पूरा पहाड़ ही खोद डाला... आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत ने बिहार के बल को याद दिलाया

आरएसएस सरसंघचालक ने बिहार से अपने पुराने संबंधों को याद करते हुए बताया कि वे यहां छह वर्षों तक क्षेत्रीय प्रचारक के रूप में कार्य कर चुके हैं.

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आरएसएस सरसंघचालक बिहार में संघ के कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत पांच दिवसीय दौरे पर बिहार में हैं. बुधवार को विमान से पटना पहुंचे और मुजफ्फरपुर के लिए रवाना हो गए. बृहस्पतिवार को सुपौल के बीरपुर अनुमंडल में ‘सरस्वती विद्या मंदिर' स्कूल के नए भवन के उद्घाटन पर उन्होंने कार्यक्रम को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बच्चों को भारत के गौरव के बारे में बताना चाहिए. इसी से उन्हें बल मिलेगा और वे भारत को नई ऊंचाइयों पर लेकर जाएंगे.

'आत्मविश्वास से भरा बच्चा हो'

मोहन भागवत ने कहा कि ये वो भारत है, जिसके 4-5 स्तंभ ऐसे हैं, जो 1000-1200 सालों से धूप, पानी, ठंडा सब खाते हुए भी खड़े हैं. जंग का एक कतरा इन पर नहीं लगा है. ऐसी फौलाद बनाने वाले थे कि आज भी वैसी फौलाद बनाना संभव नहीं है. ये गौरव हमें रास्ता दिखाएगा. अब ऐसा रास्ता दिखाने वाला भारतवर्ष खड़ा होना है तो उस भारतवर्ष के बच्चे को पता होना चाहिए कि हमारा भारतवर्ष ऐसा है. हमने ऐसा सूई-धागा निर्माण किया है. हमने ऐसा फौलाद बनाया है. हमने ऐसी खेती की है. आज भी वो कला हमारे पास है. इस कला के पीछे जो मानव है, वो मानव भी हमारे पास है. ये आत्मविश्वास लेकर चलने वाला भारत का बच्चा होना चाहिए. बच्चे को उसका पूर्व गौरव बताना चाहिए. शिक्षा में से ये बात मिलनी चाहिए.

आरएसएस सरसंघचालक ने बिहार से अपने पुराने संबंधों को याद करते हुए बताया कि वे यहां छह वर्षों तक क्षेत्रीय प्रचारक के रूप में कार्य कर चुके हैं. उन्होंने कहा कि जब भी बिहार आता हूं तो कई जगह जाने का मन करता है, लेकिन समय की कमी के कारण यह संभव नहीं हो पाता. जैसे छठ पर बिहार के रहने वाले सभी लोग वापस घर लौट आते हैं, ऐसा ही मुझे भी बिहार लौटकर महसूस होता है.

'कमाकर बांटने वाले की तारीफ'

मोहन भागवत ने आगे कहा कि ये देश ऐसा है कि अपने लिए जीने वालों का कोई मान-सम्मान नहीं है. राजा-महाराजा बहुत हुए हैं. सूची उनकी कोई रखता नहीं, सूची किसी ने रखी भी हो तो याद कोई रखता नहीं. इतिहास की परीक्षा होने तक जितना रटना चाहिए, उतना रटते हैं और फिर भूल जाते हैं. लेकिन 8000 साल पहले आज की गणना के अनुसार, एक राजा हुए, जिन्होंने पितृ वचन की खातिर राज-पाट त्यागकर वन का अंगीकार किया. उसकी कहानी नहीं, उसके जीवन के मानक आज भी प्रमाणिक हैं. धनपति बहुत हो रहे. बहुत होंगे आगे, हमारे यहां उनकी कहानियां नहीं बनती, पश्चिम में बनती हैं, आजकल भारत में भी लिखने लगे हैं लोग, लेकिन वो भी धन के लिए नहीं, उनके गुणों के लिए लिखते हैं. हमारे यहां पहले से एक कहानी प्रचलित है, जिसने अपनी गाढ़ी कमाई राणा प्रताप को स्वतंत्रता के युद्ध के लिए दे डाली. हमारे यहां दोनों हाथ से कमाने वाले बहुत लोग हैं और हमारा हर व्यक्ति ये पुरुषार्थ कर सकता है.

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आरएसएस सरसंघचालक ने कहा कि आज भी ऐसे अनेक उदाहरण हैं. पहाड़ के कारण घूमकर जाना पड़ता था, पूरा पहाड़ ही खोद डाला एक ही आदमी ने, ये दम रखने वाले लोग हैं हम. परंतु ये ऐसा इसलिए है कि वो जानते हैं कि दोनों हाथों से कमाना ठीक है, लेकिन कमाकर सौ हाथों से बांटना है. जिसने दे डाला, जो अब एक लंगोटी लेकर घूम रहा है, वो समाज में निकले तो बड़े-बड़े लोग उसका चरण स्पर्थ करते हैं. ये हमारे बच्चों को पता होना चाहिए. तब उनका जीवन धन्य हो जाएगा, उनके परिवार का जीवन धन्य हो जाएगा और वे अपने देश को इतना ऊंचा उठाएंगे कि अपने देश की छत्रछाया में सारी दुनिया सुख-शांति का एक नया मार्ग प्राप्त करेगी.        

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