बिहार चुनाव रिजल्ट 2025: लालू यादव की वो एक भूल, जो बनी RJD की तबाही का कारण

243 विधानसभा सीटों वाले बिहार में एनडीए ने 202 सीटों पर जीत हासिल कर ली है. चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर भी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के सभी सीटों का रिजल्ट घोषित किया जा चुका है. 143 सीटों पर लड़ने वाली RJD महज 25 सीटें जीतकर तीसरे नंबर की पार्टी बनी है.

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  • लालू यादव ने 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के साथ गठबंधन कर दोनों बेटों को राजनीति में लॉन्च किया.
  • तेज प्रताप यादव के बजाय तेजस्वी यादव को डिप्टी सीएम बनाना आरजेडी में परिवारिक विवाद की जड़ बना.
  • तेज प्रताप यादव की शादी टूटने और विवादों के कारण तेजस्वी यादव पार्टी में प्रमुख नेता बन गए थे.
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जब तक रहेगा समोसे में आलू तब तक रहेगा बिहार में लालू. ये 90 का दौर था. दशक के अंत आते-आते लालू यादव मुकदमों में फंसे और पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया. 2004 में दिल्ली के सिंहासन से एनडीए हटी तो लालू यूपीए सरकार में रेलमंत्री बन गए. लगा लालू अपराजेय हैं. मगर 2005 में ही बिहार की सत्ता नीतीश कुमार के हाथों गंवा बैठे. रही-सही कसर 2009 के लोकसभा चुनाव में पूरी हो गई. यूपीए 2 में मंत्री पद भी नहीं मिला. फिर बिहार में 2010 में दूसरी बार बिहार की सत्ता गंवा बैठे. लालू समझ चुके थे कि उनका दौर समाप्त हो चुका है. फिर भी 2014 के लोकसभा चुनाव में पूरा दमखम लगाया मगर मोदी की आंधी में उड़ गए. तब लालू यादव ने वो चाल चली कि बीजेपी भी चारो खाने चित हो गई. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार से हाथ मिलाया और अपने दोनों बेटों तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव को राजनीति में लॉन्च कर दिया.

तेज प्रताप क्यों नहीं और तेजस्वी क्यों

यहां तक तो लालू यादव के पासे लगातार सही पड़ रहे थे. भले ही वो सत्ता से दूर थे, मगर बिहार की राजनीति में सबसे बड़े चेहरे के तौर पर स्थापित थे. नीतीश कुमार के साथ हाथ मिलाकर उन्होंने खुद को बिहार का चाणक्य सिद्ध कर दिया था. दोनों बेटे न सिर्फ नीतीश कुमार के सहयोग से विधानसभा चुनाव जीत गए, बल्कि मंत्री भी बन गए. मगर, इस सारी कवायद में लालू यादव ने वो भूल कर दी, जो 2025 में  RJD की तबाही का कारण बन गया. उन्होंने बड़े बेटे तेज प्रताप की जगह तेजस्वी यादव को डिप्टी सीएम बनवा दिया. तेज प्रताप को मंत्री पद से संतोष करना पड़ा. तेज प्रताप की तरह हर कोई लालू के इस फैसले से चौंक गया. अगर एक ही डिप्टी सीएम बनाना था तो तेज प्रताप क्यों नहीं और तेजस्वी क्यों? 

ये सवाल कितना बड़ा था शायद इसका अंदाजा लालू यादव को भी नहीं था. उन्होंने 'महाभारत' का बीज बो दिया था. लालू यादव ने कभी इसका जवाब नहीं दिया, मगर लोगों को ये संदेश दिया गया कि तेज प्रताप यादव के गुस्सैल स्वभाव के कारण तेजस्वी यादव पर भरोसा जताया गया. फिर तेज प्रताप खुद को श्रीकृष्ण और तेजस्वी को अर्जुन बताने लगे. लगा कि जो कुछ हो रहा है उसमें तेज प्रताप यादव की भी रजामंदी है. धीरे-धीरे ये सवाल कमजोर पड़ने लगा, मगर जब भी तेज प्रताप यादव और तेजस्वी साथ दिखते तो हर व्यक्ति के जहन में फिर वही सवाल उठता कि आखिर लालू यादव ने ऐसा फैसला क्यों किया? 

