अपने देश में भी Sad Leave मिलने लग जाए, तो किन-किन मौकों पर इस्तेमाल करेंगे लोग?

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Amaresh Saurabh

हाल ही में चीन की एक फर्म ने सैड लीव (Sad Leave) देने की बात कहकर कॉरपोरेट वर्ल्ड में तहलका मचा दिया. शुरुआत अपने पड़ोस में हो चुकी है, इसलिए एक आस तो बंधती ही है. चीन से चलकर, देर-सबेर अपने यहां भी सैड लीव पॉलिसी आ ही जाएगी. अगर सचमुच ऐसा हुआ, तो लोग इस लीव को किन-किन मौकों पर भुनाना चाहेंगे, यह देखना रोचक होगा.

सैड लीव और खुशी के आंसू!

दरअसल, चीन की फर्म ने कहा कि उसके एम्प्लॉई सालभर में कभी भी 10 दिन सैड लीव ले सकते हैं. मजे की बात ये कि इस लीव को बॉस से अप्रूव कराने की भी जरूरत नहीं. बस, जब भी सर जो तेरा चकराए या दिल डूबा जाए... ऑफिस मत आइए. इस अनोखी पॉलिसी की बात सुनते ही उस कंपनी के कई कर्मचारियों की आंखों में आंसू आ गए. और जब आंसू आ ही गए, तो ढेर सारे लोग इकट्ठे सैड लीव पर चले गए! आंसू किस टाइप के हैं, कंपनी पूछ कहां रही है?

अपने यहां कैसे आएगी पॉलिसी?

आएगी क्या, करीब-करीब आ चुकी है. इत्तेफाक देखिए, जिस वक्त चीन की फर्म सैड लीव ला रही थी, लगभग उसी समय अपने देश की एक फिनटेक कंपनी ने ब्रेकअप लीव (Breakup Leave) देने का ऐलान कर दिया. किस कंपनी की पॉलिसी पहले आई, पक्के तौर पर कहना मुश्किल है. वैसे सैड लीव का दायरा थोड़ा बड़ा दिख रहा है, इसलिए यहां पूरा फोकस सैड लीव पर रखते हैं.

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सैड लीव अपने देश आएगी और छा जाएगी, इस उम्मीद के पीछे कई वजह दिख रही हैं. एक तो दोनों पड़ोसी देश हैं. इनमें आदान-प्रदान चलता रहता है. कई बार तो पहचानना भी मुश्किल हो जाता है कि कोई चीज इधर की बनी है या उधर की. लोग कमजोर, डुप्लीकेट या सस्ती चीजों को 'चायनीज माल' कह देते हैं, चाहे कहीं बनी हो. ऐसे माल पर कोई गारंटी-वारंटी नहीं होती. हालांकि सैड लीव पर पूरी गारंटी है! अब जब गारंटी है, तो भारत आने में दिक्कत क्या है?  

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एक और बड़ी वजह. देखिए, फ्रांस भारत से कितना दूर है, फिर भी 'फ्रेंच लीव' को हाथों-हाथ लपकने में हमने देर नहीं की. जिन्हें 'फ्रेंच लीव' अब तक नहीं मालूम, वे बस इतना समझ लें कि दफ्तरों में बायोमेट्रिक सिस्टम आने से 'फ्रेंच लीव' की मुहिम को गहरा झटका लगा है. हालांकि इस झटके के बावजूद दोनों देशों के आपसी संबंध मधुर ही बने रहे. बेचारे फ्रांसीसी क्या जानें 'फ्रेंच लीव' का स्वाद!

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कब-कब होगा इस्तेमाल?

अपने यहां सैड लीव किस-किस तरह खपेगी, इसका अनुमान लगाने के लिए यह देखना जरूरी है कि हमलोग कैसी-कैसी बातों से अक्सर उदास हो जाया करते हैं.

