गूगल ज्ञान लेकर खुद डॉक्टर न बनें तो बेहतर

Advertisement
Abhishek Sharma

एक सच्ची घटना. बच्चा दुधमुंहा था. बा- बार पीला पड़ रहा था. बच्चे के मां बाप पढ़े लिखे थे. दिन भर मोबाइल से चिपके रहने वाले. आप टॉपिक बोलिए और वो खट् से गूगल कर डालेंगे. गूगल ज्ञान को वो कुछ ऐसा पीते थे कि जब विषय आता तो किसी विशेषज्ञ की तरह बात करते. अब भला बेटा बीमार हो और गूगल न करते तो कैसे काम चलता? मां- बाप ने गूगल करके पहले तो लक्षणों पर पढ़ना शुरू किया और फिर इस नतीजे पर पहुंच गए कि बेटा लाइलाज बीमारी से पीड़ित है. लक्षणों के आधार पर वो ये भी समझ गये थे कि करोड़ों लोगों में से किसी एक को जो बीमारी होती है उसने उनके घर पर हमला किया है. डॉक्टर तो बेटे को देख ही रहे थे. लेकिन वो अब अपने मरीज के परिवार से ज्यादा परेशान थे. जिस बीमारी को परिवार लाइलाज बता रहा था वो नवजातों में अक्सर हो जाती है. हर किसी को नहीं होती ये भी एक सच है. गूगल सर्च में ये परिवार उस मुश्किल बीमारी को ही चुन रहा था जिसके खतरे के बारे में विस्तार से लिखा हुआ था. परिवार यहीं नहीं रुका. उसे डॉक्टर पर भरोसा कम हो गया. दूसरे डॉक्टर के पास भी राय लेने चले गये. मेडिकल साइंस में कुछ मापदंड अब भी ऐसे हैं जिन पर इलाज को लेकर दो राय हो सकती हैं लेकिन बीमारी के रूप को लेकर नहीं. दूसरे डॉक्टर ने भी वही राय दी. आखिरकार बच्चा ठीक हो गया. लेकिन इस घटना से बड़ा सवाल निकला है - परिवार आखिर ऐसा क्यों कर रहा था? क्या उसे मौजूदा मेडिकल साइंस पर भरोसा नहीं था? या डॉक्टरों ने भरोसा खो दिया है इसलिये लोग बीमारियों के बारे में डॉक्टर से ज्यादा गूगल सर्च कर रहे हैं. या फिर मसला सहज तरीके से मिलने वाली बहुत सारी जानकारी का है जिसे हम प्रोसेस करना नहीं जानते? 

जानकारियों की बहुतायत क्या आपको किसी जंजाल में फंसा रही है? क्या आप गूगल सर्च करके अपनी समस्याओं को बढ़ा-चढ़ा कर देखने लगे हैं? या फिर आप वही उत्तर चुन रहे हैं जो आपको सुविधाजनक लग रहे हैं. कई 
डॉक्टर अब अपने क्लिनिक के बाहर ये लिखने लगे हैं कि गूगल या किसी भी सर्च इंजन का काम इलाज करना नहीं है. वो काम मेडिकल साइंस का है. डॉक्टर ये हिदायत भी दे रहे हैं कि अपनी बीमारी के बारे में सिर्फ डॉक्टर से ही समझें. ये नौबत इसलिये भी आ रही है क्योंकि जानकारी ने सब कुछ आसान कर दिया है. डॉक्टर अब इस बात से भी परेशान हैं कि उन्हें उन तमाम आशंकाओं का समाधान भी करना पड़ रहा है जो कई बार सिर्फ कल्पनाओं या बहुत कम होती हैं. एक डॉक्टर अपनी आपबीती सुनाते हुये कह रहे थे कि वो जिस फील्ड के महारथी हैं उसके गूगल सर्च करने पर आखिर में ये उत्तर भी लिखा होता है कि - कैंसर की वजह से भी अमुक लक्षण दिख सकता है. वो मानते हैं कि तमाम सर्च इंजन और जानकारियों ने उनका जीवन भी आसान किया है लेकिन हर जानकारी आपके फायदे की ही हो ये जरूरी नहीं है. खासकर ऐसे मामलों में जहां बेहद बारीकियों को समझने के लिये लंबे अनुभव की जरूरत होती है.

समस्या सिर्फ मेडिकल साइंस से जुड़ी नहीं है. गैर जरूरी जानकारियां भी आपको अब चारों ओर से घेर रही हैं. आप अपने किसी दुख या पीड़ा का बस अहसास इंटरनेट को करा दीजिये, फिर देखिये कैसे सारी एल्गोरिदम आपको घेर लेंगी. बताने लगेंगी कि कैसे ये दुख कम हो सकता है या फिर इस पीड़ा के और क्या क्या नुकसान हैं. ज्यादा जानकारी के इस मायाजाल में बाजार भी छिपा है. जिसका अहसास कम ही लोगों को है. लेकिन कहानी सिर्फ आप तक आने वाली गैर जरूरी जानकारी की नहीं है. इसके दूरगामी परिणामों की भी है जिसके बारे में चर्चा कम हो रही है.

Advertisement

तमाम जानकारियों के बीच हमें ये कोई नहीं बता रहा है कि आप जो भी जानकारी ले रहे हैं उसका असर आपके जेहन पर किस तरह पड़ रहा है. हम ये दावा नहीं कर सकते कि बाहर से उड़ेली जानकारियां हमें अच्छे या बुरे तरीके से प्रभावित नहीं करती हैं. बिना फिल्टर की जानकारियां आपके आसपास ऐसा माहौल बना रही हैं जिसका असर सीधे तौर पर आपके सुख- दुख से है. दुख के मामले को समझना जरूरी है. 

Advertisement

मनोविज्ञान में एक थ्योरी है - अफैक्ट ह्युरिस्टिक - इसका सीधा मतलब ये हैं कि आप जिस मूड में है वो आपके फैसलों को प्रभावित करता है. गैर जरूरी जानकारियों के बीच मनोविज्ञान की इस थ्योरी को सोशल मीडिया के प्रभावों के बीच समझना बेहद जरूरी है. अगर आप दिन किसी नकारात्मक विषय को दिन भर देख रहे हैं. और उसी के बीच अपने फैसले ले रहे हैं तो बहुत संभव हैं कि आपके फैसले सही न हो. जानकारियों के समंदर में डुबकी लगाने और हर वक्त सर्च इंजन का सहारा लेने से पहले ये सवाल खुद से जरूर पूछें -- क्या इसकी जरूरत है... क्या आप अनजाने में ऐसी जानकारियां तो नहीं ले रहे हैं जिनसे आपको दुख होता है ?

Advertisement

अभिषेक शर्मा NDTV इंडिया के मुंबई के संपादक रहे हैं... वह आपातकाल के बाद की राजनीतिक लामबंदी पर लगातार लेखन करते रहे हैं...

Advertisement

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

Topics mentioned in this article