This Article is From Apr 01, 2022

भारत एक खोज- भारतीय कौन है, कौन नहीं, हर दिन एक नई खोज...

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Ravish Kumar

नमस्कार, मैं रवीश कुमार,हम जिस समय में है,उसमें सब कुछ गड़बड़ा गया है.इस गड़बड़ाए हुए दौर में कुर्सी पर बैठे हुए लोग हड़बड़ाए हुए हैं और उनकी बातें सुनकर आप लोग घबराए हुए हैं.हर दूसरा आदमी भारत की नई परिभाषा गढ़ रहा है और हर तीसरे आदमी को उस नई परिभाषा से धक्का देकर निकाल दे रहा है.एक दौड़ा रहा है और बाकी दौड़ने में लगे हैं.अभी तो देशद्रोही के लेबल से लोग निपट नहीं पाए, कि महापापी आ गया है.गुजरात में 39,334 लोगों ने शराब पीने के लिए लाइसेंस लिए हैं.दिव्य भास्कर नाम के गुजराती अख़बार में यह रिपोर्ट छपी है.क्या महापाप के लिए लाइसेंस मिलते है? पोरबंदर ज़िले में 1989 लोग लाइसेंस लेकर शराब पी रहे हैं.कई सरकारें शराब बेच रही हैं.(कितना टैक्स कमाती हैं.लॉकडाउन के बाद सबसे पहले शराब की दुकानें ही खुली थीं) महापापी के लिए नहीं बल्कि जनता के विकास के लिए. 

शहर-शहर में एक मेगाफोन लगा है.बस चप्पल बेचने वाले की चप्पल नहीं बिक रही लेकिन इस मेगाफोन से प्रोपेगैंडा ख़ूब बिक कर रहा है.ख़बरों में कोई सूचना नहीं है.नागरिक में कोई चेतना नहीं है.लोग देख रहे हैं मगर दिख नहीं रहा है.यह नया दर्शक है.यही नया नागरिक है.मेगाफोन जो कहता है, वही करता है.न्यूज़ महंगा हो चुका है.इसलिए प्रोपेगैंडा फ्री है.एक मेगाफोन यहां भी है.मध्य प्रदेश के राजगढ़ में शराब के ठेकेदार ने मोटरसाइकिल पर मेगाफोन लगाकर भेज दिया कि 30-31 मार्च को शराब के दामों में भारी कमी है.मोटर साइकिल वाले पर मुकदमा दर्ज हो गया 

शराब पीने या नहीं पीने को अगर आप धार्मिक मान्यताओं से देखेंगे तो समस्या हो सकती है. काल भैरव के मंदिर में शराब चढ़ाने की भी परंपरा है.उज्जैन में भी काल भैरव के मंदिर में लोग प्रसाद के रूप में शराब चढ़ाते हैं.हालांकि बहुत सी तांत्रिक परंपरा अब प्रतिबंधित हैं लेकिन शराब का चढ़ाई जाती है.दिल्ली में भी ऐसा कुछ जगहों पर होता है.यह समझने की भूल न करें कि प्रसाद के रूप में चढ़ाने वाला पीता ही होगा.शराब अगर इतना ही हानिकारक है तो इसके उत्पादन से लेकर बेचने तक पर रोक लगा देनी चाहिए या फिर आधी अधूरी बहस स्थगित कर देनी चाहिए. 

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यह कार्यक्रम शराब पर नहीं है, महापाप पर भी नहीं है.न ही शराब के गुण दोष पर कोई प्रवचन देने वाला हूं.महान कवि आनंद बख्शी रोटी फिल्म के गीत में पहले ही कह गए हैं.यार हमारी बात सुनो,ऐसा इक इंसान चुनो,जिसने पाप न किया हो, जो पापी न हो.पाप इतना भी डरावना नहीं होता है.हाल ही में प्रधानमंत्री ने कहा था कि अगर परिवारवाद का विरोध करना पाप है तो मैंने वह पाप किया है.अब आप क्या कर लेंगे.पाप से लड़ेंगे या प्रधानमंत्री से.CAG की रिपोर्ट है कि बिहार के कई अस्पतालों में बेड नहीं है, डाक्टर नर्स नहीं हैं, दवा नहीं है, ICU नहीं है.रिपोर्ट से पहले भी जनता यह बात जानती थी, तो इस रिपोर्ट से आप क्या कर लेंगे? 

