हमेशा से ही किसी भी पेशे में, किसी भी दौर में नैरेटिव (कहानी, कथन, बयान आदि) के बहुत ही ज्यादा मायने हैं. इनमें इतनी शक्ति होती है कि जब पेशे विशेष के दिग्गज कोई बात कहते हैं, तो असत्य भी सत्य बन जाता है! इस दौर में भी दुनिया भर में जियो पॉलिटिक्स (भू-राजनीति) से लेकर आम जनता और पेशे विशेष का संचालन नैरेटिव ही तय कर रहे हैं! खेल भी कोई अपवाद नहीं है. सही नैरेटिव आपके लिए सही दिशा, सोच तैयार करते हैं और आगे भी हमेशा करते रहेगे, लेकिन ये नैरेटिव गलत हों, तो यह गलत ट्रैक पर ले आते हैं.
हाल ही में एशेज के पहले टेस्ट में पर्थ में एक दिन में 19 विकेट गिरे और पहला टेस्ट दो ही दिन में टेस्ट खत्म हुआ, तो महान गावस्कर सहित भारत के तमाम दिग्गजों को पश्चिम मीडिया और उन पूर्व दिग्गजों की खिंचाई का मौका मिल गया, जो भारत के टर्निंग ट्रैक पर टीम इंडिया की बैटिंग को लेकर सवाल उठा रहे थे, या मजाक बना रहे थे. तमाम भारतीय पूर्व दिग्गजों ने एक सुर में कहा कि अब वे इस पिच पर अपने बल्लेबाजों के इस हाल पर क्या कहेंगे? क्या पिच खराब है या बल्लेबाजी? वार पर पलटवार! ये पलटवार फैंस को बहुत ही संतुष्टि प्रदान करते हैं.
मगर, अपनी खामी के लिए दूसरे की खामी गिनवाना बिल्कुल भी समस्या का समाधान नहीं है. क्या है? वास्तव में जब आप इस तर्क (कुतर्क) का इस्तेमाल करते हैं, तो रास्ता गर्त की ओर ही जाता है. अगर आप सत्य को जानते-समझते हुए सिर्फ सामने वाले शख्स पर पलटवार करते हैं, तो एक बार को समझा जा सकता है. लेकिन अगर आप जाने-अनजाने में भी सत्य से विमुख हो रहे हैं और इसे (हालात को) वास्तविक मानक पर नहीं तौलना चाहते, तो खुद को धोखा तो दे ही रहे हैं, उनको भी गलत सोच प्रदान कर रहे हैं, जिनका काम खेल विशेष को आगे ले जाने का है.
तेज और टर्निंग ट्रैक पर बल्लेबाजी, या कौशल दो अलग-अलग बाते हैं. दोनों तरह की पिचों पर अलग-अलग "तत्वों" की परीक्षा होती है. किसी भी तेज, उछालयुक्त पिच पर आपके साहस और फुटवर्क की परीक्षा होती है, तो धीमी पिच पर आपके धैर्य की. वहीं, टर्निंग ट्रैक पर आपके तकनीक कौशल की परीक्षा होती है. अगर इस टर्निंग ट्रैक पर घुमाव (टप्पा पड़ने के बाद) सामान्य से तेज हो, उछाल दोहरा और अप्रत्याशित हो, तो फिर परीक्षा तकनीक के साथ-साथ आपके संपूर्ण कौशल (टेम्प्रामेंट (मिजाज, मनोदशा), फुटवर्क, शॉट चयन, धैर्य..वगैरह-वगैरह ) की भी एक अलग स्तर की होती है. तेज पिचों पर खामी या नाकामी का सही जवाब या बचाव कभी भी स्पिन कौशल की नाकामी कभी नहीं हो सकती. या, क्या हो सकती है? वास्तव में भारतीय क्रिकेट के आकाओं को रुककर, ठहरकर सोचने की जरूरत है कि क्या वे सही नैरेटिव सेट कर रहे हैं? क्या वो वह नैरेटिव कह रहे हैं, जो खुद में झांककर समीक्षा करने को कहता है?
