कैसे दूर होगी बच्चों में कुपोषण की समस्या, आंगनवाड़ी केंद्रों की भूमिका

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मलिका पांडे

आज भारत डिजिटल दिग्गज, अंतरिक्ष प्रधान और दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश है. इन ऊंचाइयों के सहारे भारत की उपलब्धियों का आसमान दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है. लेकिन प्रगति का असली पैमाना यह है कि क्या हमारे बच्चे अपनी पूरी क्षमता से पनप पा रहे हैं या नहीं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5) के मुताबिक पांच साल से कम उम्र के 35.5 फीसदी बच्चों का कद अपनी आयु के अनुपात में छोटा है. यह कुपोषण की गंभीर समस्या की ओर इशारा करता है. यह न केवल एक स्वास्थ्य चिंता है, बल्कि यह सही कदम उठाने की अपील भी करता है. यह दिखाता है कि बच्चे के जीवन के पहले हजार दिनों में सही पोषण कैसे उसका भविष्य उज्जवल कर सकता है. उसकी लंबाई में हरेक सेंटीमीटर की बढ़ोतरी बच्चे और राष्ट्र के लिए एक नए अवसर का प्रतिनिधित्व करता है.

पोषण वह आधार है, जिस पर सम्मान, शिक्षा और आजीविका की नींव रखी जाती है. एक बच्चे की सोचने-समझने की क्षमता, स्कूल जाने की तैयारी और आगे चलकर उसकी उत्पादकता, इन सबकी शुरूआत सही पोषण से होती है. इस नजरिए से देखा जाए, तो आंगनवाड़ी का हर गर्म भोजन सिर्फ सरकार की ओर से मदद नहीं, बल्कि देश के भविष्य में निवेश है.

आंगनवाड़ी कार्यक्रम का लाभ

भारत ने इस क्षेत्र में अद्भुत महत्वाकांक्षा का प्रदर्शन किया है. सक्षम आंगनवाड़ी और मिशन पोषण 2.0 दुनिया का सबसे बड़ा पोषण और बाल्यावस्था के कार्यक्रम हैं. फरवरी 2025 तक, पोषण ट्रैकर पर 10.12 करोड़ से ज्यादा लाभार्थी रजिस्टर्ड थे. इसमें 72 लाख से अधिक गर्भवती महिलाएं शामिल हैं. करीब दो लाख आंगनवाड़ी केंद्रों को और बेहतर बनाया जा रहा है, इनमें से 57,897 केंद्र अप्रैल 2025 तक सक्षम केंद्रों के रूप में विकसित कर लिया गया था. अब ये केवल राशन वितरण केंद्र नहीं, बल्कि बच्चों के अनुकूल जगह बन गए हैं, जहां एलईडी स्क्रीन, आरओ वाटर फिल्टर, स्मार्ट लर्निंग सामग्री, भारतनेट से इंटरनेट कनेक्शन और पोषण वाटिका जैसी सुविधाएं मौजूद हैं. पोषण मानकों में सात महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्वों को शामिल करने के लिए संशोधन किया गया है. 'पोषण भी, पढ़ाई भी' कार्यक्रम के तहत 31 हजार 114 स्टेट लेवल मास्टर ट्रेनर और एक लाख 45 हजार 481 आंगनवाड़ी वर्करों को प्रशिक्षित किया गया है. इसका मकसद आंगनवाड़ी केंद्रों को प्री-स्कूल का नेटवर्क बनाने का काम शुरू हो सके. 

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तकनीक डिलीवरी प्रणाली को और मजबूत बना रही है. 24 भाषाओं में उपलब्ध पोषण ट्रैकर ऐप, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के काम को डिजिटल बनाता है. यह भोजन, उपस्थिति और विकास की निगरानी करीब-करीब रियल टाइम में करने में सक्षम बनाता है. सेवाएं अब हर जगह उपलब्ध हैं ताकि प्रवासी मांओं को सभी राज्यों में इसका लाभ मिलता रहे. जून 2025 में, 3.7 करोड़ लाभार्थियों को टेक होम राशन (घर ले जाने के लिए) मिला. ये आंकड़े कार्यक्रम के पैमाने और भोजन को सांस्कृतिक प्राथमिकताओं के अनुकूल बनाने के महत्व को उजागर करते हैं, जिससे लाभार्थियों को जो मिल रहा है, वो उसे खाएं भी. 

