दिल्ली में केजरीवाल को हराने के लिए विपक्ष बड़ी लकीर खींच पाएगा?

विज्ञापन
Ashutosh Bhardwaj

दिल्ली विधानसभा चुनाव में सफलता किसके सिर सजेगी- यह लाख टके का प्रश्न नहीं है. लाख टके का प्रश्न ये है कि राजनीति पॉजिटिव नोट पर कौन कर रहा है? जिसकी राजनीति उम्मीद जगाने वाली है, सहूलियत देने वाली होगी वही सफल होगा. इसका मतलब यह भी है कि लगातार चुनाव दर चुनाव जीतती आ रही आम आदमी पार्टी की राजनीति के पैटर्न को न सिर्फ फॉलो करना होगा विपक्ष को, बल्कि उसे बड़ी लकीर भी खींचनी होगी. मगर, क्या दिल्ली का विपक्ष इस पैटर्न को फॉलो करता दिख रहा है? 

आम आदमी पार्टी ने अपनी सफलता के मंत्र की गूंज को आगे बढ़ाया है. ये मंत्र है जनता के लिए सरकार, सरकार आपके द्वार, आपका बेटा, आपका भाई, जनता का पैसा जनता को. फ्री पानी, फ्री बिजली, महिलाओँ के लिए फ्री बस सफर, फ्री इलाज, अनलिमिटेड इलाज और ऐसी ही सहूलियतें देना- दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार ने ऐसी ही प्राथमिकता दिखलायी है, चाहे वो केजरीवाल सरकार हो या फिर आतिशी सरकार.

मुफ्त योजनाओं का विरोध नकारात्मक राजनीति 
चुनाव से ठीक पहले लगातार की जा रही घोषणाओं पर नज़र डालें तो केजरीवाल कवच कार्ड जिसके अंतर्गत बुजुर्गं के लिए अनलिमिटेड फ्री इलाज का वादा है और महिलाओं के लिए मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना बेहद महत्वपूर्ण है. इनमें से एक संजीवनी योजना बुजुर्ग को बेहिसाब फायदा पहुंचाता है, उनके परिजनों के लिए हेल्थ इंश्योरेंस का प्रीमियम बचाता है तो दूसरी महिला सम्मान योजना से सीधे महिलाओं को नकद सालाना 25,200 रुपये मिलने हैं.

Advertisement

दिल्ली के एक लाख ऑटोवालों और उनके परिवारों के लिए के लिए 5 गारंटी दी गई हैं, जिनमें ऑटो वालों की बेटी की शादी के लिए आर्थिक मदद से लेकर दुर्घटना और जीवन बीमा निगम, वर्दी आदि के लिए रकम शामिल हैं. पुजारी और ग्रंथी सम्मान योजना- इन योजनाओं से आर्थिक सुरक्षा संबंधित वर्ग को मिलती है. ये योजनाएं जनता के बड़े वर्ग को बड़ी आर्थिक सुरक्षा और सम्मान से जीने की स्थिति बनाती है. क्या इन योजनाओं का विरोध किया जा सकता है?

Advertisement

आम आदमी पार्टी ने खींच दी है बड़ी लकीर
आम आदमी पार्टी बड़ी लकीर खींच रही है.ऐसे में अगर दिल्ली में बीजेपी बड़ी घोषणा करती भी है तो उसे इस बात पर ज्यादा मेहनत करनी होगी कि उन पर विश्वास किया जाए. इसके साथ ही बीजेपी आम आदमी पार्टी की लकीर को छोटा करने की कोशिश में लग गयी दिखती है. महिला सम्मान राशि का रजिस्ट्रेशन को लेकर बीजेपी सवाल उठा रही है कि डेटा चुरा लिया जाएगा. संजीवनी योजना के रजिस्ट्रेशन के बारे में भी ऐसी ही बातें फैलायी जा रही हैं. आम आदमी पार्टी के दावे को एक तरफ करके भी देखें तो जनकल्याण की घोषणाओं से असहमत होने के बावजूद इसका विरोध करने की बीजेपी की नीति अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के समान है. इससे बीजेपी को चुनावी लाभ तो नहीं मिलेगा, बल्कि चुनावी नुकसान ज्यादा होगा.

