बिहार- वक़्फ़ पर राजनीति तेज़, तेजस्वी के बयान को मिला लेफ़्ट-कांग्रेस का साथ, BJP ने कहा 'मूर्खता पूर्ण बयान'

तेजस्वी यादव के वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम को "कूड़ेदान में फेंक दिया जाएगा के बयान पर बिहार के लगभग सभी राजनीतिक दलों ने प्रतिक्रिया दी है. पढ़ें कौन क्या कह रहा है और आखिर वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम को लेकर क्या हैं आपत्तियां?

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  • वक़्फ़ में संशोधन पर तेजस्वी के बयान पर बिहार में राजनीतिक घमासान मचा हुआ है. पार्टियां बयानबाजी कर रही हैं.
  • बीजेपी तेजस्वी के बयान को मूर्खतापूर्ण बता रही है, तो कांग्रेस ने डिप्टी CM मुसलमान को बनाने का राग छेड़ा है.
  • एनडीए हमलावर है पर महागठबंधन के अहम दलों ने कहा है कि "वक़्फ़ पर तेजस्वी के रुख़ का हम पूरा समर्थन करते हैं."
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बिहार विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान इंडिया ब्लॉक (महागठबंधन) के मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी तेजस्वी यादव ने रविवार को कहा कि अगर उनका गठबंधन सत्ता में आता है तो वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम को "कूड़ेदान में फेंक दिया जाएगा." बिहार में विधानसभा चुनाव की वजह से राजनीति अपने चरम पर है और तेजस्वी के इस बयान को लेकर लगभग सभी दलों ने प्रतिक्रिया दी हैं. तेजस्वी के इस बयान को महागठबंधन की सहयोगी वाम पार्टी और कांग्रेस के नेताओं का साथ मिला है तो एनडीए के घटक दल उन पर हमलावर हैं, उनका कहना है कि राज्य के मुख्यमंत्री को केंद्र के बनाए क़ानून को रद्द करने का अधिकार नहीं है लिहाजा तेजस्वी लोगों को गुमराह कर रहे हैं.

तेजस्वी वक़्फ़ (संशोधन) क़ानून 2025 के ख़िलाफ़ पहले भी मुखर रहे हैं. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक के क़ानून बनने से कुछ दिन पहले (26 मार्च 2025 को) इसके विरोध में प्रदर्शन किया था. तेजस्वी यादव ने उसमें भाग लिया था और उसे ग़ैर-संवैधानिक बिल, अलोकतांत्रिक बिल बताते हुए पुरज़ोर विरोध किया था. साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि संसद में विधानसभा और विधान परिषद में भी उनकी पार्टी ने वक़्फ़ संशोधन विधेयक का विरोध किया था.

ठीक एक दिन पहले ही तेजस्वी की पार्टी आरजेडी के विधान परिषद के सदस्य एमएलसी अब्दुल कारी सोहैब ने भी वक़्फ़ अधिनियम की धज्जियां उड़ाई थीं. उन्होंने वक़्फ़ क़ानून को “टुकड़े-टुकड़े कर फेंकने” की धमकी दी थी. तो बिहार के मुस्लिम बहुल कटिहार से कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री तारिक अनवर ने भी तेजस्वी का समर्थन किया. उन्होंने कहा, "वक़्फ़ पर तेजस्वी के रुख़ का हम पूरा समर्थन करते हैं. कांग्रेस हमेशा इस संशोधन का विरोध करती रही है. उन्होंने यह भी कहा कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री जैसे बीजेपी विरोधी अन्य प्रमुख नेताओं ने भी इसका विरोध किया है. वहीं कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने कहा कि 2029 में अगर केंद्र में कांग्रेस और इंडिया गठबंधन की सरकार बनी तो पहला क़दम वक़्फ़ क़ानून को ख़त्म करना होगा. इतना ही नहीं हम ऐसे सभी क़ानूनों को ख़त्म करेंगे जिसका मक़सद मुसलमानों के प्रति दुश्मनी है.

उधर, बिहार में कांग्रेस के चुनाव प्रभारी कृष्णा अल्लावरु ने एक वेबसाइट के इंटरव्यू में कहा कि अगर महागठबंधन की सरकार बनी तो एक डिप्टी सीएम मुसलमान होगा.
तेजस्वी के इस बयान को महागठबंधन के उनके सहयोगी सीपीआईएमएल के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य का साथ मिला, जिन्होंने कहा कि अगर इंडिया ब्लॉक (महागठबंधन) विधानसभा चुनाव जीत कर सत्ता में आती है तो बिहार में विवादास्पद वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम को नाकाम कर दिया जाएगा.

