मालदीव ने अपने 60वें स्वतंत्रता दिवस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है. पीएम मोदी का समारोह में शामिल होना दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण कूटनीतिक संबंध की मजबूती ओर इशारा करता है. साल 2018 और 2019 के बाद यह पीएम मोदी की तीसरी मालदीव यात्रा है. वहीं 2023 में राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू के सत्ता संभालने के बाद किसी राष्ट्राध्यक्ष या सरकार के प्रमुख की यह पहली यात्रा है. संयोगवश, यह भारत-मालदीव राजनयिक संबंधों की भी 60वीं वर्षगांठ है. यह इस यात्रा को और भी अधिक प्रतीकात्मक बनाता है. प्रधानमंत्री की यह यात्रा दरअसल औपचारिक सद्भावना से ज्यादा रणनीतिक धैर्य, विकास को सुनिश्चित करने की दिशा में कूटनीतिक और क्षेत्रीय दूरदर्शिता का सोचा समझा मिश्रण है.
भारत-मालदीव के रिश्ते
मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने अपने चुनाव अभियान में 'इंडिया आउट' का नारा दिया था. पदभार ग्रहण करने के बाद उन्होंने इस दिशा में आगे बढ़ते हुए भारत से मालदीव में मौजूद भारतीय सैन्य कर्मियों को हटाने को कहा. इससे संबंधों में अस्थायी तनाव पैदा हो गया था. हालांकि दक्षिण पूर्वी भू-राजनीतिक क्षेत्रों में अपनी स्थिति को बेहतर करने के प्रयास में प्रधानमंत्री मोदी ने मुइज़्ज़ू को उनकी चुनावी जीत पर बधाई दी थी. इससे मालदीव को यह संदेश दिया गया था कि राजनयिक विरोध के बावजूद भी भारत के रास्ते उनके लिए खुले हैं, जिससे इस परिवर्तनकारी यात्रा की नींव रखने में मदद मिली. नतीजतन प्रधानमंत्री की वर्तमान यात्रा के दौरान हुए बहुआयामी समझौते दोनों देशों के बीच संबंधों में मधुरता बहाल करने के प्रयास का संकेत देते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह मालदीव यात्रा दोनों देशो के रिश्तों को एक नया आयाम देगी.
मालदीव द्वारा चीन के साथ नजदीकियां बढाने के सभी प्रयास भू-राजनीतिक परिदृश्य में जगजाहिर हैं. मालदीव द्वारा बीजिंग बेल्ट एंड रोड इंफ्रास्ट्रक्चर फंडिंग हासिल करना और जनवरी 2025 में चीन-मालदीव मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करना इसके प्रमाण हैं. दूसरी तरफ, जब भारत और मालदीव के बीच संबंध पिछले कुछ समय से मधुर नहीं रहे हैं, ऐसे में मालदीव के स्वतंत्रता दिवस में प्रधानमंत्री मोदी का मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होना एक नए राजनयिक संबंध की स्थापना के प्रयास को दर्शाता है. यही नहीं यह यात्रा भारत की 'नेबरहुड फर्स्ट' नीति के प्रति प्रतिबद्धता की तरफ भी इशारा करती है. इस यात्रा को भू-राजनीतिक गतिशीलता के बीच समुद्री क्षेत्रों में चीन की बढ़ती गतिविधियों के मद्देनज़र भारत के विजन सागर/महासागर के समुद्री रणनीति के अनुरूप हिंद महासागर में अपने प्रभाव को बढाने के एक अवसर के रूप में भी देखा जा सकता है. इससे भारत के लिए बहुत हद तक क्षेत्रीय सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक मजबूती सुनिश्चित करना संभव हो सकेगा.
भारत ने मालदीव को कर्ज संकट से कैस उबारा
वहीं मालदीव द्वारा भारत के साथ संबंधों को सुधारने की दिशा में यह प्रयास इसलिए भी माना जा सकता है क्योंकि चीन के साथ मुइज़्ज़ू के कूटनीतिक कोशिशों के बावजूद मालदीव को खाड़ी व चीनी कर्ज दाताओं की रकम को चुकता करने के संबंध में कोई खास मदद नहीं मिली है. इस वजह से मालदीव का विदेशी मुद्रा भंडार कम होता गया और कर्ज बढ़ने से आर्थिक संकट गहराता चला गया. ऐसे में भारत ने 40 करोड़ अमेरिकी डॉलर और तीन हजार करोड़ भारतीय रुपये की मुद्रा विनिमय, ट्रेजरी-बिल रोलओवर और 45 करोड़ अमेरिकी डॉलर से भी अधिक की क्रेडिट लाइन के माध्यम से मालदीव को संप्रभु ऋण के दीवालिएपन से बचा लिया था. 'नेबरहुड फर्स्ट' नीति के तहत प्रधानमंत्री मोदी के इसी बचाव कार्य के परिणामस्वरूप मालदीव द्वारा राजनीतिक गतिरोध में बदलाव एवं कूटनीतिक मेल-मिलाप की तरफ कदम बढाए जाने लगे.
इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने ऋण, सांस्कृतिक संपर्क, डिजिटल वित्तीय एकीकरण, बुनियादी ढांचा विकास के क्षेत्र में कई समझौते किए.