कौन से बदलाव हैं जरूरी

इसका अगला मोर्चा विकेंद्रीकरण का है. समुदाय द्वारा बनाया गया भोजन, आंगनवाड़ी केंद्र की ओर से बांटे गए राशन की तुलना में, अधिक प्रिय और खाने लायक होता है. ओडिशा का 'मिलेट मिशन' दिखाता है कि कैसे स्थानीय अनाजों को पोषण कार्यक्रमों में शामिल करने से खाने की विविधता में सुधार होता है. इससे किसानों को भी लाभ होता है. उत्तर प्रदेश में 'पोषण वाटिकाओं' के विस्तार ने महिलाओं और समुदायों को ताजा उपज के साथ भोजन को बेहतर बनाने में मदद मिली है. मध्य प्रदेश ने भी मिलेट शामिल करने और समुदाय आधारित अभियानों के साथ प्रयोग किए हैं. ये उदाहरण दिखाते हैं कि विकेंद्रीकरण अलग-अलग जगहों पर सफल हो सकता है. 

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सफलता की ओर ले जाने वाली पांच सीढ़ियां

इन सफलताओं को और आगे बढ़ाने के लिए, पांच कदम महत्वपूर्ण हैं. पहला, पायलट प्रोजेक्ट स्थानीय और लक्ष्य आधारित होने चाहिए. दूसरा, पंचायतों या स्वयं सहायता समूहों के तहत ग्राम पोषण समितियों को खरीद और तैयारी का प्रबंधन करना चाहिए. तीसरा, प्रशिक्षण का विस्तार किया जाना चाहिए. आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, ग्राम प्रधानों और जिले के अधिकारियों को अच्छे से बनाए गए पोषण कार्यक्रम और सर्टिफिकेट कोर्स करवाए जाने चाहिए जिससे वे उम्र और क्षेत्रीय जरूरतों के आधार पर मेन्यू तैयार कर सकें. चौथा, निगरानी कार्यक्रम को तकनीक को संवाद के साथ जोड़ा जाना चाहिए, जिसमें डिजिटल डेटा के साथ सामुदाय की प्रतिक्रिया भी शामिल हो. पांचवां, 'मिशन पोषण' की ताकत मिलजुलकर काम करने में है. समाज कल्याण, महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा और ग्रामीण विकास विभाग को मिलकर काम करना चाहिए, जिससे बच्चे की गर्भ से लेकर स्कूल तक देखभाल की एक अटूट चेन बनाई जा सके.

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पोषण की पहुंच केवल दक्षता के बारे में नहीं है, यह दैनिक जीवन में सशक्तिकरण के लिए भी है. यह अधिकार को दूर-दराज के डिपो से हटाकर गांव की रसोई तक पहुंचता है. यह मांओं को केवल लाभार्थी के रूप में नहीं, बल्कि अपने बच्चों के भविष्य की संरक्षक के रूप में भी सशक्त बनाता है. प्रगति साफ नजर आ रही है, दुर्बलता 21 से घटकर 19.3 फीसदी और आयु के अनुपात में कम वजन 35.7 से घटकर 32.1 फीसदी हो गया है. यह 'मिशन पोषण 2.0' के फोकस को दर्शाता है. पोषण तक पहुंच और सामुदायिक जिम्मेदारी के साथ, इस गति को और प्रभावकारी व गतिशील बनाया जा सकता है. गरिमा के साथ परोसी जानी वाली हर थाली से, भारत का वादा नया होता है. हमें भविष्य में न केवल कुपोषण पर विजय हासिल करना है बल्कि हर बच्चे के लिए सही पोषण सुनिश्चित कर देश की भावना को भी मजबूत करना है. 

डिस्क्लेमर: लेखिका भारत सरकार के कई प्रमुख मंत्रालयों में काम कर चुकी हैं और नीतिगत मामलों की विशेषज्ञ हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.  

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