मधेपुरा विधानसभा सीट पर जीत-हार को लेकर क्यों सभी की निगाहें? एनडीए ने साधे हैं चौंकाने वाले समीकरण

इस बार के चुनाव में जनता के बीच विकास के दावे , बेरोजगारी,  रोजगार के अभाव में पलायन , भ्रष्टाचार के मुद्दे रहें है. चुनावी समर में इस बार ऐसा देखने को मिल रहा है.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • मधेपुरा विधानसभा सीट पर राजद और जदयू के बीच सीधी टक्कर है, जहां यादव-मुस्लिम गठबंधन का बड़ा प्रभाव रहा है
  • इस बार एनडीए ने पहली बार गैर यादव उम्मीदवार गैर यादव को मैदान में उतारकर राजद के लिए चुनौती बढ़ाई है
  • कुल 345118 मतदाताओं में महिला मतदाता की संख्या पुरुषों से कम होने के बावजूद उनकी वोटिंग प्रतिशत अधिक रही है
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।

मतगणना का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, राजनीतिक हलचलें तेज होने के साथ समर्थक अपने अपने प्रत्याशी के जीत का दावा कर रहे हैं. इसी कड़ी में बिहार की हॉट सीटों की फेहरिस्त में शामिल मधेपुरा विधानसभा सीट पर सबकी निगाहें टिकी हैं. इस सीट पर राजद प्रत्याशी और जदयू प्रत्याशी के बीच सीधी टक्कर है.  इस सीट से वर्तमान में राजद के प्रो. चंद्रशेखर विधायक हैं. वे महागठबंधन सरकार में शिक्षा मंत्री भी रह चुके हैं. मधेपुरा को लेकर एक कहावत प्रचलित है 'रोम पोप का और मधेपुरा गोप का, क्योंकि यहां यादव वोटर की आबादी काफी ज्यादा है.  यादव-मुस्लिम के गठजोड़ से यह सीट राजद का गढ़ बन चुकी है. पिछले चुनाव में आरजेडी के प्रो. चंद्रशेखर ने जेडीयू के निखिल मंडल को करारी शिकस्त दी थी.

यादव प्रत्याशी को ही मिली जीत

मधेपुरा विधानसभा सीट पर हमेशा से ही यादव समुदाय का दबदबा कायम रहा है. 1957 से गौर करें तो तब से लेकर अब तक के विधानसभा चुनावों में केवल यादव समुदाय के उम्मीदवारों को ही जीत मिली है. इसके अलावा लोकसभा चुनावों में भी यादव उम्मीदवारों का दबदबा देखने को मिला है. लालू प्रसाद यादव, शरद यादव और पप्पू यादव की वजह से मधेपुरा हमेशा चर्चा का केंद्र बिन्दु रहा है.  इस सीट से राजद से प्रो. चन्द्रशेखर 2010, 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की है. पिछले चुनावी परिणाम पर अगर हम गौर करें तो यादव बाहुल्य सीट होने के कारण इस सीट पर ज्यादातर यादव नेता का ही दबदबा रहा है. 1977 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के जय कृष्ण यादव, 1980 के चुनाव में जनता दल से राधाकांत यादव, 1985 में कांग्रेस के भोला प्रसाद यादव, 1990 में जनता दल के राधाकांत यादव और 1995 में जनता दल के परमेश्वरी प्रसाद निराला यहां से चुनाव जीतकर विधायक बने. इसके बाद 2000 में RJD के राजेंद्र प्रसाद यादव और 2005 में JDU के मनिंद्र कुमार मंडल  यहां से जीते थे. लेकिन 2010 में राजद ने फिर से वापसी कर अभी तक इस सीट पर अपना कब्जा जमा रखा है. 

पहली बार गैर यादव प्रत्याशी 

इस बार मधेपुरा विधानसभा सीट इस कारण भी काफी सुर्खियों में है कि यादव का गढ़ माने जाने वाले क्षेत्र से पहली बार यादव उम्मीदवार को दरकिनार करते हुए एनडीए ने इस सीट पर गै यादव को चुनावी मैदान में उतार कर न सिर्फ ऐतिहासिक फैसला लिया है, बल्कि राजद उम्मीदवार के लिए परेशानी का सबब पैदा कर दिया है. बता दें कि इस बार के विधानसभा चुनाव में मधेपुरा सीट से 14 उम्मीदवारों ने अपना नामांकन पर्चा दाखिल किया है. इन 14 उम्मीदवारों में से लगभग सभी यादव उम्मीदवार हैं. इस समीकरण के हिसाब से राजद का कोर वोटर बिखरता नजर आ रहा है, जिसका सीधा फायदा एनडीए गठबंधन को होने की प्रबल संभावना है. क्योंकि 14 उम्मीदवारों में से कुछ यादव उम्मीदवार ऐसे हैं, जिनकी अपनी राजनीतिक पृष्टभूमि है .

यादवों की निर्णायक भूमिका 

विधानसभा हो या लोकसभा. यहां से किसी भी दल के प्रत्याशियों की जीत में यादव मतदाता ही निर्णायक भूमिका में रहे हैं और हमेशा से यादव समुदाय के उम्मीदवार के सिर ही जीत का सेहरा बंधा है. इसका कारण है क्षेत्र की जनसंख्या में सबसे अधिक होना. इस बार के चुनाव में मधेपुरा विधानसभा सीट में कुल मतदाताओें की संख्या 345118 है, जिनमें महिला मतदाता 165143, पुरूष मतदाता 179963, थर्ड जेंडर 12 हैं. इस बार विधानसभा चुनाव में पुरुषों के बजाय महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत ज्यादा रहा. 115655  पुरुष और 123633  महिला वोटर  कुल 239288 वोटरों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. 64.27 प्रतिशत पुरूष और 74.86 प्रतिशत महिला, कुल 69.34 प्रतिशत मतदान का आंकड़ा रहा है.

विकास के मुद्दे

इस बार के चुनाव में जनता के बीच विकास के दावे , बेरोजगारी,  रोजगार के अभाव में पलायन , भ्रष्टाचार के मुद्दे रहें है. चुनावी समर में इस बार ऐसा देखने को मिल रहा है. जनता विकास को तवज्जो दे रही है, लेकिन विकास के दावे और पलायन जैसे मुद्दे के बीच कहीं न कहीं यादव बहुल क्षेत्र होने के कारण जाति फैक्टर हावी रहा है, जो पिछले कई चुनावों की स्थिती से स्पष्ट होता है, लेकिन इस बार यह काफी दिलचस्प साबित हो सकता है. पिछले तीन विधान सभा चुनाव में लगातार जीत हासिल करने वाली आरजेडी अपनी मजबूत स्थिति बरकरार रखती है या जेडीयू के गैर यादव उम्मीदवार अपना दबदबा कायम करते हैं, राजनीतिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण होगा. 

Featured Video Of The Day
Yadav-Muslims को Bihar Elections 2025 में किसका समर्थन? | NDA | JDU | Owaisi | PK | Tejashwi | RJD