पीएम मोदी की मालदीव यात्रा में हुए समझौते
प्रधानमंत्री के वर्तमान मालदीव यात्रा के पहले दिन कई प्रमुख मुद्दों को केंद्र में रखते हुए समझौतों पर दोनों राष्ट्र प्रमुखों द्वारा हस्ताक्षर किए गए. इनमें सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी- ऋण, सांस्कृतिक संपर्क, डिजिटल वित्तीय एकीकरण, बुनियादी ढांचे (इंफ्रास्ट्रक्चर) और जलवायु सुरक्षा के लिए भारत द्वारा मालदीव को 4,850 करोड़ की नई ऋण सहायता प्रदान करना तय हुआ. इसके साथ ही हिंद महासागर क्षेत्र में व्यापार, निवेश और व्यावसायिक संबंधों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) और निवेश संधि पर वार्ता की औपचारिक शुरुआत भी हुई. इसका क्रियान्वयन भारत और मालदीव दोनों ही देशों की स्थिति को और मजबूत करेगा. समझौते के तहत पर्यटन, मछली पालन, समुद्री अर्थव्यवस्था (ब्लू इकॉनमी), नवीकरणीय ऊर्जा, स्वास्थ्य सेवाएं, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर (जैसे, UPI/RuPay कनेक्टिविटी) को बढ़ावा देने के अलावे मालदीव के अड्डू में भारतीय वाणिज्य दूतावास की स्थापना और बेंगलुरु में मालदीव का वाणिज्य दूतावास स्थापित करना शामिल है. वहीं मालदीव के हनीमाधू अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के उन्नयन में भारत आर्थिक मदद करेगा. यह दक्षिण भारत के लिए रणनीतिक रूप से फायदेमंद होगा. इसके अलावा ग्रेटर माले कनेक्टिविटी परियोजना का निरंतर कार्यान्वयन में भी भारत के सहयोग को सुनिश्चित किया गया. यह परियोजना पुलों के जरिए मालदीव के आसपास के द्वीपों से जोड़ेगी.25 जुलाई को हुई द्विपक्षीय वार्ता में पीएम मोदी और राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू ने 'व्यापक आर्थिक और समुद्री सुरक्षा साझेदारी' को आधार के संदर्भ में लिया, जो अक्टूबर 2024 में मुइज़्ज़ू की भारत यात्रा के दौरान की गई थी.
हाल के वर्षों में मालदीव ने चीन के साथ अपने संबंधों को मज़बूत किया है, खासकर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई)के तहत तहत कई बुनियादी ढांचे और समुद्री अर्थव्यवस्था जैसे समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं. दोनों देशों ने अपने संबंधों को एक व्यापक रणनीतिक सहयोगात्मक साझेदारी तक बढ़ाया है. इसमें प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाएं और डिजिटल अर्थव्यवस्था के प्रयास शामिल हैं. यही नहीं, चीन ने दक्षिणी एशिया में अपने प्रभुत्व को कायम करने के उद्देश्य से मालदीव में निगरानी और अनुसंधान उपकरण भी तैनात किए हैं. इन सबके बीच प्रधानमंत्री मोदी की यह मालदीव यात्रा रणनीतिक रूप से समयबद्ध है. यह यात्रा मालदीव में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने में बहुत हद तक सहायक होगी. विकास के लिए कर्ज, व्यापार वार्ता और समुद्री सहयोग प्रधानमंत्री की यात्रा में शामिल मुख्य विषय थे. यह यात्रा भारत की क्षेत्रीय श्रेष्ठता को फिर से स्थापित करने की दिशा में एक अच्छी रणनीति साबित होगी. मालदीव का पुनर्संतुलन का प्रयास और चीन से निकटता के बावजूद अपेक्षित सहायता न मिल पाना दर्शाता है कि जमीनी कूटनीतिक जुड़ाव और व्यावहारिक राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए अन्य देशों से निकटता स्थापित करना बेहद जरूरी है. मालदीव का चीन के साथ लगातार संपर्क में होने के बीच प्रधानमंत्री मोदी को स्वतंत्रता दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बनाकर आमंत्रित करना मालदीव की एक संतुलित दृष्टिकोण का संकेत देता है. इसमें वह दोनों पड़ोसी देशों के साथ मज़बूत संबंध बनाए रखने का प्रयास कर रहा है.
मालदीव के रक्षा मंत्रालय की इमारत के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.
दक्षिण एशिया की राजनीति में भारत
भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है. वह चीन को अपने सबसे बड़ी एशियाई प्रतिद्वंदी के रूप में देख रहा है, इसीलिए यह यात्रा औपचारिकता से आगे बढ़कर, टकरावपूर्ण व प्रतिक्रियात्मक रणनीति के विपरीत, रणनीतिक आर्थिक और सुरक्षा सहायता के साथ शांत और सतत संबंध बहाल करने के कूटनीतिक दर्शन पर जोर देती है. रणनीतिक रूप से, प्रधानमंत्री की यह यात्रा दक्षिण-पूर्वी एशिया और हिंद महासागर में प्रोजक्ट मौसम जैसे सुरक्षा ढांचे और कनेक्टिविटी परियोजनाओं के माध्यम से मजबूत करने की दिशा में स्वागत योग्य कदम है. यह भारत को चीन के समुद्री सिल्क रोड (BRI परियोजना) को टक्कर देने में सक्षम होगा. प्रधानमंत्री की यह यात्रा और दोनों राष्ट्र प्रमुख के बीच हुए समझौते भारत-मालदीव संबंधों की दृढ़ता और अनुकूलनशीलता का प्रमाण है. यह अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को मज़बूत करने और क्षेत्रीय स्थिरता एवं विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाने में भारत के सक्रिय दृष्टिकोण को दर्शाता है. जैसे-जैसे दोनों देश इस नई साझेदारी की ओर बढ़ रहे हैं, भारत-मालदीव संबंधों का भविष्य आशाजनक दिखाई दे रहा है, जिसके मूल में दोनों ही देशों का परस्पर विकास निहित है.
अस्वीकरण: लेखक ओडिशा के भुबनेश्वर स्थित कलिंगा इंस्टिट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजी में अंतरराष्ट्रीय व्यापार और विपणन पढ़ाते हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.