This Article is From Jun 10, 2024

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महायुति की चार पार्टियों के बीच कैसे होगा सीटों का बंटवारा

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Jitendra Dixit

एनडीए का छोटा स्वरूप महाराष्ट्र में महायुति है, जिसके घटक दल बीजेपी, एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना और अजीत पवार वाली एनसीपी है. लोकसभा चुनाव से पहले सीटों के बंटवारे के वक्त इन तीनों पार्टियों के बीच काफी खींचतान नजर आई. कई सीटों पर विवाद हुआ, जहां एक से ज्यादा घटक दल अपना उम्मीदवार उतारना चाहते थे. इन झगडों की वजह से कई सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान करने में देरी हुई जिसका फायदा विपक्षी गठबंधन महाविकास आघाड़ी को मिल गया. विधानसभा चुनाव के दौरान महायुति में इससे भी ज्यादा कड़वाहट देखने मिल सकती है क्योंकि तब सीटों का बंटवारा तीन नहीं बल्कि चार पार्टियों के बीच होगा. विधानसभा चुनाव में इस बार राज ठाकरे भी महायुति के साथ रहने वाले हैं.

जुलाई 2023 में जब अजीत पवार अपने चाचा शरद पवार की पार्टी एनसीपी से बगावत करके सत्ताधारी गठबंधन महायुति से जुड़े उस वक्त भी एकनाथ शिंदे की शिवसेना असहज हो गयी थी. जून 2022 में ठाकरे से बगावत करके शिंदे ने बीजेपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनायी थी. शिंदे के पास 40 विधायक थे, जबकि बीजेपी के पास 105. इसके अलावा निर्दलियों और छोटे दलों के विधायकों को साथ लेने के बाद बहुमत के आंकडे 145 से कहीं ज्यादा विधायक सरकार के पास थे. ऐसे में शिंदे सेना की नजर में अजीत पवार वाली एनसीपी को साथ लेने की जरूरत नहीं थी. इससे मंत्रिमंडल में पवार के लोगों के लिए भी जगह बनानी पड़ती और आने वाले चुनावों में भी उनके लिए जगह छोड़नी पड़ती...लेकिन विपक्षी पार्टियों को कमजोर करने की अपनी रणनीति के तहत बीजेपी ने अजीत पवार की पार्टी को सत्ता में शामिल कर लिया. शिंदे सेना की चिंता उस वक्त और बढ़ गई जब अजीत पवार के उपमुख्यमंत्री बनते ही उनके समर्थकों ने राज्य के अलग-अलग इलाकों में उन्हें भावी मुख्यमंत्री बताते हुए बैनर, पोस्टर लगाने शुरू कर दिए. सियासी गलियारों में ये चर्चा होने लगी कि बीजेपी शिंदे को हटाकर पवार को मुख्यमंत्री बनाने की तैयारी कर रही है.

लोकसभा चुनाव के दौरान वही हुआ जिसका अंदेशा था. नासिक की सीट पर शिंदे सेना और अजीत पवार की एनसीपी, दोनों ने अपना दावा ठोक दिया. शिंदे जहां उस सीट पर दो बार से सांसद रहे हेमंत गोडसे को टिकट देना चाहते थे तो वहीं अजीत पवार छगन भुजबल को उतारना चाहते थे. इस झगड़े के कारण नामांकन पत्र भरने के सिर्फ कुछ दिन पहले ही उम्मीदवार के नाम की घोषणा हो पाई. सीट शिंदे सेना के हेमंत गोडसे को मिली जो चुनाव हार गए. इसी तरह से ठाणे की सीट पर भी बीजेपी और शिंदे सेना दोनों ही अपना उम्मीदवार उतारना चाहते थे. आखिर कुछ दिनों तक खिंची बहस के बाद बीजेपी ने सीट शिंदे सेना के लिए छोड़ दी. शिंदे सेना के उम्मीदवार नरेश म्हसके यहां से जीते. दक्षिण मुंबई की सीट भी बीजेपी चाहती थी लेकिन उस सीट से शिंदे सेना ने अपनी उम्मीदवार यामिनी जाधव को उतारा जो कि ठाकरे सेना के उम्मीदवार अरविंद सावंत से हार गई. महाराष्ट्र में महायुति के खराब प्रदर्शन के पीछे सीटों के बंटवारे के दौरान हुई इस खींचतान ने अहम भूमिका अदा की.

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राजनीति में कोई किसी के लिए मुफ्त में कुछ नहीं करता. लोकसभा चुनाव से पहले की गई अपनी सभा में राज ठाकरे ने बीजेपी को बिना शर्त समर्थन देने के ऐलान के साथ-साथ अपने कार्यकर्ताओं को विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू करने का आदेश भी दे दिया. राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस ने लोकसभा चुनाव तो नहीं लड़ा लेकिन बीजेपी के उम्मीदवारों के लिए प्रचार सभाएं जरूर कीं. राज ठाकरे के वाक कौशल का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने के एवज में बीजेपी उन्हें लोकसभा चुनाव के वक्त महायुति का हिस्सा बना रही है. अब तक राज ठाकरे अपने पर-प्रांतीय विरोध के मुद्दे के कारण राष्ट्रीय पार्टियों के लिए अछूत बन हुए थे. राष्ट्रीय पार्टियों को लगता था कि अगर महाराष्ट्र में राज ठाकरे के साथ गए तो उत्तर प्रदेश और बिहार में उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है...लेकिन अब राज ठाकरे ने भी हिंदुत्व का चोला पहन लिया है और उनके कार्यकर्ता उन्हें हिंदू जन नायक कहने लगे हैं. ऐसे में भगवा पार्टियों के साथ गठजोड का रास्ता उनके लिये साफ हो गया है.

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महाराष्ट्र में कुल 288 विधानसभा की सीटें हैं. 2019 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी को सिर्फ एक पार्टी यानी कि शिव सेना के साथ सीटें बांटनी पड़ी थी, लेकिन इस बार तीन पार्टियों के साथ बांटनी होंगी. सवाल ये है कि राज ठाकरे इनमें से कितनी सीटों की मांग बीजेपी से करते हैं. बीजेपी को एकनाथ शिंदे वाली शिव सेना और अजीत पवार वाली एनसीपी के साथ भी सीटें साझा करनी  हैं. लोक सभा चुनाव में झटके लगने के बाद विधान सभा चुनाव में जीत हासिल करना अब एकनाथ शिंदे और अजीत पवार के लिये अस्तित्व का सवाल हो गया है.

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जीतेंद्र दीक्षित NDTV में कंट्रिब्यूटिंग एडिटर हैं

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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