चिराग पासवान को एनडीए और पारस को महागठबंधन देंगे कितनी सीटें? किन पर होगा दोनों के बीच मुकाबला

अगर यह टकराव होता है, तो 2025 का चुनाव सिर्फ एनडीए बनाम महागठबंधन नहीं रहेगा, बल्कि यह परिवार बनाम परिवार और विरासत बनाम विरासत की लड़ाई में भी तब्दील हो जाएगा.

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  • रामविलास पासवान के निधन के बाद उनका परिवार चिराग पासवान और पशुपति पारस के दो खेमों में विभाजित हो गया है.
  • चिराग 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में लगभग बीस से चालीस सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं.
  • पारस की पार्टी महागठबंधन के साथ है और उसे पांच से सात सीटें मिलने की संभावना है,.
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बिहार की राजनीति में पासवान परिवार का नाम दशकों से गूंजता आया है. रामविलास पासवान के निधन के बाद यह परिवार दो खेमों में बंट गया. एक तरफ चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और दूसरी ओर पशुपति कुमार पारस की राष्ट्रीय लोक जनता पार्टी (आरएलजेपी). अब 2025 का विधानसभा चुनाव नजदीक है, और सवाल उठ रहा है कि क्या इस चुनाव में चाचा और भतीजा, अपनी-अपनी पार्टियों के बैनर तले, आमने-सामने होंगे?

चिराग को कितनी सीटें

चिराग पासवान ने साफ कर दिया है कि उनकी पार्टी पूरे दमखम के साथ मैदान में उतरेगी. “बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट” के नारे के साथ वे संगठन को बूथ स्तर तक मजबूत कर रहे हैं. एलजेपी-रामविलास ने अपनी मांग रखी है कि वे 40 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं, हालांकि एनडीए के अंदरूनी समीकरण बताते हैं कि उन्हें शायद 20 सीटों तक ही संतोष करना पड़ेगा.

चिराग की नज़र खास तौर पर उन क्षेत्रों पर है जहां पासवान समाज का वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है. इसके अलावा उन्होंने आरा, जमुई, वैशाली और पटना की कुछ सीटों पर भी विशेष रुचि दिखाई है.

पारस का गणित

दूसरी तरफ, पशुपति कुमार पारस ने एनडीए छोड़कर महागठबंधन (इंडिया ब्लॉक) के साथ जाने का ऐलान किया है. खबरों के मुताबिक, आरएलजेपी को महागठबंधन में 5–7 सीटें दी जा सकती हैं. पारस का फोकस भी पासवान वोट बैंक पर ही है, क्योंकि यही उनका परंपरागत आधार है. आरएलजेपी जिन क्षेत्रों पर जोर दे रही है, उनमें खगड़िया, हाजीपुर और आसपास की कुछ आरक्षित सीटें शामिल हैं. इन क्षेत्रों में पारस की व्यक्तिगत पकड़ पहले से रही है.

अब बड़ा सवाल यह है कि आखिर किन सीटों पर दोनों पार्टियां आमने-सामने आ सकती हैं. आधिकारिक सूची अभी सामने नहीं आई है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कुछ सीटों पर टकराव लगभग तय है.

  • हाजीपुर क्षेत्र की विधानसभा सीटें – हाजीपुर लोकसभा से जुड़ी विधानसभा सीटें (जैसे महनार, रघोपुर, लालगंज) पर दोनों दल दावेदारी कर सकते हैं. चिराग का लोकसभा गढ़ यही है, जबकि पारस का भी यही आधार क्षेत्र रहा है.
  • खगड़िया और आलौली – पारस का पुराना विधानसभा गढ़ आलौली रहा है. यदि एलजेपी-रामविलास यहां प्रत्याशी उतारती है तो यह मुकाबला बेहद दिलचस्प हो जाएगा.

‘9 सीटों' की चुनौती – हाल ही में एक रिपोर्ट में बताया गया कि चिराग पासवान की पार्टी नौ ऐसी सीटों की मांग कर रही है, जहां उनकी पकड़ कमजोर है और जीतने के लिए जेडीयू-बीजेपी का सहयोग जरूरी होगा. अगर महागठबंधन इन्हीं सीटों में से कुछ आरएलजेपी को सौंप देता है तो सीधा टकराव हो सकता है. शाहाबाद और मगध क्षेत्र – इन क्षेत्रों में एलजेपी-रामविलास अपने विस्तार की कोशिश कर रही है. महागठबंधन भी यहां आरएलजेपी को आज़मा सकता है. इस स्थिति में नए टकराव पैदा होंगे.

परिवार बनाम परिवार की लड़ाई

पासवान समाज बिहार की राजनीति में निर्णायक है. दोनों ही दल इसे अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. पारिवारिक विरासत की लड़ाई – रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत का उत्तराधिकारी कौन है, यह सवाल अभी भी अधर में है. आमने-सामने का मुकाबला इस प्रश्न का प्रतीकात्मक उत्तर बन सकता है.

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अभी तक आधिकारिक तौर पर यह साफ नहीं हुआ है कि चिराग पासवान और पशुपति पारस की पार्टियां किन विधानसभा सीटों पर प्रत्यक्ष टकराएंगी. लेकिन हाजीपुर, आलौली, खगड़िया और चिराग की मांग वाली नौ सीटें ऐसे क्षेत्र हैं जहां यह मुकाबला संभव दिख रहा है. अगर यह टकराव होता है, तो 2025 का चुनाव सिर्फ एनडीए बनाम महागठबंधन नहीं रहेगा, बल्कि यह परिवार बनाम परिवार और विरासत बनाम विरासत की लड़ाई में भी तब्दील हो जाएगा. यह मुकाबला बिहार की राजनीति को नई दिशा दे सकता है और दलित राजनीति का भविष्य तय कर सकता है.
 

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