राजनीतिक हलचल: कभी मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे राजेंद्र सिंह और मनीष वर्मा को नहीं मिला टिकट

अब सबकी निगाह इस बात पर है कि राजेंद्र सिंह और मनीष वर्मा आगे क्या रुख अपनाते हैं . क्या वे पार्टी लाइन पर बने रहेंगे या किसी नए राजनीतिक विकल्प की तलाश करेंगे. पढ़िए प्रभाकर कुमार और श्रुति की ये रिपोर्ट..

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  • बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता राजेंद्र सिंह और जदयू के मनीष वर्मा को टिकट नहीं मिला है.
  • राजेंद्र सिंह को पार्टी में संगठनात्मक मजबूती के लिए महत्वपूर्ण माना जाता था और मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे.
  • नीतीश कुमार के करीबी मनीष वर्मा माने जाते हैं, उन्हें भी जदयू ने टिकट नहीं दिया है.
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पटना:

बिहार की राजनीति में इन दिनों टिकट बंटवारे को लेकर मचे सियासी घमासान के बीच एक चौंकाने वाला मोड़ आया है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वरिष्ठ नेता राजेंद्र सिंह और जनता दल (यूनाइटेड) के मनीष वर्मा दोनों ऐसे नाम हैं, जिनके बारे में कभी राजनीतिक हलकों में मुख्यमंत्री पद के संभावित दावेदार के रूप में चर्चा होती थी, उन्हें ही इस बार विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिला है.

राजनीतिक गलियारों में यह फैसला कई सवाल खड़े कर रहा है. दोनों नेताओं की पार्टी में मजबूत पकड़ और लंबे समय से सक्रिय योगदान को देखते हुए यह माना जा रहा था कि उन्हें टिकट मिलने में कोई कठिनाई नहीं होगी, लेकिन जब प्रत्याशियों की अंतिम सूची जारी हुई, तो दोनों के नाम उसमें नदारद थे.

राजेंद्र सिंह का मामला क्या

भाजपा नेता राजेंद्र सिंह लंबे समय से पार्टी के संगठन से जुड़े रहे हैं और उन्हें प्रदेश स्तर पर एक अनुभवी नेता माना जाता है. पार्टी में उनका योगदान संगठनात्मक मजबूती और कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय के लिए जाना जाता है. पिछले कुछ वर्षों में राजेंद्र सिंह का नाम कई बार संभावित मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में उभरा था, खासकर तब जब पार्टी राज्य में अपने नेतृत्व को पुनर्गठित करने की प्रक्रिया में थी, लेकिन टिकट न मिलने के बाद उनके समर्थकों में निराशा का माहौल है. पार्टी सूत्रों का कहना है कि इस बार भाजपा "युवा चेहरों" और "नए सामाजिक समीकरणों" पर दांव लगा रही है. हालांकि, राजेंद्र सिंह ने अब तक कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है, लेकिन उनके करीबी सूत्रों के अनुसार, वे इस निर्णय से "आहत" हैं और भविष्य की राजनीतिक रणनीति पर विचार कर रहे हैं.

मनीष वर्मा का केस क्या

दूसरी ओर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले जदयू नेता मनीष वर्मा का टिकट कटना भी कम चर्चा का विषय नहीं है. मनीष वर्मा ने न सिर्फ पार्टी के भीतर प्रशासनिक नीतियों पर मजबूत पकड़ बनाई थी, बल्कि कई बार उन्हें “नीतीश के उत्तराधिकारी” के तौर पर भी देखा गया था. जानकारों का कहना है कि जदयू के हालिया समीकरणों में मनीष वर्मा की भूमिका सीमित होती जा रही थी. पार्टी अब नए चेहरों और सामाजिक संतुलन को प्राथमिकता दे रही है. वहीं, कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम जदयू की “पीढ़ी परिवर्तन” की रणनीति का हिस्सा हो सकता है.

अब आगे क्या करेंगे

दोनों नेताओं को टिकट न मिलने से बिहार के राजनीतिक हलकों में हलचल तेज है.विपक्षी दलों ने इसे "आंतरिक असंतोष" और "संगठनात्मक अस्थिरता" का संकेत बताया है.वहीं, भाजपा और जदयू के प्रवक्ताओं ने इसे “सामान्य चयन प्रक्रिया” बताते हुए कहा है कि पार्टी हर बार समीकरणों और क्षेत्रीय संतुलन को देखते हुए फैसला करती है।

अब सबकी निगाह इस बात पर है कि राजेंद्र सिंह और मनीष वर्मा आगे क्या रुख अपनाते हैं . क्या वे पार्टी लाइन पर बने रहेंगे या किसी नए राजनीतिक विकल्प की तलाश करेंगे. फिलहाल, दोनों नेताओं की चुप्पी से यह स्पष्ट है कि बिहार की राजनीति में आने वाले दिनों में और भी कई सियासी पन्ने खुल सकते हैं।

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