This Article is From Nov 10, 2023

जातिगत गणना : BJP का कन्फ्यूज़न या सोची-समझी रणनीति...?

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Rajendra Tiwari

जातिगत गणना का इश्यू भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए चुनौतियां बढ़ाता प्रतीत हो रहा है. विपक्ष जहां जातिगत गणना, सामाजिक न्याय और आरक्षण के सवाल पर स्पष्टता के साथ आगे बढ़ रहा है, वहीं भारतीय जनता पार्टी और संघ परिवार में इस मसले को लेकर साफ सोच की जगह कन्फ्यूज़न नज़र आ रहा है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा में जातियों का आर्थिक-सामाजिक सर्वेक्षण पेश कर और आरक्षण की सीमा 75 फ़ीसदी तक बढ़ाने का बिल लाकर न सिर्फ बिहार में, बल्कि पूरी हिन्दी पट्टी में BJP के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं.

BJP ने 2014 से हिन्दी पट्टी में यादवों को छोड़कर बाकी OBC जातियों और अनुसूचित जातियों के एक बड़े हिस्से को अपने साथ जोड़ने में कामयाबी हासिल की. हिन्दुत्व की ग्रीस के साथ सवर्णों और बाकी जातियों के बीच नई सोशल इंजीनियरिंग. सामाजिक न्याय की ताकतों पर विभाजनकारी का टैग लगाकर 'सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास' का स्लोगन. नतीजा 2019 के आम चुनाव में BJP को मिली सीटों की संख्या में देखा जा सकता है. जातिगत गणना और सामाजिक न्याय का मसला राजनीति के केंद्र में आते ही BJP नेतृत्व पसोपेश में दिखाई दे रहा है.

बिहार जातिगत गणना के आंकड़े जारी होने से पहले तक BJP सार्वजनिक रूप से इसका संज्ञान तक नहीं ले रही थी. आंकड़े जारी होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष के इस मूव को गरीब-विरोधी और हिन्दुओं को बांटने वाला करार दिया. बिहार में BJP नेता सुशील मोदी ने इस फैसले में BJP के शामिल होने की बात कही और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने इसे भ्रामक बताया. दूसरी तरफ, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने विधानसभा चुनाव वाले चारों राज्यों में सरकार बनने पर जातिगत गणना का वादा किया. यह ध्यान देने की बात यह है कि राहुल गांधी कर्नाटक विधानसभा चुनाव के समय से ही जातिगत गणना कराने और आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी की बात कहते आ रहे थे.

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सितंबर के विशेष संसद सत्र में प्रस्तुत नारी शक्ति वंदन अधिनियम पर बहस के दौरान राहुल गांधी और INDIA गठबंधन के सभी दलों ने महिला आरक्षण में OBC आरक्षण का मसला उठाया था. उस समय राहुल गांधी ने केंद्र के 90 सचिवों में से सिर्फ तीन के OBC वर्ग से होने और उनके हाथ में सिर्फ पांच फ़ीसदी बजट होने की बात कही थी.

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इस पर केंद्रीय गृहमंत्री ने राहुल गांधी की समझ पर सवाल उठाते हुए करारा जबाव देने की कोशिश की और कहा था कि BJP सांसदों में 29 प्रतिशत (85 सांसद) OBC कैटेगरी के हैं. तुलना करनी है तो आ जाइए... 29 मंत्री भी OBC कैटेगरी के हैं, BJP के 1358 में से कुल 365 विधायक, यानी 27 फ़ीसदी OBC से हैं. इसके अलावा BJP के 65 MLC भी OBC से ताल्लुक रखते हैं, जो कुल MLC की संख्या का 40 फ़ीसदी है. BJP की तमाम कोशिशों के बावजूद सामाजिक न्याय और आनुपातिक हिस्सेदारी का मसला तेज़ी पकड़ता गया.

उधर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की दुविधा भी नज़र आ रही है. वैचारिक रूप से संघ आरक्षण विरोधी है, लेकिन ज़मीनी राजनीति की हकीकत में यह बात फिट नहीं बैठती. हालांकि BJP को लग रहा था कि पिछले लगभग एक दशक में वैचारिकी को व्यावहारिक जामा पहनाने का जो काम हुआ है, उसके चलते सामाजिक न्याय का मुद्दा उस तरह से नहीं उठ पाएगा, जिस तरह '90 के दशक में उठा था. लेकिन जल्द ही BJP को समझ में आ गया कि वास्तव में हकीकत कुछ और है. यही वजह है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पहले बिहार जाकर जातिगत गणना में यादव व मुस्लिमों की संख्या बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने का आरोप लगाया. मतलब कि ये लोग यादवों व मुसलमानों की हिस्सेदारी बढ़ाना चाहते हैं. इस पर बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने देशभर में जातिगत गणना कराने की चुनौती दे डाली.