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स्क्रीन पर तेज़ी से गुज़र रहीं इन ट्रेनों को देखते हुए आप न्यूज़ की ऱफ्तार के बारे में सोचिए.किस तरह से रफ्तार के नाम पर न्यूज़ से न्यूज़ को खत्म कर दिया गया है.ट्रेन का नाम क्या है, लेट है या समय से है, कहां कहां अब नहीं रूकती है, रफ्तार से इन सबका बोध नहीं होता है.तभी होगा जब आप सवाल करेंगे.लेकिन सवाल तब करेंगे जब ठहर कर सोचेंगे.धर्म से जुड़े मुद्दे तेज़ रफ्तार से आ रहे हैं, जा रहे हैं, लौट कर आ रहे हैं.कभी आप धर्म के नाम पर भारतीयता से धकेले जा रहे हैं, कभी शराब के नाम पर तो कभी फिल्म न देखने के नाम पर.भारतीयता साबित करने की लिस्ट लंबी होती जा रही है.कब आप इस ट्रेन से उतार दिए जाएं पता नहीं.एक और सवाल.क्या आपको याद है कि जनवरी महीने में दैनिक भास्कर में एक खबर छपी थी कि रेलवे ने 6800 स्टापेज बंद कर दिए हैं.अगर ऐसा है तो क्या हम जानते हैं कि इससे आम गरीब लोगों पर क्या असर पड़ रहा होगा? या हम रफ्तार पर ही फिदा रहेंगे. 

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यह वीडियो ओडिशा के संभलपुर ज़िले के बामरा रेलवे स्टेशन का है.यहां समलेश्वरी एक्सप्रेस का स्टापेज बंद कर दिया गया जिसे लेकर विरोध प्रदर्शन हुआ.स्थानीय लोग यहां पर दस ट्रेनें रोके जाने की मांग कर रहे हैं.यह भारत अपने लिए एक ट्रेन खोज रहा है, जिससे उसे उतार दिया गया है. 

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भारत की खोज के नाम पर एक तरह का भारत खोजने वालों से सावधान रहा कीजिए जहां पहली शर्त यही होती है कि कौन बाहर होगा और कौन किस शर्त पर भीतर रहेगा.ज़रा नज़र उठाकर चारों तरफ देखिए.उसी भारत में सूचनाओं को खोजना हर दिन मुश्किल होता जा रहा है.दर्शकों को उन्हीं सूचना समूहों के आस-पास रखा जा रहा है जिससे एक राजनीतिक मानस बनता है, राजनीतिक बहुमत बनता है.सूचना का अधिकार भी सूचना का इंतज़ार बन गया है.राज्य सभा में सरकार ने बताया है कि 31 जनवरी 2022 तक केंद्रीय सूचना आयोग में लंबित मामलों की संख्या 31 हज़ार से अधिक हो चुकी है.केंद्रीय सूचना आयोग में दूसरी अपील के निपटारे की कोई समय सीमा नहीं रखी गई है.अगर सूचनाएं बाहर आ भी गईं तब भी गुप्त ही रहेंगी क्योंकि छापेगा कौन.20 अक्तूबर 2020 को परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने वीडियो कांफ्रेंस के ज़रिए कहा कि असम के जोगीघोपा में मल्टी मोडल लाजिस्टिक पार्क बनने वाला है जिससे 20 लाख लोगों को रोज़गार मिलेगा.

