अगर आप इस बात से दुखी रहते हैं कि कभी चर्चा में आने का सुख नहीं मिला है, तो आपका समय आ गया है. आप आस-पास की किसी भी ऐतिहासिक इमारत पर दावा कर दीजिए,सारे चैनल वाले आपके घर आ जाएंगे. वहां से आपको उठाकर स्टुडियो ले जाएंगे, जहां बिठाकर आपको ख़ूब बोलने देंगे. मेरी एक गुज़ारिश है, जब भी ऐसा मौक़ा आए, डिबेट के बीच कोई गाना भी सुना दें. याद रखें कि ऐसा टाइम फिर नहीं आने वाला है. अगर आपके घर के आस-पास कोई इमारत नहीं है तो चिन्ता न करें. अपने ही घर पर दावा कर दें कि इसके नीचे कुछ है.बस कुछ टीवी वाले,कुछ अधिकारी, कुछ कानून के जानकार दौड़े आ जाएंगे, और सभी मिलकर राष्ट्रीय बहस का उत्पादन कर डालेंगे. बस ये ध्यान रखना है कि दावा करते समय भूमाफिया का नाम लेते समय औरंगज़ेब, शाहजहां और अकबर का नाम ज़रूर लें. फिर तो बुलडोज़र भी आ जाएगा. इस तरह के डिबेट से यह तो पता चल रहा है कि हमारा बौद्धिक स्तर कितना ऊंचा उठ गया है, इतना ऊंचा उठ गया है कि हम विनम्रता में नीचे गिरे मुद्दों को उठाकर ऊपर ला रहे हैं. इस वक्त सभी लोग एक ही लेवल पर आ गए हैं, इसका फायदा यह है कि मूर्ख कोई बचा ही नहीं है,हर कोई सामने वाले को विद्वान समझने लगा है.किसी का भी घर खुलवाना हो, तो सबसे पहले दावा कर दीजिए कि यहं कुछ है उन्हें घर खोल कर दिखाया जाए.ऐसी याचिकाओं से गोदी मीडिया के लिए डिबेट पैदा किया जा रहा है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उस याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए कहा कि इस मुद्दे पर डिबेट करने के लिए अपने ड्राइंग रूम में स्वागत करते है, लेकिन कोर्ट रूम में नही. कल आप हमारा कमरा खोल कर देखना चाहेंगे. याचिकाकर्ता की मांग है कि ताजमहल में मौजूद 20 बंद कमरों को खोला जाए. तब अदालत ने कहा कि कृपया PIL सिस्टम का मज़ाक मत बनाइये. अदालत ने याचिकाकर्ता से यह भी कहा है कि एम ए की पढ़ाई करें, पीएचडी करें. फिर किसी टापिक पर रिसर्च करें. कोई संस्थान रिसर्च करने से रोकता है तब हमारे पाए आएं. कुल मिलाकर अदालत ने यही कहा कि ऐसी बातों पर बहस पब्लिक के बजाए, अध्ययन और संदर्भों के साथ होनी चाहिए. जस्टिस डी के उपाध्याय ने याचिका खारिज कर दी. सवाल है कि क्या याचिकाकर्ता और इस डिबेट की शक्ल देने वाले इतिहास की किताब पढ़ेंगे? बीजेपी के अयोध्या इकाई के मीडिया प्रभारी रजनीश सिंह ने याचिका दाखिल कर दावा किया था कि ताजमहल के बारे में झूठा इतिहास पढ़ाया जा रहा है और वह सच्चाई का पता लगाने के लिए 22 कमरों में जाकर शोध करना चाहते हैं.
इतिहास पढ़ाया नहीं जाता है,बल्कि ख़ुद से भी पढ़ा जाता है. आप ज़रा गूगल सर्च करें. इसके पहले भी ताजमहल को लेकर गोदी मीडिया में डिबेट पैदा किया गया है. 2014 और 2017 के साल में भी गोदी मीडिया में ताजमहल को लेकर डिबेट की भरमार मिलती है. ऐसा लगता है तब के डिबेट को आप भूल चुके हैं इसलिए 2022 में रिविज़न कराया जा रहा है.
