गठबंधन सरकार को PM नरेंद्र मोदी ने बड़े अवसर में बदला

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Harish Chandra Burnwal

राष्ट्रपति भवन के खुले प्रांगण में नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, मंच की ओर उठी सबकी निगाहें गठबंधन दलों के उन नेताओं पर थीं, जो शपथ लेने के लिए बैठे थे. प्रधानमंत्री के शपथ लेने के बाद राजनाथ सिंह, अमित शाह, नितिन गडकरी, जगत प्रकाश नड्डा, शिवराज सिंह चौहान, निर्मला सीतारमण, एस. जयशंकर और मनोहरलाल खट्टर ने एक-एक कर शपथ ली. इसके बाद गठबंधन दलों के नेताओं की बारी थी, जिनमें सबसे पहले JDS नेता एच.डी. कुमारस्वामी ने शपथ ली और फिर बाकी नेताओं ने. इनमें जीतनराम मांझी, ललन सिंह, राम मोहन नायडू, चिराग पासवान, जयंत चौधरी, रामदास अठावले शामिल रहे. इन चेहरों को देखकर सबके पास एक ही सवाल था कि यह सरकार कितनी स्थायी होगी, क्या प्रधानमंत्री मोदी वैसे ही काम कर पाएंगे, जैसा उन्होंने पिछले 10 सालों में किया. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार के तीसरे शपथ ग्रहण की इस तस्वीर के ज़रिये साफ़ कर दिया कि देश की जनता ने उन्हें जनादेश के रूप में जो चुनौती दी है, वह उसे बड़े अवसर में बदलने के लिए कटिबद्ध हैं और सक्षम भी, क्योंकि उनके लिए हर परिस्थिति में एक ही मंत्र है - नेशन फर्स्ट.

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संतुलन का फॉर्मूला - नेशन फर्स्ट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस तीसरी बार की सरकार में सभी राज्यों, वर्गों और क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व देकर साफ़ कर दिया कि उन्होंने गठबंधन की चुनौती को कैसे अवसर में बदला है. इस सरकार में जिन 72 मंत्रियों ने शपथ ली, वे 24 राज्यों से आते हैं. इनमें 18 मंत्री उत्तर भारत से, 17 मंत्री पश्चिम भारत से, 15 मंत्री पूर्वी भारत से, 13 मंत्री दक्षिण भारत से, 6 मंत्री मध्य भारत से और 3 मंत्री उत्तर-पूर्वी राज्यों से आते हैं. इन मंत्रियों में 61 भाजपा से हैं, तो 11 मंत्री गठबंधन के सहयोगी दलों से हैं. सबसे खास बात यह है कि तमिलनाडु से, जहां BJP का एक भी सांसद नहीं है, वहां से एल. मुरुगन को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है.

प्रधानमंत्री ने जिस तरह सरकार में संतुलन बनाया है, उससे एक बार फिर साबित हो गया है कि वह अलग-अलग दलों की आकांक्षाओं के मध्य संतुलन रखते हुए देश का तेज़ गति से विकास करने का दमखम रखते हैं. अपने इसी अनुभव की चर्चा करते हुए उन्होंने पांच साल पहले एक निजी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था, ''मुझे गठबंधन सरकारें चलाने का भारी अनुभव है... जब मैं संगठन में था, तब भी हरियाणा में बंसीलाल जी की सरकार में काम किया, चौटाला जी की सरकार में काम किया... जम्मू-कश्मीर में अब्दुल्ला जी के साथ भी काम किया, मुफ्ती साहब के साथ काम किया... गुजरात में चिमनभाई पटेल के साथ काम किया... और यहां प्रधानमंत्री बनकर आया... यह बात सही है कि पूर्ण बहुमत की सरकार बनी, लेकिन हमने अहंकार को पाला नहीं... हमारा मत है कि हिन्दुस्तान की राजनीति ध्रुवीकरण वाली राजनीति है... और एक खेमे का भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व करती है, दूसरा खेमे का नेतृत्व कांग्रेस पार्टी करती है... और कितना ही बहुमत क्यों न आए, हमें सभी साथियों को साथ लेकर ही चलना चाहिए... साथ लेकर चलने से रीजनल एस्पिरेशन को भी एड्रेस कर सकते हैं और देश की एकता को भी मज़बूत कर सकते हैं... हमारे लिए गठबंधन चुनावी चहल-पहल नहीं है... हमारे लिए रीजनल पॉलिटिकल पार्टियों को जोड़ना देश की एकता को जोड़ने के हमारे महान प्रयासों का एक और पहलू है...''

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इसी प्रकार जब उन्होंने NDA की पहली बैठक को संबोधित किया, तो उसमें भी साफ कहा कि सरकार चलाने के लिए भले ही बहुमत की ज़रूरत पड़ती है, लेकिन देश चलाने के लिए सर्वमत ज़रूरी होता है.

क्षेत्रीय आकांक्षा बनाम राष्ट्रीय हित

देश ने लंबे दौर तक देखा है कि क्षेत्रीय भावनाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय हितों को नजरअंदाज़ कर सरकार के लिए चुनौती खड़ी करते रहे हैं. सरकार की इस चुनौती को नरेंद्र मोदी से बेहतर कौन समझ सकता है, क्योंकि 10 साल से अधिक समय तक जहां वह गुजरात प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे, वहीं वह 10 साल तक देश के प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं. इसीलिए एक तरफ जहां वह देश के अलग-अलग राज्यों के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करते हैं, वहीं मंत्रिमंडल में भारतीय समाज के हर वर्ग को भी पूरा अवसर दिया है. इस मंत्रिमंडल में करीब 37.5 प्रतिशत, यानी 27 मंत्री पिछड़े वर्ग, यानी ओबीसी से हैं, और 26 प्रतिशत, यानी 19 मंत्री अनुसूचित जाति-जनजाति और अल्पसंख्यक समाज से हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने देश के हर क्षेत्र और समाज के हर वर्ग को राष्ट्रीय नीति बनाने में अवसर देकर गठबंधन में असंतुलन पैदा करने वालों को संतुलित कर दिया है.

