Legal Explainer: गिरफ़्तारी वॉरंट की आड़ में भी साइबर ठगी - डिजिटल अरेस्ट के 7 कानूनी पहलू

विज्ञापन
Virag Gupta

कोरोना और लॉकडाउन के बाद साइबर अपराधों के तरीकों और तादाद में बहुत बढ़ोतरी हुई है. वर्धमान समूह के चेयरमैन और पंजाब के प्रसिद्ध उद्योगपति ओसवाल के साथ डिजिटल अरेस्ट के नाम पर सात करोड़ रुपये की साइबर ठगी का मामला बहुत सनसनीखेज़ है. ठगों ने पुलिस अधिकारी बनकर ओसवाल के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट से जारी हुआ अरेस्ट वॉरंट और उनकी सम्पत्ति जब्त करने का फर्ज़ी आदेश भी दिखाया. ठगों ने वीडियो कॉल कर उन्हें डिजिटल अरेस्ट की धमकी देते हुए जुर्माना जमा करने की धमकी दी, जिसके बाद ओसवाल ने 4 करोड़ और 3 करोड़ रुपये के दो RTGS से ठगों को 7 करोड़ रुपये ट्रांसफर कर दिए. पुलिस ने असम से दो आरोपियों को गिरफ़्तार कर 6 डेबिट कार्ड और तीन मोबाइल फोन बरामद किए हैं.

जब्त पैसे की वापसी के लिए अदालत में अर्ज़ी

साइबर अपराधों के मामलों में असली ठग को पकड़ना और पैसे की जब्ती करना मुश्किल है. ओसवाल से ठगी का मामला 3 सप्ताह से ज़्यादा पुराना है, उसके बावजूद आरोपियों से 5.25 करोड़ रुपये की जब्ती होना पुलिस की बड़ी उपलब्धि है. गौरतलब है कि पिछले सप्ताह लुधियाना के एक कारोबारी रजनीश आहूजा से भी ठगों के इस गिरोह ने 1.01 करोड़ रुपये की ठगी की थी. असम से पंजाब में साइबर ठगी करने के इन दो बड़े मामलों से साफ है कि गिरोह में कई अन्य लोग शामिल होंगे. ठगों से जब्त 5.25 करोड़ की रकम कई लोगों से ठगी की हो सकती है, इसलिए जब्त पैसे की वापसी के लिए पुलिस की चार्जशीट के बाद ओसवाल और अन्य पीड़ित लोगों को अदालत में अर्ज़ी लगानी होगी.

विदेशों से जुड़े तार

साइबर अपराधों के सूत्रधार दुबई और दूसरे देशों से ठग रहे हैं. अधिकांश मामलों में सरकारी खाते बताकर जिन खातों में पैसे ट्रांसफर करवाए गए, वे आम लोगों के बैंक खाते हैं, जहां से पैसा दूसरे खातों में चला जाता है. कई राज्यों और दूसरे देशों में फैले साइबर अपराधियों का गिरोहों के मुखिया अभी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं. अधिकांश मामलों में शिकायत दर्ज होने के बावजूद पैसे की रिकवरी नहीं होना, पुलिस और सरकार के लिए बड़ी चुनौती है. साइबर ठगी की रकम क्रिप्टो, गेमिंग ऐप या हवाला के ज़रिये विदेश ट्रांसफर हो जाती है, इसलिए कई बार पैसा वापस नहीं मिलने से पीड़ित लोगों का सिस्टम के प्रति भरोसा कमजोर हो रहा है.

Advertisement

डिजिटल अरेस्ट में ठगी के नायाब तरीके

डिजिटल अरेस्ट में पार्सल या कोरियर में ड्रग्स, बैंक खाते में गलत ट्रांजेक्शन, मनी लॉण्ड्रिंग के आरोप जैसे ठगी के तरीके बहुत प्रचलित हैं. ऐसे मामलों में ठग लोग पुलिस, CBI, ED, कस्टम, इनकम टैक्स या नारकॉटिक्स अधिकारी की यूनिफार्म पहनकर लोगों को वीडियो कॉल करते हैं. ठगों की टीम में महिलाएं भी होती हैं. नकली सरकारी ID कार्ड से लैस ठग डराने के लिए बैंकग्राउंड में पुलिस स्टेशन या सरकारी अधिकारी जैसे दिखने वाले स्टूडियो का इस्तेमाल करते हैं. सरकारी अधिकारियों का रोब दिखाकर पीड़ित व्यक्ति को मानसिक तौर पर तोड़ने और डराने के लिए डिजिटल गिरफ्तारी का पूरा स्वांग रचा जाता है. साइबर अपराधी गलत तरीके से सिम कार्ड लेने के साथ फर्जी तरीकों से बैंक खाते संचालित करते हैं.

