवपुरुष था जो पृथ्वी लोक पर अपने हिस्से का कोई दंड भुगतने आया था. मेरे लिए यह रिश्ता अन्यतम रहा. राखी का त्योहार मेरे लिए अवसाद और ख़ालीपन ही लाता है. वो साथ जो अब छूट गया है, जो खो  गया है उस साथ का अंत एक युग का अंत होने जैसा है.

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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): लेखिका संगीत मर्मज्ञ हैं. वो उज्जैन के दिल्ली पब्लिक स्कूल की डायरेक्टर हैं. इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.
 

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