- बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए ने शानदार प्रदर्शन किया, बीजेपी 89 और जेडीयू 85 सीटों पर विजयी रही
- राज्य में पलायन और रोजगार की समस्या गंभीर है, नीतीश कुमार ने एक करोड़ नौकरियां देने का वादा किया
- अपराध दर में बीते दशक में 80 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, कानून व्यवस्था सुधारना चुनौती बना हुआ है
बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए ने शानदार वापसी की है. विधानसभा चुनाव 2025 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में शामिल पार्टियों ने शानदार प्रदर्शन किया. बीजेपी 89 सीटों से साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी, दूसरी तरफ 85 सीट से साथ नीतीश कुमार की पार्टी दूसरे नंबर पर रही, वहीं चिराग पासवान की पार्टी के खाते में 19, हम पार्टी के खाते में 5 और रालोमो ने 4 सीट पर जीत दर्ज की.
विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान कई ऐसे वादे किए गए जिसको पूरा करना आसान नहीं होगा. ऐसे में कई ऐसे चुनौतियां हैं जिससे सरकार को दो दो हाथ करना होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव के दौरान 84 सार्वजनिक सभाएं कीं और अगली सरकार के एजेंडे पर जोर देते रहे. उन्होंने निवेशकों से राज्य में निवेश बढ़ाने की भी अपील की.
चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं कि नई सरकार के गठन के बाद 5 बड़ी चुनौतियां क्या होंगी-
पलायन और रोजगार नौकरी
आपको याद होगा इस बार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी और प्रशांत किशोर ने बिहार से रोजगार के लिए पलायन को बड़ा मुद्दा बनाया था. एक तरफ आरजेडी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे महागठबंधन ने राज्य में हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का वादा किया था तो दूसरी तरफ एनडीए ने एक करोड़ नौकरियां और रोजगार देने की बात कही थी. बिहार में पलायन एक बड़ी समस्या है. एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में हर तीन में से दो घरों का कम से कम एक सदस्य दूसरे राज्य में काम करता है. एक आंकड़े को देखें तो लगभग 1980 के दशक में, केवल 10-15 फीसदी परिवारों में ही कोई प्रवासी मजदूर था लेकिन 2017 तक ये आंकड़ा बढ़कर 65 फीसदी हो गया. राज्य का 54 फीसदी वर्किंग फोर्स अभी भी खेती-बाड़ी से जुड़ा है. जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 46 फीसदी है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चुनाव प्रचार के दौरान अगले पांच साल में 1 करोड़ नौकरियां और रोजगार देने का वादा किया था. आपको याद होगा को 2020 विधानसभा चुनाव में नौकरी कितना बड़ा मुद्दा बना था जो तेजस्वी यादव की नौकरियों की अपील ने महागठबंधन को 110 सीटें दिलाई थीं. इसे समर्थन देने के लिए सरकार ने मुख्यमंत्री महिला उद्यमी योजना लागू की है, जो महिला उद्यमियों को 10 लाख रुपये का अनुदान देती है. मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना पात्र महिला उद्यमियों को 2.1 लाख रुपये मुहैया कराती है, जिसमें पहली गैर-वापसी योग्य किस्त के रूप में 1.21 करोड़ महिलाओं को 10 हजार रुपये की पहली किस्त दी गई हैं. आगे की किस्तें व्यवसाय प्रस्ताव की व्यवहार्यता पर निर्भर करती हैं, जिसमें 1 करोड़ प्रस्तावों से कुल 2 लाख करोड़ रुपये की उम्मीद है. सरकार स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में करीब 5 लाख नौकरियां पैदा करने का लक्ष्य रखती हैं.
लॉ & ऑर्डर को फिर से पटरी पर लाने की चुनौती
बिहार में नीतीश कुमार को सुशासन बाबू के नाम से जाना जाता है. उन्हें राज्य में तथाकथित 'जंगल राज' खत्म करने का श्रेय भी दिया जाता है पर विगत कुछ वर्षों से राज्य में क्राइम का ग्राफ लगातार बढ़ा है. स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की मानें तो 2015 से 2024 के बीच बिहार में अपराध दर में भारी बढ़ोतरी हुई है. आंकड़ों के अनुसार राज्य में 2015 से 2024 के बीच अपराधों की संख्या में 80 प्रतिशत वृद्धि हुई है, जबकि भारत के राष्ट्रीय औसत में बढ़ोतरी करीब 24 प्रतिशत की रही. हालांकि, जनसंख्या के हिसाब से प्रति लाख आबादी पर अपराध दर राष्ट्रीय औसत से काफी कम है.