तेजस्वी के बयान पर एनडीए हमलावर

उधर बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि "यह क़ानून संसद में पारित हुआ है जिसमें संसद ही कुछ बदलाव कर सकता है, इस मूर्खता पर क्या कहा जाए. तेजस्वी जनता को गुमराह कर रहे हैं."
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने तो तेजस्वी पर सीधा हमला किया और कहा कि "तेजस्वी इस बार राघोपुर से हारेंगे और मुख्यमंत्री बनने का सपना टूट जाएगा."
उन्होंने यह भी कहा, "तेजस्वी इस मुद्दे पर राजनीति कर रहे हैं. अगर वे इस पर बयानबाजी करेंगे, तो यह अल्पसंख्यक समाज के साथ अन्याय होगा. आपकी सरकार आने वाली नहीं है, और आप यह बिल फाड़ भी नहीं पाएंगे.”
कल्कि धाम के पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम ने तो यहां तक कह दिया कि अगर तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बने तो बिहार में शरिया कानून लागू करा देंगे.
बीजेपी के ओबीसी मोर्चे के महासचिव निखिल आनंद ने तेजस्वी की मानसिकता को ख़तरनाक बताते हुए इसे मुसलमानों को गुमराह करने वाला बताया और साथ ही कहा कि वो अपने मंसूबे में सफल नहीं होंगे.

वक़्फ़ संशोधन अधियनम 2025 कब बना?

बता दें कि वक़्फ़ संशोधन विधेयक 2 अप्रैल, 2025 को लोकसभा में पास हुआ. बिल के पक्ष में 288 और इसके विरोध में 232 वोट पड़े. एक दिन बाद संसद के उच्च सदन से भी यह पारित हो गया. राज्यसभा में इसके पक्ष में 128 तो विपक्ष में 95 वोट पड़े. दोनों सदनों से इस बिल के पारित होने के बाद 5 अप्रैल 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी अपनी मंज़ूरी दे दी और इसके साथ ही यह क़ानून बन गया.

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वक़्फ़ संशोधन अधिनियम पर क्यों है आपत्तियां?

वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम 2025 में ऐसी कोई भी संपत्ति (ज़मीन) जो पहले से सरकार के क़ब्ज़े में है और अगर वक़्फ़ बोर्ड ने भी उस पर अपना दावा रखा, तो यह (दावा) उस ज़िले के डीएम यानी ज़िलाधिकारी के विवेक पर निर्भर करेगा. ऐसी संपत्तियों में डीएम के अधिकार को लेकर ही सबसे बड़ी आपत्ति है.

ऐसी ज़मीन पर ज़िलाधिकारी सरकार के क़ब्ज़े वाली ज़मीन पर वक़्फ़ के दावे को लेकर अपनी रिपोर्ट सरकार को भेज सकते हैं. उनकी रिपोर्ट के मुताबिक अगर उस संपत्ति को सरकारी संपत्ति मान लिया गया, तो राजस्व रिकॉर्ड में वह हमेशा के लिए सरकारी संपत्ति के रूप में दर्ज हो जाएगी.

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वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम 2025 में वक़्फ़ बोर्ड के सर्वे के अधिकार को समाप्त कर दिया गया है, यानी वो किसी भी ज़मीन को लेकर सर्वे नहीं कर सकेगा कि वो वक़्फ़ की है या नहीं.

इसके अलावा वक़्फ़ काउंसिल के नए स्वरूप को लेकर भी आपत्तियां हैं. पहले वक़्फ़ काउंसिल के सभी सदस्य मुसलमान होते थे जिसमें संशोधन कर इसमें दो ग़ैर-मुस्लिम सदस्यों का प्रावधान किया गया है. साथ ही काउंसिल के मुस्लिम सदस्यों में दो महिलाओं (मुसलमान) का होना अनिवार्य किया गया है. साथ ही शिया, सुन्नी के अलावा अन्य मुसलमान समुदायों बोहरा और आगाखानी के लिए अलग से बोर्ड बनाने की बात भी है. फ़िलहाल, उत्तर प्रदेश और बिहार में ही शिया वक़्फ़ बोर्ड मौजूद हैं.

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सुप्रीम कोर्ट की कुछ प्रावधानों पर रोक

इन आपत्तियों को लेकर और वक़्फ़ (संशोधन) क़ानून पर रोक लगाने की मांग को लेकर मुसलमान पक्ष की तरफ़ से 100 से अधिक लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने वक़्फ़ संशोधन अधिनियम 2025 पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने पूरे क़ानून पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कुछ धाराओं पर सुरक्षा की ज़रूरत बताई. सर्वोच्च अदालत ने कहा कि राज्य वक़्फ़ बोर्ड में ग़ैर मुस्लिम सदस्यों की संख्या तीन और केंद्रीय वक़्फ़ काउंसिल में इसकी संख्या चार से अधिक नहीं हो सकती. इसके अलावा कोर्ट ने उस धारा पर भी रोक लगा दी जिसके तहत डीएम को यह तय करने का अधिकार दिया गया था कि वक़्फ़ घोषित की गई संपत्ति सरकारी है या नहीं.
अदालत ने कहा कि डीएम को नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकारों पर निर्णय देने की इजाज़त नहीं दी जा सकती. यह सेपरेशन ऑफ़ पावर्स के सिद्धांतों का उल्लंघन होगा.

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