तेज प्रताप और तेजस्वी में कब बढ़ा विवाद

नीतीश कुमार 2017 में लालू यादव से अलग होकर फिर एनडीए में चले गए. लगा कि लालू यादव के बेटों का करियर बनने से पहले ही समाप्त हो गया. फिर तेज प्रताप यादव की शादी 12 मई 2018 को पटना के वेटरनरी कॉलेज मैदान में धूमधाम से हुई. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा राय की पोती और बिहार सरकार में पूर्व मंत्री रहे चंद्रिका राय की बेटी ऐश्वर्या राय और तेज प्रताप शादी के बंधन में बंधे. पीएम मोदी से लेकर देश का हर वीवीआईपी इस शादी में मौजूद था. मगर छह महीने बाद ही तीन नवंबर 2018 को तेज प्रताप यादव ने पटना के फैमिली कोर्ट में ऐश्वर्या से तलाक की अर्जी दे दी. ऐश्वर्या राय के साथ हुए गलत बर्ताव और उनके आरोपों में पूरा लालू परिवार घिरता दिखा, मगर कुछ दिनों में इस अलगाव की सारी जिम्मेदारी तेज प्रताप यादव पर डाल दी गई. आम लोगों को भी दोषी तेज प्रताप यादव ही नजर आए. इस बीच तेजस्वी यादव बड़ी कुशलता के साथ इस विवाद से बच निकले. तब सभी लोगों को कि शायद इसीलिए लालू यादव ने तेज प्रताप की जगह तेजस्वी को चुना. धीरे-धीरे तेजस्वी का कद पार्टी में बढ़ने लगा और लालू यादव के बाद निर्विवाद रूप से वो नंबर टू हो गए. 

पार्टी में तेज प्रताप का महत्व भी घटता जा रहा था. उन्हें प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह तक भाव नहीं देते थे. 2019 के लोकसभा चुनाव में तेज प्रताप और तेजस्वी यादव आमने-सामने आ गए. तेज प्रताप के नामित उम्मीदवारों को टिकट नहीं मिला. तेज प्रताप ने इसे लेकर कई बार सार्वजनिक रूप से टिप्पणी की. अखबारों में खबरें छपने लगीं. सबसे बड़ी बात जो उन्हें नागवार गुजरी वो उनके ससुर चंद्रिका राय को राजद से टिकट मिलना था. मीसा भारती भी पाटलीपुत्र से टिकट को लेकर बगावत पर उतरीं, मगर टिकट मिलते ही उन्होंने तेजस्वी यादव का पक्ष चुन लिया. 

2020 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव को लालू यादव ने महागठबंधन में सीएम फेस घोषित करवा दिया. इसके लिए कांग्रेस को भर-भर कर सीटें दी गईं. नौकरी देने के वादे पर ये चुनाव हुआ और तेजस्वी यादव की एक तेज-तर्रार नेता के तौर पर छवि बनाई गई. तेजस्वी खुद को लालू यादव की छवि से निकालने की भी पूरी कोशिश करते दिखे. वहीं चिराग पासवान के घर में लगी 'आग' के कारण एनडीए बंटा हुआ था. चिराग ने चाचा पारस के कारण नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ था. स्थिति ये हुई कि आरजेडी सत्ता की दहलीज तक तो पहुंची, मगर कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के कारण सत्ता मिल न सकी. एनडीए जैसे-तैसे सत्ता में वापसी कर पाया. नीतीश कुमार 2005 के बाद सबसे कमजोर स्थिति में थे. नीतीश कुमार की इस स्थिति को भांपकर लालू यादव ने फिर जादू चलाया और एक बार फिर 2022 में सत्ता में आ गए. नीतीश सीएम और तेजस्वी डिप्टी सीएम. तेज प्रताप को फिर मंत्री पद. ऐसा एक बार फिर महसूस हुआ कि बिहार में लालू यादव की राजनीतिक सूझबूझ का कोई तोड़ नहीं है. हालांकि, तेज प्रताप असहज नजर आ रहे थे, मगर खुलकर बोल नहीं रहे थे.

