इस वक्त भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये है कि वो अपने नागरिकों को अफगानिस्तान से कैसे निकाले. इन नागरिकों में काबुल दूतावास में काम कर रहे कर्मचारी, सुरक्षा में लगे भारतीय सुरक्षा बलों के जवान, और बाकी नागरिक शामिल हैं. जमीन पर वस्तुस्थिति कुछ ही घंटों में इतनी तेजी से बदली कि शायद पहले निकलने का मौका ही नहीं मिला. इसको लेकर कई सवाल अब पूछे जा रहे हैं.
विदेश मंत्रालय की तरफ से अफगानिस्तान के मामले में जारी किया हुआ पहला बयान अपने नागरिकों की सुरक्षा पर ही केंद्रित है. इस बयान में कहा गया है कि अफगानिस्तान में सुरक्षा के हालात बहुत तेजी से खराब हुए हैं और अभी भी लगातार बदल रहे हैं. सरकार लगातार इन हालात पर नजर रखे हुए है. वहां के हवाई अड्डे से व्यवसायिक विमान नहीं चल रहे हैं इसलिए नागरिकों को वहां से निकालने की प्रक्रिया फिलहाल रोकनी पड़ी है.
बयान में कहा गया है कि अफगानिस्तान के हिंदू और सिख प्रतिनिधियों से लगातार संपर्क में हैं. वो अगर भारत आना चाहें तो मदद करेंगे. साथ ही वो सभी अफगान जो भारत के सहयोगी रहे है, चाहे वो विकास, शिक्षा या पीपल टू पीपल कोशिशों में - अगर वो भी भारत आना चाहें तो भारत उनके साथ है. लेकिन काबुल के हालात अभी चिंताजनक हैं. चप्पे चप्पे पर तालिबान मौजूद हैं. हवाई अड्डे पर लगातार अफरा तफरी का माहौल है, हजारों की भीड़ जमा है. लोग इतने डरे हुए हैं कि एक हवाई जहाज के डैनों पर बैठ कर निकलने की कोशिश में कई सौ फीट की उंचाई से गिरकर कुछ की जान चली गई.
हवाई अड्डे से जहाज निकल सकें इसकी कोशिश में वहां मौजूद अमेरिकी सेना ने फायरिंग की जिसमें कुछ लोगों के मारे जाने की भी खबर है. अपने अपने ठिकानों से निकल कर हवाई अड्डे तक पहुंचना भी मुश्किल भरा है लेकिन इसके अलावा कोई रास्ता भी नहीं. जमीनी सीमाओं पर और वहां तक पहुंचने के रास्तों पर भी तालिबान मौजूद है.
विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि उच्च स्तर पर इस बात पर नजर रखी जा रही है कि अपने लोगों को वहां से कैसे निकालें. शायद इसका जवाब मिलिट्री जहाज ही हैं क्योंकि काबुल के हामिद करजई हवाई अड्डे का सैन्य जहाजों वाला हिस्सा अमेरिकी सैनिक मैनेज कर रहे हैं. भारत को इस से कुछ आसानी हो सकती है. इस बीच तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने ट्वीट कर कहा है कि वो सभी राजनयिकों, दूतावासों, कंसुलेट को भरोसा दिलाते हैं उन्हें कोई समस्या नहीं होगी और उन्हे एक सुरक्षित माहौल दिया जाएगा. लेकिन तालिबान के पिछले शासन को देखते हुए शायद ही कोई इस भरोसे पर यकीन कर वहां रुकना चाहे. हां, जो कुछ दूतावास वहां अब भी काम कर रहे हैं उनमें पाकिस्तान, रूस और चीन के दूतावास शामिल हैं.
कादम्बिनी शर्मा NDTV इंडिया में एंकर और सीनियर एडिटर (फॉरेन अफेयर्स) हैं...
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