बिहार वोटर लिस्ट रिवीजनः 5 बड़े मुद्दों पर विपक्ष के सवाल Vs चुनाव आयोग के जवाब

विपक्षी दलों का आरोप है कि बिहार में इतनी बड़ी संख्या में वोटर हैं और चुनाव में ज्यादा वक्त नहीं बचा है, ऐसे में एक महीने में मतदाता सूची का गहन सत्यापन कैसे संभव हो पाएगा? विपक्ष ने वोटर लिस्ट रिवीजन की टाइमिंग पर भी सवाल उठाए हैं. जानें ऐसे ही 5 सवालों पर चुनाव आयोग के जवाब-

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  • बिहार में चुनाव से पहले मतदाता सूची के स्पेशल रिवीजन पर सियासत गरम है.
  • विपक्षी दलों के नेता एक महीने में सत्यापन पूरा कैसे होगा, जैसे सवाल उठा रहे हैं.
  • चुनाव आयोग ने 2003 का उदाहरण देकर सत्यापन की प्रक्रिया को संभव बताया है
  • विपक्ष के प्रमुख सवालों पर चुनाव आयोग की तरफ से जवाब दिए गए हैं.
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नई दिल्ली/पटना:

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग की तरफ से मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (special intensive revision)  के आदेश को लेकर सियासत गरम है. विपक्षी दल कई सवाल उठा रहे हैं. आरोप लगा रहे हैं कि ये मतदाताओं से वोट डालने का अधिकार छीनने की कोशिश है. इतनी बड़ी संख्या में वोटर हैं और चुनाव में ज्यादा वक्त नहीं बचा है, ऐसे में एक महीने में सत्यापन कैसे संभव हो पाएगा? विपक्ष ने वोटर लिस्ट रिवीजन की टाइमिंग पर भी सवाल उठाए हैं. ऐसे ही कई सवालों के चुनाव आयोग ने जवाब दिए हैं. 

1. एक महीने में सत्यापन पर

विपक्ष का सवालः चुनाव में ज्यादा समय नहीं है, इतने कम समय में सभी वोटरों तक पहुंचना और उनसे दस्तावेज लेना संभव नहीं है. वे जातिगत सर्वेक्षण का उदाहरण देते हैं और कहते हैं कि उस प्रक्रिया में 9 महीने लगे थे, इसलिए 25 दिनों में सभी मतदाताओं तक पहुंचकर उनका सत्यापन कैसे हो पाएगा?

चुनाव आयोग का जवाबः चुनाव आयोग का कहना है कि 2003 में 31 दिन में वोटर लिस्ट का सत्यापन हो गया था. फिलहाल 77 हजार 895 ब्लॉक लेवल ऑफिसर (BLO) लगाए गए हैं. वहीं 20 हजार 603 अतिरिक्त BLO को प्रतिनियुक्त किया जा रहा है. इससे मतदाताओं तक पहुंचना आसान होगा. साथ ही 1 अगस्त को ड्राफ्ट रोल के पब्लिश होने के बाद 1 सितम्बर तक आपत्तियां दर्ज की जा सकेंगी. ऐसे में लोगों के पास और समय होगा.

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2. वोटबंदी के आरोप पर

विपक्ष का आरोपः चुनाव आयोग मतदाताओं से वोट का अधिकार छीनने की कोशिश कर रहा है. नेट बंदी, देशबंदी (लॉकडाउन) के बाद वोट बंदी की जा रही है. 

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चुनाव आयोग का जवाबः आयोग ने साफ किया है कि यह पुनरीक्षण आवश्यक है क्योंकि मतदाता सूची एक जीवंत (डायनामिक) दस्तावेज़ है, जो मृत्यु, स्थानांतरण (रोजगार, शिक्षा, विवाह आदि कारणों से) तथा 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुके नए मतदाताओं के कारण लगातार बदलती रहती है.

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3. टाइमिंग के सवाल पर

विपक्ष का सवालः वोटर लिस्ट रिवीजन की टाइमिंग पर सवाल उठाते हुए विपक्ष ने कहा है कि अगर यह प्रक्रिया करनी ही थी तो इसे पहले शुरू करना चाहिए था. बिहार चुनाव से ठीक पहले पुनरीक्षण शुरू करना आयोग पर सवाल खड़े करता है.

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आयोग का जवाबः प्रत्येक चुनाव से पूर्व मतदाता सूची का रिवीजन जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21(2)(a) और निर्वाचक पंजीकरण नियमावली, 1960 के नियम 25 के अंतर्गत अनिवार्य है. भारत निर्वाचन आयोग बीते 75 वर्षों से यह वार्षिक पुनरीक्षण नियमित रूप से करता आ रहा है, कभी संक्षिप्त तो कभी गहन रूप में.

4. वोटरों के नाम कटने के आरोप पर

विपक्ष का आरोपः इस वोटर लिस्ट रिवीजन से करीब 2 करोड़ मतदाता वोटर लिस्ट से बाहर हो जाएंगे. वे अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाएंगे. खासतौर पर गरीब, पिछड़े, श्रमिक, दलित और अल्पसंख्यक वोटरों पर इसका खतरा है. 

चुनाव आयोग का जवाबः यह रिवीजन वैध मतदाताओं की पहचान सुनिश्चित करने के लिए है. आयोग का मकसद यह है कि कोई भी वोटर छूटे नहीं. आयोग ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार, केवल वही भारतीय नागरिक मतदाता बनने के योग्य हैं, जो 18 वर्ष से अधिक आयु के हों और संबंधित निर्वाचन क्षेत्र में सामान्य रूप से निवास करते हों.

5. सत्यापन के लिए जरूरी दस्तावेजों पर

विपक्ष का सवालः बिहार में एक बड़ी आबादी के पास आयोग द्वारा मांगे गए दस्तावेज नहीं हैं. ऐसे में वे वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा है कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-3) के मुताबिक, 2001 से 2005 के बीच जन्मे बच्चों में केवल 2.8 फीसदी के पास जन्म प्रमाण पत्र था. NFHS-2 के मुताबिक, आज 40 से 60 साल की उम्र के पुरुषों में 10 से 13 फीसदी ने हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी की है. अनुसूचित जाति के 80 फीसदी और अति पिछड़ी जाति के 75 फीसदी लोगों के पास जाति प्रमाण पत्र नहीं है. ऐसे में उनके सामने अपनी पहचान साबित करना बड़ी चुनौती होगी. 

चुनाव आयोग का जवाबः आयोग द्वारा तय 11 दस्तावेजों के जरिए अपने जन्म का प्रमाण दिया जा सकता है. अगर किसी मतदाता के पास यह 11 दस्तावेज भी नहीं हैं तो वह अन्य किसी दस्तावेज के जरिए इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ERO) को संतुष्ट कर लेता है तो वह मतदाता सूची में बना रहेगा.

बहरहाल बिहार और दिल्ली से बिहार के लोगों से बातचीत में जब पूछा गया कि उन्हें वोटर लिस्ट में अपने नाम की पुष्टि कराने में क्या-क्या दिक्कतें आ रही हैं तो उन्होंने कई वजहें गिनाईं. उन्होंने कहा कि लोगों को दस्तावेज जुटाने में वक्त लग रहा है. कई मतदाताओं का पता बदल गया है. कइयों की वोटर आईडी नई बनी है, ऐसे में 2003 की मतदाता सूची में नाम ढूंढ़ना भी मुश्किल हो रहा है.

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