तेजस्वी की बदली रणनीति, MY से PDA की ओर बढ़े, क्या RJD लगाएगी ऊंची छलांग?

बिहार में तेजस्वी यादव की आरजेडी वोटर्स को लुभाने की एक नई रणनीति पर काम कर रही है. तेजस्वी यादव की ये नई रणनीति, जिसे पीडीए कहा जा सकता है— इसमें पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक के साथ सवर्णों को भी शामिल किया गया है.

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  • बिहार में तेजस्वी यादव की आरजेडी वोटर्स को लुभाने की एक नई रणनीति पर काम कर रही है.
  • तेजस्वी की ये रणनीति, जिसे PDA कहा जा सकता है, इसमें पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक और सवर्ण शामिल किए गए हैं.
  • बिहार चुनाव 2025 के लिए आरजेडी कैंडिडेट्स की सूची उसके पुराने एमवाई समीकरण से आगे निकलने की एक झलक देती है.
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बिहार की मिलीजुली लेकिन जटिल राजनीतिक पटल पर राष्ट्रीय जनता दल (आरेजेडी) लंबे समय से एक तगड़े खिलाड़ी की तरह मौजूद है, जहां इसकी जड़ें मुस्लिम-यादव गठजोड़ में मजबूती से धंसी हुई है. अक्सर एमवाई समीकरण के तौर पर राज्य में जाना जाने वाला ये समीकरण आरजेडी के लिए जहां एक ओर आधारभूत ताकत रहा है तो वहीं दूसरी तरफ सबसे बड़ी कमजोरी भी है. लंबे समय तक इसी सामाजिक आधार ने आरजेडी को अच्छा वोट दिलाया, लेकिन इस पर अधिक निर्भरता ने पार्टी के वोट शेयर को करीब 30 फीसद तक सीमित कर दिया है.

2020 में महागठबंधन की हिस्सा बनने के बाद जब आरजेडी ने बिहार विधानसभा चुनाव में केवल 144 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे, तो उसका वोट शेयर और घट गया. हालांकि जैसे-जैसे राजनीति की घड़ी में बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखें करीब आ रही हैं, तेजस्वी एक नया रास्ता अख्तियार करते दिख रहे हैं- एक ऐसा रास्ता जो गठबंधन के सदस्यों को मजबूत करने के साथ ही उनकी अपनी पार्टी की अपील को भी राज्य के मतदाताओं के बीच बढ़ा सकता है.

कुछ सीटों पर आरजेडी, कांग्रेस, लेफ्ट और वीआईपी जैसी पार्टियों के बीच दोस्ताना लड़ाई के मद्देनजर अब तक कि अधिकतर राजनीतिक रिपोर्ट्स महागठबंधन पर प्रहार करती नजर आती हैं. लेकिन तेजस्वी की पार्टी के जनाधार में संभावित बढ़त वाली इस रणनीति की बात अधिकतर राजनीतिक रिपोर्ट्स से नदारद हैं. 

अखिलेश की पीडीए स्कीम से तेजस्वी प्रभावित

इस रणनीतिक बदलाव के पीछे अतीत से सीखे गए सबक हैं, जो उन्होंने अपने समकालीन यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सफलता और असफलता से सीखा है. 2024 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश को मिली असाधारण सफलता ये संकेत देती है कि रणनीति में बदलाव से अच्छा फायदा मिल सकता है. तेजस्वी यादव की ये नई रणनीति, जिसे पीडीए कहा जा सकता है— इसमें पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक के साथ सवर्णों को भी शामिल किया गया है- यह राज्य के बदलते सामाजिक-राजनीतिक हालात की गहरी सोच को दर्शाते हैं. 

इस रणनीति से तेजस्वी का लक्ष्य न केवल अपना जनाधार बढ़ाना है बल्कि नीतीश कुमार जैसे राजनीतिक प्रतिद्विंद्वियों के गढ़ को भी ध्वस्त करना है, जो महादलितों और अति पिछड़ों के साथ गठजोड़ के लिए जातिगत जटिलताओं के बावजूद बहुत कुशलता के साथ नैविगेट करते हैं.

आरजेडी ने काटे 36 विधायकों के टिकट

हाल ही में 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों के लिए घोषित उम्मीवारों की लिस्ट इस नए बदलाव की साफ झलक देती है. आरजेडी ने इस बार 2020 से एक कम 143 उम्मीदवार उतारे हैं. इस बार पार्टी ने 36 मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिए हैं. इन (करीब 25 फीसद) जीते हुए विधायकों को ‘काम न करने' की चलते बदल दिया गया है, ऐसा इस पार्टी में शायद ही देखा गया. यह साफ संकेत है कि पार्टी अब केवल निष्ठा की बजाय काम करने को तरजीह दे रही है जो पहले कम ही देखा गया.