Advertisement

बुजुर्ग, रिटायर्ड और शिक्षित लोगों से ठगी

भारत में डाटा सुरक्षा कानून लागू नहीं होने की वजह से ठगों के पास पीड़ित लोगों का आधार, पैन और बैंक खाते का विवरण आसानी से उपलब्ध हो जाता है. डिजिटल अरेस्ट के अधिकांश मामलों में पीड़ित लोगों की प्रोफाइलिंग करने पर यह पता चला है कि अधिकांश बुजुर्ग, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर और रिटायर सरकारी अधिकारी जैसे हज़ारों उच्चशिक्षित लोग डिजिटल अरेस्ट से साइबर ठगी का शिकार हो रहे हैं. कई बार लोगों के पास पैसे नहीं होते, तो उनके मोबाइल में लोन देने वाले ऐप्स को डाउनलोड करवाकर पैसों का जुगाड़ किया जाता है. ई-मेल और कॉल के ज़रिये गतिविधियों को ट्रैक करने वाले सॉफ्टवेयर को मोबाइल फोन में इंस्टाल कर बुजुर्ग और महिलाओं को आतंकित कर साइबर अपराधी ठगी को अंजाम देते हैं.

Advertisement

डिजिटल अरेस्ट और साइबर अपराध के बढ़ते मामले

सिर्फ दिल्ली-NCR में मई से जुलाई के तीन महीनों के दौरान डिजिटल अरेस्ट के 600 से ज़्यादा मामलों की रिपोर्टिंग हुई है. पूरे देश में हजारों लोग ऐसे साइबर फ्रॉड का शिकार होने के बावजूद मामले को पुलिस में रिपोर्ट नहीं करते. अगस्त, 2019 से दिसम्बर, 2023 तक सरकारी पोर्टल में साइबर अपराध की 31 लाख से ज़्यादा शिकायतें आईं, जिनमें सिर्फ़ 66 हजार मामलों में FIR दर्ज की गई. एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में रोजाना 700 लोग साइबर अपराध का शिकार हो रहे हैं, जिनमें 250 से ज़्यादा मामले वित्तीय फ्रॉड के हैं.

Advertisement

फ्रॉड से बचने के लिए सावधानियां

भारत में कोई भी सरकारी विभाग वीडियो कॉल कर गिरफ्तारी की धमकी या जुर्माने की मांग नहीं करता. अगर कोई मामला दर्ज भी हुआ है, तो फोन पर पूछताछ नहीं होती. वीडियो कॉल कर गिरफ्तारी का वॉरंट देने के लिए भारत में कोई नियम नहीं है. अदालत से गिरफ्तारी का वारंट यदि जारी भी हो जाए, तो उसके लिए फोन नहीं आता. अगर मामला सच भी है, तो केस निपटाने के लिए कोई भी सरकारी अधिकारी वीडियो कॉल से रिश्वत की मांग नहीं करेगा. ऐसा कोई भी कॉल आने पर ठगों के साथ लम्बी बातचीत से बचना चाहिए. जल्द डिसकनेक्ट कर ट्रू-कॉलर या अन्य किसी ऐप से मोबाइल नम्बर और कॉलर की पहचान कर उस नम्बर को ब्लॉक कर देना चाहिए.

शिकायत कैसे करें

साइबर ठगी का शिकार होने पर स्थानीय पुलिस को 112 पर सूचित करना चाहिए. हेल्पलाइन नम्बर 1930 पर शिकायत के साथ वॉलेट और बैंक अकाउंट का पूरा विवरण दिए जाने पर ठगी गई रकम बैंक एकाउंट में फ्रीज़ कराई जा सकती है. उसके अलावा www.cybercrime.gov.in पर भी ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराई जानी चाहिए. संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार साइबर और आईटी से जुड़े मामले केन्द्र सरकार के अधीन हैं, जबकि पुलिस और कानून व्यवस्था से जुड़े मामले राज्य सरकारों के अधीन हैं. साइबर अपराधों पर लगाम लगाने के लिए केन्द्र सरकार के कानून के तहत राज्यों की पुलिस प्रभावी कार्रवाई कर सके, इसलिए कानून में भी ज़रूरी बदलाव करने की ज़रूरत है.

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं... साइबर, संविधान और गवर्नेंस जैसे अहम विषयों पर नियमित कॉलम लेखन के साथ इनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

Topics mentioned in this article