31 मार्च को लोकसभा में असम के सांसद अब्दुल खालीक ने एक सवाल किया है कि मल्टी मोडल लाजिस्टिक पार्क से अगले पांच साल में कितना रोज़गार पैदा होगा तब परिवहन मंत्री ने जवाब दिया कि जो डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट DPR है उसके अनुसार प्रोजेक्ट के पूरा होने पर जो कुल रोज़गार पैदा होगा उसकी अनुमानित संख्या 11,521 ही होगी.कहां बीस लाख और कहां 11 हज़ार 521.फिर से बीस लाख वाला बयान सुन लीजिए.

क्या यह इतना गया गुज़रा सवाल है कि इससे लतीफा भी नहीं बन सकता है कि बीस लाख का बयान कैसे लोकसभा में कुछ हज़ार हो गया.क्या मंत्री को खुद इस पर जवाब नहीं देना चाहिए? सरकारी नौकरी के सवाल और आंदोलन का ही नतीजा है कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यानथ ने घोषणा की है कि सौ दिनों में दस हज़ार सरकारी भर्तियां होंगी और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा है कि पचीस हज़ार भर्तियां होंगी.प्राइम टाइम से पहले आपने कब किसी चैनल पर सरकारी भर्तियों का लगातार कवरेज देखा था, वो भी हफ्तों और महीनों तक.क्या इससे युवाओं को फायदा नहीं हुआ?आप यू टयूब पर जाकर सरकारी भर्ती से संबंधित कई दर्जन प्राइम टाइम देख सकते हैं.तब फिर युवा सवाल उठाने वालों का बचाव करने क्यों नहीं आगे आते हैं? 

यह एक सरकारी कालोनी की दीवार है दिल्ली के लोधी कालोनी की.यहां की दीवारों पर बने भित्ती चित्रों को अक्सर देखता हूं.इन चित्रों की एक खास बात यह है कि इनमें बहुत कम में सवाल है.कलाकार का काम होता है आपके भीतर सवाल पैदा करना, बेचैनी और अलग से देखने का नज़रिए पैदा करना.जैसे इसी लोधी कालोनी की इस दीवार पर शिकारी कुत्तों की ये ग्राफिती क्या कुछ अलग नहीं कह रही है, कुत्तों के मुंह इतने हमलावर क्यों दिखाए गए हैं? झुंड में कुत्तों या भेड़िए के हमले को आप कैसे देखना चाहेंगे, गले लगा लेंगे? क्या इस तरह से पढ़ा जाए कि जो सवाल पूछ रहा है उसे काट खाने के लिए कुत्ते छोड़ दिए गए हैं…

लोघी कालोनी के इलाके में ही इंडिया हैबिटेट सेंटर से सटी इस दीवार पर कलाकार ने कितनी मोहक तस्वीरें बनाई हैं.इन्हें देखकर किसी को लग सकता है कि पूरा शहर नर्सरी की किताब में बदल गया है.देश के कई शहरों में दीवारों पर रंगीन तस्वीरें बनाई जा रही हैं ताकि लगे कि आप कार्टून की पट्टी पर चल रहे हैं.शहर पाठशाला की तरह लगने लगा है.क्या आप जानते हैं कि अरुणाचल की राजधानी इटानगर में एक कलाकार एबो मिली ने सरकारी इमारत की दीवार पर ऐसा ही एक चित्र बना दिया कि प्लास्टिक नई घास है, उस पर केस हो गया.गिरफ्तार हो गए.असम के कलाकार निलिम महंता ने एक दीवार पर बनाया कि वह बांध का विरोध करते हैं.दोनों को जेल हो गई.तो जब तक आप दीवार पर कुछ भी पोत रहे हैं, मोर और स्कूटर बना रहे हैं कोई दिक्कत नहीं, जैसे ही सवाल पैदा करते हैं मुकदमा हो सकता है.क्या यह सच नहीं है कि हमारी गाएं प्लास्टिक की घास खाने के लिए मजबूर हैं? दीवार गंदी करने का आरोप क्या सभी पर समान रूप से लागू होता है या कुछ खास लोगों पर ही मुकदमे होते हैं

दिल्ली के लोघी कालोनी की तस्वीर इसलिए दिखाई ताकि बहुत से लोग इस भ्रम में रह सकें कि कलाकार को अभिव्यक्ति की आज़ादी है.ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपना घर देखकर देश का हाल समझ लेते हैं.उन्हें पोज़िटिव होना अच्छा लगता है. 

