दासता में जीते हुए अपनी संस्कृति और धर्म की रक्षा का संघर्ष क्या होता है, यह आज भारतवासी शायद अनुभव न कर पाएं. कल्पना कीजिए जब सन 1193 में मुहम्मद गोरी और उसके नायब क़ुतुब्बुद्दीन ऐबक ने दिल्ली पर हमला किया तो महरौली के 27 हिंदू-जैन मंदिरों का ध्वंस किया गया, हज़ारों हिंदुओं का नरसंहार हुआ. उस समय का कोलाहल, चीत्कारें, रक्तपात, चारों ओर बिछीं लाशें और अपनी आंखों से अपने देवताओं के भव्य मंदिरों का विध्वंस कैसे हिंदुओं ने सहा और देखा- उनकी बेबसी, उनके द्वारा शत्रु का सामना न कर पाने के स्थिति, अपनी लज्जा और सम्मान रक्षा के लिए स्त्रियों का अग्नि प्रवेश- यह सब देखते हुए भी अपनी आन-बान, धर्म रक्षा के लिए प्रतिरोधरत हिंदू ने गत शताब्दियों को जिया है.
अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी में हिन्दू स्वातंत्र्य समर की आग में धधकने लगा था. स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानन्द, स्वामी रामतीर्थ, राजा राममोहन राय जैसे महापुरुषों ने धर्म जागरण, धर्म सुधार, नवीन चैतन्ययुक्त सशक्त निर्भीक हिंदू समाज के पुनर्जागरण की अलख जगानी शुरू कर दी थी. लाल बाल पाल की त्रयी ने बौद्धिक अधिष्ठान पर भारत के स्वातन्त्र्य समर को नई ऊष्मा और दिशा दी.श्री अरविंद के क्रांतिकारी काम, उत्तरपाड़ा कारावास, भवानी भारती की अवधारणा और सनातन धर्म ही भारत की राष्ट्रीयता है के उद्घोष के साथ अखंड भारत की परिकल्पना को आधिकारिक रूप से भारत की नियति निश्चित करना वायुमंडल में एक अद्भुत विद्युत तरंगे पैदा कर रही थी. वह समय था नेताजी सुभाष चंद्र बोस और गांधी के संवाद, और कांग्रेस के आजादी के संघर्ष में नरम दल और गरम दल के आंतरिक विवाद और वीर सावरकर की प्रतिबंधित पुस्तकों और सागर विजय की गाथाओं से उत्प्रेरित क्रांतिकारियों के कारनामों से रक्तिम आभा लिए भारतीय आकाश का.
केशव बलिराम हेडगेवार और उनका परिवार
इस परिस्थिति और वातावरण से तेलंगाना के कन्द्कुर्ति क्षेत्र से दो पीढ़ी पहले नागपुर आ बसा हेडगेवार परिवार कैसे अछूता रह सकता था. मूल रूप से तेलुगु क्षेत्रवासी मराठी देशस्थ ब्राह्मण परिवार, भोसले राजा के आमंत्रण पर वेद पाठ हेतु नागपुर आ बसे इस हेडगेवार वंश में पीढ़ियों से केवल वेदपाठ का अध्यवसाय ही होता रहा था. यहां वेदों के गहन विद्वान बलिराम हेडगेवार के घर एक अप्रैल 1989 (उस वर्ष तब वर्ष प्रतिपदा का शुभ दिन था ) के दिन बालक का जन्म हुआ जिसका नाम केशव रखा गया. वस्तुतः केशव- इस हेडगेवार के कुल देवता माने गए और उन्हीं के नाम पर केशव नाम रखा गया.
किसे पता था कि यह बालक आगे चलकर भारत का भाग्योदय करने वाले, एक नवीन हिन्दू शक्ति और संगठन को जन्म देने वाले. विश्व के सबसे बड़े हिन्दू संगठन का सर्जक और नियामक बनेगा जो अपने 100 साल से भी कम कार्यकाल में देश को दो प्रधानमंत्री देगा और स्वयं सर्वाधिक प्रचार विहीन व्यक्तित्व के नाते नेपथ्य में छिपा रहेगा?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गाथा का अनुभव बिना उस समय की कल्पना के नहीं हो सकता जिस समय में केशव बलिराम हेडगेवार ने केवल 36 साल की आयु में भारत के सहस्त्राब्दियों पुराने इतिहास में एक नई परंपरा, विधि,भाषा, संरचना के साथ ऐसा क्रांतिकारी जन आंदोलन खड़ा कर दिया जी माओत्से तुंग, लेनिन, अब्राहम लिंकन भी नहीं कर सके.
किसी योद्धा-संगठन के कार्य को किस तुला पर तोला जाए कि सही प्रभाव का पता चले?
महाराष्ट्र के नागपुर में स्थित हेडगेवार निवास में हुई थी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना किसने की थी
आदि शंकर के बाद यदि किसी एक व्यक्ति ने संपूर्ण भारत को संस्कृति और धर्म के धागे से एक रूप करने का प्रयास किया तो वे डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार थे.कटा-फटा,परस्पर-लड़ता, जाति और भाषा के कुचक्रों में धंसा, ब्रिटिश दासता और मुस्लिम जिहादी आक्रामकता का चुपचाप शिकार हो रहा हिन्दू समाज छत्रपति शिवाजी की खड्ग की प्रतीक्षा कर रहा था. डॉ हेडगेवार ने जन संगठन को शिवाजी की खड्ग के रूप में अवतरित किया.
