This Article is From Aug 30, 2021

आबिद के भी कृष्ण...

विज्ञापन
Kamal Khan

मथुरा का एक वायरल वीडियो. भगवा गमछा डाले कुछ लोग "श्रीनाथ डोसा कार्नर" के बोर्ड लगे दोसे के एक ठेले पर खड़े, ठेले वाले पर चीख रहे हैं. 
एक डपट कर पूछता है, "नाम क्या है तुम्हारा?"
ठेले वाला कहता है, "आबिद".
गमछे वाला डपटता है,"
"मुसलमान हो?"
ठेले वाला, "जी'.
गमछे वाला: "तो श्रीनाथ जी का बोर्ड क्यों लगा है? श्रीनाथ जी कैसे लिखा. अल्लाह लिखो, मोहम्मद लिखो. श्रीनाथ जी नहीं लिख सकते." तभी उसके दूसरे साथी ठेले वाले का बोर्ड फाड़ने लगते हैं. फ्लेक्स से बने बोर्ड को वे फाड़ कर चीथड़ा कर देते हैं. साथ में नारे लगाते हैं कि, "कृष्ण भक्तों अब युद्ध करो, मथुरा को भी शुद्ध करो."

अगले रोज़ भी दोसे के ठेले पर बहुत भीड़ थी. गरमा गरम दोसे बन रहे थे और लोग चाव से खा रहे थे. ठेला वही था, ठेले का मालिक भी वही. बस ठेले पर अब नया बोर्ड लग गया था, "अमेरिकन डोसा कार्नर."

आबिद से पूछने पर कि उसने कृष्ण भगवान का नाम क्यों लिखा? तो कहता है, "यहां तो हजारों दुकान और कारोबार उनके नाम से है. हमें अच्छा लगा तो हमने भी लिख दिया. हमने तो सोचा नहीं कि इसमें कोई हिन्दू मुस्लिम मामला है. अजमेर शरीफ में ख्वाजा गरीब नवाज की मज़ार पर तो मुसलमानों से ज़्यादा हिन्दू जाते हैं."

Advertisement

हम उससे पूछते हैं कि लेकिन अब ठेले का नाम "अमेरिका दोसा कार्नर क्यों रखा?" वह कहता है, "हमें लगा कि अमरीका के लोग अपने काम धंधे में बिज़ी होंगे. वो हमारे बोर्ड तोड़ने नहीं आएंगे, इसलिए उनका नाम लिख दिया."

Advertisement

अफसोस सद अफसोस कि यह वहां हो रहा है जहां वृंदावन में मुसलमानों की क़रीब आधी आबादी रंग बिरंगी, बेहतरीन ज़री के काम वाली ठाकुर जी की पोशाक बनाती है.

Advertisement

एक ग़रीब मुसलमान के ठेले से कृष्ण का नाम मिटाने वाले अगर कृष्ण का एक अंश भी समझते तो यह नहीं करते. भगवान गीता के 12वें अध्याय के 13वें श्लोक में कहते हैं :

Advertisement

"अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च।
निर्ममो निरहंकारः सम दुखःसुखः क्षमी।।"

यानी मुझे वे भक्त बहुत प्रिय हैं जो अहंकार और द्वेष से मुक्त और क्षमाशील और दयालु हैं. और जो दुख सुख में एक जैसे हैं."

