महाराष्ट्र में कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक राव चव्हाण बीजेपी में चले गये. वैसे जाना तो तय था, बस तारीख की औपचारिकता बाकी थी. अब वो भी हो गई. अशोक चव्हाण के भाजपा में आने से सबसे ज्यादा खुश मौजूदा उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस होंगे. शिंदे सेना के बढ़ते मनोबल को काबू करने में अब आसानी होगी. अशोक चव्हाण के जब जाने की अटकलें थीं तो एक बार उनसे फोन पर मैंने पूछा था - आप जा रहे हैं क्या ? सधे राजनेता की तरह उन्होंने कहा ऐसी कोई बात नहीं है! कांग्रेस के नेता भी अंदर खाने कह रहे थे कि बस कुछ दिन की ही बात है जब चव्हाण पार्टी छोड़ देंगे. अगस्त 2022 में जब शिंदे सेना ने विद्रोह किया था तब अशोक चव्हाण और दस विधायक विश्वासमत में आये ही नहीं. सबसे मजेदार बहाना अशोक चव्हाण का ही था. तब कह रहे थे कि ट्रैफिक में फंस गये थे. कांग्रेस का टूटना तय था. लेकिन कब और कैसे टूटेगी इसकी स्क्रिप्ट लिखने वालों ने तारीख का ऐलान नहीं किया था. सबसे ज्यादा दिलचस्प ये है कि अशोक चव्हाण जाएंगे इस पर सबसे ज्यादा यकीन शरद पवार की एनसीपी और उद्धव ठाकरे की सेना को था. उनके जाने पर किसी ने बहुत कड़वा नहीं बोला ये सच है. ज्यादातर लोगों ने चुटकियां ही लीं.
अशोक चव्हाण को क्यों लाया गया है ये समझना है तो राज्य की राजनीति को समग्रता से समझना होगा. समझना होगा कि बीजेपी ऐसा क्यों कर रही है. असल में राज्य की राजनीति उसी चौराहे पर है जहां कभी 90 के दशक में यूपी की राजनीति हुआ करती थी. जैसे कभी यूपी की राजनीति में बीएसपी, एसपी, कांग्रेस और बीजेपी का बोलबाला था ठीक वैसे ही महाराष्ट्र में हो रहा है. यहां भी शरद पवार की एनसीपी, उद्धव की सेना, छोटी सी कांग्रेस और बड़ी सी बीजेपी है. चूंकि उद्धव ठाकरे लागत ज्यादा मांग रहे थे इसलिये उन्हें टूट का सामना करना पड़ गया. शरद पवार को ये समझ आ रहा था कि बीजेपी आने वाले वक्त में सुप्रिया सुले के भविष्य को नहीं जमने देगी इसलिये वो निजी कारणों से बीजेपी संग नहीं गये. उन्हें भी टूट देखनी पड़ी. कांग्रेस एक अकेली पार्टी बची थी जिसे तोड़ा नहीं जा रहा था. बस उसके नेता हर एक बड़े चुनाव के पहले बीजेपी की ओर चले आ रहे थे. अशोक चव्हाण के आने के बाद अब बीजेपी कह सकती है कि एक साथ तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों को लेकर चलने वाली वो अकेली पार्टी है. बड़ा सवाल है कि बीजेपी कांग्रेसियों या फिर दूसरे दल के नेताओं को ला क्यों रही है? क्या उसकी नजर सिर्फ लोकसभा चुनावों पर है? या फिर वो एक दीर्घकालिक योजना के तहत ये कदम उठा रही है. मौजूदा दौर में तो चर्चाएं सिर्फ इतनी हैं कि अशोक चव्हाण नांदेड़ से जगह खाली करेंगे और राज्यसभा जाएंगे. उनकी जगह बीजेपी हो सकता है कि एक पूर्व नौकरशाह को मैदान में उतार दे. लेकिन मामला सिर्फ एक सीट का नहीं दिखता. जिस दौर में कभी यूपी की राजनीति होती थी और सारी कोशिशों के बाद भी दो पार्टियों के साथ आने पर ही यूपी की सरकार बनती थी वैसा महाराष्ट्र में अरसे से हो रहा है. बीजेपी को पता है कि जब तक वो इस कथित बीमारी के जड़ तक नहीं पहुंचेगी तब तक उसका अपने दम पर राज्य में सरकार बनाना मुश्किल है. मौजूदा दौर में बीजेपी जो भी कर रही है वो सब उसी लक्ष्य के लिये कर रही है.
बीजेपी ने जब पहले दौर में टूट फूट शुरू कराई थी तब उसे लगा था कि उद्धव ठाकरे की लोकप्रियता पूरी तरह खत्म हो जाएगी और शिवसेना का वोट शेयर कुछ उसकी तरफ भी शिफ्ट होगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं. शिंदे सेना वो कमाल कर ही नहीं पाई जिसकी दरकार बीजेपी को थी. एनसीपी के अजित पवार गुट पर बीजेपी को संदेह ही रहता है. उनकी निष्ठा सवालों के घेरे में है. दोनों क्षेत्रीय पार्टियों से कुछ आधार को अपनी तरफ खिसकाने के बाद भी बीजेपी को लगता है कि उसके पास मैजिक नंबर नहीं है. ये नंबर उसे आसानी से मिल सकते हैं अगर कांग्रेस का एक बड़ा हिस्सा नई कांग्रेस न बनाकर उनके पाले में आ जाए. वैसे भी कांग्रेस के बहुत से नेता ऐसे हैं जो सहकारिता या फिर पैसे की राजनीति करते हैं. दिल्ली के आलाकमान का इसमें रोल कम ही है. ये नेता खुद की दम पर चुनाव लड़ते हैं. और बीजेपी को टक्कर देते हैं. इनके पाला बदलने से बीजेपी की विधानसभा में राह आसान हो सकती है.
महाराष्ट्र में बीजेपी खुद को वहीं पहुंचाना चाहती है जहां उसका मुकाबला सिर्फ एक किसी दल से बचे. बहुत सारे खिलाड़ियों की जगह सिर्फ आमने सामने का मुकाबला हो. बीजेपी की इस रणनीति में उद्धव ठाकरे अब भी रोड़ा बने हुये हैं. हो सकता है कि आने वाले दिनों में उन पर हमले और बढ़ें. उद्धव ठाकरे के मैदान में डटने से बीजेपी को एक डर ये भी हो सकता है कि कांग्रेस के वोट ठाकरे गुट की तरफ शिफ्ट न हो जाएं. अगर उद्धव ऐसा कर पाए तो ये उनकी बड़ी जीत होगी. महाराष्ट्र में वोट शेयर बढ़ाने के लिये नैरेटिव सिर्फ उद्धव सेना और बीजेपी के पास ही है. बाकी के दल अपनी बची खुची पूंजी सहेजने में ताकत लगा रहे हैं.
अभिषेक शर्मा NDTV इंडिया के मुंबई के संपादक रहे हैं... वह आपातकाल के बाद की राजनीतिक लामबंदी पर लगातार लेखन करते रहे हैं...
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