ईडेन गॉर्ड की पिच (यहां पर 124 रनों के लक्ष्य का पीछा बनता था) को एक बार को छोड़ देते हैं, गुवाहाटी का बरसापारा स्टेडियम तो टीम इंडिया के लिए किसी ट्रेन के 'फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट' सरीखा था! अपना घर, अपने दर्शक, आदि. और तमाम बातों से ऊपर... पिच! अपनी पसंदीदा पिच! क्या इसमें भी ईडेन गॉर्डन जैसे "तत्व" थे? दक्षिण अफ्रीकी नंबर-9 बल्लेबाज मार्को जानसेन ने इस पिच पर दूसरे दिन 91 गेंदों पर 93 रन बनाए, जिस पर भारतीय मिड्ल ऑर्डर बल्लेबाज एक के बाद एक घटिया, गैरजिम्मेदारना स्ट्रोक खेलकर पवेलियन लौटे?
क्या अब "नैरेटिव पंडित" यह कहेंगे कि जानसेन की बैटिंग के समय दूसरे दिन की पिच थी और यह तीसरे दिन की पिच है? क्या अब "वे" यह कहेंगे कि जानसेन नंबर-9 बल्लेबाज था और उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं था? या फिर यह करेंगे कि जानसेन की बल्लेबाजी अपवाद थी? क्या वे अभी भी यह कहेंगे कि पंत ऐसा ही खेलते हैं, यही उनकी शैली है आदि? फिर विकेट लेने में नाकाम रहे कुलदीप यादव के इस बयान का क्या होगा कि यह पिच नहीं रोड (सड़क) थी. मतलब एकदम पाटा और बैटिंग के लिए आसान पिच. लेकिन चौथे दिन तो दक्षिण अफ्रीकी नंबर-3 स्टब्बस ने 94 रन बनाकर "इन कुतर्कों" या कथनों पर पूरी तरह से पानी फेर दिया. और जब शाम होते-होते मेहमानों ने टीम इंडिया के समक्ष 'जीत का दरवाजा' पूरी तरह बंद करते हुए 549 का लक्ष्य रखा, तो हार तो कमबोश तय हो गई थी, लेकिन 408 रन की सर्वकालिक हार के बारे में शायद ही किसी ने कल्पना की थी. गुवाहाटी की हार ने एक नया पहलू यह और दे दिया कि अब भारतीय बल्लेबाजों पर पिच पर पेस और सीम को लेकर भी एक बड़ा वर्ग सवाल खड़ा हो रहा है. पहली पाली में प्लेयर ऑफ द मैच जानसेन के 6 विकेट इसी का प्रमाण हैं.
Photo Credit: BCCI Video Screengrab
वास्तव में सर्वकालिक सबसे बड़ी हार के बाद अब आपको (BCCI, टीम इंडिया के बल्लेबाजों) रुककर, ठहरकर आईना देखने की जरूरत है? दक्षिण अफ्रीका ने आपको "फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट" से बाहर निकाल खड़ा किया है. पिछले साल जुलाई में यह काम न्यूजीलैंड ने किया था. अब अपनी जमीं पर सर्वकालिक सबसे बड़ी हार (रनों के अंतर से) के बाद "नैरेटिव पंडित" क्या कहेंगे? सच यह है कि आपकी सबसे बड़ी ताकत (घरेलू पिचों पर स्पिन खेलने का कौशल, स्पिन खेलने की कला डीएनएन में शामिल जैसे कथन) को लकवा मार गया है! इस कौशल के मामले में आप I.C.U (इंटेसिव केयर यूनिट) में हैं. ईडेन तो ईडेन, गुवाहाटी में दूसरी पारी में सिर्फ 140 रनों पर ढेर होना इस पर पूरी तरह मुहर लगाता दिख रहा है. आखिर यह क्यों हुआ? इसका दोषी कौन है?