नागपुर में जिस हेडगेवार निवास में संघ की स्थापना हुई, उसका दर्शन हर देशभक्त के लिए आवश्यक है, वैसे ही जैसे हम बदरी-केदार का दर्शन करते हैं. उस स्थान में भारत भाग्य विधाता संगठन-रा स्व संघ की स्थापना हुई थी. उस महात्मा के हाथों जिन्होंने स्व को विराट में विलीन करते हुए, एक ही दिन में अपने माता-पिता की प्लेग में मृत्यु का हृदय विदारक पड़ाव भीगी आंखों से पार करते हुए भी कभी संघ कार्य- हिन्दू संगठन का कार्य कमजोर नहीं पड़ने दिया.
परम पूज्य सरसंघचालक श्री मोहन जी भागवत ने एक वीडियो साक्षात्कार में मुझे बताया था,''डॉ जी प्रतिदिन पैदल और साइकिल पर स्वयंसेवकों से मिलने में संध्या काल आते-आते इतना थक जाते थे कि उनसे चलना भी कठिन हो जाता था. लेकिन उन्होंने कभी भी अपना घर किसी के लिए भी बंद नहीं रखा. कई बार ऐसा हुआ कि रात्रि में कार्योपरांत वे सो गए, अत्यंत थके होने के कारण गहरी नींद में होंगे, लेकिन तब भी यदि किसी ने दरवाजा खटखटाया तो वे उठकर चलने की स्थिति में भी न होने के बाबजूद शय्या से दरवाजे तक घिसट-घिसट कर गए और आगंतुक से प्रेम से बात की.'' इतनी देरी से आए हो, यह कोई आने का समय है, कल आना- ऐसा उन्होंने कभी किसी को नहीं कहा.
कैसे करें आरएसएस के कामकाज का मूल्यांकन
संघ कार्य का मूल्यांकन उस धारा में बहते व्यक्ति के लिए संभव नहीं है. अगले सौ साल लगेंगे कि कोई सही समीक्षा कर सके. आज संघ जनमानस में प्रवाहमय शक्ति पुंज है. संघ भारत के संघर्षों, वेदनाओं, आहत मन की पीड़ा और राष्ट्र की विजयगाथा का स्वर है, हिन्दू शक्ति से सब संभव है उस आत्मविश्वास का आलेख है संघ. भारत की उद्दाम सांगठनिक अभीप्सा है संघ. हिन्दू जनमानस के उभार, उसकी शक्ति के संचित सामूहिक स्वरुप का शिलालेख है संघ. भारत की उस राष्ट्रीयता का जनमानस में उतरा वह अवतार है, जिसे श्री अरविंदन ने सनातन धर्म से अभिहित किया था.
संघ को किन कार्यों से समझाएं ? सेवा, समर्पण, समरसता, शिक्षा , राजनीति , कृषि, ग्राम स्वराज्य, धर्म जागरण, छात्र आंदोलन, लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रहरी , सीमांत प्रहरी, जनजातीय संगठन और विकास, भाषा साहित्य में भारतीयता का रक्षक, वीर भाव युक्त गीत और संगीत का सर्जक और नियामक, संघ. राष्ट्रीय जनजीवन को परिभाषित करने वाली किसी भी धारा का नाम ले लें, वहां शांत-मौन कार्य करता हुआ स्वयंसेवक दिख जाएगा,यही संघ है.
महाराजा रणजीत सिंह का राज्य अंग्रेजों की पराजय, अफ़ग़ानिस्तान तक अपनी दुर्गा पताका फहराने, कश्मीर से लद्दाख तक राज करने, सिखी और वेदों की रक्षा के लिए जाना जाता है. चोल,चेर, कृष्णदेव राय अपनी विजय यात्राओं के लिए अमर हुए, विशिष्ट स्थापत्य और धर्म भक्ति उनकी पहचान बनी.
शिवाजी किसलिए जाने जाते हैं? गरीबी हटाने के लिए? दुर्ग और अर्थदशा सुधारने के लिए ? या शत्रुओं का विनाश कर धर्म रक्षा करते हुए हिंदवी स्वराज्य स्थापित करने के लिए?
वीर शिवाजी का राज
कानपुर निवासी, महाराष्ट्र के अलंकार महाकवि भूषण ने इन चार पंक्तियों में शिवाजी के राज्य का निकष सामने रख दिया.
भूषण भणत भाग्यो काशीपति विश्वनाथ
और कौन गिनती में भुई गीत भव की.
काशी कर्बला होती मथुरा मदीना होती
शिवाजी न होते तो सुन्नत होती सब की.
दावा द्रुम दंड पर, चीता मृगझुंड पर,
'भूषन वितुंड पर, जैसे मृगराज हैं.
तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर,
त्यौं मलिच्छ बंस पर, सेर शिवराज हैं॥
बाकी आप चाहे जितनी पुस्तकें, उनके किलों, सडकों, वृक्षारोपण नौसेना पर लिख दीजिए.पर इस वर्णन के आगे सब फीका रहेगा.संघ ने हिन्दू राष्ट्र में अटल विश्वास, हिन्दू गौरव और स्वाभिमान के चैतन्य का शक्तिशाली उदय, शक्ति के बिना सब शब्द विलास है इस सत्य की स्थापना का कार्य किया.
शक्ति का एक स्रोत तैयार हो जाए तो उससे सैंकड़ो हज़ारों कार्य संपादित हो सकते हैं. बालक केशव ने बाल्यकाल से देखा कि शक्ति होते हुए भी बिना संगठन के हिन्दू समाज थोड़े से लोगों की गुलामी सहने पर विवश होता है. शक्ति और संगठन का साथ हो जाए तो कोई भी हमको दास नहीं बना सकेगा.
मन में आत्मविश्वास और तन में बल, मिलकर राष्ट्र धर्म की शक्ति बनते हैं. अकेला धर्म और अकेली देशभक्ति काम नहीं आते. धर्म के साथ राष्ट्र को जोड़ना धर्म और राष्ट्र दोनों की रक्षा के लिए जरूरी है.
यह भाव आदि शंकर ने आठवीं-नौवीं शताब्दी में पैदा कर अद्वैत दर्शन को राष्ट्रीय एकता के लिए स्थापित किया और भारत के चारों कोनों में मठ स्थापित किए, चारों तीर्थों की यात्रा का प्रावधान किया, बद्रीनाथ में नम्बूदरी ब्राह्मण पुजारी बनेंगे और रामेश्वरम में गंगा जल चढ़ाया जाएगा- इस विधि से भारत की एकता का सूत्र दिया. संघ ने उसी कार्य को हज़ार साल बाद फिर से प्रतिष्ठित किया.
नागपुर में केशव बलिराम हेडगेवार की प्रतिमा पर फूल अर्पित करते आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत.
कैसे महान बनता है कोई देश
अमरीका महान इसलिए नहीं बना क्योंकि वहां भौतिक सुख-साधन और विज्ञान के नवीनतम अन्वेषण हुए. इसलिए वो महान है क्योंकि अमरीका के जन्मदाताओं ने अमरीकी होने में विशिष्ट गौरव और अभिमान पैदा किया, ब्रिटिश कुशासन से मुक्ति के बाद सब कुछ अमरीकी बनाया, प्रत्येक ब्रिटिश अवशेष मिटाए- बिजली के स्विच नीचे से ऊपर चलवाए- ब्रिटिश से अलग, सड़कों पर वहां दाहिने ड्राइव वाले तय किए, अंग्रेजी शब्दों की वर्तनी बदल उसे अमरीकी इंग्लिश नाम दिया- आज सब ओर ब्रिटिश और अमरीकी इंग्लिश पृथक जानी जाती है. यहां तक कि अनेक मुश्किलों के बावजूद उन्होंने ब्रिटिश माप और वजन से अलग अपने लिए पृथक माप फुट, पाउंड रखे और वोल्टेज तक ब्रिटिश वोल्टेज से अलग कर दी. हम अमरीकी हैं और हमें अमरीका को महान, अविजेय, शिक्षा, विज्ञान और सैन्य क्षेत्र की शक्ति बनाना है- इसको लेकर लिंकन, थॉमस जेफरसन, मार्टिन लूथर किंग जैसे राष्ट्र सर्जकों ने अमरीका में उस वीरत्व को भरा कि शेष सब कार्य स्वतः आगे बढ़ने लगे.
मन मजबूत हो तो तन आगे बढ़ता है. मन कमजोर हो तो तन हार जाता है. सोवियत रूस मजबूत तन होते हुए भी मन से हार गया था.पुतिन का रूस कमजोर तन को लेकर भी मजबूत वीरत्व से आगे बढ़ा और विश्व की सुपर शक्ति बना. इजरायल ने दो हज़ार साल अपने देश को फिर से पाने की प्रतीक्षा की- मन नहीं हारा. उसके पास टेक्नोलॉजी, विज्ञान, विश्व में अप्रतिम प्रहारक क्षमता बाद में आई, पहले उसके जन्म दाताओं में अग्रणी बेन गुरियन ने दो हज़ार साल से अप्रचलित, न्यूनतम अक्षरविन्यास युक्त, हिब्रू को अपनी राष्ट्र भाषा चुना, देश का हर कार्य- शिक्षा और संसद और मीडिया कर्म हिब्रू में अनिवार्य बनाया, यहूदी धर्म की रक्षा हेतु संकल्प किया, राष्ट्रप्रेम और वीरत्व जागृत किया और आज चारों ओर से हिंसक शत्रु देशों से घिरा होते हुए भी मजबूत मन और स्पष्ट शत्रु बोध के बल पर इजरायल डट कर अविजेय खड़ा है.
डिसक्लेमर: लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुखपत्र 'पांचजन्य' के पूर्व संपादक और राज्य सभा के पूर्व सदस्य हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.