बिहार एनडीए में चिराग पासवान के विधानसभा चुनाव लड़ने की चर्चा ने गठबंधन में दुविधा पैदा कर दी है. जेडीयू इस संभावना से उत्साहित नहीं है और सवाल उठा रही है कि केंद्रीय कैबिनेट मंत्री रहते हुए चिराग का चुनाव लड़ना कितना उचित है. दरअसल जेडीयू सूत्रों का कहना है कि यह चिराग का व्यक्तिगत फैसला होगा, न कि एनडीए का. दरअसल उन्हें आशंका है कि चिराग की यह रणनीति लोजपा (रामविलास) के लिए अधिक सीटें हासिल करने का दबाव बनाने की हो सकती है.
इससे मुख्यमंत्री पद को लेकर भ्रम पैदा हो सकता है. एनडीए पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि चुनाव नीतीश कुमार की अगुवाई में लड़ा जाएगा. हालांकि, कुछ बीजेपी नेता मानते हैं कि चिराग के चुनाव लड़ने से पासवान वोट एनडीए के पक्ष में एकजुट हो सकते हैं. इस बीच, 29 जून को नीतीश कुमार के गृह जिले राजगीर में चिराग के ‘बहुजन भीम संकल्प समागम' के जरिए दो लाख लोगों को जुटाने की योजना ने जेडीयू की चिंता बढ़ा दी है.
चिराग की चर्चा क्यों?
लोजपा (रामविलास) में ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' के तहत चिराग के विधानसभा चुनाव लड़ने की मांग उठी है. चिराग ने भी संकेत दिया है कि “बिहार उन्हें बुला रहा है.” लेकिन जेडीयू का कहना है कि सीट बंटवारे में लोजपा को जितनी सीटें मिलेंगी, उम्मीदवार चुनना उनका अधिकार है.
चुनौतियां और संभावनाएं
असल में जानकारों का मानना है कि चिराग का चुनाव लड़ना तभी प्रभावी होगा, अगर वे मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल हो सकें. लेकिन नीतीश पहले से ही एनडीए का सीएम चेहरा हैं. लोजपा (रामविलास) को 30 से भी कम सीटें मिलने की संभावना है, जो चिराग की सीएम बनने की महत्वाकांक्षा के लिए नाकाफी हैं. केंद्रीय मंत्री के रूप में उनकी स्थिति को देखते हुए राज्य की राजनीति में उतरना जोखिम भरा हो सकता है.
विकल्प और जोखिम
अगर चिराग एनडीए छोड़कर महागठबंधन में जाते हैं, तो वहां तेजस्वी यादव के नेतृत्व में उनके लिए जगह नहीं होगी. प्रशांत किशोर के साथ गठबंधन भी नेतृत्व को लेकर टकराव हो सकता है. साल 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग ने 130 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन केवल एक सीट जीती. तब जेडीयू ने अपने खराब प्रदर्शन के लिए चिराग को जिम्मेदार ठहराया था. वर्तमान में, केंद्र में जेडीयू की अहमियत और बीजेपी-जेडीयू के मजबूत रिश्तों को देखते हुए, चिराग का एनडीए से अलग होना उनके लिए नुकसानदायक हो सकता है.