मोदी सरकार के संकल्प को गति देता अमृतकाल का सांस्कृतिक पुनर्जागरण

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Harish Chandra Burnwal

राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को लेकर आज पूरा देश राममय है. इस दौरान चर्चा या संवाद में एक शब्द बहुतायत में सुनने को मिल रहा है, और वो शब्द है- ‘सांस्कृतिक पुनर्जागरण'. ऐसे में मन में ये सवाल उठता है कि क्या वाकई मंदिरों का पुनरोद्धार, पुर्नस्थापना और नवीनीकरण भारतीय संस्कृति का पुनर्जागरण है? क्या वास्तव में भारतीय जनमानस में बहती आस्था की बयार राष्ट्र की ताकत और पहचान को आकार देने में सर्वोच्च स्थान रखती है? इन सवालों के उत्तर जानने से पहले यह समझना जरूरी है कि आखिर इस सांस्कृतिक पुनर्जागरण का मतलब क्या है? राष्ट्र के सर्वांगीण विकास में इसका क्या महत्व है? वास्तविकता के धरातल पर देखें तो समझ में आएगा कि इसके निहितार्थ सिर्फ मंदिरों के पुनरोद्धार तक ही सीमित नहीं हैं. सांस्कृतिक पुनर्जागरण न सिर्फ भारत के सामाजिक-धार्मिक ताने-बाने से बहुत गहरे से जुड़ा है, बल्कि ये इसकी आर्थिक उन्नति और वैश्विक उत्थान का मार्ग प्रशस्त करने वाला है. दरअसल, किसी भी देश की सांस्कृतिक विरासत उसके मूल्यों और परंपराओं की ही परिणति है, जो राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ाती है. भारत की एकता और अखंडता इसकी संस्कृति में गहरे तक समाई है. हमारी सनातन संस्कृति सदियों के कालखंड में समय की धारा के साथ और पुष्पित-पल्लवित हुई है.

सनातन संस्कृति है राष्ट्रवाद और गौरव के पुनरुत्थान का प्रतीक
ये सही है सनातन संस्कृति हमारी सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है. हमारे प्राचीनतम मंदिर तो समृद्ध कला, वैदिक शिक्षा, आध्यात्मिकता और संस्कृति के केंद्र रहे हैं, वे भारत के वैभवशाली इतिहास को दर्शाते हैं. इसीलिए पुनर्जागरण का एक प्रमुख तरीका पावन-पवित्र मंदिरों का पुनरोद्धार भी रहा है. आठवीं शताब्दी में जगद्गुरु शंकराचार्य ने भारत के प्राचीन सांस्कृतिक वैभव की पुनर्स्थापना की थी. उन्होंने बद्रीनाथ, रामेश्वरम, द्वारका और जगन्नाथ पुरी नामक चार धामों का अभिषेक किया. ये धाम देश के चार कोनों में हमारी सांस्कृतिक एकता और अखंडता के जीवंत प्रतीक हैं. इसके बाद भक्तिकाल के कवियों ने अपनी रचनाओं से राष्ट्रचेतना का संचार करके सांस्कृतिक पुनर्जागरण में महती भूमिका निभाई थी. अब भारत सरकार भी सांस्कृतिक पुनर्जागरण को जीवंत करने में गहरी प्रतिबद्धता दर्शा रही है. अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, उज्जैन में महाकाल लोक, केदारनाथ सौंदर्यीकरण, चार धाम परियोजना, पावागढ़ में कालिका माता, अंबाजी सहित ऐसी कई परियोजनाएं इन सद्प्रयासों की मिसाल हैं. प्राचीन मंदिरों के पुनरोद्धार और पुनर्स्थापन के ठोस प्रयास किये जा रहे हैं. 