यह सब उस भगवान का नाम लेने से रोकने के लिए हुआ, जिसने दुनिया को ज़िंदगी का सबसे बड़ा फ़लसफ़ा दिया. जिसकी मोहब्बत और अक़ीदत धर्मों के आरपार जाती है. यही वजह है कि मुग़लों के दौर में काबुल के पश्तून क़बीले का एक मुसलमान सैयद इब्राहीम वृंदावन आता है और रसखान बन जाता है. और कहता है :

"मानुस हौं तो वही रसखान।
बसौं ब्रज गोकुल गांव के ग्वारन।।
जो पसु हों तो कहा बस मेरोI
चरौं नित नंद की धेनु मंझारन।।"

यानी अगले जन्म में इंसान बने तो गोकुल के ग्वालों के बीच रहने को मिले. अगर पशु बने तो नंद की गाय बन जाऊंऋ

उर्दू अदब में कृष्ण लीला के ज़िक्र की पुरानी रवायत रही है. नज़ीर अकबराबादी लिखते हैं:

"दधिचोर, गोपीनाथ, बिहारी की बोलो जय।
तुम भी नज़ीर किशन बिहारी की बोलो जय।।'

मौलाना हसरत मोहानी लिखते हैं:
"हसरत" की भी क़ुबूल हो मथुरा में हाज़िरी।
सुनते हैं आशिक़ों पे तुम्हारा कर्म है ख़ास।।"

हफ़ीज़ जालंधरी लिखते हैं:
"हैं तेरी जुदाई
मथुरा को न भायी,
जमुना का किनारा,
सुनसान है सारा,
ऐ हिन्द के राजा,
एक बार फिर आ जा,
दुख दर्द मिटा जा।"

निदा फ़ाज़ली लिखते हैं:
"वृंदावन के कृष्ण कन्हैया अल्लाह हू।
बंसी, राधा, गीता, गईया अल्लाह हू।"

कैफ़ी आज़मी लिखते हैं:
"और फिर कृष्ण ने अर्जुन से यह कहा :
न कोई भाई, न बेटा, न भतीजा, न गुरु।
एक ही शक्ल उभरती है हर आईने में,
आत्मा मरती नहीं, जिस्म बदल लेती है।
जिस्म लेते हैं जनम, जिस्म फना होते हैं।
और जो एक रोज़ फना होगा, वो पैदा होगा।"

जावेद अख्तर लिखते हैं:
"वो कृष्ण कन्हैया, मुरलीधर, मनमोहन, कान्ह मुरारी है।
गोपाल, मनोहर, दुख भंजन, घनश्याम, अटल, बनवारी है।।"

और शकील बदायूंनी तो मुग़ले आज़म में यह लिख के अमर हो गए कि :
"मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे।
मोरी नाजुक कलइयां मरोड़ गयो रे।।"

रसखान की कृष्ण भक्ति देख कर तो भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कहा था कि
"इन मुसलमान हरिजनन पे कोटिक हिन्दू वारिये।'

दरअसल कृष्ण दुनिया को ज़िंदगी का दर्शन भी देते हैं और मोक्ष का निमंत्रण भी. भगवान गीता के 18वें अध्याय के 66वें श्लोक में कहते हैं:
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षष्यामि मा शुचः।।"

तो वो यह बजरंग दल या किसी और दल के लिए नहीं कह रहे हैं. यह एक सार्वजनिक, सर्वाभौमिक निमंत्रण है जो मथुरा के उस ग़रीब ठेले वाले के लिए भी है जो कृष्ण का नाम अपने बोर्ड पर लिख कर चार पैसे कमा लेता है.

अरबी, फ़ारसी और उर्दू में गीता का तर्जुमा कई मुस्लिम मौलानाओं ने भी किया है. मशहूर शायर अनवर जलालपुरी को उनकी उर्दू गीता के लिए पद्मश्री पुरस्कार मिला. नवाब वाजिद अली शाह ने "राधा कन्हैया का किस्सा" सिर्फ लिखा नहीं बल्कि उसका मंचन भी किया और निर्देशन भी. मथुरा के एक ग़रीब मुस्लिम ठेले वाले के ठेले से "कृष्ण" का नाम मिटाया जा सकता है लेकिन उन्हें सांझी संस्कृति की विरासत से मिटाना नामुमकिन है.

कमाल खान एनडीटीवी इंडिया के एक्जीक्यूटिव एडिटर हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.