मोदी सरकार के ही मंत्री थे, महेश शर्मा,30 नवंबर 2015 को एक सवाल का जवाब दिया. सवाल था कि क्या सरकार को ऐसा कुछ मिला है कि वहां मंदिर था तब महेश शर्मा कहते हैं कि नहीं. ताजमहल UNESCO की world heritage साइट है .इसके बाद भी हिन्दी प्रदेश के दर्शकों को साबित करने के लिए यह मुद्दा बार बार उठाया जाता है कि अब जनता ने दिमाग़ से सोचना बंद कर दिया है. क्या वाकई आपको ये सारे मुद्दे अपमानजनक नहीं लगते हैं, क्या एक दर्शक को लगातार यही सब चाहिए? प्रश्नवाचक चिन्हों का इस्तेमाल कर डिबेट के लिए माहौल सेट किया जाता है. एक और बात ध्यान में रखिए. पहली बार ताजमहल पर डिबेट नहीं हो रहा है. सात साल पहले भी हो चुका है, चार साल पहले भी हुआ है और इस बार हो रहा है. ऐसा लग रहा है कि ये भाई लोग नेशनल सिलेबस पब्लिक के बीच रिवाइज़ करा रहे हैं. बार-बार रटवा रहे हैं. डिबेट के कुछ टाइटल देखिए. ये सारे टाइटल पिछले कुछ दिनों के टीवी डिबेट के हैं. हम चैनल का नाम नहीं दे रहे हैं. केवल टाइटल दे रहे हैं. इन सभी में प्रश्न वाचक चिन्ह का इस्तेमाल किया गया है. ताकि लगे कि चैनल को कुछ पता ही नहीं है. दो पक्ष हैं तो बहस करा रहे हैं.
ताजमहल के बंद कमरों में देवी देवताओं की मूर्तियां? हिंदू महल को शाहजहां ने दिया ताजमहल का नाम?
ताजमहल मकबरा या मंदिर ? काशी मथुरा जारी, ताज की बारी? ताजमहल के बंद कमरे में क्या छुपा है राज़ ?
मस्जिद और मीनारें, कितनी दीवारें? ताजमहल या तेजोमहल ? देश की विरासत पर धर्म की सियासत कब तक? क्या ताजमहल एक मंदिर था? क्या ताजमहल का इतिहास ग़लत बताया गया? पढ़ेंगे नहीं, लेकिन इन्हें ये पता चल गया है कि ग़लत पढ़ाया गया. जिस देश में इतिहास के छात्र को भारतीय रिज़र्व बैंक का गर्वनर बनाया गया है उस देश में इतिहास का यह हाल है. यह टिप्पणी केवल इतिहास तक सीमित है, इसका अर्थव्यवस्था से कोई लेना-देना नहीं है. आप अपने आस-पास के लोगों से पूछिए कि इतिहास की किताब आखिरी बार कब पढ़ी थी, तो कई लोग ऐसे मिल जाएंगे जिन्होंने बीस बीस साल से कोई किताब ही नहीं पढ़ी है. हाई कोर्ट के जज ने याचिकाकर्ता से कहा है कि MA पढ़ें, PHD करें लेकिन इससे भी छुटकारा नहीं मिलने वाला है. पीएचडी करने वाले इस विवाद में कूद जाएंगे. विद्वता का यह जो माहौल उमड़ा है इस समाज में, इतनी आसानी से नहीं जाने वाला.
जो भी बकवास कर सकता है, टीवी के डिबेट में प्रवक्ता बनने का पात्र है. इन प्रवक्ताओं को लेकर मैंने एक सिद्धांत प्रतिपादित हुआ है, जिसका पंजीकरण नहीं कराया है. सिद्धांत यह है कि प्रवक्ता का पात्र होने के लिए पात्रता की कोई ज़रूरत नहीं होती है. पात्र ही अपने आप में पात्रता है और वही प्रवक्ता है. प्रवक्ता ही हर विषय का प्रोफेसर है और प्रोफसर भी हर विषय का प्रवक्ता है. गोदी मीडिया के सहारे करोड़ों लोग इतिहास की पढ़ाई कर रहे हैं जिसमें न पढ़ाई है और न इतिहास है.इस तरह से डिबेट के टाइटल लिखे जा रहे हैं जैसे आज ही भारत आए हैं.