मुंबई में टाइलर स्ट्रीट आर्ट नाम से एक अनाम कलाकार की बनाई यह ग्राफिटी है.जिस दीवार पर दवाखाना लिखा है उसी के बगल में कलाकार ने लिख दिया है कि सरकार झूठ बोलती है, लोग मरे हैं.क्या यह हमारे समय का सच नहीं है? क्या यह सच टीवी दिखाता है? आप टीवी सूचना के लिए देखते हैं या भ्रमजाल में फंसे रहने के लिए? जैसा कि इस कलाकार ने बनाया है.सोफे पर बैठा परिवार टीवी पर क्या देख रहा है, भूल भुलैया न…

इसी तरह से पेट्रोल के दाम को लेकर एक पत्रकार ने सवाल कर दिया तो रामदेव ने ललकार ही दिया.ऐसा करने की शक्ति उन्हें योग से मिली है या सत्ता और धन से वही बता सकते हैं.उनके बयान को लेकर वीडिओ वायरल होने लगा.वायरल वीडियो के इस दौर में कोई बात तभी तक स्टैंड करती है जब तक वह वीडियो वायरल है. 

पिछले साल इन्हीं महीनों में दाम बढ़ने लगे थे तब तो युद्ध नहीं था.फिर चार महीने तक दामों का बढ़ना बंद हो गया.बेशक युद्ध है और वो कारण भी है लेकिन जब युद्ध नहीं था तब क्यों दाम बढ़ रहे थे?रामदेव ने पत्रकार को भी ललकारा और उस समाज को भी.रामदेव को पता है कि समाज ने ही सवाल पूछना छोड़ दिया है.क्या आप इस भारत को खोज रहे हैं कि वह क्यों हर सवाल को लेकर उदासीन है…

दरअसल उस भारत के पास ट्रैफिक जाम का बहाना है.लाखों लोग हर दिन जाम में रहते के आदी हो चुके हैं.वे कई घंटे तक चुपचाप जाम में रह सकते हैं तो दाम क्यों नहीं दे सकते हैं.इनके पास एक ही सवाल है.विपक्ष आजकल कुछ नहीं करता है.इनके फ्लैट का पैसा अगर कोई बिल्डर लेकर भाग जाता है तब ज़रूर ये मीडिआ खोजने आते हैं.मीडिया मीडिया चिल्लाते हैं.उसके बाद चुपचाप जाम में खो जाते हैं.इनके पास यह सवाल भी नहीं है कि सवाल पूछने पर पत्रकारों को क्यों खदेड़ा जा रहा है, जेल क्यों भेजा रहा है. 

यूपी के बलिया में इंटरमीडिएट अंग्रेजी का पेपर लीक होने की खबर अमर उजाला ने छाप दी.खबर लिखने वाले पत्रकार दिग्विजय सिंह और अजीत कुमार ओझा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.राष्ट्रीय सहारा के पत्रकार मनोज गुप्ता भी गिरफ्तार हैं.क्या समाज यही चाहता है कि चोरी से परीक्षा हो और पत्रकार खबर भी न लिखें? बलिया के पत्रकारों ने कोतवाली थाने पर धरना दिया.नकल माफिया की खबर भी नहीं लिख सकते तो अब किसकी खबर लिखेंगे, पुलिस का कहना है कि विवेचना जारी है. 

पत्रकारों ने इस गिरफ्तारी का विरोध किया है.गिरफ्तार पत्रकार को 14 दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है.बिहार की रामायणी राय पत्रकार बनना चाहती हैं.दसवीं की परीक्षा में राज्य भर में टाप किया है.रामायणी को शुभकामनाएं.यह हिस्सा रामायणी के लिए भी है.ताकि उनका इरादा और मज़बूत हो सके.यह कितना अच्छा है कि कोई पत्रकार बनना चाहती है.आप भी हौसला बढ़ाइये. 

