This Article is From Jun 11, 2024

मोदी 3.0 में बिहार-झारखंड को मिला कितना हिस्सा, पोर्टफोलियो मिलने के बाद कहीं खुशी कहीं गम

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Prabhakar Kumar

मोदी मंत्रिमंडल में बिहार से कितने मंत्री बनेंगे? झारखंड को कितना हिस्सा मिलेगा? रविवार को मंत्रियों ने शपथ ले लिया. इसके बाद 24 घंटे लोगों की धड़कनें इस बात को लेकर बढ़ी रही कि किसको क्या विभाग मिलेगा? सोमवार रात इस सस्पेंस से भी पर्दा हट गया. मंत्रियों के विभाग का बंटवारा हो गया. कुछ चेहरे जहां खुशी से खिल उठे, वहीं कई चेहरे लटक गए. मंत्री बनने की खुशी तो थी, लेकिन साथ ही ये मलाल भी था कि उन्हें मनचाहा विभाग नहीं मिल सका, या फिर ऐसा विभाग मिला, जिसमें वो कुछ खास कर पाने की स्थिति में नहीं होंगे.

मंत्रियों को बंगला तो मिलेगा, गाड़ी तो मिलेगी, लेकिन वह हनक नहीं जो बड़े विभागों में मिलती है, जिसका जलवा होता है और विपक्ष ने भी इसे बखूबी भांप लिया. तेजस्वी यादव ने छूटते ही मोदी सरकार पर हमला बोला. विभागों के बंटवारे पर आड़े हाथों लेते हुए कहा कि बिहार के नेताओं को झुनझुना थमा दिया है. क्या यह वाकई झुनझुना है या फिर कुछ ऐसे विभाग भी हैं, जिससे बिहार और झारखंड जैसे प्रदेशों की सूरत और शिरत दोनों बदलेगी.

पहले बात करते हैं उन विभागों की जो जनता दल यूनाइटेड के खाते में गई है .  नीतीश कुमार के बेहद करीबी और पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह को सोपा गया है पंचायती राज विभाग का जिम्मा, कैबिनेट मिनिस्टर के तौर पर और साथ ही उनके खाते में आया है पशुपालन,  मछली पालन एवं डेयरी विभाग का संचालन . यह दोनों ऐसे विभाग हैं जो बिहार जैसे प्रदेश के लिए बहुत ही कारगर साबित हो सकते हैं. बिहार जो की एक कृषि प्रधान प्रदेश है वहां पर अपार संभावना है पशुपालन,  मछली पालन एवं डेयरी विभाग की. इसके अलग अलग योजनाओं से हजारों,  लाखों की संख्या में बेरोजगार युवाओं को इससे जोड़ने की,  ताकि स्वरोजगार के नए अवसर पैदा किया जा सके.

जब यह विभाग भाजपा के गिरिराज सिंह के पास था तो उन्होंने भी इस पर काफी कुछ करने की कोशिश की . कुछ परिणाम जमीन पर दिखा भी, पर बिहार जैसे बड़े राज्य के लिए वह नाकाफ़ी थे . अब जबकी ललन बाबू इसके प्रभार में है और प्रदेश में भी उनकी सरकार है,  तो यह उम्मीद की जा सकती है की पशुपालन,  मत्स्य पालन एवं डेयरी विभाग के स्कीम के सहारे नीतीश और ललन जी जोड़ी बिहार में युवाओं के स्वरोजगार के नए अवसर पैदा कर सकेंगे.

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पंचायती राज विभाग भी नीतीश जी के पसंदीदा विभागों में से एक है. यहां नीतीश जी ने पंचायत में बिहार में महिलाओं को 50% आरक्षण दिया . अब जब यह विभाग केंद्र में उनके खाते में आया तो बहुत सारी ऐसी योजनाएं हैं जिसके सहारे नीतीश कुमार और ललन सिंह बिहार में पंचायत स्तर पर लोगों के जीवन में बदलाव ला सकते हैं.

कृषि विभाग से नीतीश कुमार का है पुराना रिश्ता
 जदयू के खाते में कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री का प्रभार भी आया है,  जहां कर्पूरी ठाकुर जी के पुत्र और जदयू के राज्य सभा सांसद रामनाथ ठाकुर जी राज्य मंत्री बनाए गए हैं . कृषि विभाग से बिहार एवं खुद नीतीश जी का ख़ासा जुड़ाव रहा है . अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में नीतीश कुमार ख़ुद कृषि मंत्री रह चुके हैं और उनका मानना है की कृषि एक ऐसा विभाग है जिससे आप गांव में रह रहे किसानों एवं खेती से जुड़े हुए करोड़ों लोगों की जिंदगी में बदलाव ला सकते हैं. हालांकि कृषि विभाग के कैबिनेट मंत्री का प्रभार शिवराज सिंह चौहान के पास है,  लेकिन इस सरकार में नीतीश कुमार का जो कद है उसे देखते हुए भविष्य में कृषि विभाग से जुड़े कामों को,  बिहार में कोई दिक्कत आए ऐसा लगता नहीं है .

