मनिहारी सीट परिणाम: कांग्रेस के मनोहर प्रसाद सिंह ने लगातार चौथी बार दर्ज की जीत, जेडीयू उम्‍मीदवार को हराया

कांग्रेस के मनोहर प्रसाद सिंह ने जेडीयू के शंभु कुमार सुमन को 15168 मतों से शिकस्‍त दी है. इस सीट पर तीसरे स्‍थान पर जन सुराज पार्टी के बबलू सोरेन रहे.

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  • बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों में एनडीए गठबंधन एक बार‍ फिर सत्ता में वापसी करने में सफल रहा है.
  • कटिहार जिले की मनिहारी सीट पर कांग्रेस के मनोहर प्रसाद सिंह ने जेडीयू के शंभु कुमार सुमन को हराया.
  • मनोहर प्रसाद सिंह को 1,14,754 वोट मिले जबकि जेडीयू उम्‍मीदवार को 99,586 मत मिले.
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बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों में एनडीए गठबंधन एक बार‍ फिर सत्ता में वापसी करने में सफल रहा है. गठबंधन ने जबरदस्‍त जीत दर्ज की है. हालांकि कटिहार जिले की मनिहारी विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की है. इस सीट पर कांग्रेस के मनोहर प्रसाद सिंह ने जेडीयू के शंभु कुमार सुमन को 15168 मतों से शिकस्‍त दी है. इस सीट पर तीसरे स्‍थान पर जन सुराज पार्टी के बबलू सोरेन रहे. मनोहर प्रसाद सिंह को 1,14,754 वोट मिले जबकि जेडीयू उम्‍मीदवार को 99,586 मत मिले. वहीं बबलू सोरेन को महज 7647 मतों से संतोष करना पड़ा. बिहार चुनाव के दूसरे चरण में मनिहारी में मतदान हुआ. सीट पर 80.02 फीसदी मतदान हुआ है. 

कटिहार जिले के दक्षिण-पूर्वी कोने में स्थित यह सीट अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित है. गंगा नदी के किनारे बसे क्षेत्र की भौगोलिक बनावट और सामाजिक संरचना इसे बाकी विधानसभा क्षेत्रों से अलग बनाती है. 

ये रहा है सियासी गणित 

राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो मनिहारी विधानसभा की स्थापना 1951 में हुई थी और अब तक यहां 17 बार चुनाव हो चुके हैं. इनमें कांग्रेस ने सात बार जीत दर्ज की है, जबकि समाजवादी विचारधारा वाले विभिन्न दलों ने कुल मिलाकर दस बार बाजी मारी है. 2008 के परिसीमन के बाद जब इस सीट को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित किया गया, तब से लेकर अब तक कांग्रेस के मनोहर प्रसाद सिंह यहां लगातार तीन बार से विधायक हैं. 2010, 2015 और 2020 के चुनाव में उनकी जीत के बाद अब 2025 में भी उन्‍होंने जीत दर्ज की है. यह बताता है कि मनिहारी में उनका राजनीतिक आधार बेहद मजबूत है. मनोहर प्रसाद सिंह ने एमए तक पढ़ाई की है और उनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं है. 

जातीय समीकरण से प्रभावित होते चुनाव 

मनिहारी की चुनावी तस्वीर में मुस्लिम मतदाताओं की अहम भूमिका रही. इसके साथ ही यादव, ब्राह्मण और पासवान समुदाय भी संख्या में अच्छी खासी मौजूदगी देखने को मिलती है. यह उन गिनी-चुनी सीटों में से है, जहां समाजवादियों ने शुरुआती दौर में अपना प्रभुत्व स्थापित किया था, जबकि उस वक्त कांग्रेस का पूरे राज्य में वर्चस्व था. 1952 से लेकर 2006 तक के चुनावी इतिहास में कई नामचीन चेहरे उभरे, जैसे युवराज, राम सिपाही यादव, मुबारक हुसैन और विश्वनाथ सिंह, जिन्होंने अलग-अलग पार्टियों से जीत दर्ज की.

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