खुले आर्थिक उन्नति के द्वार, 50 हजार करोड़ का होगा कारोबार
धार्मिक महत्त्व की ये परियोजनाएं हमारे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और गौरव के पुनरुत्थान की प्रतीक हैं. इनमें सांस्कृतिक पुनरोद्धार के लिए एक समग्र दृष्टिकोण निहित है. इनमें धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा, विरासत स्थलों की बहाली, धरोहरों का संरक्षण और चोरी हुई बेशकीमती कलाकृतियों का प्रत्यावर्तन आदि शामिल है. ‘विरासत और विकास साथ-साथ' का मंत्र आस्था-स्थलों के पुनरोद्धार के साथ ही आर्थिक उन्नति के नित-नए मार्ग भी खोल रहा है. विकसित भारत की जिस संकल्पना को आज पूरा भारत उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है, उसे सांस्कृतिक पुनर्जागरण का ये दौर एक नई ऊर्जा भरने वाला है. उदाहरण के तौर पर देखें तो अयोध्या के प्रभु श्री राम मंदिर में राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा से ही देशभर में 50,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त कारोबार होने का अनुमान है. कारोबारियों के संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) के मुताबिक देश के बाजारों में भगवान राम से जुड़ी चीजों की भारी मांग देखी जा रही है. इनमें श्री राम ध्वजा, श्री राम अंगवस्त्र, श्री राम चित्र से अंकित टी-शर्ट, मालाएं, लॉकेट, की-रिंग, राम दरबार के चित्र सहित अनेक प्रकार का सामान शामिल है. श्री राम मंदिर के मॉडल की तो बहुत ज्यादा डिमांड को देखते हुए इसे हार्डबोर्ड, पाइनवुड, पीतल, लकड़ी, चांदी आदि से अलग-अलग साइज में तैयार किया जा रहा है. इससे बड़ी संख्या में महिलाओं और स्थानीय कारीगरों को रोजगार भी मिल रहा है. दीपावली पर भी भव्य दीपोत्सव के लिए जहां लाखों दीयों की खरीद हुई थी, वहीं फूल विदेशों तक से आयात किए गए. अब 22 जनवरी को यहां सिर्फ सनातन संस्कृति के पुनर्जागरण का ही गौरवगान नहीं होगा, बल्कि विकास की एक नई गंगा भी बहेगी.

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पर्यटक स्थलों के रिकॉर्ड को तोड़ रहे हैं धार्मिक स्थल
इतना ही नहीं सांस्कृतिक पुनरोद्धार की नीयत और नीति के चलते ही राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा के कुछ वर्षों बाद अयोध्या दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक हब बनने जा रही है. इसीलिए अगर प्रधानमंत्री मोदी 22 जनवरी को अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में जा रहे हैं, तो उससे पहले 30 दिसंबर को उन्होंने रामनगरी में विकास परियोजनाओं के जरिए कायाकल्प करने के संकल्प को नई गति दी. एक तरफ जहां वो निषाद समाज से आने वाली मीरा मांझी के घर पहुंचकर जन-जन की आकांक्षाओं को एक नई उड़ान देते हैं, तो दूसरी तरफ 15,700 करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं से अयोध्या धाम की एक नई तस्वीर पेश करते हैं. अयोध्या धाम के लिए अगले 10 साल का मास्टर प्लान तैयार है, जिसे करीब 85000 करोड़ रुपये के निवेश के साथ पूरा किया जाएगा. इसमें बेहतर कनेक्टिविटी, भव्य स्मार्ट सिटी, कई फाइव स्टार होटल, ग्रीन टाउनशिप, सरयू का कायाकल्प और आकर्षक पर्यटन स्थल जैसे प्रोजेक्ट शामिल हैं. 

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ऐसा अनुमान है कि राम लला के दर्शन के लिए यहां हर साल 12 करोड़ भक्त पहुंचेंगे. राम लला के दर्शन के लिए किस प्रकार देश-विदेश के श्रद्धालु उमड़ने वाले हैं, ये आप उन स्थानों का आकलन करके समझ सकते हैं, जो सरकार के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के अब तक महत्वपूर्ण केंद्र बने हैं. श्री काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर बनने के बाद पिछले दो वर्षों में रिकॉर्ड 12.92 करोड़ श्रद्धालुओं ने मंदिर में दर्शन किए हैं. पिछले सावन माह में ही 1.6 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु यहां आए. उज्जैन में महाकाल लोक ने तो चार दिन में ही दर्शनार्थियों का नया रिकॉर्ड बना दिया. 2023 के अंतिम तीन दिन और नए साल में 21.35 लाख भक्त महाकालेश्वर पहुंचे. साल के पहले दिन ही भस्मआरती से लेकर शयन आरती तक 10 लाख भक्तों ने दर्शन किए. उधर चार धाम यात्रा में पिछले साल श्रद्धालुओं की संख्या ने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए. सबसे ज्यादा 19 लाख श्रद्धालु केदारनाथ धाम पहुंचे. 22 अप्रैल से शुरू हुई चारधाम यात्रा में 60 लाख से ज्यादा भक्त आए. दूसरी ओर दुनिया के सात आश्चर्यों में शामिल ताजमहल का दीदार करने सालभर में करीब 40 लाख पर्यटक ही आते हैं. आंकड़े इस बात के गवाह बन रहे हैं कि देश में धार्मिक पर्यटन कैसे नित-नए रिकॉर्ड बना रहा है. OYO के सीइओ भी मानते हैं कि अगले पांच वर्षों में पहाड़ या समुद्रतट नहीं, बल्कि आध्यात्मिक पर्यटन सबसे पसंदीदा बनेगा और इसमें भी अयोध्या पहले नंबर पर होगी. भारत सरकार ने भी स्वदेश दर्शन योजना 2.O में देश की सांस्कृतिक विरासत दर्शाने वाले सर्किट विकसित करने के उद्देश्य से कई परियोजनाएं शुरू की हैं.

