This Article is From Apr 12, 2021

पश्चिम बंगाल में आगे कतई नहीं है BJP, कांटे की टक्कर दे रही हैं एन्टी-इन्कम्बेन्सी से जूझतीं ममता

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Manoranjan Bharati

पश्चिम बंगाल में इस बार का विधानसभा चुनाव काफी महत्वपूर्ण है. यह चुनाव ऐसे वक्त में लड़ा जा रहा है, जब पूरे देश में कोरोना का रोमांच अपने चरम पर है, मगर पश्चिम बंगाल में खूब रैलियां हो रही हैं और बड़ी संख्या में लोग घरों से बाहर निकल रहे हैं. हां, इतना ज़रूर है कि अधिकतर लोग मास्क पहनते हैं, लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग कहीं नज़र नहीं आती.

अब बात करते हैं राजनीति की. जब मैं दिल्ली से निकला था, तो मेरे दिमाग में था कि BJP यहां तृणमूल कांग्रेस के मुकाबले काफी आगे होगी. दिल्ली में बैठकर ऐसा ही लगता है, लेकिन जब आप ज़मीन पर उतरते हैं, तो हकीकत सामने दिखाई पड़ती है. पिछले एक हफ्ते में मैं कई जगह घूमा. गांव-गांव की खाक मैंने छानी है. गांव-गांव में तृणमूल कांग्रेस के झंडे दिखते हैं. कुछ BJP के भी झंडे दिखते हैं, मगर सबसे बड़ी बात है कि गांवों में वामदलों का लाल झंडा भी आपको मिल जाएगा. यह एक संकेत है कि आप इस चुनाव में वामदलों को एकदम खारिज नहीं कर सकते.

राजनीति के कई जानकार मानते हैं कि वामदलों ने थोड़ी भी पकड़ बनाए रखी, या कहें अपनी ज़मीन थोड़ी-सी भी बचाए रखी, तो BJP की मुश्किलात बढ़ सकती हैं, क्योंकि पिछले 10 साल के तृणमूल कांग्रेस के शासन ने वामदल और कांग्रेस को पूरी तरह खत्म कर दिया था, जिसकी वजह से एक राजनीतिक स्पेस खाली हुआ, और BJP वहां आ गई. BJP सिर्फ आई नहीं, काफी मज़बूती से आई और तृणमूल कांग्रेस को टक्कर देने लगी. ममता बनर्जी यदि वामदलों और कांग्रेस को एकदम खत्म न करतीं, तो आज BJP उनके लिए इतनी बड़ी चुनौती नहीं बनती.

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अब हालात ये हैं कि कोलकाता में वामदलों और कांग्रेस की संयुक्त रैली हुई, जिसमें ढेरों युवा आए. इतना ज़रूर है कि इस बार का चुनाव BJP काफी शिद्दत से लड़ रही है, और उन्होंने पूरी ताकत झोंक दी है. BJP के पास सारे संसाधन भी हैं, जिनका मुकाबला ममता बनर्जी नहीं कर सकतीं. प्रधानमंत्री लगातार रैलियां कर रहे हैं, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी यहां डटे रहे. यहीं नहीं, BJP के राज्य में मौजूद MLA या कोई भी बड़ा पदाधिकारी - सब आपको कोलकाता में मिल जाएंगे. मैं जिस होटल में ठहरा था, वह एक तरह से BJP का अड्डा है. इसी होटल में अमित शाह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और BJP के ढेरों नेता यहीं ठहरे हुए थे. रोज़ सुबह होटल से नेताओं का एक जत्था निकलता, और अलग अलग जगह जाता, और वे सब देर शाम लौटते. आप कह सकते हैं कि BJP ने कुछ इस ढंग से घेराबंदी कर रखी है ममता बनर्जी की.

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यह भी सही है कि 10 साल के शासन के बाद सत्ताविरोधी लहर हो ही जाती है. बहुतों को कुछ नहीं मिलता, बहुतों को शिकायत होती है, और इसी का फायदा BJP उठाना चाहती है. BJP को लगता है कि यदि वह लोगों को एहसास करा दे कि ममता बनर्जी की सरकार भ्रष्टाचारी सरकार है, वह अब सिर्फ मुसलमानों को खुश रखने की कोशिश करती है, और यदि इन कुछ मुद्दों को ढंग से पब्लिक में उठाया जाए, तो शायद पब्लिक भी BJP को वोट करे. यहां एक बड़ा मुद्दा भी है, बांग्ला बोलने वालों और बांग्ला नहीं बोलने वालों का. यहां जो हिन्दी बोलने वाले हैं, उन्हें BJP अपना समर्थक मानती है और यह बात एक हद तक सही भी है.

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यही वजह है कि मैं अभी भी कहता हूं कि यह लड़ाई किसी के लिए भी आसान नहीं है. BJP भले ही 200 सीटें जीतने का दावा करती हो, तृणमूल कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर ममता बनर्जी को तिबारा सत्ता में लाने की बात करते हैं. लेकिन यह सभी मानते हैं कि यह चुनाव ही देश की राजनीति का भविष्य तय करेगा. ममता बनर्जी की राजनीति का भविष्य तो नंदीग्राम से तय होगा, क्योंकि वह केवल एक सीट से लड़ रही हैं और उन्होंने अपने ही स्टाइल में यह एक बहुत बड़ा रिस्क उठाया है.

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बंगाल का यह विधानसभा चुनाव ऐसे हालात पर आकर टिक गया है कि यह कहना अभी मुश्किल है कि किसकी सरकार बनेगी. क्योंकि लोग चुप हैं, बोल नहीं रहे हैं. BJP को लगता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद उनकी ताकत बढ़ी है, वहीं ममता बनर्जी को लगता है कि अल्पसंख्यकों और थोड़े-से बहुसंख्य वोटों के सहारे सत्ता में वापिस आया जा सकता है. मगर BJP ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है, और उन्हें लगता है कि आदिवासी गोरखा और राजवंशी और बहुसंख्यक हिन्दू वोटों के सहारे वे सत्ता में आ जाएंगे. यही वजह है कि बंगाल का चुनाव बेहद दिलचस्प हो गया है.

मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...

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