जीबी रोड की उदास दीवारें और पुलिस चौकी में खिल रहे हैं उम्मीद के रंग 

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प्रो. वर्तिका नन्दा

भारी ट्रैफिक और भागमभाग वाली देश की राजधानी दिल्ली में कुछ कहानियां ऐसी भी हैं, जो शोर के बीच कहीं छिपी रह जाती हैं. यह कहानी है दिल्ली के उस हिस्से की जिसे हम जीबी रोड कहते हैं. जीबी रोड देह व्यापार का वो केंद्र है, जहां 1000 से ज्यादा महिलाएं पहचान छिपाकर रहती हैं. इन महिलाओं का रंगों से कोई वास्ता नहीं है. मगर अब यहां भी धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है. उम्मीद की रोशनी नजर आ रही है. इसी कड़ी में जीबी रोड की संकरी गलियों के बीच बनी महिला पुलिस चौकी की पहली मंजिल पर एक अनोखी महफिल सजी है. 

कला और मानसिक स्वास्थ्य

आज 50 साल की शिल्पा (बदला हुआ नाम)  पुलिस चौकी के पहले फ्लोर पर पहुंची है. उनके साथ करीब 30 और महिलाएं भी हैं. इस कमरे में पुलिस का डर नहीं है. उसके सामने डिब्बों में रंग और आकृतियां बनाने के लिए चिकनी मिट्टी रखी है. इन महिलाओं से कहा गया है कि वे अपने मनपसंद रंग चुनें और अपनी कल्पना के अनुसार आकृतियां बनाएं. यह केवल एक कला वर्कशॉप नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर 'तिनका तिनका फाउंडेशन', राजीव गोयल और दिल्ली पुलिस द्वारा आयोजित एक अनूठी पहल है. इस वर्कशॉप का मकसद इन महिलाओं को उनकी जिंदगी के बासीपन और तकलीफ से बाहर निकालकर उन्हें सृजन की दुनिया से जोड़ना है. जब ये महिलाएं अपनी उंगलियों से रंगों को छूती हैं और मिट्टी को आकार देती हैं तो उनके चेहरे पर सालों बाद सहज खुशी नजर आती है. इस वर्कशॉप की एक और खास बात रही. यहां इन महिलाओं के साथ उनके बच्चे भी आए थे. बच्चों ने जो हुनर पेश किया, वो देखने लायक था, उम्मीद से परे था.         दरअसल, दिल्ली पुलिस इन बच्चों के लिए स्तंभ की तरह खड़ी है. हालिया, गर्मियों की छुट्टियों के वक्त इन बच्चों के लिए एक महीने का विशेष कैम्प आयोजित किया गया था. यहां उन्हें चिकनी मिट्टी से खिलौने बनाने का प्रशिक्षण दिया गया. अब ये बच्चे हर शाम इसी चौकी की पहली मंजिल पर आते हैं. इन बच्चों को यहां प्रशिक्षण मिलता है या ये नियमित तौर पर पढ़ाई करते हैं. 

आखिर कौन हैं ये महिलाएं जो अपनी पहचान छिपाकर जीती हैं?

इनमें से ज्यादातर महिलाएं गरीबी, बेरोजगारी और शिक्षा की कमी जैसी मजबूरियों के कारण यहां तक पहुंची हैं. कुछ ऐसी हैं जिन्हें धोखे से यहां लाकर बेच दिया गया. इसके बाद उनके परिवार के रास्ते हमेशा के लिए बंद हो गए. समाज और परिवार ने उन्हें कभी स्वीकार नहीं किया.

दोहरी पहचान वाला जीवन

इन्हीं में से एक शिल्पा (बदला हुआ नाम) ने अपनी पीड़ा सुनाई. उसने बताया कि वह हर साल अपने घर जाती है, परिवार से मिलती है, लेकिन कभी नहीं बताती कि वह क्या काम करती है. उसने अपने घर पर बता रखा है कि वह दिल्ली में एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करती है. अपना दुख बताते हुए शिल्पा की आंख में आंसू आ जाते हैं. वह इसके लिए खुद को ही कोसती है. शिल्पा कहती है शायद पिछले जन्म में उसने कोई पाप किए होंगे जिसकी सजा वह अब भुगत रही है. शिल्पा की आंखों में घर लौटने की चाहत है. लेकिन वह बेबस और लाचार है.
उम्मीद की एक रोशनी 

दिल्ली पुलिस की सब-इंस्पेक्टर किरण सेठी इन महिलाओं के लिए जिंदगी में एक रोशनी बनकर आई हैं. वह इस चौकी की इंचार्ज हैं. किरण सेठी कहती हैं, "जब से मैं यहां चौकी इंचार्ज बनी हूं, मेरा मकसद इन महिलाओं को समय-समय पर यहां बुलाकर उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए कुछ प्रशिक्षण आयोजित करना है. मैं खुद भी इनके कोठों में जाकर इनकी स्थिति का जायजा लेती रहती हूं." 

किरण सेठी की मेहनत के नतीजे आने भी शुरू हो गए हैं. हाल ही में उन्होंने पूनम नाम की एक सेक्स वर्कर को इस दलदल से रिहा कराया. उसे एक ई-रिक्शा भी दिलाया ताकि वह एक सम्मानजनक जिंदगी शुरू कर सके.  

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जीबी रोड की मिट्टी क्यों है खास?

जीबी दिल्ली का एक इलाका है जिसका आधिकारिक नाम श्रद्धानंद मार्ग है. जीबी रोड को मुख्य रूप से दिल्ली में देह व्यापार के इकलौते और सबसे बड़े केंद्र के रूप में जाना जाता है. यहां करीब 1000 महिलाएं रहती हैं, जिनमें से अधिकांश अपनी पहचान छिपाकर काम करती हैं.

जीबी रोड जैसी जगहों की मिट्टी की एक अनूठी महिमा है. कहा जाता है कि दुर्गा पूजा की मूर्तियां बनाने के लिए ऐसी जगहों की मिट्टी को शुभ मानकर इस्तेमाल में लाया जाता है. इस मिट्टी की महिमा की बात तो खूब होती है, लेकिन इस जगह पर रहने वाली महिलाओं के उद्धार के लिए काम करने वाली संस्थाएं न के बराबर हैं. 

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यह जरूरी है कि इन महिलाओं को केवल काउंसलिंग नहीं, बल्कि किसी स्थायी समाधान के रूप में यहां से बाहर निकालने का प्रयास किया जाए. अगर सही दिशा में काम हो तो इनमें से कई महिलाएं वापस अपनी एक बेहतर जिंदगी में लौट सकती हैं. पुलिस और तिनका-तिनका फाउंडेशन का यह प्रयास भविष्य में भी जारी रहेगा. आने वाले दिनों में यहां एक और वर्कशॉप आयोजित किया जाएगा. इसमें महिलाओं की नई टोली इसका हिस्सा बनेगी. 

डिस्क्लेमर: लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉालेज में पत्रकारिता विभाग की प्रमुख हैं. वो जेलों पर काम कर रही संस्था तिनका तिनका फांउडेशन की संस्थापक हैं. वे दिल्ली पुलिस की पॉडकास्ट सीरिज 'किस्सा खाकी का' की किस्सागो हैं. 

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