This Article is From Dec 14, 2020

किसान आंदोलन के 19 दिनों बाद भी कोई नतीजा नहीं

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Ravish Kumar

किसान आंदोलन में सोमवार का दिन उपवास का रहा. 19 दिन गुज़र गए. आंदोलन किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा है. सोमवार सुबह गृहमंत्री अमित शाह के घर बैठक हुई जिसमें कृषि मंत्री तोमर, कैबिनेट सचिव राजीव गाबा और गृह सचिव अजय भल्ला भी थे. शनिवार और रविवार को टोल नाका और हाइवे बंद करने के बाद किसानों ने आज उपवास का कार्यक्रम रखा था. बताने के लिए कि उनका आंदोलन एकजुट है और जारी है. उन्हें फूट की खबरों से फर्क नहीं पड़ता है. सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक उपवास का कार्यक्रम था. महिलाएं भी आज उपवास पर रहीं. ठंड के कारण अब सभी के लिए मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. हमारे सहयोगी शरद ने बताया कि अब धूप में भी ठंड लग रही है. कुछ दिन पहले तक धूप के कारण दोपहर तक स्वेटर या जैकेट उतारने की नौबत आ जाती थी लेकिन अब हवा बेहद सर्द हो चली है. धूप के बाद भी ठंड जानलेवा लगने लगी है. किसान नेताओं का कहना है कि वे उपवास के ज़रिए यह बताना चाहते हैं कि अन्नदाता भूखा है और सरकार सुन नहीं रही है. आज शरद सिंघु बोर्डर से सोनीपत की तरफ 2 किलोमीटर आगे बढ़ गए, आपको दिखाने के लिए कि ट्रकों और ट्रॉलियों का काफिला कितना लंबा है. वे एक ऊंची इमारत पर चले गए और वहां से अपने कैमरे के ज़रिए बता रहे हैं कि किसान आंदोलन का विस्तार कितना है. आपको आंदोलन कम आंदोलन का शहर नज़र आने लगेगा.

कई लोग सिंधु बॉर्डर कहते हैं. शायद हमने भी एकाध बार कह दिया लेकिन हमारे सहयोगी बार बार ज़ोर दे रहे हैं कि यह सिंघु बॉर्डर है. सिंधु नहीं. मुकेश सिंह सेंगर दिल्ली जयपुर हाईवे की तरफ से रिपोर्टिंग कर रहे थे जिसके एक हिस्से को रविवार को किसानों ने बंद कर दिया था. सोमवार को भी बंद रहा. मुकेश ने बताया कि किसानों को दिल्ली की तरफ आने से रोका जा रहा है. दिल्ली जयपुर हाईवे पर हरियाणा के बावल में किसानों की एक महापंचायत भी हुई. उसके बाद किसान जब दिल्ली की तरफ बढ़े तो रोका गया और करीब 15 किसानों के हिरासत में लिए जाने की खबर आ गई. पुलिस ने ट्रैक्टरों की चाबियां भी छीन लीं. तब किसान सड़क के किनारे ही बैठ गए.

उधर मुंबई के आज़ाद मैदान में किसानों के समर्थन में धरना चल रहा है. कामगार संगठन संयुक्त कृति समिति ने मुख्यमंत्री उद्धव से मिलने का वक़्त मांगा है ये कहते हुए कि ये क़ानून महाराष्ट्र में ना लागू हो. उद्धव ठाकरे ने भी कहा है कि महाराष्ट्र में ऐसा कोई क़ानून नहीं लागू होगा जो किसानों का अहित करेगा.

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अब आप दर्शक एक काम कीजिए. साथ में एक डायरी रखिए और नोट करते चलिए कि किसानों के आंदोलन को क्या क्या नाम दिया जा रहा है. खालीस्तानी, आतंकवादी, पाकिस्तानी, माओवादी, लेफ्टिस्ट, टुकड़े टुकड़े गैंग. ये सब वही नाम हैं जो 2014 के बाद गोदी मीडिया के स्टुडियो से चलने शुरू हुए थे. पहले इसकी चपेट में छात्र और लेखक बुद्धिजीवी आए फिर नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में उतरे लोग कहलाए और अब किसानों को वही सब कहा जा रहा है.