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लालू यादव ने तेजस्वी को दी खुली छूट

तेजस्वी यादव को लालू यादव अब पूरी छूट देने लगे और खुद साइलेंट होते गए. मगर 2024 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले नीतीश कुमार ने एनडीए में वापसी कर ली. RJD पूरी तरह तेजस्वी यादव के हाथ में चली गई थी. 2024 के चुनाव में टिकट बंटवारे से लेकर कांग्रेस से डील तक में तेजस्वी ही नेतृत्व करते दिखे. तेज प्रताप को एक तरह से किनारे कर दिया गया था. RJD खुद को लालू यादव की छवि से अलग तेजस्वी यादव में पिरोने लगी. पोस्टरों पर तेज प्रताप तो क्या लालू यादव और राबड़ी देवी तक गायब होने लगे. तेजस्वी यादव ने अपने बचपन के दोस्त संजय यादव की मदद से खुद का पार्टी में वर्चस्व स्थापित कर लिया, मगर ये बात कोई बोलता नहीं था, जानते सभी थे. 8 जनवरी 2025 को पटना मौर्या होटल में आयोजित पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में तेजस्वी यादव को वो सभी शक्ति दे दी गई, जो लालू यादव के पास थी. यानी तेजस्वी अब आरजेडी सुप्रीमो लालू के बराबर थे.

तेज प्रताप ने खुलकर रखी बात

मई 2025 में तेज प्रताप यादव के फेसबुक कांड के बाद लालू यादव के लेटर हेड से उनको पार्टी और परिवार से बाहर निकाल दिया गया. तेज प्रताप ने पहले हिचकते हुए, फिर अपनी पार्टी जनशक्ति जनता दल बनाने के बाद खुलकर कई मंचों से परिवार में मचे 'महाभारत' पर बात की. 'जयचंदों' का जिक्र करते हुए यहां तक कह दिया कि मुख्यमंत्री कौन नहीं बनना चाहेगा. अगर उन्हें भी मौका मिलेगा तो वो भी बनेंगे. रोहिणी ने भी इशारों में तेजस्वी पर सार्वजनिक तंज कसे. हालांकि, उन्हें मैनेज कर लिया गया. तेज प्रताप के महुआ सीट पर तेजस्वी यादव ने आरजेडी उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार किया तो तेज प्रताप ने भी राघोपुर में अपने प्रत्याशी के पक्ष में प्रयास किया. नतीजा तेज प्रताप तो हार ही गए और तेजस्वी भी हारते-हारते किसी तरह अपनी सीट बचा पाए. बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी महज 25 सीट ही जीत पाई. 2020 में आरजेडी ने 75 सीटें जीती थीं. 

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तेजस्वी को भी हुआ नुकसान

ये सही है कि इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए एकजुट था. चिराग भी साथ थे. बिहार सरकार ने महिलाओं को अपने पक्ष में करने के लिए 10,000 रुपये वाली स्कीम से फायदा पहुंचाया. नीतीश कुमार पर तेजस्वी यादव के 'बूढ़े होने', 'अस्वस्थ होने' के बयानों और हर घर के एक सदस्य को नौकरी देने का वादा करना और कैसे देंगे ये ना बताना भी मिसफायर किया, मगर लालू परिवार की 'महाभारत' के कारण ही ये स्थिति हुई. अगर तेज प्रताप और तेजस्वी एक साथ होते तो शायद इतनी बुरी स्थिति नहीं होती. यादव वोटरों के मन में भी आरजेडी को लेकर भ्रम की स्थिति रही. हालांकि, तेज प्रताप की पार्टी का वोट शेयर बहुत अधिक नहीं है, लेकिन इसने बिहार के लोगों के सामने तेजस्वी की छवि को भी धूमिल किया कि वो अपने भाई से नहीं निभा सके.

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साफ है कि लालू यादव की एक भूल ने आरजेडी और उनके परिवार को हाशिए पर पहुंचा दिया. तेज प्रताप कह चुके हैं कि वो मरना पसंद करेंगे, लेकिन आरजेडी में कभी नहीं जाएंगे. ऐसे में अब उनकी पार्टी और परिवार में वापसी बहुत मुश्किल है. अगर लालू यादव ने तेज प्रताप को आगे किया होता और उनके फेल होने पर तेजस्वी को आगे करते तो शायद ऐसी स्थिति ना आती. तेज प्रताप और जनता के मन में ये कभी ना सवाल उठता कि तेज प्रताप क्यों नहीं और तेजस्वी क्यों?    

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