समंदर के सामने अकेला खड़ा व्यक्ति ख़ुद को कभी असहाय नहीं पाता है.यह समंदर की ख़ूबी है, व्यक्ति की नहीं.समंदर अपनी ताकत को सौंदर्य में बदल देता है इसलिए उसे छूने आ जाता है.क्या यह समंदर का कमाल नहीं कि वह तिनके की तरह बहा ले जाने इस व्यक्ति को भी आश्वस्त कर रहा है, खड़े रहोे.एक और नज़रिया यह भी हो सकता है कि यह व्यक्ति पानी छू कर लहरों से लड़ने का भ्रम पाल रहा है.भारत में आज करोड़ों लोग किनारे खड़े होकर पानी छू रहे हैं.लहरों का शोर सब सुन रहे हैं मगर अनजान बने हुए हैं कि हल्ला किस बात का है.ब्रीद…कर देना यहां लहरों के साउंड को

समंदर के किनारे खड़े इस व्यक्ति को देख कर याद आई कि पटना में गंगा के किनारे मैं भी खड़ा था तब नालों के दुर्गंध से नदी का सौंदर्य कुछ धुंधला हुआ जा रहा था.हबीब हमारे सहयोगी जब दिन भर धूप में भटकते रहे तो उन्हें भी गंगा में निर्बाध बहते नालों का दर्शन हुआ.नमामि गंगे को लेकर पवित्रता की सौगंध खाने वाले ही बता सकते हैं कि गंगा में प्रवाहित नालों का पानी कितना साफ है. 

गंगा को लेकर आप सवाल पूछ सकते हैं.गंगा तो मां हैं.उनकी भी मां है जो सवाल नहीं पूछते हैं और उनकी भी मां है जो सवाल नहीं पूछने देते हैं.जो पूछते हैं वो इन दिनों बिना मां बाप के लगने लगे हैं.कितना कुछ है पूछने के लिए, 

जब पुल बन ही गया है तब भी लोग अपनी मोटर साइकिल और साइकिल नाव पर क्यों लाद रहे हैं, नाव से क्यों, पुल से क्यों नहीं नदी पार कर रहे हैं? केंद्र सरकार ने गंगा नदी को राष्ट्रीय राज मार्ग की तरह राष्ट्रीय जल मार्ग नंबर वन घोषित किया गया है.देश में ऐसे 111 राष्ट्रीय जल मार्ग चिन्हित किए गए हैं.क्या आपको मालूम है कि 21 दिसंबर 2021 को जहाजरानी मंत्री सरबनानंद सोनवाल राज्यसभा में बताया है कि 2016 में राष्ट्रीय जलमार्ग कानून के बनने के बाद जितने भी जल मार्ग घोषित हुए हैं उनमें से 60 से अधिक अनुपयोगी हैं.राष्ट्रीय जल मार्ग होने की पहचान के बाद भी यहां राज मार्ग जैसा कोई इंतज़ाम नहीं है.सब अपने अपने ख़तरे के साथ नदी और ग़रीबी पार कर रहे हैं.कोई साहब इस नाव पर बैठ कर नमामि गंगे अभियान का निरीक्षण करने आ जाएं तो उन्हें लाइफ जैकेट पहना दिया जाएगा, लेकिन इन आम ग़रीबों की लाइफ साहबों के जैकेट और पौकेट में खो गई है.नाव के डूबने से मरने वालों की कोई गिनती नहीं है.हमारा सवाल है कि पुल बन जाने के बाद उसी के नीचे नाव से नदी पार करने वाले ये लोग कौन हैं? 

इसे समझने के लिए आपको पुल को फिर से देखना होगा.पटना शहर दशकों से इंतज़ार करता रहा कि कब यह पुल बनेगा.पुल बना और इससे कार वाले लोगों को फायदा भी हो रहा है.