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टिकरी बोर्डर पर मंच पर किसानों ने तिरंगा लहराया. सोचिए इन बातों का कितना असर होता है. जिनके बेटे सीमा पर शहीद होते हैं उन्हें आतंकवादी कह दिया जाता है, खालिस्तानी कह दिया जाता है, माओवादी कह दिया जाता है तब उन्हें तिरंगा लेकर मंच पर आना पड़ता है कि हमारे भीतर उतना ही भारत है जितना सब में है. 

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किसानों को किसान छोड़ कर अब सब कहा चुका है. दलाल से लेकर आतंकवादी तक. लेकिन केंद्रीय मंत्रियों ने अभी तक खालिस्तानी क्यों नहीं कहा, आगे हो सकता है ऐसा बयान आए लेकिन इसे समझना होगा कि पीयूष गोयल, नरेंद्र सिंह तोमर या रविशंकर प्रसाद माओवाद और टुकड़े टुकड़े गैंग का ज़िक्र क्यों कर रहे हैं. 

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पीयूष गोयल को यह तथाकथित किसानों का आंदोलन लगता है, जो किसान आंदोलन ही नहीं है. रविशंकर प्रसाद को ऐसा नहीं लगता है. रविशंकर प्रसाद का बयान सुनिए इतनी बार किसानों का सम्मान किसानों का सम्मान करते हैं जैसे लगता है कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना की याद दिला रहे हों. फिर कहते हैं कि हर जगह वही जीत रहे हैं. जो कि ठीक भी है और किसान भी वोट देते हैं और किसान आगे भी वोट देंगे. लेकिन रविशंकर प्रसाद का यह बयान सुनकर कोई भी सोच में पड़ सकता है कि किसानों का स्थायी भरोसा हासिल करने के बाद भी टुकड़े टुकड़े गैंग का प्रभाव प्रधानमंत्री से ज्यादा हो गया है?

रविशंकर प्रसाद ने कहा, 'नरेंद्र मोदी जी ने कहा है कि जब हम बातचीत करने के लिए तैयार हैं और हम कहने को तैयार हैं कि MSP नहीं हटेगी तो कौन लोग हैं जो यह कह रहे हैं कि जब तक कानून हटेगा नहीं तब तक हम पीछे हटेंगे नहीं. हम भी कहना चाहेंगे बड़ी आदर के साथ कि भारत सरकार किसानों का बहुत सम्मान करती है, नरेंद्र मोदी किसानों का बहुत सम्मान करते हैं और देश के किसान भी मोदी जी के बहुत सम्मान करते हैं और हर जगह हम जीत रहे हैं. लेकिन अगर किसानों के आंदोलन की आड़ में भारत को तोड़ने वाले लोग, टुकड़े टुकड़े लोग पीछे होकर आंदोलन के कंधे से गोली चलाएंगे तो उनके खिलाफ बहुत सख्त कार्रवाई की जाएगी. इस पर कोई समझौता नहीं करेंगे.'

मंत्री जी ने टुकड़े टुकड़े गैंग के खिलाफ कार्रवाई की बात की है, उन किसानों के खिलाफ नहीं जो अपने कंधे पर टुकड़े टुकड़े गैंग वालों को बंदूक रखकर चलाने दे रहे हैं. वैसे टुकड़े टुकड़े गैंग क्या है, इसका सरगना कौन है, इसकी परिभाषा क्या ये सरकार को नहीं मालूम है. यही प्रश्न कांग्रेस सांसद जसबिर सिंह गिल और विंसेट एच पाला ने पूछा तो 11 फरवरी को गृहराज्य मंत्री जी कृष्णा रेड्डी ने लोकसभा में जवाब दिया कि ऐसी कोई सूचना किसी भी एजेंसी के ज़रिए सरकार के ध्यान में नहीं लाई गई है.

