क्या बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले साल की अपनी ग़लतियों से सबक़ सीखकर इस बार हर कदम फूंक-फूंक कर रख रहे हैं? यह सवाल पिछले एक हफ़्ते के दौरान उनके निर्णय और कदमों से लगातार उनके आलोचक पूछ रहे हैं. ख़ासकर नीतीश कुमार ने रविवार को मैराथन बैठक के बाद जैसे प्रवासी बिहारियों से बार-बार जल्द से जल्द वापस आने की अपील की उससे तो यही लगा कि उन्होंने इस बार पिछले साल के तुलना में ग़लतियों को ना दोहराने का प्रण लिया है.
रविवार को अपना फ़ैसला सुनाने के पहले, शनिवार को राज्यपाल द्वारा बुलाइ गई सर्वदलीय बैठक में नीतीश कुमार ने सभी दलों के नेताओं को सुना और कई सुझावों को तुरंत अमल में भी लाए. सबसे बड़ी बात यह है पिछले साल मीडिया से दूरी बनाने के कारण पूरे देश में सूचना के शिकार हुए नीतीश, इस बार हर फ़ैसले की जानकारी ख़ुद मीडिया को विस्तार से देते हैं. और साथ में स्वास्थ्य मंत्री को भी बोलने का मौक़ा देते हैं. जबकि पिछले साल स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को मीडिया से दूरी बनाये रखने की सलाह दो गई. साथ ही जो डिजिटल संवादाता सम्मेलन, मुख्यमंत्री के सचिव और अन्य सचिव स्तर के अधिकारी करते थे वह भी स्थानीय अख़बारों में सिमट कर रह जाता था. इस बार सभी प्रधान सचिव स्तर के अधिकारी फ़ोन का जवाब भी देते हैं.
बिना पूर्ण लॉकडाउन लगाए नीतीश कुमार ने जैसे रात का कर्फ़्यू और सार्वजनिक कार्यक्रम पर पाबंदी की घोषणा की हैं. कई सारी रियायते भी दी हैं, उससे लग रहा हैं कि उन्हें इस बात का फ़ीड्बैक हैं कि आम लोग इस बार पूर्ण तालाबंदी के समर्थन में नहीं हैं.
हालांकि नीतीश ने माना है कि जांच की रिपोर्ट समय पर ना आने से बीमारी का प्रसार अधिक होता है. ऐसे में उनकी असल चुनौती स्वास्थ्य सेवाओं को चुस्त-दुरुस्त रखने की है. फ़िलहाल यहां पहले भी कई बार उनके दावे हवा हवाई साबित हुए हैं.