स्वतंत्रता सेनानी एवं कांग्रेस के सक्रिय सदस्य डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार भारत की तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक परिस्थितियों का आंकलन करने के बाद इस निर्णय पर पहुंचे कि यदि हिन्दू समाज को संगठित नहीं किया गया तो इस राष्ट्र की स्वाधीनता बार-बार खतरे में पड़ती रहेगी. 100 वर्ष पहले समाज को संगठित करने के उद्देश्य से डॉ. हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की. व्यक्ति निर्माण अर्थात स्वयंसेवक के माध्यम से समाज परिवर्तन एवं राष्ट्र निर्माण के उद्देश्य से डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की. वहीं संघ इस विजयादशमी को अपनी यात्रा के 100 वर्ष पूर्ण कर 101 वें वर्ष में प्रवेश कर गया है.
डॉ हेडगेवार जी जिस स्वयंसेवक के माध्यम से समाज एवं राष्ट्र का निर्माण के पथ पर चल पड़े, समाज परिवर्तन एवं राष्ट्र निर्माण में स्वयंसेवक की भूमिका को समझना आवश्यक है. इसके लिए हमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की आवश्यकता एवं उद्देश्यों को समझना होगा. जिस बड़े उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आद्य सरसंघचालक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने संघ की स्थापना कि तो उनकी दृष्टि में एक स्वयंसेवक की भूमिका क्या थी? यह जानना जरुरी है.
संघ स्थापना का उद्देश्य
स्वतंत्रता सेनानी एवं संगठक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार अनुशीलन समिति के सदस्य रहे. तत्कालीन कांग्रेस द्वारा संचालित स्वराज के जन आंदोलन से जुड़े रहे, दो बार जेल गए और कठोर कारावास झेला. स्वाधीनता संग्राम के संबंध में डॉक्टर हेडगेवार की दृष्टिकोण की एक और मूल विशेषता थी कि वे दूरदर्शी थे. उनके विचार स्वाधीनता प्राप्ति के तात्कालिक उद्देश्य तक की सीमित नहीं थे. उन्होंने भारत के इतिहास का गहन मनन एवं अध्ययन किया और इस निर्णय पर पहुंचे कि जो समाज पिछली भूलों से सीखे नहीं उसे पुनरावृत्ति का सामना करना पड़ता है.
एक समय था, जब भारत स्वतंत्र एवं समृद्ध था. जीवन के हर क्षेत्र में अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच चुका था. फिर भी मुट्ठी भर विदेशी आक्रमणकारियों के हाथों उसे पराजय का सामना करना पड़ा, क्योंकि भारतीय समाज अनेक गंभीर बीमारियों का शिकार हो गया था. जिसने राष्ट्र की आंतरिक शक्ति का क्षरण कर दिया और देश सहज ही विदेशी आक्रमणकारियों का शिकार बन गया. डॉ. हेडगेवार का मानना था कि भारतीय जनमानस में प्रखर अखंड राष्ट्रीय चेतना का अभाव राष्ट्र के उत्कर्ष में सबसे बड़ी बाधा है. यदि इस बीमारी का उपचार नहीं किया गया तो अंग्रेजों से स्वतंत्रता के बाद भी हमारी स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है.
उनका स्पष्ट मत था कि हिन्दू समाज का अवमूल्यन मुसलमान और अंग्रेजों के कारण नहीं हुआ बल्कि राष्ट्रीय भावना के शिथिल हो जाने पर व्यक्ति एवं समाज के सही संबंध बिगड़ गए. इस प्रकार असंगठित अवस्था के कारण ही एक समय दिग्विजय का डंका दसों दिशाओं में बजाने वाला हिंदू समाज सैकड़ो वर्षों से विदेशियों की पासविक सत्ता के नीचे पददलित हो गया. इसलिए सर्वप्रथम इस हिन्दू समाज को जागृत एवं संगठित करना आवश्यक है.
स्वयंसेवक
भारतीय समाज में मनुष्य बल, धन बल तथा शस्त्र बल सब कुछ था परंतु ‘मैं राष्ट्र का घटक हूं और उसके लिए मेरा जीवन लगना चाहिए.' यह कर्तव्य की भावना व्यक्ति के हृदय से नष्ट होने के कारण सारी शक्ति होते हुए भी समाज पराभूत हो गया. इसके लिए समाज की नस-नस में राष्ट्रीयता की उत्कट भावना भरकर, उसे दिग्विजयी राष्ट्र के रूप में खड़ा किया जाए, इसी संकल्प का मूर्त स्वरूप है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ.
संघ की संकल्पना
इन वैचारिक मंथन के बाद डॉक्टर हेडगेवार अपने मन में संघ की कल्पना कर चुके थे. अब जरूरत थी उसे विचार से व्यवहार में लाने की. इसके लिए उन्होंने विजयादशमी का शुभ मुहूर्त तय किया. तदनुसार 1925 के दशहरे के दिन अपने घर में 15-20 लोगों को इकट्ठा करके उन्होंने सबसे कहा कि हम लोग आज से संघ शुरू कर रहे हैं. डॉक्टर साहब में 1925 के विजयादशमी के दिन जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की उसने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 2025 के विजयादशमी के दिन अपनी यात्रा के 100 वर्ष पूर्ण कर लिए.
विजयादशमी ही क्यों
प्रभु श्री रामचंद्र जी ने तीनों लोकों के ऊपर राज्य करने वाले और देवताओं को भी दास बनाने वाले रावण का इसी दिन वध किया था. अर्जुन ने अपने गाण्डीव की टंकार भी इसी दिन सुनाई थी. बलवान हिंदू राष्ट्र को जागृत करने के लिए इस प्रकार विजय का स्मरण करा देने वाली विजयादशमी के अतिरिक्त और कौन सा मुहूर्त उपयुक्त हो सकता था. इसलिए डॉ. हेडगेवार ने संघ स्थापना के लिए विजयादशमी के दिन को चुना.
व्यक्ति निर्माण
व्यक्ति से परिवार बनता, परिवार से समाज एवं फिर समाज से राष्ट्र का निर्माण होता है. इसलिए डॉक्टर साहब ने जब संघ की स्थापना की तो भारत भूमि का गौरव प्राप्त करने के लिए इसकी मूल इकाई व्यक्ति को चुना. क्योंकि जब व्यक्ति में राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण होगा तो परिवार में होगा और परिवार से पूरे राष्ट्र में राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण होगा और यह राष्ट्र अपने गौरव को प्राप्त करेगा. इसलिए कहते हैं कि संघ का कार्य है व्यक्ति निर्माण करना. संघ व्यक्ति यानी स्वयंसेवक निर्माण करता है.
फिर अनुशासन एवं राष्ट्रीय चरित्र से युक्त ये स्वयंसेवक समाज में जाकर समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अपना योगदान देकर समाज परिवर्तन एवं राष्ट्र निर्माण में अपनी उत्कृष्ट भूमिका निभाते हैं. संघ स्थापना के तुरंत बाद स्वयंसेवक समाज परिवर्तन व राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभाने लगे. चाहे स्वतंत्रता आंदोलन हो, विभाजन विभीषिका हो, युद्धकाल हो, सामाजिक समरसता हो, सेवा हो, आपातकाल हो, राम मंदिर आंदोलन या पंच परिवर्तन हो.
(बिपिन कुमार तिवारी, पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं जो कि नीतिपोस्ट के एडिटर भी हैं. लेख में उनके निजी विचार है)