दिवाली... पराली... सियासी जुगाली!

विज्ञापन
Ashwini kumar

प्रदूषण से कौन दुखी है? आप कहेंगे कि हर कोई दुखी है. लेकिन अपनी सोच का गियर चेंज कीजिए. दोबारा विचार कीजिए. दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का समाधान तो आज तक मिला नहीं. हर साल चिंतित होकर हम-आप सांसों की तकलीफ के साथ-साथ दिल और ब्लड प्रेशर के मरीज भी क्यों बनें? कुछ अलहदा सोचेंगे तो प्रदूषण को लेकर आपके दिलो-दिमाग पर छाई चिंता की धुंध जरूर छंटने लगेगी. क्योंकि जिस मुश्किल का समाधान किसी के पास नहीं, उसके लिए कोई क्यों जिम्मेदार? समाधान ढूंढने का संग्राम क्यों?

तो बढ़ते हैं आगे. जब ऐसा ही है, तो प्रदूषण का स्वागत कीजिए. प्रदूषण को सेलिब्रेट कीजिए. प्रदूषण के साथ जिंदगी को एंज्वाय करने के उपाय ढूंढिए. आखिर प्रदूषण राजनेताओं के लिए मुद्दा लाया है. टीवी चैनल्स के लिए मुद्दा है. ये अलग बात है कि दोनों के पास वैसे तो कोई रियल मुद्दा ही नहीं है.

दिवाली यूं ही बदनाम है. कोई बताए कि दिवाली के बाद साफ और 15 दिन बाद हवा क्यों खराब है? दिवाली. पराली. ये सब बस राजनीतिक जुगाली है. 

कहते हैं कि दिल्ली-एनसीआर में दम घुट रहा है. लेकिन ये भी तो सोचिए. शहरी अमीरों के मुकाबले आज गांव का गरीब कितना खुश है! स्वच्छ हवा में सांस ले रहा है. टीवी पर दमघोंटू दिल्ली को देख इतरा रहा है. राजधानी के अमीरों की बेबसी देख खुद को खुशनसीब समझ रहा है. गांव-गरीब की खुशियों पर हम क्यों जलें. वक्त की मांग है, दिल्ली की हवा के साथ चलें.

प्रदूषण डॉक्टर्स के लिए मरीज लाया है. मेडिकल सेक्टर के लिए दवाओं का व्यापार लाया है. हॉस्पिटल का कारोबार लाया है. यानी प्रदूषण की भी चौचक इकॉनमी है. प्यूरिफायर के विज्ञापन बढ़ गए हैं. मास्क फिर से बाजार में टंग गए हैं. ‘प्रदूषण मारक' कई और दूसरे यंत्र-संयत्र बाजार में खड़े होकर आवाज दे रहे हैं. 

प्रदूषण रोजगार का भी जरिया लाया है. सोशल मीडिया से लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया तक, विशेषज्ञों की टीम अवतरित हो गई है. किसी को खाक कुछ ठोस पता है. लेकिन सब सब-कुछ जानने का दावेदार है. प्रदूषण क्यों है? प्रदूषण कब तक है? प्रदूषण से निजात कैसे मिलेगी? इन सभी सवालों का जवाब इन ‘स्वयंभू प्रदूषण एक्सपर्ट्स' के पास है. वो तो सरकार और सिस्टम में बैठे लोग ही नादान हैं कि इन्हें काम पर लगा नहीं रहे. प्रदूषण मिटा नहीं रहे.

Advertisement

AQI, ग्रैप-4, गैस चैंबर, हवा खराब. न जाने और क्या-क्या? नवंबर के महीने में हर साल की तरह ये सारे टर्म छाए हुए हैं. अच्छा है, कुछ शब्दों का वजूद हर साल रिन्यू होकर दिल्ली वालों के जेहन में बरकरार है.

एक आइडिया है. दिल्ली-एनसीआर के रियल एस्टेट डेवलपर्स के लिए है. वे ‘पॉल्यूशन व्यू सोसाइटी' का निर्माण कर बड़े-बड़े विज्ञापन ठोक सकते हैं. प्रीमियम रेट पर फ्लैट्स बेच सकते हैं. मीडिया वालों के बीच धुंध के विजुअल दिखाने की जिस तरह से होड़ लगी है, यकीन मानिये ‘पॉल्यूशन व्यू फ्लैट्स' के लिए ये यूनिक सेलिंग प्वाइंट हो सकते हैं.

Advertisement

साजिद और संजीव को दिल्ली आना था. ट्रेन लेट हो गई. दफ्तर में अपनी परेशानी बताई. ट्रेन 3 घंटे डिले हुई, छुट्टी 24 घंटे की मिल गई. साजिद और संजीव को दिल्ली के प्रदूषण ने 21 घंटे का शुद्ध लाभ पहुंचाया. स्कूल बंद करा दिए गए हैं. बच्चे खुश हैं. बिंदास हैं. मस्ती के मूड में हैं. प्रार्थना कर रहे हैं कि प्रदूषण का ये दौर लंबा खिंचे. प्रदूषण के कारक सलामत रहें. अनएक्सपेक्टेड छुट्टियों के इस तोहफे से झोली भरी रहे. 

साजिद और संजीव को इकट्ठा देख कुछ याद आया. ये प्रदूषण एकदम सेक्यूलर है. धर्म-जाति का भेद नहीं करता. कह सकते हैं कि सवालों में घिरा सेक्यूलरिज्म दिल्ली-एनसीआर के प्रदूषण और धुंध में नव जीवन का सांस ले रहा है. अच्छा है.

Advertisement

अश्विनी कुमार एनडीटीवी इंडिया में कार्यरत हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

Topics mentioned in this article