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गठबंधन के धर्म का पालन अनिवार्य

प्रधानमंत्री मोदी ने गठबंधन की सरकार में मंत्रिमंडल बनाते समय सुनिश्चित कर दिया है कि इसमें शामिल सभी दलों के लिए गठबंधन धर्म का पालन करना अनिवार्य है. तमाम दलों से चर्चा की गई और तय किया गया कि एक ही नियम गठबंधन के सभी दलों पर लागू होगा, चाहे वह BJP हो या एक सांसद की पार्टी या फिर बिना सांसद वाला कोई दल. यही वजह है कि 16 सांसदों वाली पार्टी TDP हो या 12 सांसदों वाली JDU, दोनों बड़ी पार्टियों को दो-दो मंत्री पद मिले, तो सिर्फ एक सांसद वाली पार्टी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के जीतनराम मांझी को भी कैबिनेट मंत्री का पद मिला है. मंत्रिमंडल बनाने के लिए पहले ही दिन प्रधानमंत्री मोदी ने BJP अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा, राजनाथ सिंह और अमित शाह को यह जिम्मेदारी दी कि वह गठबंधन दलों से बात करके, नियमों के आधार पर मंत्री बनने वाले व्यक्तियों की सूची तैयार करें. उनकी इस कवायद से साफ हो गया कि गठबंधन दलों के बीच बातचीत की जिम्मेदारी अलग-अलग पार्टियों के नेताओं को आपस में मिलकर निभानी होगी. लेकिन जब महाराष्ट्र की NCP के खाते में सिर्फ राज्यमंत्री का स्वतंत्र प्रभार मिलना तय हुआ, तो उसके नेता प्रफुल्ल पटेल इसके लिए तैयार नहीं हुए. उनका कहना था कि पूर्व की सरकारों में वह कैबिनेट मंत्री के पद पर काम कर चुके हैं और इस बार राज्यमंत्री का स्वतंत्र प्रभार लेने का मतलब उनका डिमोशन होगा. ऐसे में, NCP को इंतजार करने को कहा गया है. इससे साफ है कि प्रधानमंत्री मोदी की इस सरकार में सभी को गठबंधन धर्म का पालन करना ही होगा, इससे कोई समझौता नहीं किया जा सकता.

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दुनिया को नए भारत का स्पष्ट संदेश

नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद के लिए तीसरे शपथ ग्रहण समारोह में जिन राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया, उससे साफ संकेत दे दिया कि गठबंधन सरकार में भी नए भारत की विदेश नीति में कोई परिवर्तन नहीं होने वाला है. इस शपथ ग्रहण समारोह में श्रीलंका के राष्ट्रपति, मालदीव के राष्ट्रपति, सेशेल्स के उपराष्ट्रपति, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री, मॉरिशस के प्रधानमंत्री, नेपाल के प्रधानमंत्री और भूटान के प्रधानमंत्री शामिल हुए. ये उन देशों के राष्ट्राध्यक्ष हैं, जिन्हें चीन, भारत के खिलाफ खड़ा करने का लगातार प्रयास करता रहता है. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इन राष्ट्राध्यक्षों को शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित कर चीन को स्पष्ट कर दिया कि भारत की विदेश नीति चीन के लिए वैसी ही आक्रामक और ठोस होगी, जैसा चीन का व्यवहार और उसकी नीति होगी. उन्होंने इस एक कदम से अमेरिका, रूस समेत दुनिया के तमाम देशों को भी कूटनीतिक संदेश दे दिया कि गठबंधन की सरकार बनने से भारत न कमजोर हुआ है, न होगा.

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विकसित भारत का लक्ष्य सर्वोपरि

देश ने पूर्व की गठबंधन सरकारों में देखा है कि सरकार बनने के बाद भी प्रधानमंत्री को राष्ट्रहित के अनुसार निर्णय लेने से पहले सभी दलों की सहमति का इंतजार करना पड़ता था. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने मंत्रिमंडल बनने के साथ ही राष्ट्रहित में फैसले लेने की अपनी उसी गति को बनाए रखा है, जैसा वह पिछले 10 साल से करते रहे हैं. उन्होंने अपने तीसरे कार्यकाल के पहले ही दिन देश के 9.3 करोड़ किसानों को प्रधानमंत्री सम्मान निधि की 17वीं किश्त जारी कर दी. इस तरह किसानों के खाते में सीधे ₹20,000 करोड़ देने का पहला निर्णय लिया गया. इसके बाद जब कैबिनेट की पहली बैठक हुई, तो उसमें पहला फैसला गरीबों के लिए पक्के मकान और उसमें बुनियादी सुविधाएं देने का लिया गया. गरीबों का जीवन आसान बनाने के लिए 3 करोड़ पक्के मकान बनाने के फैसले को मंजूरी दी गई. जाहिर है, प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कामकाज से यह इरादा साफ कर दिया है कि उनके काम करने की रफ्तार में कोई कमी नहीं आने वाली है.

हरीश चंद्र बर्णवाल वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.