प्राणपुर में बीजेपी की निशा सिंह की जीत, RJD को 7752 वोटों के अंतर से दी मात

बिहार विधानसभा की प्राणपुर सीट पर बीजेपी ने जीत हासिल की है. बीजेपी उम्मीदवार निशा सिंह ने राष्ट्रीय जनता दल की प्रत्याशी को कड़े मुकाबले में हराया. निशा सिंह को कुल 1,08,565 वोट मिले. उन्होंने आरजेडी की इशरत परवीन को 7,752 वोटों के अंतर से मात दी, जिन्हें 1,00,813 वोट प्राप्त हुए. इस करीबी मुकाबले में जीत दर्ज कर निशा सिंह ने प्राणपुर सीट बीजेपी के खाते में सुनिश्चित की.

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  • कटिहार जिले की प्राणपुर विधानसभा पूरी तरह से ग्रामीण क्षेत्र है और कोशी तथा महानंदा नदियों के किनारे बसी है
  • प्राणपुर की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है जिसमें धान, मक्का, जूट, दालें, केले और पान प्रमुख फसलें हैं
  • सीट पर भाजपा और एनडीए का दबदबा रहा है, विपक्षी महागठबंधन के मतभेद चुनाव परिणामों को प्रभावित करते रहे हैं
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बिहार विधानसभा की प्राणपुर सीट पर बीजेपी ने जीत हासिल की है. बीजेपी उम्मीदवार निशा सिंह ने राष्ट्रीय जनता दल की प्रत्याशी को कड़े मुकाबले में हराया. निशा सिंह को कुल 1,08,565 वोट मिले. उन्होंने आरजेडी की इशरत परवीन को 7,752 वोटों के अंतर से मात दी, जिन्हें 1,00,813 वोट प्राप्त हुए. इस करीबी मुकाबले में जीत दर्ज कर निशा सिंह ने प्राणपुर सीट बीजेपी के खाते में सुनिश्चित की.


बिहार के कटिहार जिले में स्थित प्राणपुर विधानसभा सीट (संख्या 66), सीमांचल की राजनीति में एक दिलचस्प और कांटे के मुकाबले वाली सीट है. 1977 में गठित यह सीट, कटिहार लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है और पूरी तरह से ग्रामीण चरित्र रखती है, जिसमें प्राणपुर और आजमनगर प्रखंड शामिल हैं.

यह क्षेत्र कोशी और महानंदा नदियों की तलहटी में बसा हुआ है, जिसकी वजह से जमीन अत्यंत उपजाऊ है, लेकिन हर साल आने वाली बाढ़ की आशंका भी बनी रहती है.

सीट की पहचान और प्रमुख मुद्दे

प्राणपुर की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से कृषि पर टिकी है, जहां धान, मक्का, जूट, दालें, केले और पान की खेती प्रमुखता से होती है. छोटे स्तर पर चावल मिलें और कृषि व्यापारिक केंद्र मौजूद हैं.

पिछले चुनाव और निर्णायक कारक

प्राणपुर सीट पर हालिया चुनावी इतिहास में बीजेपी (या एनडीए) का दबदबा रहा है, जिसका मुख्य कारण अक्सर विपक्षी महागठबंधन में मतभेद रहा है.

प्रभावशाली चेहरे: महेंद्र नारायण यादव और भाजपा के विनोद कुमार सिंह (जिनकी पत्नी निशा सिंह 2020 में जीतीं) इस सीट के सबसे प्रभावशाली राजनीतिक चेहरे रहे हैं.

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2020 का मुकाबला: 2020 में भाजपा की निशा सिंह ने कांग्रेस के तौकीर आलम को बेहद कम अंतर से हराया, जिससे पता चलता है कि यह मुकाबला कितना करीबी था.

एनडीए की जीत का रहस्य: मुस्लिम मतदाता बहुल होने के बावजूद भाजपा की जीत लगातार इस बात पर निर्भर करती रही है कि क्या महागठबंधन में मतभेद हैं और क्या वह मुस्लिम वोटों को अपने पक्ष में बिखेरने में कामयाब होता है.

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लोकसभा चुनाव 2024: बदलते रुझान का संकेत

लोकसभा चुनावों में यह सीट आमतौर पर विपक्षी गठबंधन के पक्ष में रही है.

2019: जदयू के दुलाल चंद्र गोस्वामी को यहां 2,913 वोटों की मामूली बढ़त मिली थी.

2024: कांग्रेस के तारिक अनवर ने जदयू के दुलाल चंद्र गोस्वामी को 11,383 वोटों से पछाड़कर यहां बड़ी बढ़त हासिल की.

2024 के लोकसभा परिणाम ने मतदाता रुझानों में संभावित बदलाव के संकेत दिए हैं और यह दर्शाया है कि अगर विपक्ष एकजुट हो जाए तो सीट का रुख बदल सकता है.

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माहौल क्या है?

प्राणपुर में 2025 का विधानसभा चुनाव कांटे की टक्कर होने की पूरी संभावना है.

भाजपा की चुनौती: भाजपा को अपनी सीट बचाने के लिए अपने मजबूत संगठन, कोर वोट बैंक और उम्मीदवार की व्यक्तिगत पकड़ पर निर्भर रहना होगा. 47% मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट होने से रोकना उनकी सबसे बड़ी रणनीति होगी.

महागठबंधन की उम्मीद: 2024 के लोकसभा परिणाम (11,383 वोटों की बढ़त) ने महागठबंधन को नई ऊर्जा दी है. अगर कांग्रेस/महागठबंधन एक मजबूत, सर्वमान्य उम्मीदवार उतारती है और मुस्लिम-यादव समीकरणों को साध पाती है, तो यह सीट बीजेपी से छीनना संभव है.

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फैसले के कारक: आने वाले चुनावों में जातीय समीकरणों के साथ-साथ, पलायन की समस्या, स्थानीय विकास की कमी और उम्मीदवार की व्यक्तिगत पहुंच ही जीत-हार का फैसला करेगी.

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