लेकिन पुल तक पहुंचने का रास्ता इतना लंबा और घुमावदार है कि गरीब आदमी इसके फायदे से  बाहर हो जाता है.जो किनारे रहने वाले हैं वही इस पुल से दूर हो गए हैं.उनके लिए पैदल पुल पार करना असंभव हो जाता है.मुमकिन है ग़रीब को इस हालत से फर्क नहीं पड़ता लेकिन इतने भर से क्या यह सवाल ग़लत हो जाता है कि पुल के होने के बाद भी लोग नाव से नदी क्यों पार कर रहे हैं.जिस आर्किटेक्ट ने पुल बनाया उसने पुल के बारे में ही सोचा या इन लोगों के बारे में भी.

इस तरह से एक्सप्रेस वे को क्यों बनाया जाता है कि दुपहिया चालकों को बाहर हो जाना पड़े जबकि विकास का सपना तो सबको दिखाया जाता है.(सूचक वीडियो जितना है उतना ही चला दो फिर बाहर आ जाओ) इस वीडियो में बाइक वाला ठेले वाले को धक्का दे कर पार करा रहा है.वह जानता है कि ठेले वाला विस्थापित है.एक्सप्रेस वे बनते ही पैदल,साइकिल और बाइक वालों को रफ्तार की परिभाषा से उसी तरह बाहर कर दिया गया है जिस तरह से शराब पीने पर कोई भारतीयता से बाहर कर दिया जाने वाला है.क्या आप इस भारत को खोज रहे हैं जो आपकी आंखों के सामने से ग़ायब कर दिया गया है?

गुरुग्राम से सटे मेवात में 30 मार्च को यहां के लोगों ने पदयात्रा की.इनकी मांग है कि  नूंह से नौगांव बार्डर के बीच की सड़क पतली है जिससे आए दिन दुर्घटनाएं होती हैं.उनके अनुसार आमने-सामने की टक्कर में इस जगह पर 1800 लोगों की मौत हो चुकी है.यहां पर फोर लेन बने ताकि दुर्घटनाएं कम हों.इनका कहना है कि अगर खूनी रोड पर काम नहीं हुआ तो भूख हड़ताल करेंगे.क्या आम लोग अपने सवालों को लेकर पदयात्रा नहीं कर रहे हैं, तो यह किस आधार पर मान लिया जा रहा है कि सवालों की मौत हो गई है और सरकार सवालों से परे हो चुकी है?

क्या ऐसा भी है कि पेट्रोल महंगा होने से कार वालों की आर्थिक शक्ति बढ़ जाती है? अगर नहीं तो कम से कम टोल टैक्स की वृद्धि रोकी जा सकती थी? हर साल पहली अप्रैल में टोल टैक्स की दरों में बदलाव होता है.लाइव मिंट की खबर है कि राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकर ने टोल टैक्स में 10 से 65 रुपये की बढ़ोत्तरी कर दी है.क्या मिडिल क्लास ने महंगाई को बर्दाश्त करने का कोई नया मानसिक तंत्र विकसित किया है? 

तब फिर विपक्षी पार्टियां किसके लिए महंगाई का विरोध कर रही हैं? महंगाई पर बीजेपी के मंत्रियों के पुराने बयान निकाल कर विरोध करने के इस तरीके से क्या कुछ भी नहीं होता है? विपक्ष के सांसद संसद के दोनों सदनों में महंगाई के सवाल उठा रहे हैं और सरकार से राहत की मांग कर रहे हैं.क्या जनता के लिए विपक्ष के सवाल इसलिए बेकार घोषित किए जा सकते हैं क्योंकि उन्हें वोट नहीं मिलता है? तब फिर मिडिल क्लास ही रैली करे कि पेट्रोल के दाम 200 रुपये लीटर से कम नहीं हो.वह ज्यादा देने के लिए तैयार है.कमर्शियल गैस का दाम 250 रुपया बढ़ गया.दिल्ली में एक कमर्शियल सिलेंडर का दाम 2253 रुपया हो गया है.एक साल में घरेलु एलपीजी सिलेंडर की कीमतों में भी 17 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है.पिछले छह महीने में CNG की कीमतों में 37 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.तो क्या अब विपक्ष को इसका स्वागत करना चाहिए?