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नारी शक्ति की अहमियत- 24 महिलाओं को दिए टिकट 

आरजेडी ने इस बार 24 महिला प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं, जो पिछले कुछ चुनावों के दौरान बढ़ती महिला वोटर्स की भागीदारी को दर्शाता है. महिलाओं ने मतदान के मामले में पुरुषों को पीछे छोड़ दिया है. 1962 से महिलाओं की चुनावों में भागीदारी करीब 28 प्रतिशत बढ़ चुकी है, जिसने बिहार में मतदान के मामले में लैंगिक अंतर को पूरी तरह से पाट दिया है. आज महिलाएं बिहार की सबसे मजबूत वोटिंग ताकत बन चुकी हैं.

यह बदलाव 2010 में शुरू हुआ था, तब पहली बार महिलाओं की वोटिंग दर ने पुरुषों को पीछे छोड़ दिया था. उस साल, 162 निर्वाचन क्षेत्रों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से अधिक रहा. राज्य में यह पहली बार हुआ था, जब कुल महिला मतदान प्रतिशत पुरुषों से अधिक था. 2010 में, 54 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया था, जो पहली बार पुरुषों के 51 प्रतिशत से अधिक था. 2015 में, यह अंतर और भी बढ़ गया, तब 60 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया था, जबकि पुरुषों का प्रतिशत केवल 50 प्रतिशत ही था. 

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फिर, 2020 में बिहार के 243 विधानसभा सीटों में से 167 सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों से अधिक वोट डाले थे. इनमें से अधिकांश सीटें उत्तर बिहार की थीं जहां मतदाताओं का झुकाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए की ओर अधिक रहा. 2020 में कोरोना वायरस महामारी के दौरान हुए चुनावों के बावजूद महिलाओं ने पुरुषों को न केवल पीछे छोड़ा बल्कि छह प्रतिशत अधिक मतदान किए. 

हालांकि, हाल ही में चुनाव से पहले हुए एक सर्वे के मुताबिक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी विभिन्न महिला उन्मुखी योजनाओं की वजह से तेजस्वी यादव पर 32 फीसद का अंतर बनाए हुए हैं.

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आरजेडी प्रत्याशियों की बदलती सामाजिक संरचना

आरजेडी के नामची प्रत्याशियों में खुद तेजस्वी राघोपुर से मैदान में हैं, तो मधेपुरा से चंद्रशेखर और मोकामा से वीणा देवी जैसी प्रमुख चेहरे भी हैं. इनका चुनाव आरजेडी की बदलती नई तस्वीर को दर्शाता है जो अब पारंपरिक यादव-मुस्लिम वोट बैंक तक सीमित नहीं रहना चाहता और इससे आगे बढ़कर अपना जनाधार बढ़ाने की जुगत में लगा है. 

राजनीतिक मंशा या केवल वोटबैंक की राजनीति

हालांकि सच्चाई ये भी है कि आरजेडी के 52 प्रत्याशी अब भी यादव हैं, तो 18 मुसलमान. साथ ही इस बार उसने 13 कुशवाहा और 2 कुर्मियों को सीटें दी हैं- जो पारंपरिक तौर पर नीतीश कुमार से जुड़े हुए हैं. यह तेजस्वी की केवल रणनीतिक पैंतरेबाजी नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति में लंबे समय से हावी जातिगत गठबंधनों को तोड़ने की महत्वकांक्षा को दर्शाता है. इसके साथ ही आरजेडी ने 16 सवर्णों (7 राजपूत, 6 भूमिहार, 3 ब्राह्मण) को भी सीटें आवंटित की हैं. अतीत में राजपूतों ने आरजेडी के प्रति अपना रुझान दिखाया था. लेकिन लालू यादव के बहुचर्चित नारे ‘भूरा बाल साफ करो', यानी सवर्ण जातियों से छुटकारा पाओ, के बाद भूमिहार और ब्राह्मण उससे पूरी तरह छिटक गए. 