भारतीय किसान यूनियन उग्राहां नाम के जिस संगठन ने गिरफ्तार सामाजिक कार्यकर्ताओं की रिहाई की मांग की है वो संगठन शहीद भगत सिंह को अपना आदर्श मानता है और खालिस्तान की धारणा के खिलाफ लड़ता रहा है. उसकी एक नेता हरिंदर बिंदु के पिता की खालिस्तानियों ने हत्या कर दी थी. सिर्फ रिहाई की मांग कर लेने से मंत्री जी को अब यह आंदोलन किसान आंदोलन नज़र नहीं आता है. भीमा कोरेगांव से लेकर दिल्ली दंगों में हुई गिरफ्तारी को लेकर सवाल बहुत पहले से उठ रहे हैं. आप हाई कोर्ट के आदेश की टिप्पणियों को देख सकते हैं जो देवांगना कालिता और नताशा नरवाल की ज़मानत के समय की गई हैं. चूंकि कई धाराएं लगा दी गई हैं इसलिए सभी मामलों में ज़मानत नहीं मिली है. अगर रिहाई की मांग करना माओवादी हो जाना है तो क्या वही माओवादी महाराष्ट्र सरकार में भी घुस गए हैं? क्या रविशंकर प्रसाद ऐसा कह सकते हैं? उन्हें जानकारी होनी चाहिए कि द वायर में 11 जनवरी की एक खबर छपी है. महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार और गृहमंत्री अनिल देशमुख ने मुंबई पुलिस के अधिकारियों से मुलाकात की थी कि भीमा कोरेगांव केस की फिर से जांच हो सकती है या नहीं. दिसंबर 2019 में शरद पवार ने मांग की थी कि एक एसआईटी बना कर पुणे पुलिस की कार्रवाई की जांच करनी चाहिए.

माओवादी भी गज़ब हैं. पुलिस उन्हें जंगल जंगल खोज रही है और ये वहां आ गए हैं जहां पुलिस इतनी अधिक है कि किसान दिल्ली की सीमा पर होते हुए भी 20 दिनों से दिल्ली नहीं जा पा रहे हैं. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा है जो किसानों को आतंकवादी कहते हैं वो इंसान नहीं हैं.

अब आते हैं इस प्रश्न पर कि जब केंद्रीय मंत्रियों ने माओवादी कह दिया, टुकड़े टुकड़े गैंग कह दिया लेकिन खालिस्तानी क्यों नहीं कहा. इसका जवाब 47 पन्नों की ई-पुस्तिका से मिल सकता है जिसे सूचना प्रसारण मंत्रालय ने काफी मेहनत से तैयार किया है. अलग अलग विभागों से हर छोटी जानकारी और तस्वीरें जुटाई हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने सिख समुदाय के लिए कितना सारा काम किया है. आंदोलन किसान कर रहे हैं तो सरकार यह क्यों बता रही है कि सिख समुदाय की धार्मिक ज़रूरतों के लिए क्या क्या किया? क्या किसान सिख धर्म की किसी समस्या को लेकर जमा हुए हैं? फ्लैशबैक में चल कर देखें तो नागरिकता संशोधन कानून का विरोध हो रहा था तब देश की 50 से अधिक यूनिवर्सिटी में प्रदर्शन हो रहे थे लेकिन सरकार की तरफ से सिर्फ जामिया और जेएनयू का नाम लिया जा रहा था. इस ई-पुस्तिका को रेलवे की एक संस्था Indian Railway Catering and Tourism Corporation, IRCTC ने 2 करोड़ लोगों को ईमेल किया है. हिन्दू अखबार के अनुसार 5 दिनों में 2 करोड़ ईमेल किए गए हैं. जब आप IRCTC की साइट से टिकट लेते हैं तो ईमेल देना होता है. उस ईमेल का सरकार इस काम में इस्तमाल करती है.