कुछ समय पहले पटना में प्रसिद्ध उद्योगपति गोपाल खेमका की हत्या के बाद से ही बढ़ते अपराध की चर्चा तेज हो गई थी. इसके बाद 13 जुलाई को एडवोकेट जितेंद्र मेहता और फिर 17 जुलाई को पटना के ही पारस हॉस्पिटल में पैरोल पर इलाज करा रहे कुख्यात अपराधी चंदन मिश्रा की हत्या कर दी गई. इसके बाद खगड़िया में एक जेडीयू नेता की हत्या हुई. नीतीश कुमार के नए कार्यकाल में राज्य कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने की जिम्मेवारी फिर से उनके कंधों पर होगा.
आर्थिक विकास और औद्योगिकरण
बिहार देश के उन राज्यों में से है जो जीडीपी, प्रति व्यक्ति आय और औद्योगिक विकास में अभी भी पीछे हैं. सरकार के लिए राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार लाना एक महत्वपूर्ण कार्य होगा. राज्य में कारखानों की संख्या घटी है (2013-14 में 3,132 से घटकर 2022-23 में 2,782 हो गई). औद्योगिक निवेश को बढ़ावा देना और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को मजबूत करना आवश्यक है. सरकार को अपनी बिहार औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन पैकेज 2025 जैसी नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करना होगा, जिसमें मुक्त भूमि और ब्याज में छूट जैसे प्रोत्साहन शामिल हैं. सड़कों, बिजली और इंटरनेट कनेक्टिविटी जैसी बुनियादी ढांचे को और बेहतर बनाना होगा ताकि निजी निवेश को आकर्षित किया जा सके.
सामाजिक कल्याण योजनाएं लागू करना
राज्य को हर साल बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है, जिससे जान-माल का भारी नुकसान होता है और विकास बाधित होता है. साथ ही, सामाजिक कल्याण योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करना भी एक बड़ी चुनौती है. कोसी और अन्य नदियों के कारण हर साल आने वाली बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए एक प्रभावी और एकीकृत नीति की आवश्यकता है, ताकि पलायन और आजीविका के नुकसान को कम किया जा सके. जीविका योजना, मुफ्त बिजली, पेंशन वृद्धि और मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना जैसी घोषणाओं और योजनाओं को बिना भ्रष्टाचार के तेजी से और कुशलता से लाभार्थियों तक पहुंचाना सरकार की साख के लिए महत्वपूर्ण होगा.
स्वास्थ्य और शिक्षा
बिहार सरकार ने खासकर शिक्षा में सुधार के लिए ऐसे बहुत से निर्णय लिए है जिसके कारण इस क्षेत्र में बहुत से सुधार हुए हैं. विद्यालय में छात्र और शिक्षक के अनुपात में सुधार हुआ है. नए कड़े नियम और सख़्ती के कारण शिक्षक स्कूल सही समय पर पहुंच रहे हैं, विद्यालय के इन्फ्रास्ट्रक्चर में काफी सुधार हुआ हैं. पर राज्य के सरकारी स्कूलों में ड्रॉपआउट दर देश में सबसे ज़्यादा है और यह सरकार के लिए अभी भी चुनौती बनी हुई हैं. बहुत से ऐसे स्कूल भी हैं जिसमें अभी भी बिजली, शिक्षक, कंप्यूटर और पुस्तकालय तक 78,120 सरकारी स्कूलों में से 16,529 में अभी भी बिजली नहीं है और केवल 5,057 स्कूलों में ही कंप्यूटर हैं, जो मात्र 6.5% है.