अब बात करें भाजपा के बाकी दो घटक दलों की .  जीतन राम मांझी के हिस्से आया सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग विभाग के कैबिनेट मंत्री का प्रभार.  इस मंत्रालय में बिहार में कुछ खास करने को है नहीं और शायद यही सबसे बड़ा अवसर भी है . बिहार में जहां उद्योग् के नाम पर लगभग मामला शून्य है, वहां मांझी अगर चाहे तो एक बड़ी लकीर खींच सकते हैं. बड़े उद्योग की बात तो बिहार में कोई करता नहीं है,  लेकिन लघु और मध्यम उद्योग में काफी संभावनाएं हैं . मांझी इसमें बहुत कुछ ऐसा कर सकते हैं कि आने वाली पीढ़ियां उन्हें इस बात का श्रेय दें की बिहार में उद्योग लाने में उनका उनकी अहम भूमिका रही .

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पिता और चाचा के बाद अब चिराग को मिला विभाग
चिराग पासवान  को मिला है खाद्य प्रसंस्करण मंत्री का प्रभार, वह भी कैबिनेट मंत्री का . यह मंत्रालय लगभग उनका खानदानी मंत्रालय सा बन गया है. एक समय में यह मंत्रालय उनके पिता स्वर्गीय रामविलास पासवान जी के पास था और बाद में उनके चाचा पारस जी के पास . अब इसका जिम्मा चिराग पासवान के पास है . देखने में तो यह मंत्रालय छोटा सा दिखता है . बजट के लिए लिहाज़ से लगभग साल में इस मंत्रालय के पास 4000 करोड़ का बजट होता है,  पूरे देश में खर्च करने को . लेकिन बिहार में इस मंत्रालय में करने को बहुत कुछ है . आप बात कीजिए मिथिला के मखाने की,  आप बात करें मुजफ्फरपुर के लीची की,  आप बात करें पूरे उत्तर बिहार में होने वाले मक्के की खेती की या आप बात करें हाजीपुर के केले की जहां के सांसद खुद चिराग पासवान है.

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 फसलों को और उसके जुड़े उत्पादों को राष्ट्रव्यापी आयाम देना,  यही इस मंत्रालय का मुख्य काम है . चिराग के पास यह भरपूर मौक़ा होगा इसे ज़मीन पे उतारने का. यह एक ऐसा विभाग है जिसमें पहले बहुत ज्यादा कुछ हुआ नहीं है . हालांकि उनके चाचा पारस ने कोशिश की थी बेगूसराय में एक फूड पार्क स्थापित करके कुछ करने की, लेकिन वह भी इतनी धीमी गति से हुआ की जमीन पर कुछ दिखता नहीं है. अब जबकि चिराग युवा है,  कुछ कर गुजरने की चाहत रखते हैं और चाहते हैं कि एक ऐसी लकीर खींच दें जिसे लोग मिटा ना सके तो इसकी प्रबल संभावना है इस विभाग में . इससे न केवल हजारों की संख्या में रोजगार उत्पन्न किए जा सकते है, बड़ी-बड़ी फूड प्रोसेसिंग की फैक्ट्रियां लग सकती हैं बल्कि बिहार के उत्पाद इस देश के हर थाली में पहुंचा जा सकता है .

बीजेपी के मंत्रियों को क्या मिला? 
अब बात भाजपा के मंत्रियों की . वह मंत्री जो बिहार से आते हैं . गिरिराज सिंह को प्रभार सोपा गया है कपड़ा मंत्रालय का . बिहार में गिरिराज बाबू करेंगे क्या ? कपड़ा उद्योग के नाम पर बिहार में बिल्कुल सन्नाटा है . आपने इतिहास के किताबों पढ़ा होगा या अपने बुजुर्गों से सुना होगा, भागलपुर के सिल्क उद्योग के बारे में . एक समय में भागलपुर को सिल्क नगरी कहा जाता था, जो अब लगभग अमृतप्राय है. भागलपुर से सटा नाथ नगर इसका मुख्य केंद्र है, जहां आबादी मुख्यत मुसलमानों की है. एक समय था यह के लगभग हर घर में सिल्क उद्योग से जुड़े काम होते थे. लेकिन जैसे इसका बाज़ार सिमटता चला गया, माँग कम होती गई, इससे जुड़े लोग या तो प्रदेश के बाहर दूसरी जगह नौकरी करने लग गये या फिर किसी और धंधे से जुड़ गए. गिरिराज बाबू के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी भागलपुर के सिल्क उद्योग को पुनर्जीवित करना और अगर वह ऐसा करने में कामयाब हुए तो यकीन मानिए, गिरिराज सिंह को बहुत दुआवे मिलेगी.