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लालू यादव के सामाजिक आधार से आगे बढ़ने की तेजस्वी की कोशिश

आरजेडी पर आज पूरी तरह अपनी पकड़ रखने वाले तेजस्वी यादव ने अपनी रणनीति को बदलने और अपने पिता के सामाजिक आधार से आगे जाने का फैसला किया है, लेकिन इस रणनीति को अपनाने में बहुत खतरा भी है क्योंकि भले ही वो कितने भी सवर्ण प्रत्याशी उतार दें वो (सवर्ण) आरजेडी को वोट नहीं देते. इतना ही नहीं, ऐसा करने से उनके खुद का पुराना वोट बैंक ही कहीं नाराज न हो जाए. गठबंधन की सहयोगी पार्टी के वोट मिलने में भी रुकावटें आ सकती हैं. दूसरी ओर पार्टी में बगावत होने की संभावना भी बन सकती है क्योंकि जिन मौजूदा 36 विधायकों के टिकट काटे गए हैं वो अपनी लड़ाई लड़ने को तैयार हैं. बेशक वो चुनाव नहीं लड़ पाएं क्योंकि नामांकन की अंतिम तिथि समाप्त हो चुकी है. पर अपने अपने निर्वाचन क्षेत्रों में आरजेडी के प्रतिद्वंद्वी दलों या निर्दलीय प्रत्याशी के लिए प्रचार कर के मौजूदा प्रत्याशियों को नुकसान तो जरूर पहुंचा सकते हैं.

अनुसूचित जातियों को 20 और अनुसूचित जनजातियों के लिए एक सीट देने के साथ ही मल्लाह, तेली और कहारों से युक्त अति पिछड़ी जातियों के लिए 21 सीटों का आवंटन, मतदाताओं की बसावट की की गहरी समझ का संकेत देता है. बिहार जाति सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार की कुल आबादी में अत्यंत पिछड़ी जातियां 36 प्रतिशत हैं. तो अपने गठबंधन में इस विविधता को लाकर तेजस्वी केवल चुनावी सफलता का लक्ष्य नहीं रख रहे, वो बिहार की राजनीतिक कहानी को फिर से परिभाषित करने की कोशिश कर रहे हैं, एक ऐसी कहानी जो जाति और समुदाय की सीमाओं से परे है.

संक्षेप में कहें तो तेजस्वी के नेतृत्व में आरजेडी की यह रणनीति बिहार की राजनीतिक विकास में एक अहम मोड़ है. यह दिखाता है कि पार्टी न केवल अपने अतीत से सीखने को तैयार है बल्कि भारी जोखिम और संभावित विद्रोह के बड़े खतरों के बावजूद अपने विधानसभा सीटों के अनुसार ढलने का साहस रखती है. पिछले 35 सालों के दौरान हुए लगभग सभी चुनावों में आरजेडी सबसे बड़ी सिंगल पार्टी रही है. फिर भी 2005 से बिहार में सरकार नहीं बना पाई है. केवल एक बार 2015 में अपवाद रहा. तब नीतीश कुमार ने पाला बदलकर अपने पुराने दोस्त और प्रतिद्वंद्वी रहे लालू प्रसाद के साथ हाथ मिला कर एक नया महागठबंधन बनाया था, जिसमें जेडीयू और आरजेडी दोनों शामिल थे और वे बीजेपी को हराने में सफल रहे थे.

अब जबकि 2025 के चुनाव पास आ रहे हैं तो तेजस्वी की पार्टी एक दोराहे पर दिखती है. या तो वो अपनी पकड़ मजबूत करेगी या इस नई राजनीतिक माहौल में अपनी भूमिका को फिर से परिभाषित करेगी. अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने की इस जद्दोजहद में आरजेडी पीडीए गठबंधन के साथ सवर्ण जातियों को भी साथ लाने की जुगत में लगी है जो संभवतः इसकी सफलता की कुंजी हो सकती है और इससे न केवल उसकी किस्मत बदल सकती है बल्कि राजनीतिक पहचान के पूरे ताने बाने को भी बदल सकता है.

आरजेडी के 143 प्रत्याशियों का सामाजिक प्रतिनिधित्व 

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए आरजेडी कैंडिडेट्स की सूची उसके पुराने एमवाई समीकरण से आगे निकलने की एक झलक देती है.

यादव52
मुस्लिम18
कुशवाहा13
कुर्मी02
सवर्ण16 (7 राजपूत, 6 भूमिहार, 3 ब्राह्मण)
अनुसूचित जातियां20 (अनुसूचित जनजाति- 01)
अति पिछड़ा वर्ग (ईसीबी)21
कुलः 143
महिलाएंः24/143

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