पहली बार सब जान रहे हैं, देख रहे हैं.अब जब यह देश इस काम में जुट ही गया है तो मैं भी देश को कुछ काम देना चाहता हूं ताकि इतिहास में मेरा भी नाम रहे कि जब देश में बेकारी चरम पर थी तब इस ऐंकर ने भी देश को कुछ काम दिया था.किसी भी संगठन को लग रहा है कि ऐतिहासिक इमारत पर कब्ज़ा करने और सड़कों के नाम बदलवाने की दौड़ में वह पीछे रह गया है तो घबराने की बात नहीं है. अभी बहुत से काम हैं. अभी तो हिन्दी में पुर्तगाली, अरबी, लैटिन. अंग्रेज़ी से जितने भी शब्द आए हैं, उन सबको निकालना है. ऐसा कर आप हिन्दी को आज़ाद कराने की लड़ाई लड़ सकते हैं. लोग क्या कहेंगे इसकी चिन्ता न करें, लोग कहने लायक बचे ही नहीं. उन्हें जो भी सुनाया जाता है, वही सुनते हैं.
आज़ादी का अमृत महोत्सव, कितनी बार इसके बारे में सुना होगा आपने. कभी सोचा कि आज़ादी फ़ारसी का शब्द है. युनाइटेड हिन्दू फ्रंट को इन पोस्टरों से आज़ादी शब्द हटाने का संघर्ष करना चाहिए. उससे पहले संगठन के नाम से युनाइटेड को भी हटाना होगा क्योंकि यह शब्द अंग्रेज़ी का है, जो ग़ुलामी का प्रतीक है.बुलडोज़र के हिन्दी नाम तुरंत खोजने होंगे, यह तो और भी घोर ग़ुलामी का प्रतीक है कि हम ब्रिटेन की जेसीबी कंपनी के उत्पाद का नाम अंग्रेज़ी में पुकार रहे हैं.अंदर, अंदाज़ा, अंदेशा, आईंदा, आईना, आख़िर इन शब्दों का इस्तेमाल न करें क्योंकि ये फ़ारसी के शब्द हैं.कालोनी के व्हाट्स एप ग्रुप में चर्चा करें कि अंदाज़ा और अंदर की जगह किस भारतीय शब्द का इस्तेमाल करें, याद रखें, अकल का बिल्कुल ही इस्तेमाल न करें, क्योंकि अकल अरबी का शब्द है. इसके अलावा, प्रायश्चित करना चाहूंगा कि अलावा जैसा अरबी शब्द निकल गया.अलमारी का इस्तेमाल आज ही बंद कर दें क्योंकि ये पुर्तगाली से आया है.पेट साफ़ हो या न हो, लेकिन क़ब्ज़ का इस्तेमाल किसी हाल में नहीं करना है क्योंकि यह अरबी का शब्द है. मुग़ल इनका इस्तेमाल करते होंगे. हमें हर हाल में नहीं करना है. कमरा की जगह कक्ष बोलें क्योंकि कमरा लैटिन का शब्द है. कानून का इस्तेमाल बिल्कुल न करें, ये अरबी का शब्द है. कमज़ोर फ़ारसी का शब्द है.
पसीने छूट जाएंगे शब्दों को बाहर करने में लेकिन इससे नहीं घबराना है, टाइम तो कट जाएगा.हिन्दी के वाक्यों को विदेशी शब्दों से मुक्त करने का अभियान हिन्दी प्रदेश के युवाओं में कम से कम दस बीस साल तक के लिए उलझा कर रख सकता है. नाम बदलवाने वाले संगठनों पर बड़ी भारी ज़िम्मेदारी आ गई है. उन्हें अभी न जाने इस तरह के कितने फालतू मुद्दों को ज़रूरी मुद्दा घोषित करवाना है. फालतू मुद्दों को अनिवार्य मुद्दा घोषित करना राष्ट्रीय महत्व का कार्य है. इस आंधी को कोई नहीं रोक सकता.आपको याद होगा, हरिद्वार में एक धर्म संसद हुई थी. इसमें भड़काऊ बयान दिए गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि ये लोग पूरे माहौल को ख़राब कर रहे हैं. भड़काऊ भाषण देने वाले संवेदनशील नही हैं. कोर्ट ने एक अच्छी बात कही कि शांति के साथ रहें जीवन का आनंद लें.राजद्रोह के मामलों पर अंतरिम रोक लगा देने से क्या हालत बदल जाएंगे, इस पर बहस जारी है.