ब्रोशर पैम्फलेट पर लिखा है प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार का सिख समुदाय का अटूट संबंध. तस्वीरों और सूचनाओं का संकलन करते वक्त ध्यान रखा गया लगता है कि प्रधानमंत्री पगड़ी में दिखें, सर ढंका हो, सरोपा कृपाण सौंपने की एक भी तस्वीर न छूटे. गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री बनने के बाद सिख समाज के साथ जितनी भी मुख्य तस्वीरें थीं लगता है सब इस्तमाल कर ली गई हैं. हर छोटी छोटी चीज़ गिनी गई है. वैसे आपको लग सकता है कि छोटी बात है लेकिन है तो बड़ी ही. जैसे श्री करतारपुर साहिब का दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु भक्तों के लिए उच्च क्षमता युक्त दूरबीन लगाई गई. इसका भी ज़िक्र है. श्री गुरुनानक देव जी की जयंती पर ICCR ने इंटरनेशनल सेमिनार का आयोजन किया. गनीमत है सेमिनार में चाय, फोल्डर और गुलदस्ता पर कितना खर्च हुआ इसका ब्यौरा नहीं दिया गया है. सरकार वाकई उदार है. राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर वर्ष भर कीर्तन, कथा, प्रभात-फेरी लंगर का आयोजन किया गया. इतना अच्छा काम पूरे साल चला और गोदी मीडिया भी बताने से चूक गया. वैसे अगर साल भर सरकार ने लंगर का आय़ोजन किया है, प्रभात फेरी और कीर्तन का आयोजन करवाया है तो दाद देनी चाहिए. किस शहर में और किस गुरुद्वारे के पास लंगर या प्रभात फेरी का आयोजन हुआ है इसकी जानकारी नहीं है और न ही कोई फोटो है. श्री गुरु नानक देब जी की जयंती पर 12 स्थानों पर मल्टी मीडिया प्रदर्शनी का आयोजन किया गया. अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ गनी की राजकीय यात्रा के दौरान उनके अमृतसर स्थित श्री हरमंदिर साहिब के दौरे की व्यवस्था की गई. सोचिए यह कितना बड़ा काम है जैसे व्यवस्था न की गई होती तो अशरफ़ गनी दिल्ली से ऑटो से गए होते. ये भी गिनाया जा सकता है इस बात का श्रेय तो दिया ही जाना चाहिए. 2014 से पहले 18 लाख सिख छात्रों को छात्रवृत्ति दी जाती थी अब 31 लाख सिख छात्रों को मैट्रिक प्री मैट्रिक छात्रवृत्ति दी जा रही है. गुजरात के जामनगर में श्री गुरुगोबिन्द सिंह के नाम पर एक अस्पताल है. इसके पुनर्निमाण और मरम्मती के बाद प्रधानमंत्री ने 4 मार्च 2019 को उद्घाटन किया था उसका भी ज़िक्र किया गया है. अमृतसर और नांदेड़ के बीच विशेष उड़ान की व्यवस्था की गई है इसका ज़िक्र दो बार आया है. सिख विरासत के दुनियाभर में प्रचार वाले चैप्टर में भी और श्री गुरुगोबिन्द सिंह जी की 350वीं जयंती वाले चैप्टर में भी. लगा कि पन्ना भरना है तो एक ही जवाब हर चैप्टर पर लिख दो. चैप्टर सात में लिखा है कि श्री गुरुगोबिन्द सिंह जी की 350वीं जयंती पर सरकार ने भव्य प्रकाश पर्व समारोहों के आयोजन के लिए 100 करोड़ का बजट दिया है. रेलवे को विशेष सुविधाएं देने के लिए 40 करोड़ दिया गया. पटना में डाक टिकट जारी हुआ. पटना के कार्यक्रम को लेकर नीतीश कुमार की भी ज़बरदस्त तारीफ हुई थी. बिहार में भी बीजेपी की ही सरकार है मगर इसे पढ़ कर लगेगा कि प्रकाश पर्व के आयोजन में सिर्फ प्रधानमंत्री और उनकी ही सरकार सक्रिय थी. 

