This Article is From Jun 16, 2021

क्या 'हनुमान' चिराग का राम से मोह भंग हो गया...

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लोक जन शक्ति पार्टी में चल रहे चाचा भतीजा विवाद में आज बारी थी भतीजे की. चिराग पासवान मीडिया के सामने आए और अपनी बात रखी. पूरे प्रेस कांफ्रेस से तीन बातें निकल कर आई. पहली जब पिताजी गुजर गए थे तब मैंने अपने आप को अनाथ नहीं समझा था लेकिन आज अपने आप को अनाथ समझ रहा हूं. कहने का मतलब है कि जिस ढंग से पशुपति नाथ पारस यानी चाचा ने लोजपा पर कब्जा कर लिया उससे चिराग को बहुत ठेस पहुंची है. शायद चिराग उस घटना को नहीं भूल पाए हैं जब वो अपने चाचा के घर के दरवाजे पर खड़े रहे मगर पारस के यहां से किसी ने दरवाजा नहीं खोला. वही चाचा जिसके लिए उनके पिताजी मरते दम तक कुछ न कुछ करते रहे. चुनाव में जितवाते रहे क्योंकि अकेले पशुपति नाथ पारस या रामचंद्र की इतनी हैसियत नहीं थी कि वो चुनाव जीत पाते.

यही बात अब रामचंद्र के बेटे प्रिंस पर भी लागू होती है. दूसरी अहम बात चिराग ने प्रेस कांफ्रेंस में कही कि उनकी पार्टी लोजपा को तोड़ने के पीछे जदयू का हाथ है. जाहिर है ये सच है और सबको पता है. लोजपा में फूट के मास्टमांइड नीतीश कुमार हैं जिन्होंने पटना से बैठ कर इस ऑपरेशन को अंजाम दिया और उनका सारा काम उनके विश्वस्त लल्लन सिंह ने दिल्ली में अंजाम दिया. उन्होंने ही इन सभी सांसदों से मुलाकात कर लोजपा में फूट डलवाया, उनके साथ बीजेपी भी बराबर की हिस्सेदार बनी. चिराग ने यह भी कहा कि यह नीतीश कुमार की नीति थी कि उन्होंने बिहार में दलित और महादलित में विभाजन कर दिया. हालांकि बिहार में इसे नीतीश कुमार की सोशल इंजीनियरिंग कहा गया मगर चिराग की बात सही है कि इससे दलित वोटों का बंटवारा हुआ.

दलित और महादलित एक दूसरे के खिलाफ खड़े हुए इससे नीतीश कुमार ने लालू यादव और रामविलास पासवान दोनों के वोट बैंक में सेंध लगाई. नीतीश कुमार बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग के तीखे हमलों को कभी भूले नहीं होंगे और ना भूलने की कोशिश की. वैसे भी नीतीश कुमार वैसे नेताओं में हैं जो कभी कुछ नहीं भूलते और कभी माफ नहीं करते. ये बात लालू यादव और रामविलास पासवान पर लागू नहीं होती है. इसी का नतीजा है कि अभी तक रामविलास पासवान की छत्रछाया में सुविधाभोगी राजनीति करने वाले पारस ने फिर सुविधाभोगी रास्ता अपनाया और सत्ता के साथ रहने का तय किया. पारस भी आखिर ठहरे रामविलास पासवान के भाई, वो भी छोटे मोटे मौसम वैज्ञानिक तो हैं हीं. मगर चिराग जो युवा हैं, जाहिर है हर युवा का अपना सपना होता है. उन्होंने ये रास्ता नहीं चुनाव और आज अकेले हैं.

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चिराग पासवान के प्रेस कांफ्रेंस की तीसरी और सबसे अहम बात रही हनुमान और राम वाली. जब उनसे पूछा गया कि बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त जब आपसे पूछा गया कि आपको पोस्टरों पर प्रधानमंत्री की तस्वीर क्यों नहीं है तो आपने कहा था कि मुझे प्रधानमंत्री की तस्वीर लगाने की जरूरत नहीं है. मैं तो उनका हनुमान हूं, वो मेरे दिल में हैं आर मेरा सीना फाड़ेगें तो उसमें प्रधानमंत्री ही आपको दिखेंगे. तब चिराग पासवान का जवाब था कि अगर हनुमान को राम से मदद मांगनी पड़ी तो काहे का राम और काहे का हनुमान. अब जहां तक सबको इसका मतलब समझ में आ रहा है कि क्या हनुमान चिराग का अपने राम से मोहभंग हो गया है.

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वजह भी साफ है जब तक बिहार में जदयू बीजेपी सरकार है चिराग को बीजेपी कोई मदद नहीं कर सकती. जदयू तो पहले से ही चिराग को रामविलास पासवान की जगह चिराग को जूनियर मंत्री बनाने तक का विरोध कर रही है और अब वो भी संभव नहीं होगा. रामविलास पासवान की खाली राज्यसभा सीट पर भी चिराग कोई दावा नहीं कर पाए. इसलिए चिराग के पास कोई और रास्ता नहीं बचता सिवाए एकला चलो रे. हां बिहार का पासवान वोट बैंक और 6 फीसदी वोट उनके पास है मगर उसमें उनको इजाफा करना होगा. चिराग ने कहा कि वो टायफायड से लंबे समय तक बीमार रहे अभी भी पूरी तरह से ठीक नहीं हुए हैं. मगर उम्मीद करते हैं कि स्वस्थ्य होने के बाद वो पार्टी को दुबारा बनाने की प्रकिया में जुटेगें. वो कहा जाता है ना कि सफलता का कोई शॉर्ट कट नहीं होता. जीतना है तो मैदान में उतरना ही पड़ेगा.

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(मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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