Advertisement

‘चुनावी हिन्दू' बताने से केजरीवाल को ही फायदा

पुजारी-ग्रंथी के लिए सम्मान योजना की घोषणा के बाद अरविन्द केजरीवाल को ‘चुनावी हिन्दू' बताना बीजेपी की नकारात्मक राजनीति है. यहां भी बीजेपी यह भारी भूल कर रही है कि वह अरविन्द केजरीवाल को ‘हिन्दू' बताने का डंका स्वयं पीट रही है. अच्छा होता कि बीजेपी कहती कि यह मांग तो वह बहुत पहले से करती रही है और अरविन्द केजरीवाल को अभी सुध आयी है. मगर, बीजेपी ने आरोप लगाने और हमला करने की राह चुनी. कम से कम आम आदमी पार्टी की एजुकेशन पॉलिसी पर ही चुप रह जाती बीजेपी. सब जानते हैं कि दिल्ली में मुफ्त शिक्षा, सरकारी स्कूलों में व्यापक सुधार, क्लास की संख्या बढ़ने जैसे कदमों से सरकारी स्कूलों का परफॉर्मेंस सुधरा है. देश के टॉप 10 सरकारी स्कूलों में दिल्ली के 5 स्कूल शामिल हैं.

Advertisement

हर परिवार को दस साल में 30 लाख की बचत का दावा
आम जनता इस बात को नहीं भूल सकती कि मुफ्त की योजनाओं का लाभ उन्हें मिला है और इससे उनकी बचत हुई है. ये बचत दो तरीकों से होते हैं- एक जो मुफ्त की योजनाओं से प्रत्यक्ष लाभ होता है. दूसरी, खुले बाज़ार से जो बचाव होता है. दोनों बचत जोड़कर बड़ी बचत बन जाती है. उदाहरण के लिए फ्री बिजली मिलने से बिजली पर मासिक खपत में बचत और इस वजह से पावर बैक अप आदि के खर्चे की बचत. और, जब यह देखा जाता है कि अगर मुंबई में होते या अहमदाबाद में होते तो बिजली पर कितना खर्च करना पड़ता तब यही बचत बहुत बड़ी रकम के रूप में दिखलाई पड़ने लग जाती है. आम आदमी पार्टी का दावा है कि प्रति परिवार दिल्ली के लोगों को बीते दस साल में 30 लाख से ज्यादा की बचत या फायदा हुआ है.

जिस बात को दिल्ली की जनता महसूस कर रही है उसे भी नकार देना नकारात्मक राजनीति ही कही जाएगी. दिल्ली के पुजारी-ग्रंथियों के लिए 18 हजार रुपये देने की घोषणा का विरोध समझ से परे है. अरविन्द केजरीवाल ने चुनौती दी है कि बीजेपी शासित 20 राज्यों में पुजारियों-ग्रंथियों को बीजेपी ऐसी ही घोषणा करके दिखलाए. यह चुनौती बीजेपी को अपने चुनावी पिच पर लाने के लिए सियासी चाल है हालांकि बीजेपी स्वयं जब अरविन्द केजरीवाल की घोषणाओं के विरोध का रास्ता चुनती है तो इस चाल में फंस जाती है.

आम आदमी पार्टी का मुकाबला अगर बीजेपी को या फिर कांग्रेस के लिए केवल केजरीवाल और उनकी नीतियों की आलोचना काफी नहीं है, उन्हें यह बताना होगा कि उनकी सरकार ऐसा क्या करेगी जो अरविन्द केजरीवाल नहीं कर पाए हैं, विपक्ष के नजरिए से देखें तो उनके लिए चिंता की बात यही है कि उन्होंने अब तक ऐसा रोडमैप सामने नहीं रखा है कि जनता अपनी प्राथमिकता में उन्हें आम आदमी पार्टी से ऊपर रखे.

(आशुतोष भारद्वाज वरिष्ठ पत्रकार हैं...)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं

Topics mentioned in this article