बिहार में 2,637 स्कूल ऐसे हैं जहां केवल एक शिक्षक है और इन स्कूलों में 2.91 लाख छात्र नामांकित हैं. वहीं, राज्य में 117 स्कूल ऐसे भी हैं जहां एक भी छात्र नामांकित नहीं है, फिर भी वहां 544 शिक्षक तैनात हैं. बिहार में स्कूल छोड़ने की दर भी सबसे ज़्यादा है: प्राथमिक (कक्षा 1-5): 8.9%, उच्च प्राथमिक (कक्षा 6-8): 25.9%, माध्यमिक (कक्षा 9-10): 25.63%." नहीं हैं. उच्च शिक्षा में भी सुधार करने की जरूरत है.
जीईआर (सकल नामांकन अनुपात) 17.1% था, अर्थात, 18-23 वर्ष की आयु वर्ग में राज्य की अनुमानित जनसंख्या 1.36 करोड़ है, लेकिन इनमें से केवल 23.33 लाख स्नातक कार्यक्रमों में नामांकित हैं. 1.13 करोड़ युवा अभी उच्च शिक्षा से वंचित हैं. वही राज्य के स्वास्थ्य महकमे की बात करे तो स्थिति इनकी भी बहुत अच्छी नहीं हैं. राज्य में नीतीश सरकार आने के बाद कई बड़े बड़े अस्पताल कॉलेज जरूर खुले है पर मूलभूत सुविधाओं की कमी अभी भी महसूस की जा सकती हैं.
बिहार में सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन पर 2024 की सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य के स्वास्थ्य विभाग में आधे पद खाली हैं. राज्य में प्रति 2,148 लोगों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है, जबकि प्रति हज़ार लोगों पर एक डॉक्टर की सिफ़ारिश की गई है. 2024 में 5,081 विशेषज्ञों की आवश्यकता के मुकाबले केवल 1,580 पद भरे गए - यानी 69 प्रतिशत पद रिक्त रहे. विशेष रूप से, एनेस्थीसिया विशेषज्ञों की बात करें तो 1,129 की आवश्यकता के मुकाबले केवल 156 पद ही उपलब्ध थे. 911 स्त्री रोग विशेषज्ञों की आवश्यकता थी, लेकिन केवल 375 ही उपलब्ध थे. यानी 86 प्रतिशत पद रिक्त थे. मानव संसाधनों की कमी के अलावा, राज्य में बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है. स्वास्थ्य केंद्रों में पीने का पानी, पंखे, पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग शौचालय, कुर्सियां वगैरह नदारद हैं - और आपातकालीन वार्डों और ऑपरेशन थिएटरों में ज़रूरी उपकरण भी नहीं हैं.
बाढ़ के उप-जिला अस्पतालों के आपातकालीन वार्डों में 71 प्रतिशत ज़रूरी उपकरण गायब हैं. ऑपरेशन थिएटरों में यह संख्या 84 प्रतिशत है. महुआ, मखदुमपुर, भगवानपुर, बख्तियारपुर और काको में भी यही स्थिति पाई गई. संयुक्त राष्ट्र के लिए भारत के सतत विकास लक्ष्यों के अनुसार, जिन्हें 2030 तक प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है, प्रति लाख जीवित जन्मों पर मातृ मृत्यु दर 70 होनी चाहिए. 2024 में देश के लिए यह संख्या 97 थी, जबकि बिहार के लिए यह 118 थी. इसी प्रकार, नवजात मृत्यु दर के 12 या उससे कम के लक्ष्य के विरुद्ध, भारत का औसत 24.9 था, जबकि बिहार का 34.5 था.
अजीब बात यह है कि इतना कुछ होने के बावजूद, बिहार ने स्वास्थ्य सेवा की स्थिति सुधारने के लिए कोई कदम नहीं उठाया.। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है, "बिहार सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 के अनुरूप, हर स्वास्थ्य सुविधा में बुनियादी ढांचे/उपकरणों की कमी को दूर करने के लिए कोई व्यापक स्वास्थ्य नीति/योजना तैयार नहीं की." नतीजतन, बिहार का स्वास्थ्य विभाग सुधार के लिए आवंटित धनराशि को बार-बार लौटाता रहा. वित्तीय वर्ष 2016 से 2022 के बीच बिहार स्वास्थ्य विभाग के लिए कुल 69,791 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, जिसमें से 21,743 करोड़ रुपये या 31 प्रतिशत राशि खर्च नहीं हो पाई.














