संसद के सेंट्रल हॉल में गूंजते यह ठहाके और माइक पर नीतीश कुमार

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Prabhakar Kumar

बहुत दिनों के बाद यह नजारा संसद भवन में देखने को मिला. ठहाके लगाना सिर्फ सेहत के लिए ही नहीं, बल्कि सियासत के लिए भी जरूरी है. शायद हवा बदली है इसलिए अरसे बाद भारतीय राजनीति में हंसी की ऐसी बयार बही है. गर्मी से बेहाल जनता पर हंसी की ये फुहार, ऊपर वाले के करम से बरसी है.

संजीदा से संजीदा बात हंसते हुए कह देना और बात में पुट ऐसा कि सारा सदन हंसने लगे. नीतीश कुमार भी उन चुनिंदा राजनेताओं में हैं, जो चेहरे पर मुस्कान लिए भाषण देते हैं और हंसते हुए बड़ी से बड़ी बात कह जाते हैं और अंदाज ऐसा कि चाहे राजनीतिक दोस्त हो या दुश्मन, दोनों हंसने लगते हैं. बात चाहे बिहार के हित में नरेंद्र मोदी पर दबाव बनाने की हो या फिर यह संदेश देना कि जदयू इस बार अलग तेवर में दिखेगा, दोनों ही बात हल्के-फुल्के ढंग से हंसते हुए कह देना,  यही कला है इन पुराने राजनेताओं की.

भारतीय राजनीति व्यंग से हमेशा गुलजार थी. हमारे देश में कड़वे बोल भी मिश्री के घोल के साथ देने वालों की पूरी पीढ़ी रही है. याद कीजिए महावीर त्यागी को, समाजवादी नेता थे, चीन ने हमारी जमीन हथिया ली थी, तो नेहरू ने कहा कि उस ज़मीन पर कुछ होता नहीं है. महावीर त्यागी ने अपना विरोध कुछ यूं जताया कि विरोधी भी हंस पड़े. उन्होंने नेहरू के गंजे सिर की ओर इशारा करते हुए कहा कि हमारे प्रधानमंत्री के सिर पर भी कुछ नहीं होता, इसका मतलब ये नहीं कि वह बेकार है.

सियासत में व्यंग की बात हो तो लालू यादव के क्या ही कहने. एक जमाना था, लालू यादव जब माइक थमते थे तो लगता था जैसे लाफ्टर चैलेंज शो चल रहा हो. चाहे वह सदन हो या फिर रैली का मंच, अपने हास्य व्यंग्य और ठेठ देसी अंदाज के कारण लालू खासे लोकप्रिय थे.  याद कीजिए लालू प्रसाद यादव के उसे भाषण को जब संसद में उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को कहा, "नेहरू ने आपके बारे में यह भविष्यवाणी की थी कि आप एक दिन इस देश के प्रधानमंत्री बनेंगे. अब आप दो बार प्रधानमंत्री बन चुके हैं. अब तो देश का जान छोड़िए." कहने का अंदाज ऐसा था कि अटल बिहारी वाजपेयी भी ठहाके मार के हंसने लगे.

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खुद वाजपेयी को देखिए. अपने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आने पर वो संसद में उसका जवाब दे रहे थे. उनके लिए इससे संगीन मौका नहीं हो सकता था, लेकिन इसके बावजूद भी वाजपेयी हंसते-हंसते अपनी बात कहते रहे. उन्होंने उस बात का भी जिक्र किया कि “लोग कहते हैं कि वाजपेयी तो अच्छा आदमी है पर गलत पार्टी में है. आप लोग ही बताइए कि अगर मैं आपकी पार्टी में होता तो क्या कर लेता?” कहने का अंदाज ऐसा था कि पक्ष और विपक्ष दोनों ठहाके मारने लगे.

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सहजता से अपनी बात बोलना, बेबाक बोलना और हास्य व्यंग का सहारा लेना, यह सब आप तभी कर सकते हैं जब आप खुद सहज हों, किसी दबाव में ना हों. यह हास्य का पुट अमूमन पिछली पीढ़ी के नेताओं में ही दिखता है. आपको जरूर याद होगा, हुकुमदेव नारायण यादव का वह जानदार भाषण, जिस पर पूरा संसद, पूरे समय हंसता ही रहा. जब हुकुमदेव नारायण यादव ने संसद में कहा कि मैं बकरी गिनने वाला आदमी हूं. मुझे राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) के गणित में ना फसाया जाए.

आजकल की पीढ़ी के राजनेताओं में यह हास्य और व्यंग गायब है, या तो वह लिखा हुआ भाषण पढ़ रहे होते हैं या फिर कुछ ज्यादा ही संजीदा तरीके से अपनी बात कहते हैं. उम्मीद है कि पक्ष और विपक्ष, दोनों तरफ से 18वीं लोकसभा में हंसी के कुछ पल मिलेंगे.

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उम्मीद है कि पुराने नेता नई पीढ़ी के राजनेताओं को राजनीति के गुण के साथ, जीवन का यह गुण भी सिखाएंगे कि
“ले सको तो लो गम हर किसी का
दे सको तो दो हर किसी को दुआ
हंस लो बिना वजह जब भी हंस सको
सेहतमंद रहने की यह सबसे सस्ती दवा”

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प्रभाकर कुमार NDTV में कंट्रीब्यूटिंग एडिटर हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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