नित्यानंद राय के स्टेटस में कोई फर्क नहीं आया है. वह पहले भी देश के गृह राज्य मंत्री थे और आज भी. उनके बॉस हैं गृह मंत्री अमित शाह.  गृह राज्य मंत्री का कार्यभार ऐसा है कि आप किसी एक प्रदेश के लिए चाह के भी कुछ खास कर नहीं सकते. क्यों ना आप गृह मंत्री ही हो या फिर गृह राज्य मंत्री. इस मंत्रालय में कुछ ऐसा नहीं है जिससे कि आप किसी एक प्रदेश का कुछ खास भला कर सके .


 भाजपा के तीसरे मंत्री हैं चंपारण के सतीश चंद्र दुबे,  जिन्हें राज्य मंत्री बनाया गया है कोयला एवं खान मंत्रालय में . बिहार से झारखंड के अलग होने के बाद बिहार में ना कोयला बचा है और ना खान, तो सतीश चंद दुबे जी अगर बिहार का कुछ बहुत भला करना भी चाहे तो शायद ना कर पाए . कुछ हद तक ये झारखंड का भला कर सकते हैं,  जहां अभी भी खनन उद्योग जीवित है .

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राजभूषण निषाद को भी मिला बड़ा मौका
भाजपा कोटे के चौथे मंत्री जो बिहार से आते हैं वह हैं राजभूषण निषाद . मुजफ्फरपुर से सांसद बने हैं और उन्हें जल शक्ति मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया है . जल शक्ति एक ऐसा मंत्रालय है जिसमें प्रचुर संभावना है बिहार जैसे प्रदेश में कुछ करने की . सिंचाई और कृषि से जुड़े इस मंत्रालय में बिहार से किसानों को तकदीर पलटने की क़ुबत है. बिहार का अभिशाप रहा है, उत्तर बिहार में आने वाला बाढ़. हर साल तबाही मचाता है, करोड़ों का नुक़्शन करता है. निषाद जी पे इस बात का दबाव होगा की वो बिहार को बाढ़ से निज़ाद दिलाने पे लिये कुछ करे और अगर निषाद ऐसा कुछ कर गुजरे तो वह एक लंबी लकीर खींच के जा सकते हैं .

झारखंड को क्या मिला?
झारखंड के हिस्से दो मंत्रालय आया है. कोडरमा की सांसद अन्नपूर्णा देवी कैबिनेट मंत्री बनी है महिला और बाल विकास मंत्रालय की .  इस मंत्रालय में वह अपने प्रदेश झारखंड के लिए बहुत कुछ कर सकती हैं .  लेकिन यह मंत्रालय ऐसा नहीं है की आपको बहुत बड़ी लकीर खींचने की ताकत दें .  आप अगर बहुत कुछ कर भी गुजरे तो शायद वह लोगों की नजर में ना आए,  जमीन पर ना दिखे . यही इस मंत्रालय की खामी है . अन्नपूर्णा जी महिला होते हुए इस मंत्रालय की जिम्मेदारी बखूबी निभा सकती हैं और लोगों को उम्मीद भी है की महिला और बाल विकास मंत्रालय में वह महिलाओं और बच्चों के लिए कुछ ऐसा कर गुजरेंगी की लोग आने वाले वक्त में उन्हें याद रखें .

झारखंड से दूसरा नाम है संजय सेठ का , भाजपा के सांसद है रांची से और उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया है रक्षा मंत्रालय में. ये भी एक ऐसा मंत्रालय है जिसमें आप अपने प्रदेश के लिए कुछ खास नहीं कर सकते . आप मंत्री बन के घूमेंगे जरूर,  लेकिन आप एक किसी खास प्रदेश के लिए,  कुछ करने की स्थिति में नहीं होंगे . कुल मिलाकर बिहार और झारखंड के हिस्से जो मंत्रालय आया है,  उसे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों विवेचना में लगे हैं और साथ ही लगे हैं इन दोनों प्रदेशों के बुद्धिजीवी, यह देखने में,  की कैसे इन मंत्रालयों के द्वारा इन दोनों प्रदेशों की तकदीर थोड़ी बहुत बदली जा सकती है.

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