छह जिलों में मौन क्यों है बीजेपी? क्या यह चुनावी रणनीति है या राजनीतिक संदेश?

जिन छह जिलों में बीजेपी ने उम्मीदवार नहीं उतारे, वो इलाके जातीय रूप से संवेदनशील हैं. यहां कुर्मी, कोइरी, निषाद, पासवान और यादव जैसी जातियों का प्रभाव भारी है.

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  • बीजेपी ने मधेपुरा, खगड़िया, शेखपुरा, शिवहर, जहानाबाद और रोहतास उम्मीदवार नहीं उतारे हैं.
  • बीजेपी ने लोकल नेताओं की जगह सहयोगी दलों को मौका दिया है ताकि स्थानीय राजनीतिक पकड़ मजबूत रहे.
  • यह रणनीति केवल 2025 के चुनाव के लिए नहीं बल्कि 2029 की दीर्घकालिक राजनीतिक तैयारी का भी हिस्सा है.
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बिहार की सियासी ज़मीन पर इस सवाल ने हलचल मचा दी है. बाकी दल जहां हर सीट पर अपने झंडे गाड़ने की होड़ में लगे हैं, वहीं बीजेपी ने 6 जिलों में एक भी उम्मीदवार नहीं उतारा. आखिर क्यों? यह चुप्पी क्या आने वाले बड़े खेल का इशारा है? क्योंकि बिहार चुनाव की रणभेरी बज चुकी है. नेता मैदान में हैं, रैलियों की गरज आसमान चीर रही है, लेकिन इस तपते हुए चुनावी मौसम में एक ऐसी खबर आई है, जिसने हर राजनीतिक गलियारे में कानाफूसी तेज़ कर दी है. बीजेपी छह जिलों में पूरी तरह गायब है.

कौन से हैं वो 6 जिले

जी हाँ! मधेपुरा, खगड़िया, शेखपुरा, शिवहर, जहानाबाद और रोहतास. ये छह जिले ऐसे हैं, जहां भारतीय जनता पार्टी ने एक भी उम्मीदवार खड़ा नहीं किया. इतना ही नहीं, सहरसा, लखीसराय, नालंदा, बक्सर और जमुई जैसे अहम जिलों में भी बीजेपी सिर्फ एक-एक सीट पर ही सीमित दिखती है. तो सवाल उठता है कि क्या बीजेपी पीछे हट रही है? या फिर, यह मोदी-शाह की चुप्पी वाली बड़ी रणनीति है?

पहली नज़र में जवाब सीधा लगता है-बंधन.

बीजेपी बिहार में जेडीयू, हम, लोजपा (रामविलास) और आरएलएम के साथ NDA गठबंधन में चुनाव लड़ रही है. सीट बंटवारे के तहत कई सीटें सहयोगी दलों के खाते में चली गईं. यह बात सही है, लेकिन क्या जवाब इतना आसान है? राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यह सिर्फ गठबंधन नहीं रणनीति का अदृश्य वार है. बीजेपी जानती है कि हर जगह लड़ना ही जीतना नहीं होता. कुछ जगह पीछे हटना भी भविष्य की जीत की शतरंज का हिस्सा होता है.

तीन बड़े कारण हैं जिनकी चर्चा सबसे ज्यादा 

1. जातीय संतुलन की चाल

जिन छह जिलों में बीजेपी ने उम्मीदवार नहीं उतारे, वो इलाके जातीय रूप से संवेदनशील हैं. यहां कुर्मी, कोइरी, निषाद, पासवान और यादव जैसी जातियों का प्रभाव भारी है. बीजेपी चाहती है कि अपने सहयोगियों को आगे करके इन जातीय वोट-बैंकों को एकजुट किया जाए.

2. लोकल बनाम नेशनल फैक्टर

बिहार में लोकल चेहरों की पकड़ को लोग ज़्यादा मानते हैं. इन जिलों में राजनीतिक ज़मीन पर जेडीयू और हम पहले से मजबूत हैं. बीजेपी चाहती है कि मोदी का चेहरा राष्ट्रीय अभियान में रहे और स्थानीय सीटों पर दोस्ती निभाई जाए.

3. 2029 की तैयारी – अभी से

यह चुनाव सिर्फ 2025 का चुनाव नहीं. यह 2029 की तैयारी भी है. बीजेपी बिहार में दीर्घकालिक गेम खेल रही है पहले गठबंधन मजबूत करो, फिर संगठन फैलाओ और अंत में बड़ी जीत की पटकथा लिखो.

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बीजेपी ने भले ही 6 जिलों में उम्मीदवार नहीं दिए, लेकिन उसकी पकड़ ढीली नहीं हुई. असल में, यह बीजेपी की गहराई वाली चुनावी नीति का हिस्सा है जहां सीटें नहीं, समीकरण जीते जाते हैं. क्योंकि बिहार की राजनीति में जो दिखता है, वो होता नहीं…और जो होता है, वो आख़िरी राउंड में सामने आता है.
 

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