दूरबीन लगाने से लेकर सेमिनार के आयोजन की बातें छोटी हो सकती हैं लेकिन जब सरकार इन्हें गिनाने लगे तो इसका मतलब है कि काफी बड़ी बातें हैं. दूरबीन वाली बात पर रिसर्च के दौरान जो मिला वो ठीक नहीं लगा. सूचना प्रसारण मंत्रालय में अच्छे रिसर्चरों की आवश्यकता है. अमर उजाला से लेकर कई अखबारों में खबर छपी है कि दिसंबर 2019 में दूरबीन हटा ली गई है. क्या इसी दूरबीन के लगाने की बात 47 पन्नों की ई-पुस्तिका में की गई है? संदर्भ से तो यही दूरबीन है. अमर उजाला के अशोक नीर ने रिपोर्ट किया है कि दूरबीन हटाने से श्रद्धालु नाराज़ हैं. यह दूरबीन 2008 में लगाई गई थी जिसका उद्घाटन बाबा सुखदीप सिंह ने 6 मई 2008 को किया था. टाइम्स आफ इंडिया के युद्धवीर राणा की रिपोर्ट है कि डेरा बाबा नानक से दूरबीन हटा ली है. इस ई-पुस्तिका में जहां प्रधानमंत्री दूरबीन लगाने का दावा करते हैं जो 2008 में ही लग चुकी थी. एक खबर मिली है जिससे पता चलता है कि केंद्र सरकार दूरबीन लगाने वाली है जिसका सिख संगठनों ने इसलिए निराशा जताई है कि लगता है कि करतारपुर साहिब कारिडोर नहीं बनेगा. ये खबर नवंबर 2018 में टाइम्स आफ इंडिया में छपी है. लेकिन दो महीने बाद यानी 13 जनवरी 2019 को उनके ही मंत्री डॉ हर्षवर्धन प्रधानमंत्री का भाषण ट्वीट करते हैं कि अब दूरबीन के बजाय अपनी आंखों से नरवाल दरबार साहिब का दर्शन किया जा सकेगा.

हमने दूरबीन के अलावा ज़्यादा रिसर्च नहीं किया. वैसे आपको लगता है कि सरकार कुछ छापना भूल गई हो तो आप सूचना प्रसारण मंत्री को ट्विटर पर रिमाइंड करा सकते हैं. ई-पुस्तिका के अगले संस्करण में आ जाएगा. अब आते हैं बड़ी बातों पर. सरकार ने सिख समुदाय के साथ गहरे रिश्ते साबित करने के लिए कागज़ी मेहनत तो की ही है लेकिन वही गिनाया है जो काम किया है.

सुल्तानपुर लोधी स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट पर 271 करोड़ खर्च किए जा रहे हैं. ऐसा अखबारों से पता चला, ब्रोशर में तो सिर्फ विरासत शहर के रूप में विकसित करने की बात लिखी है. जब पटना में प्रकाश पर्व के समय रेलवे को 40 करोड़ देने की बात लिखी है तो इसके लिए 271 करोड़ क्यों नहीं लिखा गया, ये कापीराइटर की गलती है, मंत्री जी की नहीं. श्री करतारपुर साहिब कारिडोर के निर्माण और विकास में नरेंद्र मोदी सरकार का विस्तार का ज़िक्र है. श्री हरमंदिर साहब को FCRA एक्ट से छूट दी गई. बताया गया है कि सेवा भोज योजना के अंतर्गत वित्तीय सहायता प्रदान करते हुए मोदी सरकार ने लंगर पदार्थों पर जीएसटी माफ किया. 325 करोड़ जीएसटी लौटाई जाएगी. नागकिता संशोधन कानून के तहत अफगानिस्तान पाकिस्तान के उन सिख शरणार्थियों को भारत की नागरिकता पाने में मदद की. अनुच्छेद 370 के हटने से सिख अल्पसंख्यकों को जम्मू कश्मीर में समान अधिकार मिले हैं.