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सामाजिक समरसता और राष्ट्रीयता की भावना मजबूत
भक्तिकाल के बाद अमृतकाल के इस दौर में सांस्कृतिक पुनर्जागरण आर्थिक समृद्धि लाने वाला ही नहीं है, बल्कि इससे सामाजिक पक्ष को भी मजबूती मिलेगी. ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत' की जिस भावना को प्रधानमंत्री मोदी एक विजन के तौर पर प्रस्तुत कर रहे हैं, उसका एक प्रत्यक्ष स्वरूप भी नजर आता है. इसमें कोई दोमत नहीं कि आज सियासी स्वार्थों के चलते जातिगत राजनीति को उभारा जा रहा है, ऐसे में सनातन संस्कृति जातियों को खत्म कर समाज को मजूबती से जोड़ने का मार्ग प्रशस्त करेगी. इतना ही नहीं इस कालखंड में राष्ट्रीय एकता की भावना भी हिलोरें मार रही है. राम मंदिर के परिप्रेक्ष्य में ही देखें तो रामनामी ईंटें देशभर से आई हैं. मंदिर में लाल पत्थर राजस्थान के बंसी पहाड़पुर और मार्बल मकराना का लगा है. सात ध्वज स्तंभ और 450 किलो वजनी नगाड़ा गुजरात में बना है. मंदिर के लिए घंटा यूपी के जलेसर और तमिलनाडु के रामेश्वरम में तैयार हुआ है. इसके अलावा सागवान की लकड़ी महाराष्ट्र से और तांबा भारत सरकार से खरीदा गया है. पीतल का सामान यूपी और दक्षिण भारत से आया है. आकर्षक डिजाइन और रंग भरने वाले कारीगर जम्मू से, सूर्य तिलक बनाने वाले कारीगर उत्तराखंड से, मूर्तियां बनाने वाले कारीगर कर्नाटक, तमिलनाडु और राजस्थान से आए हैं. साथ ही बिहार और उड़ीसा समेत कई राज्यों के श्रमिक और इंजीनियर दिन-रात काम में लगे हैं. संक्षेप में कहें तो राम मंदिर के निर्माण में 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' की भावना मजबूत होती नजर आ रही है.

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विदेशी धरती पर भी भारतीय संस्कृति और धरोहर की शान 
सांस्कृतिक पुनर्जागरण की यह ध्वज-पताका भारतभूमि पर ही नहीं, बल्कि सरहदों को पार कर विदेशी धरती पर भी शान से फहर रही है. पीएम मोदी 14 फरवरी को यूनाइटेड अरब अमीरात की राजधानी आबू धाबी में विशाल BAPS हिंदू मंदिर का उद्घाटन करेंगे. 2018 की यात्रा के दौरान उन्होंने ही इस मंदिर की नींव रखी थी. उन्होंने बहरीन के मनामा में भी 200 साल पुराने श्रीनाथजी मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए 42 लाख डॉलर की परियोजना शुरू की थी. इसके अलावा पाकिस्तान में स्थित करतारपुर कॉरिडोर को खुलवाने और वीजा-मुक्त धार्मिक जगह बनाने का श्रेय भी भारत की वर्तमान सरकार को ही जाता है. भारतीय प्राचीन धरोहरों की बात करें तो पूरी दुनिया को योग भी भारत की देन है. आज कई देश भारतीय योग को पूरी शिद्दत से अपना रहे हैं. भारत के कहने पर ही संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को योग दिवस घोषित किया है. यह इस बात का प्रमाण है कि भारतीय प्राचीन संस्कृति का परचम अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दिनों-दिन बुंलदी पर है. प्राचीन संस्कृति और अध्यात्म के संगम के बीच दूर क्षितिज में स्वामी विवेकानंद का ये कथन गुंजायमान हो रहा है- “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए.”

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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