आज एक अप्रैल है.आज से प्राइवेट कर्मचारियों की राहत के लिए एक बड़ा कदम उठाया गया है.सबसे पहले उन्हें फायदा दिया ब्याज दर घटाकर.2021-22 में EPFO की ब्याज दर 8.5 प्रतिशत  से घटाकर 8.1 प्रतिशत होगी.पिछले कई दशकों में इसे सबसे कम बताया जा रहा है.एक दूसरी अच्छी खबर है कि अब प्रोविडेंट फंड में ढाई लाख से अधिक जमा करेंगे तो उस रकम पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स देना होगा.आपकी सालाना आय जिस Tax Slab में आती है उसी अनुपात में आपके पीएफ फंड पर ब्याज से होने वाले कमाई पर टैक्स का रेट लगेगा.यह नियम प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों के लिए बना है.सरकारी कर्मचारियों को पांच लाख तक की जमा राशि पर टैक्स नहीं देने होंगे.उसके बाद उन्हें भी टैक्स देने होंगे.तर्क दिया जा रहा है कि ज़्यादा कमाने वालों ने टैक्स बचाने के लिए पैसा वहां पार्क किया है.हम नहीं चाहते कि आप इस मामूली सवाल को लेकर परेशान हों कि कहीं प्रोविडेंट फंड पर टैक्स करने की शुरूआत तो नहीं हो रही, जब आप 110 रुपया लीटर पेट्रोल खरीद सकते हैं तो थोड़ा टैक्स और दे सकते हैं.you are too good. Do you get 

सितंबर 2019 में कोरपोरेट टैक्स को 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत किया गया कि इससे निवेश बढ़ेगा और नौकरियां बढ़ेंगी.मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी का टैक्स 25% से 15% कर दिया गया था.वित्त मंत्री ने इस 25 मार्च को बताया है कि कोरपोरेट टैक्स से देश को फायदा हो रहा है.7 लाख करोड़ से अधिक की टैक्स वसूली हुई हैलेकिन 22 मार्च को सरकार ने राज्य सभा में जो लिखित जवाब दिया है उसके अनुसार जीडीपी की तुलना में कारपोरेट टैक्स का हिस्सा कम हुआ है.संसद में ही सरकार कहती है कि 2018-19 में कोरपोरेट टैक्स से वसूली का हिस्सा GDP का 3.51% था जो 2020-21 में घटकर 2.32 प्रतिशत हो गया है.क्या यह फायदा है? दूसरी तरफ पेट्रोल डीज़ल से हासिल होने वाला उत्पाद शुल्क बढ़ता ही जा रहा है.क्या आप जानते हैं कि राज्य सभा में सरकार का ही जवाब है कि कारपोरेट टैक्स कम किए जाने से सरकार को 1 लाख 45 हज़ार करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ है.क्या आपको इन बयानों में कोई अंतर दिखता है, अगर आप 110 रुपया लीटर पेट्रोल भरा रहे हैं तब नहीं दिखेगा. 

अमरीका में ट्रंप ने कोरपोरेट टैक्स घटा दिया था.उसके बाद से ही भारत में चर्चा चली तो सितंबर 2019 में घटाआ गया.अब अमरीका में बाइडन का प्रस्ताव है कि कोरपोरेट टैक्स को 21 प्रतिशत से बढ़ाकर 28 प्रतिशत कर दिया जाए. 