सिख गुरुओं के प्रकाश पर्व समारोहों और बुनियादी ढांचे के निर्माण में 40 करोड़, 100 करोड़, 300 करोड़ खर्च करने की गिनती क्यों हो रही है, पंजाब में खेती करने वाले सारे किसान सिख नहीं हैं. पंजाबी हैं मगर सभी सिख नहीं हैं. वहां ग़ैर पंजाबी भी खेती करते हैं. इस आंदोलन में हरियाणा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु के किसान भी हैं. तो उन किसानों और उनके धर्मों के साथ सरकार के किस तरह के अटूट संबंध हैं, क्या इस पर भी कुछ आने वाला है? उनका धर्म किस आधार पर तय होगा, क्या उनकी पुस्तिका में लव जिहाद से लेकर गौ रक्षा आने लगेगा? वैसे सरकार कभी भी धर्म का इस्तमाल नहीं करती है. नेवर. आय हैव नेवर हर्ड, यू मे आस्क देम अलसो.

हमने IRCTC से सवाल पूछा कि यात्रियों के ईमेल पर इस तरह के ब्रोशर को भेजना क्या उनकी निजता का उल्लंघन नहीं है. हमें जवाब नहीं आया लेकिन सार्वजनिक तौर से जो बयान जारी हुआ है उसमें माना गया है कि ईमेल गया है. कायदे से यह निजता का उल्लंघन है. आपकी पर्सनल जानकारी का राजनीतिक इस्तमाल है. बहुत से ऐसे लोगों को ईमेल गए हैं जो विदेशों में रह रहे हैं. मुमकिन है भारत यात्रा के दौरान उन्होंने IRCTC की साइट पर अपना ई-मेल दिया होगा. उन्हें भी ईमेल से ई-पुस्तिका भेजी गई है. हिन्दी अंग्रेजी और पंजाबी में है. वैसे मैं कई सिख भाइयों को जानता हूं जो तमिल, उर्दू, भोजपुरी ज़बरदस्त बोलते हैं. इतालवी, फ्रेंच और स्पेनिश भी. लेकिन विदेश में रहने वाले ये गुजराती भाई अपनी निजता को लेकर ज़्यादा चिन्तित हैं कि IRCTC ने उनके मेल का इस्तमाल सरकार के प्रचार के लिए क्यों किया.

सरकार ने किसान आंदोलन के काउंटर में प्रचार आंदोलन खड़ा कर दिया है. खूब सारे मंत्री एक दिन कई चैनलों पर एक्सक्लूसिव इंटरव्यू दे रहे हैं. शुक्रवार के प्राइम टाइम में बताया था कि कृषि मंत्रालय ने 106 पन्नों की ई पुस्तिका बनाई है जिसमें कई ऐसे दावे किए गए हैं जो सही नहीं लगते. इन सरकारी प्रचार पुस्तिकाओं से लगता है कि आने वाले दिनों में बात कानून को लेकर कम होगी, माओवादी टुकड़े टुकड़े गैंग और सिख गुरुओं की याद में कराए गए सेमिनार और लगाए गए दूरबीन की ज़्यादा होगी. ई-पुस्तिका में इसका भी ज़िक्र है कि हाउडी मोदी कार्यक्रम के दौरान सिख समुदाय के लोगों ने प्रधानमंत्री को सम्मानित किया था. आप जानते हैं कि विदेशों में बड़ी सभाएं करना राजनीतिक रैलियां करना भी अब विदेश यात्राओं का पार्ट है. जब एक बार आप इसकी बुनियाद रखते हैं तो उसके काउंटर में भी आंदोलन होगा. जब हाउडी मोदी रैली होगी तो काउंटर में भी रैली होगी.

