हाल ही में मुंबई के घरेलू और कर्मभूमि शिवाजी पार्क मैदान पर बचपन के कोच दिवंगत रमाकांत अचरेकर की याद में आयोजित एक कार्यक्रम में बहुत ही अस्वस्थ दिख रहे पूर्व क्रिकेटर विनोद कांबली की कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि आए बाल सखा सचिन तेंदुलकर से लंबे समय बाद मुलाकात हुई, तो इस "मिलन" ने अनेक आयाम उकेर दिए. कांबली मंच पर खासे भावुक और सचिन को दुलारते-पुचकारते दिखे. ये भावुक पल फ्रेम-दर-फ्रेम देखते ही देखते सोशल मीडिया पर वायरल हो गए. इन पलों को अलग-अलग चश्मे से देखा जा रहा है. इसी के साथ ही फैंस की यादों में विनोद कांबली (Vinod Kambli) की पुरानी तस्वीरें कौंध गईं, तो बचपन के दिनों में बनाए गए रिकॉर्डों, सचिन तेंदुलकर के तुलना पर चर्चा जोर-भी शोर से शुरू हो गई. मसलन दोनों के शुरुआती दिन, शुरुआती दिनों के प्रदर्शन की तुलना, दोनों की वर्तमान स्थिति, वगैरह-वगैरह ...
यह पहलू कांबली के रवैये, अनुशासनहीनता से नहीं, बल्कि मैदान पर प्रदर्शन से जुड़ा था. खराब दौर सभी खिलाड़ियों के करियर में आता है, लेकिन यह साल 1994 था, जब एक सीरीज ऐसी आई, जिसने उन पर बड़ा "ठप्पा" लगा दिया. पूर्व क्रिकेटर, मीडिया ने मिलकर सुर में सुर लगाया, तो करोड़ों फैंस की जुबां पर यह टैग चढ़ गया! इसने कांबली का उन्हें लेकर मैदान के बाहर चल रहीं चर्चाओं या विवादों के मुकाबले कहीं ज्यादा नुकसान किया. इस दौर में कांबली की अनुशासनहीना, तड़क-भड़क वाली लाइफ स्टाइल ही सुर्खियां बटोर रही थीं. और इस तरह की चर्चाओं ने मैदान के पहलू को नजरअंदाज सा कर दिया.
इतिहास के ऐसे इकलौते बल्लेबाज हैं विनोद
कांबली ने टेस्ट करियर की शुरुआत में ही बड़ा धमाका किया. लेफ्टी बल्लेबाज ने अपने तीसरे ही टेस्ट में वानखेड़े में जिंबाब्वे के खिलाफ 224 रन बना डाले, लेकिन बात यहीं ही खत्म नहीं हुई. कांबली ने इसके बाद जिंबाब्वे के खिलाफ अगली पारी में 227 और फिर श्रीलंका के खिलाफ अगली पारी में कोलंबो में 125 रन बनाए. इन तीनों शतकों ने कांबली को ऐसे क्लब में शामिल करा दिया, जिसमें आज भी कोई दूसरा बल्लेबाज जगह नहीं बना सका है.
माथे पर लग गया यह टैग और...
कांबली के करियर रूपी गाड़ी स्टार्ट होते ही तीसरी गीयर में रफ्तार से बातें कर रही थीं. मीडिया, पूर्व दिग्गजों को उनमें अगला महान बल्लेबाज दिख रहा था. लेकिन फिर जल्द ही साल 1994 का समय आया, जब कर्टनी वॉल्श की टीम भारत दौरे पर आई. वानखेड़े में पहले टेस्ट की पहली पारी में कांबली ने 40 रन बनाए, लेकिन इसके बाद अगली पांच पारियों में चार में जीरो ! कांबली सहित उनके चाहने वालों के बीच सन्नाटा सा पसर गया, तो मीडिया ने यहां उनको लेकर सवाल खड़े करने शूरू कर दिए. एकदम से ही कांबली के बल्ले की हवा निकल गई! 3 टेस्ट की 6 पारियों में 10.66 के औसत से 64 रन. लेकिन प्रदर्शन से ज्यादा इस सीरीज में कांबली पर ऐसा टैग चस्पा कर गया, जिसने उनके करियर पर प्रचंड वार किया.
साल 1995 में घर न्यूजीलैंड के खिलाफ दो टेस्ट खेलने को मिले. पहले टेस्ट में बैटिंग नहीं आई...दूसरे टेस्ट में 28 रन...और यह विनोद का आखिरी टेस्ट बन गया. और वजह बना गढ़ा गया नैरेटिव- "कांबली बाउंसर के खिलाफ कमजोर है", विनोद शॉर्ट-पिच नहीं खेल सकता". लेकिन लेकिन कांबली के इतिहास बनने में एक और भी बड़ी वजह बनी, जिसने उनकी टेस्ट टीम में वापसी पर ब्रेक लगा दिया. साल 1996 विश्व कप के बाद भारतीय क्रिकेट में एक नया "मोड़" आया, जिसने सारे समीकरण कांबली के खिलाफ कर दिए.
...इसलिए फिर कभी नहीं हुई वापसी
साल 1996 में विश्व कप के ठीक बाद अजहरुद्दीन की कप्तानी में भारतीय टीम इंग्लैंड के दौरे पर गई, तो इस दौरे में भारतीय क्रिकेट में कई बड़े परिवर्तन देखने को मिले. यह वही दौरा था, जब कप्तान अजहरुद्दीन से विवाद के कारण नवजोत सिंह सिद्धू दौरा बीच में ही छोड़कर भारत वापस लौट गए थे. इस घटना के कारण गांगुली का "जन्म" हुआ, तो यही वह दौर था, जिससे टीम इंडिया को राहुल द्रविड़ जैसा महान बल्लेबाज मिला. इस दौरे से गांगुली और द्रविड़ के रूप में दो महान खिलाड़ियों का "जन्म" हुआ, तो मिड्ल ऑर्डर में ही नहीं, बल्कि पूरी टीम इंडिया के समीकरण अगले करीब डेढ़-दो दशक के लिए बदल गए.
इन सभी का नतीजा यह रहा कि कांबली घरेलू क्रिकेट में खूब जोर लगाने के बाद भी खुद पर लगे "टैग" को ही हटा सके, तो न ही अगली पीढ़ी के महान दिग्गजों की जल्द ही खींच दी गई बड़ी लकीर के बीच अपने लिए रास्ता बना सके. और सिर्फ 23 साल की उम्र ही एक "टेस्ट सितारा" और चमकने से पहले ही बुझ गया !