जो हमसे बहुत दूर चले जाते हैं अकसर वे उन सब चीज़ों को भूल जाते हैं, जिन्हें उन्होंने पीछे छोड़ दिया है. आज दिल बहुत उदास है, इसलिए तुम्हें लिख रहा हूं, इस दौड़ती भागती ज़िंदगी में कुछ नया पाने के लालच में जो तुम मुझे भूल गए हो वह मुझे खलने लगा है. पहले मैं तुम्हारी तरक्की पर खुश था तुमपर मुझे गर्व था लेकिन अब मैं खुद को खत्म होता पा रहा हूं. इन दिनों बारिश का मौसम जारी है. पिछले कुछ महीनों से मैं भीग रहा हूं. मेरी मिट्टी पोली हो गई है, कदम कदम पर मेरे ऊपर समाए कुछ जीव बिखरे पड़े हैं, मेरे एक-एक अंश को रौंदा जा रहा है. मेरे पत्थर बारिश के पानी को सोख कर हरे हो गए हैं. अचानक कभी भी शुरू हो रही बारिश में संभलने संभालने का मौका मेरे हाथों से हर रोज़ फिसल जाता है. कभी इंसानों को अपने पास आता देख मैं खुश होता था. कोमल पैर मेरी हरी घास पर भागते थे तो मुझे गुदगुदी होती थी, लगता था जैसे कोई मेरा अपना मेरे पास आया है, लेकिन अब दूर सड़कों की पगडंडी पर कोई भी चार पहिए वाला धातु का बना दानव अगर नजर आता है तो डर लगने लगता है, ये सोच कर कि न जाने कौन उस गाड़ी में बैठ मुझे तोड़ने मेरे पास आ रहा होगा. मेरे ऊपर समाये ये पेड़ पौधे सुहागन थे हरियाली जिनका सिंदूर हुआ करती थी, मौसम की बहारें ही इनका शृंगार थीं, सर्दियों की धूप पड़ने पर इनकी सीरत चमक उठती थी. जब से इंसान का लालच मुझ तक पहुंचा है हर रोज इस शृंगार की चमक फीकी पड़ रही है. अब तो ये सैलानी भी मुझे दर्द देने लगे हैं.
पूरे साल अलग-अलग ऋतुओं के साथ मैं झूमता हूं गाता हूं, लेकिन बारिश आते ही मुझपर डर का साया मंडराने लगता है. हर साल मैं मौत का मंजर और तबाही की दास्तान लिखता हूं. न जाने कितनी जिंदगियों को मैंने अपने अंदर समेट लिया है. हंसते खेलते अनगिनत परिवार मेरे पास आकर बिखर गए हैं. किसी प्रेमी को मैंने उसके साथी से अलग किया, तो किसी मां से उसके बेटे को छीन लिया है. किसी के पिता की हत्या का इल्जाम मैं झेल रहा हूं तो किसी के पति की मौत का जिम्मेदार मुझे कहा जाता है. पर तुम ही बताओ क्या मैं सच में गुनहगार हूं? क्या मेरे शांत स्वभाव के बारे में तुम नहीं जानते? तो कैसे कह सकता है कोई कि मैं हत्यारा हूं. मैं तो बस एक जगह टिका था, मेरी मां प्रकृति ने मुझे इस धरती की गोद में जन्म दिया था. खुश था मैं अपना अस्तित्व साबित कर के. इतराता था जब किसी को कहते सुनता कि 'सुकून तो सिर्फ पहाड़ों में है'. इंसान का सुकून बनते-बनते मैंने तुम्हे खो दिया.
आधुनिकता के चश्मे ने इंसान को इतना अंधा बना दिया, कि मैं कब अपने पहले प्यार यानी तुमसे दूर हो गया इसकी खबर तक मुझे नहीं मिली, रोज तिल तिल करके मर रहा हूं. मुझे काट कर सड़कें बनाई गईं, मेरे बच्चों को उखाड़ कर उनकी लाशों को कारखानों में फेंक दिया गया. मेरे खून को मलबे का नाम दे दिया. क्यों तुम चुप हो? क्यों इतनी दूरी आ गई है हम दोनों में जो मिटने के बजाए बढ़ती ही जा रही है. देखने में तो आज भी वैसे ही दिखता हूं जैसे पहले था, बहुत सुंदर, सड़क के दोनों पटरियों के किनारे हरी घास, भीगी पत्तियां, मेरी मिट्टी की खुशबू, पेड़-पौधे, घास पर खिली कुछ कोंपलें, ये सबको दूर से बहुत आकर्षित करती हैं मेरी तरफ. दुनिया के हर कोने से मुसाफिर आ रहे हैं और तस्वीरों में मुझे कैद करके ले जा रहे हैं. उन्हें नहीं पता कि कैद मैं सिर्फ तस्वीरों में नहीं हूं इस रेल की तरह भागती जिंदगी की उम्मीदों ने भी मुझे कैद कर दिया है. विकास नाम की चिड़िया ने मेरे आस-पास कंटीले तारों का घेरा बना लिया है जो हर रोज मुझे ज़ख्म देते हैं.
और भी कई शिकायतें हैं मुझे तुमसे. कहूंगा किसी दिन जब तुम मुझे सिर्फ इतिहास की किताबों में जिंदा पाओगे.
मतलब, आसमान में बादल छाने लगे और धरती में हवा बहने लगी. मेरे काले बाल सफ़ेद हो गए, शरीर में बुढ़ापा घर बनाने लगा. ज़िंदगी का आरामदेह, समतल हिस्सा तो जवानी में काटा ,लेकिन बुढ़ापे में अब ज़िदगी के कठिन और उकाल भरे दिन काटने मुश्किल हो गए हैं.
यही न्योली (विरह लोक गीत) फिर तुम मेरे लिए भी गाओगे. पर तब मैं दूर जा चुका होऊंगा. इतना कि तुम्हारी चीख भी मेरे कानों तक नहीं पहुंचेगी. देखना, एक दिन मैं तुम्हें भी ये सोचने पर मजबूर कर दूंगा कि कितना दुख उठाते हैं ये पहाड़, जब खबरें मिलती हैं पहाड़ दरकने की, तो रूह कांप जाती है. बादल फटने में कहां पता रहता है कि सैलाब कितना दूर तक जाएगा.
तुम्हारा टूटा टुकड़ा...
मानसी जोशी NDTV इंडिया में जूनियर आउटपुट एडिटर हैं...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.