अक्सर कमाऊ पूत "(आईपीएल)" के आगे गुणी पुत्र "(घरेलू क्रिकेट)" हाशिए पर चला जाता है! और भारतीय क्रिकेट के संदर्भ में तो यह बहुत पहले ही चला गया है. मानो BCCI के लिए व्हाइट-बॉल फॉर्मेट और इसके विश्व कप खिताब जीतना ही सबकुछ हो चला है! मानो बोर्ड ने अपनी सारी ऊर्जा इसी फॉर्मेट में लगा दी है! कई दशक पहले महान सुनील गावस्कर की अध्यक्षता में एक घरेलू कमेटी बनी थी. हर रणजी ट्रॉफी सीजन की समाप्ति पर तमाम घरेलू टीमों के कप्तान और कोच सुझावों के साथ मीटिंग में पहुंचते थे. और इन सुझावों का 'पोस्टमार्टम' करते हुए इन पर मुहर लगाई जाती थी. खेल साल दर साल ऐसी ही आगे बढ़ा? इस बैठक के सिलसिले को किसने और क्यों बंद दिया?
जस्टिस लोढ़ा के संविधान के अनुसार खेल को 'क्रिकेट कमेटी' (अनिवार्य रूप से खिलाड़ियों की भागीदारी वाली) ही चलाएगी. BCCI की वेबसाइट पर पूर्व में क्रिकेट कमेटी को छोड़कर बाकी कमेटियां दिख जाती थीं, लेकिन अब बाकी कमेटियां भी गायब हो चुकी हैं. क्रिकेट कमेटी में कौन-कौन क्रिकेटर शामिल हैं? क्रिकेटर हैं भी? ये साल में कितनी मीटिंग करते हैं? क्या कभी इनकी सिफारिशें सार्वजनिक (ICC की तरह) हुईं? साल 2023 में वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल के रूप में अपना आखिरी टेस्ट मैच खेलने वाले चेतेश्वर पुजारा के जाने करीब दो साल बाद भी हम नंबर-3 बल्लेबाज के लिए बेतुके प्रयोग करने में ही जुटे हैं. हम कहां खड़े हैं? हम कैसे 'प्रोडक्ट' तैयार कर रहे हैं? वास्तव में रेड-बॉल फॉर्मेट में वर्तमान में भारतीय क्रिकेट चौराह पर खड़ी. और BCCI इस चौराहे पर उस भ्रमित शख्स की तरह खड़ा है, जिसने नहीं हीं मालूम कि यहां से कौन सी "रेड-बॉल रोड" पर जाना है?
करीब एक साल पहले न्यूजीलैंड के हाथों 3-0 के सफाए के बाद घरेलू पिच पर माथे पर एक और कलंक और मेहमान दक्षिण अफ्रीका के हाथों सफाया और सर्वकालिक सबसे बड़ी हार (रनों के लिहाज से) का मतलब है कि हम कागजों (मीडिया) में "घर के शेर" का तमगा पूरी तरह गंवा चुके हैं. घर में पिछले एक साल में पांच टेस्ट मैचों में हार बहुत ही ज्यादा 'गंभीर' मसला है. और इस के बाद गौतम के हाथ जलेंगे ही जलेंगे! टेस्ट क्रिकेट कोई "टी20 तमाशा" नहीं है, जहां किसी को भी नंबर-3 बना दिया जाए, तो ऑलराउंडर के नाम पर रेड्डी को XI में फिट कर दिया जाए. वास्तव में चीजें (तत्व, घर में टेस्ट में स्पिन खेलने का कौशल) हथेलियों की ग्रिप से फिसल गया है! यह छूटा ही है, लेकिन ज्यादा दूर नहीं ही गया है. इसे निश्चित तौर पर पकड़ा जा सकता है? लेकिन सवाल यह है कि बीसीसीआई जाग रहा है? क्या "गुणवान पुत्र'पर ध्यान दिया जाएगा? क्या सही, बड़े और साहसिक बदलाव देखने को मिलेंगे? यही समय है और बिल्कुल सही समय है! अगर इतने पर भी आप (BCCI) अभी भी सोए रहे, तो फिर कौन जानता है कि कब या देर-सबेर अपनी जमीं पर हार का अंतर 409-410 न हो जाए. जागो BCCI जागो !
(मनीष शर्मा ndtv.in में डिप्टी न्यूज़ एडिटर हैं...
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