क्या आप इनमें से किसी को पहचानते हैं? इनमें मीत नगर के चंद्रकांत, कीर्तिनगर के प्रदीप तिवारी, राजू कुमार सिंह,करावल नगर के जितेंद्र बिष्ट,जहांगीरपुरी के नवीन कुमार और बब्लू कुमार, सितापुर के नीरज दीक्षित और आज़ादपुर के सन्नी शामिल हैं जिन्हें दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया है.क्या भारतीय जनता युवा मोर्चा के सदस्यों को इस बात का भरोसा था कि उनका कुछ नहीं होगा, वे मुख्यमंत्री के घर के बाहर लगे सुरक्षा उपकरणों को तोड़ सकते हैं, गेट की दीवार पर रंग फेंक सकते हैं.बजरंग बली के उपासक अरविंद केजरीवाल के घर पर जय श्री राम के नारे लग रहे थे.क्या प्रभु राम को यह उचित लगता? संविधान की बात नहीं कर रहा हूं, फिजिक्स के इम्तहान में क्लासिक इंग्लिश के प्रश्न नहीं पूछे जाने चाहिए.आप ऐसी तस्वीरों से सामान्य हो चुके होंगे, रोज़ रोज़ देखते देखते लगने लगा होगा कि ये तो रोज़ ही होता है.इसमें नया क्या है.होते रहना चाहिए. 

इन खबरों को देखते हुए क्या आप इस बात से आश्वस्त हो सकते हैं कि कानून व्यवस्था का राज है.कब तक आप इन्हें अपवाद मानकर आश्वस्त होते रहेंगे? एक दस्ता धर्म के नाम पर लोगों की दुकानें बंद करवा रहा है.वह अपनी मर्ज़ी से किसी भी राज्य में सक्रिय हो जा रहा है.क्या इसी के लिए आप 110 रुपया लीटर पेट्रोल भरा रहे हैं? 

कर्नाटक में जो हो रहा है उसे आप समझते हैं लेकिन यकीन उसी पर करते हैं जो व्हाट्स एप के वीडियो मैसेज से कराया जा रहा है.वहां से कभी खबर आ जाती है कि बजरंग दल के कार्यकर्ता किसी ग़रीब मुसलान को मंदिर और मेले के बाहर सामान बेचने से रोका जा रहा है.हलाल और झटका मीट का विवाद खड़ा किया जा रहा है.गनीमत है कि बीजेपी के दो दो विधायकों ने इसे गलत बताया है लेकिन गलत बताने के बाद भी यह सारा काम सही की तरह किया जा रहा है.  बायोकॉन कंपनी की किरण मजूमदार शॉ ने ट्विट कर दिया कि सांप्रदायिकता भारत के वैश्विक नेतृत्व को नष्ट कर देगी.बाद में सफाई जैसा भी बयान आ गया और उन्होंने भरोसा जताया कि मुख्यमंत्री विवादों का समाधान निकाल लेंगे.क्या अब भी आपको लगता है कि यह सब अपवाद है, चुनाव भर के लिए हो रहा है? 

“यह जो हो रहा है यह अच्छा नहीं हो रहा है क्योंकि जहां तक हिजाब का मुद्दा था उसमें कोर्ट ने रुलिंग दे दिया है और हमें कानून का पालन करना चाहिए जो भी हलाल को लेकर हो रहा है  यह समाज के लिए अच्छा नहीं है .मुझे लगता है कि सारे पक्षों को इस बारे में सोचना चाहिए कि हमारे समाज के लिए क्या यह ठीक है मुझे लगता है लगता है कि शांति बनाए रखनी चाहिए जो इतने सालों से बनी हुई है सद्भाव बनाए रखना चाहिए अब जो हो रहा है वह पॉलिटिकल नेचर का ज्यादा लग रहा है”

समय समय पर अपनी भारतीयता को समझना अच्छी बात है लेकिन इस तरह से भारत की खोज न करें कि इस खोज में वह भारत ही लापता हो जाए जिसे आप जानते हैं.ऐसा न लगे कि भारत खोजने के नाम पर हर भारतीय दूसरे भारतीय की जांच कर रहा है कि वह भारतीय है या नहीं.आप बेशक ज़रूरी मुद्दों से लगाव मत रखिए, लेकिन शराब और धर्म के आधार पर के जीने के अधिकार पर हमला मत कीजिए.ब्रेक ले लीजिए…और किसी यात्रा पर निकल जाइए.

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