मुझे इडली नहीं खाना है… ऐसा क्यों बोले मुकेश सहनी, बिहार में जातिवाद पर दिया बड़ा बयान

मुकेश सहनी ने कहा कि हमारे भी बच्चे का पढ़-लिखकर कलेक्टर बनने का सपना है. आज पूरे बिहार में 11% पॉपुलेशन होने के बाद भी एक भी फिशरमैन कलेक्टर नहीं है.

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“बिहार का चुनावी जायका” शो में मुकेश सहनी का अलग अंदाज दिखा.
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  • मुकेश सहनी ने बताया कि चुनाव में वोट संख्या या जीत-हार से ज्यादा मायने गठबंधन की रणनीति और आंदोलन की होती है.
  • वो फिशरमैन कम्युनिटी को बिहार में एससी का दर्जा दिलाने की लड़ाई लड़ रहे हैं और इसके लिए राजनीतिक पार्टी बनाई.
  • सहनी को बिहार के मल्लाह समुदाय के समर्थन के कारण महागठबंधन ने डिप्टी सीएम पद का कैंडिडेट बनाया है.
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NDTV के खास शो “बिहार का चुनावी जायका” में महागठबंधन की ओर से घोषित डिप्टी सीएम पद के उम्मीदवार और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के मुखिया मुकेश सहनी पहुंचे तो इडली-चोखा में फंस गए. बात को संभालने के लिए उन्होंने यहां तक कह दिया कि ...तो मुझे इडली नहीं खाना. बिहार में जाति की पॉलिटिक्स पर भी मुकेश सहनी ने अपनी बात रखी.  साथ ही उनको डिप्टी सीएम बनाए जाने के कारणों को लेकर भी स्पष्ट बात की. 

इडली का क्या मामला

“बिहार का चुनावी जायका” में मुकेश सहनी के सामने इडली पेश किया गया. रिपोर्टर ने मुकेश सहनी को बताया कि इडली की खासियत ये है कि इडली चोखा के साथ भी जा सकता है और सांभर के साथ भी. क्या बिहार के पॉलिटिशियंस के साथ भी ऐसा ही है? क्या वो किसी भी अलायंस के साथ जा सकते हैं? क्या बिहार के पॉलिटिशियंस इडली की तरह हैं?  मुकेश सहनी ने तपाक से जवाब दिया-नहीं, ये ऐसी बात नहीं है. सिचुएशन होता है. अभी हम लोग विचार से बंधे हुए हैं. फिर हंसते हुए बोले कि अगर ऐसी बात है तो फिर मुझे इडली नहीं खाना है. इडली के साथ कोई डील तो नहीं है ना? 

डिप्टी सीएम कैंडिडेट कैसे बने

महागठबंधन ने उन्हें डिप्टी सीएम क्यों घोषित किया के सवाल पर मुकेश सहनी ने कहा, "देखिए, चुनाव में आपके पास कितना वोट आता है, वह मायने नहीं रखता है. दूसरी बात है कि आप चुनाव जीतते या हारते हैं, वो भी मायने नहीं रखता है. चुनाव में दो ही चीज होती है- हार या जीत. बिहार में मैंने एक आंदोलन से अपनी एक पॉलिटिकल पार्टी बनाई. पूरे बिहार की फिशरमैन कम्युनिटी मल्लाह जाति के 22 अलग-अलग नामों से जानी जाती है. इनका 11% वोट शेयर है और ये वोट बीजेपी या जेडीयू के साथ जुड़ा हुआ था. मेरी लड़ाई है कि फिशरमैन कम्युनिटी (मल्लाह) को एससी का दर्जा मिलना चाहिए, क्योंकि बंगाल में ये एससी में हैं. दिल्ली में भी एससी दर्जा है, लेकिन बिहार में नहीं है. बिहार में हम ओबीसी में हैं. तो मेरी लड़ाई है कि जब देश एक है, संविधान एक है तो मेरे साथ ये भेदभाव क्यों हो रहा है? क्योंकि हमारे भी बच्चे का पढ़-लिखकर कलेक्टर बनने का सपना है. आज पूरे बिहार में 11% पॉपुलेशन होने के बाद भी एक भी फिशरमैन कलेक्टर नहीं है. तो हम लड़ाई लड़ रहे हैं कि पहले बिहार, बंगाल, उड़ीसा, झारखंड पहले एक ही राज्य हुआ करता था, लेकिन समय के अनुकूल राज्य को किया गया, लेकिन जाति तो एक ही है. समाज एक ही है. इसके लिए हमने लड़ाई लड़ी और पूरे बिहार के निषाद हमसे कनेक्ट हैं. अपने बच्चे के भविष्य के लिए लड़ाई लड़ने के लिए मेरे साथ खड़े हैं.  हमने 2018 में पॉलिटिकल पार्टी बनाई और अभी हमें ज्यादा सीट सहयोगी दल से लड़ने के लिए नहीं मिल रहा है. जब से हमने पार्टी बनाई, तब से मैं गठबंधन की ही राजनीति कर रहा हूं."

क्या बिहार जातिवाद में फंस गया

क्या बिहार जाति के चक्कर में फंस गया है और इसी वजह से डेवलपमेंट कोई मुद्दा नहीं है के सवाल पर मुकेश सहनी ने कहा, "नहीं. देखिए, आप इसको इस तरीके से ले रहे हैं. जो लोग पावर में आते हैं, वो अपने लिए अपने कास्ट के लिए अपने लोगों के लिए सोचते हैं. कुछ लोगों को, कुछ जाति को, कुछ धर्म के लोगों को इग्नोर करते हैं. तो यहां पर लोगों में असंतोष पैदा होता है और फिर वह एक क्लस्टर बनाकर अपने अधिकार के लिए लड़ाई लड़ते हैं."

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