'दूसरे बुद्ध' गुरु प‌द्मसंभव के जीवन और विरासत पर नालंदा में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की शुरुआत

विदेश से आए वक्ताओं का कहना था कि गुरु प‌द्मसंभव को समझने के लिए संकुचित नहीं, बल्कि एक उच्च स्तरीय मस्तिष्क की जरूरत है.

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नालंदा:

बिहार के नालंदा जिले के ऐतिहासिक नव नालंदा महाविहार में बुधवार को तिब्बत और पूरे हिमालय क्षेत्रों में बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए दूसरे बुद्ध के रूप में विख्यात गुरु प‌द्मसंभव के जीवन और विरासत पर केन्द्रित प्रतिष्ठित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की शुरुआत हुई. इंटरनेशनल बु‌द्धिस्ट कन्फेडरेशन (IBC), नई दिल्ली और नव नालंदा महाविहार के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में दुनियाभर से प्रख्यात विद्वान, भिक्षु और गणमान्य शामिल हुए हैं.

इस सम्मेलन का उद्देश्य प्राचीन नालंदा महाविहार (विश्ववि‌द्यालय) के आचार्य गुरु प‌द्मसंभव के गहन प्रभाव पर चर्चा करना है, जो 8वीं शताब्दी के बौद्ध गुरु थे, जिन्हें तिब्बत और पूरे हिमालयी क्षेत्रों में बौद्ध धर्म के प्रसार में उनकी भूमिका के लिए 'दूसरे बुद्ध' के रूप में व्यापक रूप से सम्मानित किया जाता है.

इस कार्यक्रम में अधिकांश वक्ताओं ने आज के समय में गुरु प‌द्मसंभव की शिक्षा के महत्व पर जोर दिया. बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने कहा कि हमें गर्व होता है, जब परम पावन दलाई लामा तिब्बत बु‌द्धिज्म को नालंदा परंपरा कहते हैं.

इस मौके पर नालंदा महाविहार द्वारा तैयार 'पालि-हिंदी शब्दकोश भाग II, खंड-V और VI' का विमोचन किया गया. महाविहार के पूर्व निदेशक प्रोफेसर उमाशंकर व्यास के प्रयासों से ये कार्य संभव हो सका है.

पहले दिन के सत्र में महत्त्वपूर्ण भिक्षु सहित विशिष्ट अतिथियों के संबोधन भी शामिल थे. अधिकांश वक्ताओं ने कहा कि गुरु प‌द्मसंभव के चमत्कारिक व आध्यात्मिक स्वरूप ने पूरे विश्व को एक अलग दिशा दिखाया है जो कि आभासीय व वास्तविक दोनों रूप में विद्यमान है.

विदेश से आए वक्ताओं का कहना था कि स्थानीय देवी-देवताओं को धम्म के रक्षक के रूप में प्रदर्शित कर गुरु प‌द्मसंभव ने तिब्बत बौद्ध परंपरा को एक नया आयाम दिया. गुरु प‌द्मसंभव को समझने के लिए संकुचित नहीं, बल्कि एक उच्च स्तरीय मस्तिष्क की जरूरत है. उन्होंने कहा कि गुरुप‌द्मसंभव का ज्ञान अगर सागर है तो हमारा ज्ञान महज एक पानी की बूंद है.

कार्यक्रम में 'भारत से थाईलैंड तक पवित्र अवशेषों की पवित्र यात्रा' पर एक विशेष फिल्म स्क्रीनिंग की गई, जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया, जिसमें भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच आध्यात्मिक संबंधों का एक दृश्य वर्णन प्रस्तुत किया गया. इसमें नालंदा के दो लाल सारिपुत्त व मोग्गलान के अस्थि अवशेष को भी थाईलैंड सरकार को दिया गया.

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