- बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन का मुद्दा गरमाया है
- आरजेडी और कांग्रेस ने बीजेपी पर आरोप लगाया कि वह वोटर सूची से लोगों को हटाने की कोशिश कर रही है
- चुनाव आयोग ने इसे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए आवश्यक बताया है और प्रक्रिया की समयसीमा निर्धारित की है
- विपक्ष का कहना है कि वोटर लिस्ट में बदलाव से गरीब और दलित वोटरों को नुकसान होगा
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अब बस कुछ महीने बाकी रह गए हैं और राज्य में वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन का मुद्दा गरमाया हुआ है. आरजेडी-कांग्रेस के सवाल पर बीजेपी ने विपक्ष पर ही सवाल उठाए है. वहीं, NDA इसे पारदर्शिता की दिशा में जरूरी कदम बता रहा है. चुनाव आयोग ने इसे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए आवश्यक बताया है.
वोटर लिस्ट के आंकड़े और विवाद
बिहार में कुल मतदाताओं की संख्या करीब 7.89 करोड़ है. इनमें से 4.96 करोड़ मतदाताओं के नाम 2003 की वोटर लिस्ट में शामिल हैं. शेष 4.74 करोड़ मतदाताओं को अपनी पहचान साबित करनी होगी, जो कुल वोटरों का 60% से ज्यादा है. विपक्ष का आरोप है कि इस प्रक्रिया के जरिए इन 4.74 करोड़ वोटरों को सूची से हटाने की साजिश रची जा रही है.
विपक्ष के आरोप: 'लोकतंत्र पर खतरा'
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव इसे 'बैक डोर से NRC' लागू करने की कोशिश बता रहे हैं. उनका दावा है कि 25 दिन में 8 करोड़ वोटरों की जांच संभव नहीं है और यह प्रक्रिया गरीब, दलित, और मुस्लिम वोटरों को निशाना बनाने की साजिश है. कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने भी इसे लोकतंत्र पर चोट बताया, जबकि AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने मौलिक अधिकारों के हनन की आशंका जताई. विपक्षी महागठबंधन इस मुद्दे पर एकजुट होकर विरोध जता रहा है. पटना में महागठबंधन के नेताओं ने कहा कि चुनाव आयोग मुलाकात के लिए टाइम देने को तैयार नहीं है. तेजस्वी ने तो आयोग को 'मिस्टर इंडिया' तक कह डाला. हालांकि, दिल्ली में महागठबंधन समेत 11 पार्टियों के नेताओं ने चुनाव आयोग से मुलााकात की. लेकिन आरोप है कि आयोग ने उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया.
चुनाव आयोग की शर्तें और विपक्ष का विरोध
चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट की जांच के लिए 25 जून से शुरू होने वाली प्रक्रिया का जो शेड्यूल जारी किया है, उसके मुताबिक़ 25 जून से 24 जुलाई तक दावे-आपत्तियां दर्ज होंगी, 26 जुलाई तक डोर-टू-डोर सर्वे होगा, और 2 अगस्त तक आपत्तियों का निपटारा होगा. अंतिम वोटर लिस्ट 30 सितंबर को जारी होगी. विपक्ष का कहना है कि यह समयसीमा अपर्याप्त है, खासकर समाज के पिछड़े तबकों और 37% प्रवासी आबादी के लिए, जिन्हें दस्तावेज जुटाने में मुश्किल होगी.
आयोग की कुछ शर्तें भी विवाद का केंद्र
- 2003 की वोटर लिस्ट में नाम होने पर नाम और तस्वीर वाला पन्ना जमा करना होगा
- 38 साल से अधिक उम्र वालों को जन्मतिथि और जन्मस्थान का प्रमाण देना होगा
- 20 से 38 साल और 18 से 20 साल की उम्र वालों को अपना और माता-पिता का जन्म प्रमाणपत्र देना होगा
- विपक्ष का दावा है कि ये शर्तें उनके वोटबैंक को कमजोर करने की साजिश हैं, क्योंकि गरीब और कमजोर तबकों के लिए ये दस्तावेज जुटाना मुश्किल है
NDA का जवाब: 'पारदर्शिता जरूरी'
NDA ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि वोटर लिस्ट में पारदर्शिता जरूरी है. बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने तंज कसते हुए कहा कि जिनके राज में बूथ कैप्चरिंग और हिंसा आम थी. उन्हें अब निष्पक्षता से परेशानी हो रही है. उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेताओं ने विपक्ष को समझदारी की सलाह दी.
पहले भी हो चुकी है ऐसी जांच
यह पहली बार नहीं है जब वोटर लिस्ट की ऐसी जांच हो रही है. 2003 में बिहार में घुसपैठियों के नाम वोटर लिस्ट में शामिल होने की शिकायत के बाद ऐसी कवायद हुई थी. 2024 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले भी इसी तरह की जांच हुई, जिसे कांग्रेस ने पक्षपातपूर्ण बताया. अब चुनाव आयोग पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु, और पुडुचेरी में भी ऐसी जांच की योजना बना रहा है, जिसके 2025 के अंत तक शुरू होने की संभावना है.
अब आगे क्या?
बिहार में वोटर लिस्ट की जांच का चुनावी असर क्या होगा, यह तो समय बताएगा, लेकिन विपक्ष की मोर्चाबंदी से साफ है कि यह सियासी जंग जल्द थमने वाली नहीं. पटना से शुरू हुआ यह विवाद दिल्ली तक पहुंच चुका है. विपक्ष का कहना है कि वह इस मुद्दे को जनता के बीच ले जाएगा, जबकि NDA के नेता इसे विपक्ष को सता रहे हार का डर बता रहे हैं. आरोप-प्रत्यारोप के बीच इतना तो तय है कि बिहार की सियासत में यह मुद्दा कम से कम विधानसभा चुनाव तक तो ज़रूर छाया रहेगा.