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इसके बाद अमित शाह ने छत्तीसगढ़ की एक चुनावी रैली में कहा कि हम जातिगत गणना के खिलाफ नहीं हैं और उचित समय पर निर्णय लिया जाएगा. तेलंगाना में सरकार बनने पर OBC मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा अमित शाह ने की. उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिर जातिगत गणना की बात को गरीबों को बांटने वाला करार देते हुए कांग्रेस और INDIA गठबंधन पर करारा हमला बोला. हो सकता है, यह कन्फ्यूज़न जानबूझकर प्रस्तुत किया जा रहा हो. दरअसल, समर्थकों का एक प्रभावशाली तबका इस पार्टी को आरक्षण विरोधी होने की वजह से ही पसंद करता है. यह वह तबका है, जिसने 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों का प्रचंड विरोध किया था और तब से अब तक ऐसा करता आ रहा है. BJP भी इस तबके को संतुष्ट करती रहती है. पिछले दिनों 10 फ़ीसदी EWS आरक्षण लागू कर भी यही काम किया गया. इस समय पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और चार-पांच माह बाद आम चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में BJP कोई ऐसी गलती नहीं करना चाहेगी, जो उसकी स्थिति को कमज़ोर कर दे.

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उधर, RSS भी इस मसले पर बहुत फूंक-फूंककर कदम रख रहा है. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान मोहन भागवत के आरक्षण की समीक्षा संबंधी बयान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व BJP की मुश्किलें बढ़ा दी थीं. तमाम सफ़ाई के बावजूद बिहार विधानसभा से BJP का सफाया हो गया था और पार्टी 242 सदस्यों वाली विधानसभा में सिर्फ 53 सीटें जीत पाई थी. इस बार स्थितियों को भांपते हुए संघ नेतृत्व दोहरे स्तर पर काम कर रहा है. एक तरफ संघ सार्वजनिक रूप से आरक्षण की वकालत कर रहा है, तो दूसरी तरफ संगठन के स्तर पर सामाजिक समरसता के नाम पर जाति विभेद भुलाकर  हिन्दू एकता के लिए लोगों को तैयार करने का ज़मीनी अभियान शुरू कर रहा है.

5 सितंबर को नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि हमारे समाज में भेदभाव मौजूद है और जब तक असमानता बनी रहेगी, तब तक आरक्षण जारी रहना चाहिए. यह केवल वित्तीय या राजनीतिक समानता सुनिश्चित करने के लिए नहीं, सम्मान देने के लिए भी है. भेदभाव झेलने वाले समाज के कुछ वर्गों ने 2000 सालों तक यदि परेशानियां उठाईं, तो क्या हम और 200 साल कुछ दिक्कतें नहीं उठा सकते...?

दूसरी तरफ़, पिछले दिनों गुजरात के भुज में आयोजित संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की दो-दिनी बैठक में राष्ट्रव्यापी हिन्दू एकता की भावना को मज़बूत करने के लिए सामाजिक समरसता प्रोजेक्ट शुरू करने का फैसला लिया गया. ज़िम्मेदारी देशभर में लगने वाली 95,000 से ज़्यादा शाखाओं को दी गई है. इसके अलावा, इस प्रोजेक्ट में मंदिरों, स्कूलों और अन्य सामाजिक संस्थाओं को भी शामिल किया जाएगा. यानी हिन्दुत्व की ग्रीस के साथ नए सिरे से सोशल इंजीनियरिंग.

आम चुनाव 2024 को देखते हुए हिन्दी पट्टी के राज्य BJP के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं और इन राज्यों में जातिगत गणना और सामाजिक न्याय का मुद्दा प्रभावी असर डालने वाला साबित हो सकता है.

हिन्दी पट्टी के नौ राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली से लोकसभा की कुल 41 फ़ीसदी, यानी 221 सीटें आती हैं और इनमें से 178 सीटें BJP के पास हैं, जो उसकी कुल सीटों 303 का लगभग 59 फ़ीसदी है. सात सीटें सहयोगी दलों के पास हैं. यानी NDA के खाते में 185 सीटें हैं. नीतीश कुमार (16 सीटें) के पाला बदलने से पहले तक इन सीटों की संख्या 201 थी. दूसरी तरफ कांग्रेस के पास सिर्फ छह सीटें, INDIA गठबंधन के अन्य दलों - समाजवादी पार्टी (SP) के पास तीन और जनता दल यूनाइटेड (JDU) के पास 16 सीटें (NDA सहयोगी के तौर पर जीती हुईं) हैं.

देखना यह है कि BJP विपक्ष के हथियार को कुंद कर पाने में कितना कामयाब हो पाती है. एक बानगी तो 3 दिसंबर को पांच विधानसभाओं के नतीजों से मिल जाएगी, लेकिन फाइनल रिज़ल्ट आम चुनाव 2024 ही तय करेंगे.

राजेंद्र तिवारी वरिष्ठ पत्रकार है, जो अपने लम्बे करियर के दौरान देश के प्रतिष्ठित अख़बारों - प्रभात ख़बर, दैनिक भास्कर, हिन्दुस्तान व अमर उजाला - में संपादक रहे हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.