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मान लीजिए, पड़ोसी के घर में अपनी वाली से बड़ी कार आ जाए और वह मिठाई खिलाने पहुंच जाए. पड़ोस के लड़के को अपने बच्चे से ज्यादा मार्क्स आ जाए. लोग इन्हीं दिनों के लिए घर में बरनॉल संभालकर रखते हैं. दफ्तर में बॉस किसी दूसरे से ज्यादा हंस-हंसकर बात कर ले. किसी सहकर्मी का प्रमोशन या बेहतर इन्क्रीमेंट हो जाए. पार्टी-प्रोग्राम में कोई परिचित मिल जाए और बगल से गुजरते हुए, जान-बूझकर इग्नोर मार दे. किसी और के ड्रेसिंग सेंस की तारीफ हो जाए. अपने से कम सैलरी वाला अगर रोज-रोज हंसता-खिलखिलाता नजर आने लगे. बस, हो गया अपना काम तमाम!

ये छोटे-छोटे दिखने वाले तीर ही ज्यादा भीतर तक मार करते हैं. बाकी बड़े-बड़े हादसों को हम अक्सर मर्द की तरह सह लेते हैं. आप जानते ही होंगे कि मर्द को दर्द होता है कि नहीं. वैसे गम और भी हैं जमाने में... मोहब्बत वाला परमानेंट टाइप है, इसलिए इसको लिस्ट से बाहर रखा है. कुल मिलाकर, साल में महज 10 दिन सैड लीव देना बहुत नाइंसाफी है.

छुट्टी अप्रूव कैसे होगी?

चीन और भारत के वर्क कल्चर में अंतर है, इसलिए मुमकिन है कि सैड लीव अपने यहां देसी अवतार में आए. सीधे-सीधे कहें, तो अप्रूवल के लिए कुछ न कुछ पेच जरूर फंसाया जाएगा. जैसे, दो से ज्यादा सैड लीव इकट्ठे नहीं ले सकते. किसी पर्व-त्योहार के साथ सैड लीव मंजूर नहीं होगी. शादी से ठीक पहले सैड लीव कौन लेता है भाई? हां, शादी के दो माह बाद आराम से ले सकते हैं.

वीकली ऑफ के साथ भी ये वाली छुट्टी नहीं मिलेगी. एक डिपार्टमेंट से दो लोग साथ-साथ उदास नहीं हो सकते. पहले एक को लौटकर आने दीजिए. सैड लीव कब पेड होगी, कब अनपेड, इसका अंतिम फैसला एचआर करेगा. आखिर हर जगह जो एचआर होता है, उसका काम ही आपकी चालाकियों पर नजर रखना है.

छुट्टी लेकर करेंगे क्या?

अगर उदासी ऑफिस और काम के तनाव से जुड़ी है, तब तो छुट्टी लेना बनता है. लेकिन अगर सैडनेस की वजह घर में ही बैठी (या बैठा) हो, तब क्या? अजी, रूठकर अब कहां जाइएगा? हो गई ना छुट्टी बेकार? मतलब, दु:ख को ठीक से समझे बिना, सिर्फ छुट्टी लेकर इससे छुटकारा पाना संभव नहीं.  

देखिए, दु:ख पर बुद्ध ने अंतिम बात कह दी है. मानना हो, तो मानिए, नहीं तो लीव लेकर आराम कीजिए. बुद्ध कहते हैं कि संसार दु:खमय है. सोचिए, वे गलत कहां हैं? जैसे, जॉब में आने से पहले भी दु:ख था, जॉब के दौरान भी दु:ख मिटा नहीं. जॉब के बाद भी दु:ख बना ही रह जाएगा. लीव लेने से पहले भी दु:ख था. लीव के दौरान भी निश्चित तौर पर दु:ख बना रहेगा. लीव खत्म होने पर तो और भी दु:ख होगा!

माने यह दु:ख ही असली दशानन है. जिस दिन यह रावण सचमुच का मर गया, उस दिन सैड लीव तो छोड़िए, रामलीला की 10 दिन की छुट्टी भी गई पानी में! सार यही है कि फिलहाल सैड लीव का इंतजार करना छोड़िए. जो लीव अभी हाथ में है, उसे दिसंबर से पहले खपाने का इंतजाम कीजिए. 

अमरेश सौरभ वरिष्ठ पत्रकार हैं... 'अमर उजाला', 'आज तक', 'क्विंट हिन्दी' और 'द लल्लनटॉप' में कार्यरत रहे हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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