Ground Report: बिहार से फिर शुरू हुआ मजदूरों का पलायन, कोई पंजाब चला तो कोई और कहीं

बिहार से मजदूरों का पलायन लंबे समय से हो रहा है. कभी भी कोई सरकार इसके प्रति गंभीर नहीं हुई. यदि कभी गंभीर हुई तो पंजाब के लिए सीधी ट्रेन दे दी.

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बिहार के मजदूर काम की तलाश में दूसरे राज्यों के लिए निकलने लगे हैं,
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  • बिहार में चुनावी शोर के बीच मजदूरों का पलायन लगातार जारी है और वे रोजगार की तलाश में दूसरे प्रदेश जा रहे हैं.
  • कई मजदूर वर्षों से लगातार पंजाब में काम कर रहे हैं, जहां वे महीने-दो महीने काम करके वापस लौटते हैं.
  • बिहार सरकार पलायन रोकने की बात कर रही है, लेकिन अब तक इस समस्या के समाधान के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं.
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बिहार में हर तरफ शोर है. शोर चुनाव का. बड़ी-बड़ी बातें. बड़े-बड़े वादे. हर दल दूसरे से चार गुना ज्यादा वादे कर रहा है. मगर बिहार से लोगों का पलायन नहीं रुक रहा. बिहार से मजदूरों का पलायन एक बार फिर शुरू हो गया है. रोजी-रोटी की तलाश में मजदूर दूसरे प्रदेशों की ओर जा रहे हैं. लंबे समय तक सहरसा ऐसे मजदूरों का पहला पड़ाव रहा था, जहां से वे दिल्ली, हरियाणा या पंजाब की ट्रेन पकड़ने आते थे. अब सहरसा के यार्ड में जगह नहीं रहने के कारण पंजाब जाने वाले एक ट्रेन का पूर्णिया, दूसरे का ललितग्राम तो तीसरे का सरायगढ़ तक विस्तार कर दिया गया है. इससे सहरसा में लगने वाली मजदूरों की भीड़ अब उन स्टेशनों पर लगने लगी है. 

सहरसा जिले के भद्दी गांव के रहने वाले अर्जुन इस बार पंजाब नहीं, दिल्ली जा रहे हैं. अर्जुन बताते हैं कि इस बार पंजाब के बड़े हिस्से में बाढ़ आई है और वहां की खेती बर्बाद हो गई है. अर्जुन यह भी बताते हैं कि यहां काम तो मिलता है, लेकिन उस हिसाब से पैसे नहीं मिलते.

सुलिंदाबाद के विलास यादव पंजाब जा रहे हैं. कहते हैं कि पंजाब के जिस हिस्से में बाढ़ का असर नहीं है, वहां जाकर धान काटेंगे.

पिछले कई वर्षों से मजदूरी करने पंजाब जा रहे भूलन सादा ने बताया कि वो और उनका परिवार पंजाब की मजदूरी पर ही निर्भर हैं. उनके गांव से आज 11 मजदूर एक साथ जा रहे हैं.

18 साल का ओम भी पंजाब जाने की ट्रेन पकड़ने सहरसा जंक्शन आया है. ओम पेंटिंग का काम करता है. कहता है कि यहां कभी-कभी काम मिलता है. वहां रेगुलर मिलेगा. एक महीने तक काम कर वापस आ जाएंगे. 

अररिया जिले के आनंदीपट्टी निवासी जागेश्वर मंडल पंजाब मंडी में काम करने जा रहे हैं. वे पिछले पांच-छह वर्षों से लगातार पलायन कर रहे हैं. यहां काम नहीं मिलता है. इसी गांव के प्रभु सादा भी अमृतसर जा रहे हैं. कहते हैं कि वे 10-12 साल से हर सीजन में महीने-दो महीने के लिए पंजाब जाते हैं. यहां काम तो मिलता है, लेकिन उस हिसाब से मजदूरी नहीं मिलती है. खा-पीकर सब समाप्त हो जाता है, बचत कुछ भी नहीं.

पिंटू गन्ना काटने सहारनपुर जा रहे हैं. बताते हैं कि यहां काम नहीं मिलता है. मिलता है तो दिहाड़ी 500 रुपये भी नहीं मिलते. वहां काम भी लगातार और पैसे भी अधिक मिलते हैं. रानीगंज का मुनचुन भी खेती करने पंजाब जा रहा है. कहता है कि यदि यहां काम और ठीक-ठाक मेहनताना मिल जाता तो, घर -परिवार छोड़कर क्यों जाते.

बिहार से मजदूरों का पलायन लंबे समय से हो रहा है. कभी भी कोई सरकार इसके प्रति गंभीर नहीं हुई. यदि कभी गंभीर हुई तो पंजाब के लिए सीधी ट्रेन दे दी. हालांकि, इस बार राज्य सरकार ने पलायन पर ब्रेक लगाने की बातें कही हैं. देखना है कि जमीन पर कितना काम उतरता है.

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