किसान आंदोलन के समर्थन में प्रदर्शन तो न्यूयार्क से लेकर लंदन तक में हुए हैं. लेकिन 22 पूर्व राजदूतों के समूह ने एक पत्र लिख कर कनाडा पर टिप्पणी की है. प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो की आलोचना की है. इस पत्र पर दस्तखत करने वालों में विष्णु प्रकाश भी हैं. पूर्व राजनयिकों ने लिखा है कि कई महत्वपूर्ण गुरुद्वारों पर खालिस्तानी तत्वों का नियंत्रण जिससे उनकी फंड तक पहुंच है. यह लिब्रल्स राजनीतिक दलों के चुनाव अभियान में मदद के काम आता है. यह समय समय पर प्रदर्शन, रैली आदि आयोजित करते हैं जहां भारत विरोधी नारे लगते हैं. खालिस्तानियों और पाकिस्तानी डिप्लोमेट के बीच संपर्क है. पाकिस्तानी डिप्लोमेट ऐसी गतिविधियों में खुल कर भाग लेते हैं और कनाडा सरकार इस पर ध्यान नहीं देती. कनाडा के प्रधानमंत्री की टिप्पणी गैरजरूरी है. डब्ल्यूटीओ में कनाडा एमएसपी को लेकर भारत के रुख का आलोचक है. ऐसे व्यवहार से अंतरराष्ट्रीय मंच पर कनाडा की छवि को धक्का लगेगा. अन्य देश कनाडा के खिलाफ ऐसा ही रुख अपना सकते हैं.

टुकड़े टुकड़े गैंग से बात फिर खालिस्तानी पर आ गई है. इस साल जनवरी फरवरी के महीने में जब नागरिकता संशोधन कानून का विरोध हो रहा था तब उस समय भी बातें घूम फिर कर वहीं आ जाती थीं. कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का एक ट्वीट एक अलग संदर्भ में पेश करना चाहता हूं. हालांकि उनकी बात पीयूष गोयल, रविशंकर प्रसाद की लाइन में ही कही गई है. उन्होंने ल‍िखा था, 'किसानों की आड़ में कुछ लोग राजनीति कर रहे हैं. माननीय श्री @narendramodi जी की सरकार जब किसी भी सेक्टर में किसी के भी खिलाफ नहीं है, तो यह सरकार किसानों के खिलाफ कैसे हो सकती है?' मेरी राय में विशेष आयोजनों को छोड़ कर मंत्री जी को हैशटैग लगाने से बचना चाहिए. ऐसा लग सकता है कि किसानों के आंदोलन के काउंटर में मंत्री जी भी आंदोलन चला रहे हैं. खासकर एक ऐसे समय में जब किसानों को खास किस्म के हैशटैग के साथ किसानों को ट्रोल किया जा रहा है. पर क्या फर्क पड़ता है. कई बातें ऐसी बोली जा रही हैं जो ट्रोल के यहां भी हैं और मंत्रियों के यहां भी. जैसे टुकड़े टुकड़े गैंग. किसान ट्रोल का विरोध कर रहे हैं और यहां ट्रोल किसानों का. 

कुछ तस्वीरें ऐसी भी हैं जिनमें द‍िख रहा है कि सिंघु और टिकरी बार्डर पर जमा किसानों से बातचीत बंद है तो सरकार के पास बात करने के लिए किसान संगठनों की कमी नहीं हो गई है. 14 दिसंबर को भी कृषि मंत्री ने 10 किसान संगठनों के नेताओं से मुलाकात की जो यूपी केरल तमिलनाडु, तेलंगाना, बहार हरियाणा से आए थे. जिन्होंने 3 किसान बिलों का समर्थन किया है. क्या सरकार बताना चाहती है कि यही संगठन ओरिजनल हैं. सिंघु बॉर्डर पर बैठे किसानों के पास किसानों का समर्थन नहीं है, क्या सरकार यह बताना चाहती है कि इस वक्त देश में किसानों का सबसे बड़ा आंदोलन कानून के पक्ष में चल रहा है, विरोध में नहीं.

प्रचार युद्ध के कई मोर्चे खुल गए हैं. किसानों के मुद्दे को छोड़ कर अब बहस उन मोर्चों की तरफ शिफ्ट करेगी और आपको पता ही नहीं चलेगा कि किसान आंदोलन हो क्यों रहा है. जो किसान आंदोलन पर बैठे हैं वो आंदोलन के लिए नहीं बल्कि दिसंबर की सर्दी में पिकनिक मनाने आए हैं. जो सरकार को समर्थन दे रहे हैं वही किसान संगठन हैं.

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